अर्धांगिनी-अपरिभाषित प्रेम... - एपिसोड 53 रितेश एम. भटनागर... शब्दकार द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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अर्धांगिनी-अपरिभाषित प्रेम... - एपिसोड 53

जहां एक तरफ मैत्री खुशी खुशी अपनी दोनो भाभियो के साथ रसोई मे खाना बनाने चली गयी थी वहीं दूसरी तरफ जतिन नाश्ता करके अपने मम्मी पापा के साथ लखनऊ के लिये निकल चुका था, कानपुर से निकल कर रास्ते मे पड़ने वाले उन्नाव शहर को पार करने के बाद जैसे ही जतिन ने लखनऊ बॉर्डर पर "लखनऊ नगर मे आपका स्वागत है" लिखा बोर्ड देखा वैसे ही उसका मन मैत्री से मिलने के लिये और जादा बेचैन हो उठा, वो कार चला तो रहा था पर उसका ध्यान सड़क पर कम मैत्री की तरफ जादा था... जतिन मैत्री से मिलने के खयाल से ही थोड़ा नर्वस सा हो रहा था.... इधर मैत्री का भी कुछ ऐसा ही हाल था, वो रसोई मे खड़ी खाना बना तो रही थी लेकिन उसका भी ध्यान जतिन की तरफ जादा था वो बार बार घड़ी की सुइयों की तरफ देख रही थी और सोच रही थी कि बस थोड़ी देर और... और फिर जतिन जी मेरे सामने होंगे... 

यही जतिन के मन मे भी चल रहा था और वो सोच रहा था कि कब रास्ता कटे और कब वो अपनी अर्धांगिनी मैत्री को देखे, सच ही कहा है किसी ने कि प्रेम मे जब तक इजहार ना हो और दोनो दिलो मे प्यार भरपूर हो तब प्रेम की बात ही कुछ और होती है... आंखो मे एक दूसरे के लिये प्यार हो लेकिन लबों पर ना तो "हां" हो और ना "ना" हो... तब एक दूसरे से मिलने की तड़प पूरे शरीर मे, दिल मे, सांसो मे... एक अजीब सी सिहरन सी पैदा करती रहती है... यही हो रहा था जतिन और मैत्री के दिलो के साथ भी.... 

चूंकि जतिन कभी मैत्री के चाचा जी के घर पर नही गया था अभी तक तो उसे रास्ता भी नही पता था इसीलिये मेन रोड से अंदर मुड़कर जब उसने राजेश को फोन किया तब राजेश ने जतिन को रास्ता बताया... जतिन से बात करके राजेश ने घर मे सबको बता दिया कि जतिन पांच मिनट मे आने वाला है, ये सुनकर सब लोग खुश हो गये और उनके स्वागत की तैयारी करने लगे.... जहां एक तरफ राजेश और सुनील दोनो जतिन और उसके मम्मी पापा के स्वागत के लिये घर के मेनगेट के बाहर ही जाकर खड़े हो गये वहीं मैत्री सबसे खासतौर पर जतिन से मिलने के लिये बेचैन सी हुयी घर के अंदर के दरवाजे पर खड़ी हो गयी... इधर जतिन जब राजेश के घर की तरफ आया तो उसने देखा कि राजेश और सुनील दोनो बाहर ही खड़े उनका इंतजार कर रहे हैं, जतिन ने घर के बाहर जाकर कार रोकी और उसमे से उतरकर राजेश और सुनील को खुश होते हुये गले लगाया... इसके बाद सुनील और राजेश ने बड़े ही सम्मान के साथ बबिता और विजय की तरफ वाला गेट खुद खोला... बबिता और विजय के कार से उतरने के बाद राजेश और सुनील ने बारी बारी करके दोनो के पैर छुये और नमस्ते करी.... बबिता और विजय ने भी बड़े प्यार से खुश होते हुये दोनो के सिर पर हाथ रखकर खुश रहने का आशीर्वाद दिया... इसके बाद राजेश और सुनील ने बहुत ही सम्मान के साथ  जतिन, बबिता और विजय को घर के अंदर आमंत्रित किया... सब लोगो के घर के अंदर आने के बाद अंदर के दरवाजे पर खड़ी जतिन और बाकी लोगो का बेसब्री से इंतजार कर रही  मैत्री ने जब सबको देखा तो खुश होकर मुस्कुराते हुये वो तेज तेज कदमो से अपनी सास बबिता की तरफ नमस्ते करते हुये दोनो हाथ जोड़कर जाने लगी... मैत्री को देखकर बबिता भी एकदम से खुश होते हुये बोलींं "आह्हा..." 

