अर्धांगिनी-अपरिभाषित प्रेम... - एपिसोड 52 रितेश एम. भटनागर... शब्दकार द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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अर्धांगिनी-अपरिभाषित प्रेम... - एपिसोड 52

चूंकि मैत्री जतिन और अपने सास ससुर की दिनचर्या जानती थी इसलिये उसने उसी हिसाब से सुबह सात बजे ही अपनी सास बबिता को फोन कर दिया और कहा- नमस्ते मम्मी जी.. चरण स्पर्श, मम्मी जी क्या कर रही थीं आप... 
बबिता ने कहा- सदा सुखी रहो बेटा, बेटा मै  रसोई मे सबके लिये नाश्ता बना रही थी... और बताओ सारी तैयारी हो गयी वापस आने की?

मैत्री ने कहा- हां जी सारी पैकिंग हो गयी है, मम्मी जी पापा और मम्मी आपसे और पापा जी से बात करना चाहते हैं...

बबिता ने खुश होते हुये कहा- अच्छा अच्छा... लाओ बात करा दो...

बबिता के कहने पर मैत्री ने फोन अपने पापा जगदीश प्रसाद को दे दिया, फोन मिलने पर जगदीश प्रसाद ने नमस्ते वगैरह करने के बाद बबिता से कहा-  बहन जी आपसे एक आग्रह है... प्लीज मना मत करियेगा...

जगदीश प्रसाद की बात सुनकर बबिता ने सोचा कि हो सकता है मैत्री को और जादा दिन रोकना चाहते हों वो लोग इसीलिये इतनी सुबह फोन करके "आग्रह" जैसे शब्द का इस्तेमाल कर रहे हों, ये सोचकर कि मैत्री शायद आज ना आये बबिता थोड़ी उदास हो गयीं ... लेकिन अपनी उदासी छुपाते हुये उन्होने कहा- अरे नही नही भाई साहब आपकी किसी भी बात को मै मना क्यो करूंगी, आप नि:संकोच कहिये कि आप क्या कहना चाहते हैं... 

बबिता की बात सुनकर जगदीश प्रसाद राहत महसूस करते हुये बोले- बहन जी असल मे हम लोग चाहते थे कि आप और भाईसाहब भी जतिन जी के साथ लखनऊ आ जायें मैत्री को लेने, इसी बहाने हमारा मिलना भी हो जायेगा और हम लोग भी एक दूसरे के साथ थोड़ा समय बिता लेंगे... 

जहां बबिता एक तरफ कुछ और ही सोच कर उदास हो रही थीं वहीं दूसरी तरफ जगदीश प्रसाद के मुंह से इतनी अच्छी बात सुनकर उन्होने भी राहत की सांस ली ये सोचकर कि "चलो मैत्री आज आयेगी मतलब".... राहत की सांस लेते हुये बबिता ने हंसते हुये कहा- आपकी बात बिल्कुल ठीक है भाई साहब पर हम फिर कभी आ जायेंगे आज जतिन को ही जाने देते हैं... 

जगदीश प्रसाद भी खुश होकर हर्षित से हुये लहजे मे बोले- नही नही बहन जी देखिये आपने कहा था कि आप मेरी किसी भी बात के लिये मना नही करेंगी..... आपने वादा किया था....

जगदीश प्रसाद के इस तरह दबाव बनाकर अपनी बात कहने पर बबिता हंसने लगीं और और हंसते हुये बोलीं- अम्म्म्... कहा तो था, अच्छा रुकिये मै जतिन के पापा से बात करके आपको पांच दस मिनट मे कॉल करती हूं...

इसके बाद बबिता ने फोन काट कर अपने पति विजय को आवाज लगायी जो  नहा धोकर, पूजा पाठ करने के बाद ड्राइंगरूम मे बैठे अखबार पढ़ रहे थे... बबिता ने आवाज लगाते हुये कहा- सुनिये जरा.... 

बबिता की आवाज सुनकर विजय अपनी जगह से उठे और रसोई मे नाश्ता बना रही बबिता के पास जाकर बोले- हां... क्या हुआ... 

