अर्धांगिनी-अपरिभाषित प्रेम... - एपिसोड 70 (अंतिम भाग) रितेश एम. भटनागर... शब्दकार द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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अर्धांगिनी-अपरिभाषित प्रेम... - एपिसोड 70 (अंतिम भाग)

जतिन और मैत्री दोनो समझदार थे... रिश्तो और एक दूसरे की भावनाओ के प्रति जिम्मेदार थे... वो दोनो जानते थे कि एक दूसरे पर अपना प्यार जाहिर करने का सिर्फ एक जिस्मानी रिश्ते बनाने का ही तरीका नही होता... बाकि और भी तरीके होते हैं... और जो तरीका जतिन और मैत्री दोनो ने ही आज अपनाया था एक दूसरे पर अपना प्यार जाहिर करने का और एक दूसरे को खुश करने का... वो तरीका उन तमाम तरीकों मे से ही एक था.... 


जहां एक तरफ मैत्री अपने मम्मी पापा को देखकर खुशी के मारे पागल सी हुयी जा रही थी वहीं दूसरी तरफ मैत्री को अपनी आंखो से इतना खुश देखकर और बिना डरे बिना सहमे अपनी बात करते देख कर जगदीश प्रसाद और सरोज दोनो को एक अलग तरह की ही खुशी का एहसास हो रहा था.... 


इन्ही खुशियो के बीच सबने साथ बैठकर खाना खाया... खाना खाने के बाद जतिन ने जगदीश प्रसाद और सरोज का सामान अपने कमरे के बगल मे ही बने गेस्ट रूम मे रख दिया... और खुद सबसे  हर्षित तरीके से  खुश होके मिलकर और विदा लेकर अपने कमरे मे  चला गया.... थोड़ी देर तक बाते वाते करने के बाद बबिता और विजय भी जगदीश प्रसाद और सरोज से खुशी से मिलकर और कहकर कि "आपका आना हमे बहुत अच्छा लगा" वो भी अपने कमरे मे चले गये.... चूंकि मैत्री आज अचानक से अपने मम्मी पापा से मिली थी तो उसका अभी और मन था... कि वो उनके पास  बैठे और अपनी मम्मी की गोद मे सिर रखकर लेटे इसलिये  वो फिलहाल उनके साथ उस कमरे मे ही चली गयी जो जतिन ने उनको रहने के लिये दिया था.... 


मैत्री का मन जैसे त्रिशंकू सा हुआ जा रहा था... एक तरफ उसका मन कर रहा था कि वो अपने मम्मी पापा के पास बैठे और एक तरफ उसका मन कर रहा था कि वो अपने नाथ जी के पास जाकर उससे अपने प्यार का इजहार करे....  इधर जतिन भी अपने कमरे मे लेटा मैत्री के बारे मे  ये सोचकर खुश हो रहा था कि "मैत्री के आने के बाद से हमारे घर की रौनक कितनी बढ़ गयी है... और सबसे प्यारी बात मैत्री की ये है कि वो घर मे सबका ध्यान रखती है... खासतौर से मम्मी का तो वो बहुत ध्यान रखती है...." दूसरी तरफ जतिन आज अपने मम्मी पापा को यूं अचानक देखकर खुश हुयी मैत्री के हाव भावो को याद करके एक अलग ही खुशी महसूस कर रहा था और सोच रहा था कि कितनी जल्दी मैत्री कमरे मे आये और आज वो उससे अपने दिल की बात करे... 


थोड़ी देर तक अपने मम्मी पापा के साथ बैठे बैठे मैत्री का मन जब नही माना तो उसने अंततः अपने मम्मी पापा से कहा- अच्छा मम्मी... आप लोग आराम करिये... अब मै भी सोने के लिये जाती हूं... कल सुबह हमे जल्दी ही ज्योति दीदी के घर भी जाना है.... तो सबको ही जल्दी उठना पड़ेगा.... 


