अर्धांगिनी-अपरिभाषित प्रेम... - एपिसोड 13 रितेश एम. भटनागर... शब्दकार द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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अर्धांगिनी-अपरिभाषित प्रेम... - एपिसोड 13

ज्योति के सिर पर हाथ रखकर जतिन जैसे उसकी कसम खाते हुये द्रढ़निश्चय सा कर रहा था कि "बहन चाहे जो हो जाये तुझे मै काम नही करने दूंगा, अपनी पढ़ाई और अपने हुनर को साक्षात् करने के लिये तू अपनी मर्जी से जॉब करे वो अलग बात है पर जिम्मेदारियो के बोझ तले दबकर तो मै तुझे जॉब नही करने दूंगा, तेरे सिर पर जिम्मेदारियो का बोझ तो मै नही आने दूंगा फिर चाहे मुझे चौबीसों घंटे क्यों ना काम करना पड़े" ये ही सोचते सोचते जतिन ने बड़े प्यार से ज्योति और अपनी मम्मी के आंसू पोंछे और बड़े ही गंभीर स्वर मे भर्रायी सी आवाज मे जतिन ने कहा- मै हार नही मानुंगा और किसी को कोई जरूरत नही है काम करने के लिये बाहर जाने की... मै सब ठीक कर दूंगा!!

इसके बाद जतिन अपनी जगह से उठा और नहाने चला गया, नहाने के बाद पूजा करी और पूजा करने के बाद अपने मम्मी पापा के पैर छुये और ज्योति के माथे पर प्यार किया और घर से निकल गया, जतिन जब घर से निकल रहा था तब उसकी मम्मी बबिता ने पीछे से आवाज लगाते हुये कहा- बेटा कुछ खा तो लेता, खाली पेट घर से क्यो निकल रहा है...

जतिन की मम्मी ऐसा बोलते हुये उसके पीछे पीछे उसे रोकने के लिये जा ही रही थीं कि तभी जतिन के पापा विजय ने उन्हे हाथ पकड़ के रोक दिया और बोले- जाने दो उसे आज उसके हौसले को जो चोट लगी है उसके बाद क्या तुम्हे लगता है कि उसके गले से एक भी निवाला उतरेगा...?

अपने पति विजय की बात सुनकर बबिता जतिन के पीछे जाते जाते रुक गयीं और खिसियाते हुये बोलीं- वो भूखे पेट चला गया घर से और आप उसे रोकने के बजाय मुझे रोक रहे हो...

ऐसा कहते कहते बबिता अपने पल्लू से अपने आंसू पोंछते हुये किचेन मे चली गयीं, उनके किचेन मे जाने के बाद विजय भी नहाने चले गये, नहा के आने के बाद वो तैयार हुये और बबिता से बोले - बबिता मेरा पेट कुछ ठीक नही है तुम खाने का रहने ही दो मुझे भूख नही लग रही, दोपहर मे भूख लगी तो ऑफिस मे ही कुछ मंगा के खा लूंगा..

एक पिता एक ऐसी शख्सियत होता है जो पूरी जिंदगी अपने दिल की बात अपने बच्चो से नही कह पाता है, वो समझता तो सब है पर कभी दिखा नही पाता है, जतिन के इस तरह से भूखे पेट घर से जाने की वजह से पेट खराब का बहाना बनाते हुये उन्होने ये बात छुपा ली कि उनका बेटा खाली पेट घर से निकला है तो वो कैसे खा पायेंगे!!जतिन की मम्मी बबिता ने उन्हे ये कहते हुये टोका भी कि "पूरे दिन के लिये जा रहे हैं और अगर अभी कुछ खाने का मन नही है तो कम से कम टिफिन साथ ले जाइये थोड़ी देर के बाद खा लीजियेगा" पर विजय ने मना कर दिया और उदास सा चेहरा लेकर तैयार हुये और ऑफिस चले गये, विजय के ऑफिस जाने के बाद ज्योति ने भी अपनी मम्मी से खाना ना खाने की बात करते हुये कहा- मम्मी मेरा भी मन नही हो रहा कुछ खाने का, भइया आ जायेंगे तब ही खाउंगी...

जहां एक तरफ सबने खाना खाने से मना कर दिया वहीं दूसरी तरफ बबिता तो वैसे भी नही खाने वाली थीं जतिन को खिलाये बिना..

इधर दूसरी तरफ जतिन घर से निकल कर सीधे मजदूर मार्केट गया और वहां से दो मजदूरो को अपनी बाइक पर बैठा के अपनी टूटी हुयी दुकान ले आया, उन मजदूरो से उसने दुकान ठीक करवाई और दुकान के तीनो साइड मे बल्लियां लगवा के दुकान को मजबूत बनवा दिया... और जो सीमेंट की बोरियां गीली हो गयी थीं उनको उसने दुकान की टीन की दीवारो के तीनो साइड दो दो तीन तीन बोरियां लगा कर मजबूत आधार दे दिया, इसके बाद उसने एक फ्लैक्स बोर्ड बनवाया जिसमे लिखवाया "मां सीमेंट एजेंसी" और उस बोर्ड को बनवा कर अपनी दुकान के बाहर लगवा दिया, ये सारा काम करने मे जतिन को तीन से चार घंटे का समय लग गया, सारा काम खत्म करने के बाद भूखे पेट थका हारा जतिन जब घर पंहुचा तो घर पंहुच कर बिस्तर पर आंखे बंद करके और सिर पर हाथ रखकर दीवार की टेक लेकर बैठ गया, उसे ऐसे बैठा देखकर ज्योति समझ गयी कि भइया बहुत थक गये हैं, वो जतिन के लिये पानी लेकर आयी और पानी देते हुये उस से बोली- भइया.. आप ठीक हैं??