विजय के रसोई मे आने के बाद बबिता ने उन्हे सारी बात बताई तो विजय हंसते हुये बोले- वैसे कोई बुराई नही है जाने मे, इसी बहाने हमारा भी थोड़ा घूमना हो जायेगा और सबसे मिल भी लेंगे.... ( इसके बाद बबिता की चुटकी लेते हुये विजय बोले) और मै अपनी समधनो से बाते भी कर लूंगा... 

अपने पति विजय की मजाक मे की गयी इस बात को सुनकर बबिता भी हंसने लगीं... कि तभी जतिन अपने कमरे से तैयार होकर जब रसोई की तरफ आया तो अपने मम्मी पापा को हंसते देख उनसे बोला- क्या बात हो गयी मुझे भी बताइये... 

जतिन के पूछने पर विजय ने सीरियस होते हुये कहा- लखनऊ से फोन आया था, वो लोग कह रहे हैं कि मैत्री कुछ दिन बाद आयेगी... आज जतिन जी को मत भेजो... 

अपने पापा विजय की बात सुनकर मैत्री से मिलने के लिये बेचैन जतिन का चेहरा एकदम से उतर गया..... और वो बेहद उदास सा हुआ बोला- अच्छा... ऐसा कहा, चलिये ठीक है फिर मै कपड़े बदल लेता हूं.... 

जतिन का स्वभाव इतना सुलझा हुआ था कि इतनी बड़ी बात जो भले एक झूट थी.. उसे सुनकर उसने जरा भी गुस्सा नही किया ना चिड़चिड़ाया बजाय इसके वो फौरन राजी हो गया और अपने पापा के मजाक मे किये गये इस झूट को सच भी मान  गया, उसे ऐसे उदास होकर अपने कमरे की तरफ मुड़ते देख बबिता ने विजय से कहा- क्या आप भी सुबह सुबह उसका मूड खराब कर रहे हो, जतिन बेटा ऐसा कुछ नही कहा उन लोगो ने.... उल्टा वो ये कह रहे थे कि मैत्री को लेने के लिये जतिन के साथ साथ आप लोग भी आ जाओ..... 

अपनी मम्मी की बात सुनकर राहत की सांस लेते हुये जतिन ने खिसियायी हुयी हंसी हंसते हुये कहा- हैं मम्मी... सच मेे... 

बबिता ने कहा- हां... और हम सोच रहे हैं कि हम भी तेरे साथ चलें... 

जतिन ने खुश होते हुये कहा- हां मम्मी चलिये आप लोग भी चलिये,सब साथ चलेंगे तो अच्छा रहेगा... वरना अकेले जाने के नाम पर मुझे थोड़ी हिचक हो रही थी... वो  मै पहली बार जा रहा था ना... 

जतिन को लखनऊ जाने वाली बात बताकर बबिता ने कहा- मै लखनऊ फोन करके बता देती हूं कि हम सब लोग आ रहे हैं... 

इसके बाद बबिता ने जब लखनऊ मे जगदीश प्रसाद को कॉल किया तो फोन सरोज ने उठाया... फोन उठाकर सरोज ने थोड़ा उतावले से लहजे मे कहा- नमस्ते बहन जी.... आप सब आ रहे हैं ना...!! 

बबिता ने मुस्कुराते हुये कहा- नमस्ते जी... हां जी हम बस नाश्ता करके आधे घंटे मे निकल रहे हैं.... 

बबिता की बात सुनकर सरोज खुशी के मारे हंसते हुये बोलीं- अरे वाह बहन जी.... ये हुयी ना बात... 

सरोज को ऐसे खुश होकर बात करते देख पास ही खड़ी मैत्री भी समझ गयी कि कानपुर से सब लोग आ रहे हैं और वो भी एकदम से ताली बजाते हुये खुश होकर बोली- अरे वाह.... 

इसके बाद सरोज ने बबिता से बात करके फोन काटकर सबको बताया कि कानपुर से सब लोग आ रहे हैं तो वहां खड़े सारे लोग बहुत खुश हुये... इसके बाद मैत्री अपनी दोनो भाभियो के साथ जतिन और अपने सास ससुर के लिये अच्छा सा खाना बनाने के लिये रसोई मे चली गयी.... 

क्रमशः