चूंकि खाना खाने के बाद ड्राइंगरूम मे बैठकर बाते करते वक्त बबिता ने सरोज और जगदीश प्रसाद को बता दिया था कि कल उन्हे भी ज्योति के घर चलना है इसलिये उन्होने मैत्री की बात पर सहमति जाहिर करी और मैत्री को प्यार करके अपने कमरे मे जाने के लिये कह दिया..... 


अपने मम्मी पापा के कमरे से निकल कर जतिन से बात करने की खुशी मे मैत्री तेज तेज कदमो से चलकर जैसे ही अपने कमरे मे पंहुची तो उसने देखा कि जतिन सो चुका है.... जतिन को सोते देख मैत्री उदास हो गयी और सोचने लगी "यार मुझे थोड़ा पहले आ जाना चाहिये था... जतिन जी तो सो गये अब हमे कल भी मौका नही मिलेगा बात करने का" 


भले जतिन गहरी नींद मे सो गया था लेकिन मैत्री को अभी भी लग रहा था कि शायद जतिन की नींद खुल जाये और उसे अपने पास पाकर वो उससे बात करने लगे... लेकिन दिन भर का थका हुआ जतिन किसी भी बहाने से जाग ही नही रहा था... और मैत्री जैसे बेचैन सी हुयी जा रही थी जतिन से बात करने के लिये... जतिन के जागने का इंतजार करती हुयी मैत्री उसकी तरफ ही मुंह करके लेट गयी और मुस्कुरा कर जतिन को ही देखती रही... लेकिन अफसोस कि जतिन नही जागा... और जतिन के जागने की राह देखते देखते मैत्री की आंखे कब लग गयीं उसे पता ही नही चला.... 


अगले दिन सुबह चूंकि सबको सात बजे ही ज्योति के घर सतमासा पूजने जाना था तो सब लोग नहा धोकर जल्दी ही तैयार हो गये.... सब लोग ज्योति के घर के लिये निकलने ही वाले थे कि तभी जतिन ने अपने कमरे से बाहर आकर ड्राइंगरूम मे सब लोगो के साथ बैठी अपनी मम्मी बबिता से कहा- मम्मी एक दिक्कत आ गयी है थोड़ी सी... 


बबिता ने चौंकते हुये जतिन से पूछा- दिक्कत.... कैसी दिक्कत बेटा... 


जतिन ने कहा- असल मे मुझे एक डाटा बनाकर भेजना है उस कंपनी मे जिसकी एजेंसी है मेरे पास... और रात मे पता नही कब मे नींद आ गयी तो मै बना नही पाया... और वो बहुत जरूरी है... आप लोग एक काम करो मेरी गाड़ी से चले जाओ मै एक ड्राइवर है पहचान का उसको फोन कर देता हूं वो आप सबको ले जायेगा... मै दो तीन घंटे मे काम खत्म करके टैक्सी से आ जाउंगा.... 


जतिन की बात सुन रहे उसके पापा ने कहा - अरे नही नही तू अपना काम करले और आराम से अपनी कार से ही आ जाना... हम टैक्सी से चले जायेंगे.... 


जतिन ने कहा- फिर ठीक है मै लग्जरी टैक्सी बुक कर देता हूं आप सब उसी से चले जाओ... 


जतिन की बात पर बबिता ने कहा- हम सब नही जायेंगे... मैत्री यहीं रहेगी तेरे साथ... तुम लोग पहली बार ज्योति के ससुराल जा रहे हो... तो एकसाथ जोड़े मे ही आना.... 