जतिन ने बड़ी बुझी बुझी और थकी हुयी आवाज मे कहा- हमम् ठीक हूं...

ज्योति ने कहा- भइया आपने कुछ खाया या नही...
जतिन ने कहा- नही.. मन ही नही हो रहा...
जतिन की ये बात सुनकर ज्योति ने कहा- पापा का भी मन नही हो रहा था और वो भी आपकी तरह ही भूखे पेट ऑफिस चले गये...

ज्योति की ये बात सुनकर एकदम से चौंकते हुये जतिन ने कहा- हॉॉॉॉ... क्यो पापा ने क्यो नही खाया...
ज्योति ने कहा- भइया.. मम्मी ने भी नही खाया कुछ...
जतिन बोला- और तूने??
जतिन के पूछने पर ज्योति ने "ना" मे सिर हिलाकर मना कर दिया और उसकी आंखो मे आंसू आ गये और वो बोली - भइया आप इतनी टेंशन मे भूखे रहें और हम खाना खायें!! हम कैसे खा पायेंगे भइया....

ज्योति को इस तरह भावुक लहजे मे बात करते देख जतिन का दिल बहुत पसीज सा गया और उसने ज्योति कि सिर पर हाथ फेरा और झटके से अपनी जगह से उठा और अपनी मम्मी को आवाज लगाने लगा, जतिन की आवाज सुनकर तेज तेज कदमो से चलकर उसकी मम्मी बबिता उसके पास आयीं और बोलीं- कहां चला गया था खाली पेट, कितनी चिंता हो रही थी कितनी बार फोन मिलाया फोन क्यो बंद किया हुआ है....

अपनी मम्मी के इतने सारे सवालों का जवाब देते हुये जतिन ने कहा- फोन चार्ज नही कर पाया था सुबह इसलिये बंद हो गया और मेरी वजह से आप लोगो ने भी खाना नही खाया और इस छुटकी को भी नही खिलाया...

जतिन की ये बात सुनकर बबिता की आंखो मे आंसू आ गये, अपनी मम्मी की आंखो से आंसू पोंछते हुये जतिन ने उन्हे बिस्तर पर बैठाया और "अभी आया" कहकर उस कमरे से किचेन की तरफ चला गया, किचेन मे जाकर उसने देखा कि सारा खाना बना हुआ है, उस खाने को बस इंतजार है तो खाने वालो का, जतिन ने फटाफट खाना गर्म किया और एक स्टील का टिफिन उठा के दाल, सूखी सब्जी, चावल और रोटियां उस टिफिन मे रखीं उसके बाद दो थालियो मे खाना परोसा और दोनो थालियां लेकर उस कमरे मे चला गया जिस कमरे मे ज्योति और उसकी मम्मी बैठे थे, उन दोनो के सामने जतिन ने खाने की प्लेट रखी और अपनी मम्मी की थाली से रोटी का एक कौर तोड़ कर उसमे सब्जी और दाल मिलाकर उनको खिलाने के लिये जब उसने हाथ बढ़ाया तो उसकी मम्मी बबिता ने कहा- बेटा पहले तू खा सुबह से भूखे पेट मेहनत कर रहा है...

जतिन ने जवाब दिया- पहले आप लोग खा लो मै पापा जी को खिला दूंगा तब ही खाउंगा, वो भी तो मेरी वजह से भूखे पेट ही चले गये...

जतिन की ये बात सुनकर ज्योति बोली- अच्छा भइया थोड़ा सा खा लो फिर चले जाना...

ऐसा कहकर ज्योति ने अपनी प्लेट से रोटी का एक कौर तोड़ कर जतिन को खिला दिया, उधर बबिता ने भी बड़े प्यार से जतिन को अपने हाथो से एक रोटी खिला दी, अपनी मम्मी और ज्योति की प्लेट से एक एक रोटी खाने के बाद जतिन ने कहा- अच्छा अब मैने खा लिया है अब ऑफिस जाकर पापा जी को खिला दूं पहले उसके बाद घर आकर ठीक से खाउंगा...

इसके बाद जतिन टिफिन लेकर अपने पापा के ऑफिस पंहुच गया, जतिन को देखकर अपने काम मे लगे उसके पापा के चेहरे पर मानो चमक सी आ गयी थी, सुबह से उन्हे जतिन की चिंता हो रही थी पर वो कह नही पा रहे थे, जतिन अपने पापा के पास गया और बोला- पापा जी आप भी बिना कुछ खाये चले आये..!!

जतिन की बात सुनकर विजय बोले- हां बेटा बस मन नही कर रहा था...
जतिन ने कहा- चलिये कोई बात नहीं अब पहले खाना खाइये फिर काम करियेगा वैसे भी लंच टाइम तो हो ही गया है...

इसके बाद जतिन ने अपने पापा को अपने हाथो से एक रोटी खिलाई, अपने बेटे से मिले इस प्यार से अभिभूत विजय.. जतिन के सिर पर हाथ फेरते हुये बोले - सच मे समय के पंख होते हैं, पता ही नही चला कि तू इतना बड़ा कब हो गया....

क्रमशः

जतिन ने हार ना मानते हुये अपने बिज़नेस की बिल्कुल शुरुवात में ही आयी एक अजीब सी चुनौती को पूरे जोश से स्वीकार तो कर लिया लेकिन जतिन को सफलता कैसे मिलेगी ये देखना काफी प्रेरणात्मक और रोचक है, हैना?