बबिता की बात सुन रहे विजय ने भी उनकी बात से हामी भर दी इसके बाद मैत्री और जतिन के अलावा बाकि सारे लोग टैक्सी से ही ज्योति के घर के लिये निकल गये.... घर से सबके जाने के बाद जतिन फौरन अपने कमरे मे गया और लैपटॉप पर अपना काम करना शुरू कर दिया.... जतिन भले अपना काम कर रहा था लेकिन मैत्री यही सोच रही थी कि "कभी कुछ कभी कुछ लगा हुआ है कल से और मुझे इनसे बात करने का मौका ही नही मिल रहा है" यही सोचकर मैत्री कभी जतिन के लिये चाय बनाकर लाती को कभी कुछ खाने के लिये पूछते हुये जतिन से बात करने की कोशिश करती.... लेकिन जतिन का वो काम इतना जरूरी था कि वो मगन होकर बस अपना काम किये जा रहा था... ये बात अलग थी कि जतिन का भी दिल कर रहा था कि वो अपनी मैत्री से बात करे लेकिन डाटा बनाकर भेजना उसे उस समय जादा जरूरी सा लग रहा था इसलिये मैत्री के कुछ भी पूछने पर वो बस "हां" "हूं" ही बोल रहा था.... 


थोड़ी देर बाद जब जतिन का काम खत्म हुआ तो राहत की सांस लेकर लैपटॉप बंद करते हुये उसने पास ही बैठकर उसके फ्री होने का इंतजार कर रही मैत्री से कहा- फाइनली डाटा बन भी गया और चला भी गया.... 


जतिन की बात सुनकर मैत्री मुुस्कुराते हुये बोली- चलिये अच्छा है... आपका काम खत्म हो गया अब आप भी इत्मिनान से ज्योति दीदी का फंक्शन एंजॉय करोगे... वरना टेंशन बनी ही रहती.... 


इसके बाद जतिन ने मैत्री से बड़े प्यार से पूछा - चलें... 

मैत्री ने कहा - जी चलिये... 

जतिन ने मैत्री की तरफ देखकर शरारती अंदाज मे फिर पूछा- अभी चलें कि थोड़ा रुक कर चलें... 


मैत्री हल्का सा हंसते हुये बोली- जैसी आपकी मर्जी.... आप जैसा कहेंगे मेरे लिये तो वही सही है... 


इसके बाद जतिन ने कहा - अम्म् चलो चलते हैं... तुम तो तैयार हो ही मै भी तैयार हो जाता हूं फटाफट... इससे पहले मम्मी का फोन आ जाये हम खुद ही चले चलते हैं.... 


इसके बाद जतिन ने अलमारी से अपने कपड़े निकाले और बाथरूम मे कपड़े बदलने चला गया.... कपड़े बदल कर जतिन जब बाथरूम से बाहर आया तो मैत्री को देखकर बोला- यार मैत्री गड़बड़ हो गयी... 

मैत्री ने कहा- क्या गड़बड़ हो गयी जी... 


जतिन ने कहा - मैत्री मुझे यही शर्ट पहन कर जानी थी... और इसका बटन निकल गया है... अब मै कौनसी शर्ट पहनूं.... 


जतिन की ये बात सुनकर मैत्री हंसने लगी और हंसते हुये बोली- बस इतनी सी बात.... रुकिये मै अभी लगाये दे रही हूं.... 

इसके बाद मैत्री ने बबिता को फोन करके सुई धागे के डिब्बे के बारे मे पूछा और उनके कमरे मे जाकर वो डिब्बा ले आयी... जतिन को बहुत अच्छा लग रहा था कि उसकी अर्धांगिनी आज उसकी शर्ट का बटन टांक रही है... बटन टांकते हुये मैत्री जतिन के बेहद करीब आ गयी थी.... मैत्री के बालों की खुशबू जतिन को जैसे एक अलग ही दुनिया मे ले जा रही थी.... मैत्री ने शर्ट का बटन जब टांक दिया तो धागे को अपने दांत से काटते हुये उसने जतिन को बहुत प्यार भरी नजरों से देखा और वो धागा काटकर.. धागे का डिब्बा वापस रखने के लिये अपने कमरे से जाने लगी.... मैत्री की प्यार भरी नजरें देख कर जतिन को एक अलग ही खुशी मिल रही थी.... और उसी खुशी के चलते जतिन ने हवा मे पंच मारते हुये बहुत धीरे से कहा "येस"... मैत्री की नजरो मे जतिन को अपने लिये प्यार का इजहार साफ दिखाई दे रहा था.... जतिन के हवा मे पंच मारते ही कमरे से बाहर जाते जाते मैत्री रुकी और पलट के जतिन से बोली- जी... कुछ कहा क्या आपने.. 

जतिन ने कहा- नहीं तो कुछ भी नही कहा मैने.... 

मैत्री ने बड़े रोमांटिक अंदाज मे जतिन से कहा- लेकिन मैने तो कुछ सुना... 


ऐसा कहकर अपने दोनो हाथ पीछे करके मैत्री धीरे धीरे चलकर मुस्कुराते हुये जतिन के पास आने लगी.... जतिन के चेहरे पर मैत्री के प्यार के एहसास की खुशी साफ दिख रही थी... जतिन ने हिचकिचाते हुये अपनी तरफ प्यार से देखते हुये आ रही मैत्री से कहा- क.. क्या सुना तुमने? 


मैत्री ने उसी रुमानी अंदाज मे कहा- जो आपके दिल ने कहा... 

जतिन बोला- क्या कहा मेरे दिल ने.. 

मैत्री- जो मैने सुना... 

जतिन ने शैतानी भरे लहजे मे कहा- सुना तो मैने भी कुछ... 


मैत्री तपाक से बोली- आपने क्या सुना जी... 

जतिन बोला- जो तुम्हारे दिल ने कहा... 

मैत्री- क्या कहा मेरे दिल ने... 

जतिन बोला- यही कि तुम मुझसे प्यार नही करतीं... 


मैत्री हैरान सी होकर मुंह खोलकर बोली- हॉॉॉ... ऐसे कैसे सुन लिया आपने जब मेरे दिल ने ये कहा ही नही तो.... 

जतिन ने फिर उसी शैतानी भरे लहजे मे कहा- पर मैने तो सुना कि तुम्हारा दिल यही कह रहा है... 


मैत्री बोली- जी नही मेरा दिल कह रहा है कि मै आपसे बहुत प्यार करती हूं... 


जतिन हंसते हुये बोला- बस यही सुनना चाहता था मै... 


ऐसा कहकर जतिन ने अपनी मैत्री को अपने सीने से लगा लिया... और मैत्री से कहा- मै तुमसे बहुत प्यार करता हूं मैत्री... तुम्हारे बिना अपनी जिंदगी मै सोच भी नही सकता... 


मैत्री ने भी जतिन के सीने से लगे लगे कहा- मै भी आपसे बहुत प्यार करती हूं नाथ जी.... मै आपके बिना एक पल भी नही रह सकती... मुझे अपना बना लीजिये... 


इसके बाद जतिन और मैत्री एक दूसरे के गले लगे लगे जैसे एक दूसरे मे समा गये... आज दोनो के बीच प्यार का इजहार हो गया था... और जिस तरह से मैत्री ने पहले अपने दिल की बात करी उस तरीके ने जतिन के मैत्री से सुहागरात पर किये गये उसके वादे का मान भी रख लिया था..... 


इसके बाद जतिन और मैत्री हमेशा के लिये एक हो गये.... उधर दूसरी तरफ इस पूरे प्रकरण के करीब दो महीने बाद ज्योति ने एक सुंदर से बेटे को जन्म दिया... और परिवार मे एक बार फिर से खुशियो की जैसे बहार सी आ गयी.... 



=========== समाप्त============


जतिन और मैत्री को इतना प्यार देने के लिये आप सभी पाठक गणों का दिल से धन्यवाद... जल्द ही मिलते हैं ऐसी ही किसी प्यारी सी कहानी के साथ... धन्यवाद!! 😊😊🙏🙏