बबिता के पास आकर मैत्री ने उनके पैर छुये तो उन्होने मैत्री के सिर पर प्यार से हाथ फेरते हुये कहा- सदा सुहागन रहो बेटा... 
इसके बाद मैत्री अपनी सास बबिता के पैर छुकर जब ऊपर उठी तो उन्होने बड़े ही प्यार से उसका चेहरा अपनी हथेलियो मे लिया और उसके माथे पर प्यार किया... इसके बाद मैत्री ने अपने ससुर विजय के पैर छूकर उनसे भी आशीर्वाद लिया और उन्होने भी खुश होकर मैत्री के सिर पर हाथ रखते हुये उसे "सदा सुखी रहो बेटा" कहकर आशीर्वाद दिया... अपने सास ससुर दोनो से आशीर्वाद लेकर मैत्री जब उस तरफ गयी जहां जतिन खड़ा था तब मैत्री को देखकर जतिन उससे "हाय" कहने वाला था लेकिन मैत्री उसके पास जाकर अपने दोनो हाथ जोड़ बोली- नमस्ते जी...!! 

मैत्री का नमस्ते सुनकर जतिन" हाय"बोलते बोलते रुक गया और उसके मुंह से निकला "ह... मस्ते!! मेरा मतलब नमस्ते नमस्ते" ऐसा बोलते हुये जतिन हल्का सा हंसने लगा... इधर जब मैत्री सबसे मिल रही थी तब धीरे धीरे कदमो से जतिन और उसके परिवार की तरफ चलकर आ रहीं मैत्री की मम्मी सरोज और चाची सुनीता उसकी सास का मैत्री के लिये किया गया अच्छा और प्यारा व्यवहार देखकर मन ही मन गदगद सी हुयी जा रही थीं... बबिता के पास पंहुच कर सरोज ने हाथ जोड़कर खुश होते हुये बड़े ही हर्षित तरीके से कहा- नमस्ते बहन जी... आप आयीं हमे बहुत अच्छा लगा... आपने हमारे आग्रह का इतना मान रखा इसके लिये हम दिल से आपके आभारी हैं.... 

अपनी समधन सरोज की बात सुनकर बबिता ने भी उसी हर्षित लहजे मे मुस्कुराते हुये कहा- नही नही बहन जी इसमे आभार की क्या बात है, सच बोलूं तो मेरा भी मन था आप लोगो से मिलने का.... अगर मै आज ना आती तो हो सकता है अगले कुछ दिनो मे आप सबसे मिलने के लिये आप सबको कानपुर आने के लिये आमंत्रित करती... 

सरोज ने बबिता का हाथ अपने हाथ मे लेते हुये कहा- हम पक्का आयेंगे कानपुर आप सबसे मिलने.... 

इसके बाद बबिता ने पास ही खड़ी सुनीता से भी उतने ही अच्छे तरीके से मुलाकात करी जैसे सरोज से करी थी... इसके बाद वहां खड़े मैत्री से सभी घरवाले जतिन और उसके मम्मी पापा को लेकर घर के अंदर आ गये... उन लोगो के घर के अंदर आने के बाद जगदीश प्रसाद और उनके छोटे भाई नरेश ने भी बहुत खुश होते हुये हर्षित तरीके से सबसे मुलाकात करी... इसके बाद नेहा और सुरभि ने भी फटाफट अपना बचा कुचा काम खत्म किया और वो भी बाहर जतिन और उसके मम्मी पापा से मिलने के लिये आ गयीं.... नेहा और सुरभि ने जब बबिता और विजय के पैर छू लिये तो उनके गालो पर प्यार से हाथ सहलाती हुयी बबिता ने कहा- हमेशा खुश रहो बेटा... तुम दोनो को देखकर बहुत खुशी होती है.... और सबसे जादा अच्छा लगता है तुम दोनो को  हमेशा साथ साथ देखकर.... 

बबिता की ये बात सुनकर नेहा और सुरभि एक दूसरे की तरफ देखकर मुस्कुराने लगीं और उन्हे ऐसे मुस्कुराते देखकर सरोज ने बबिता से कहा- बहन जी ये दोनो चचेरी बहनें हैं... सुरभि और सुनील की लव मैरिज है, ये दोनो साथ मे ही पली बढ़ी हैं इसलिये भी इनके बीच इतना प्यार है... 

सरोज की बात सुनकर बबिता ने खुश होते हुये कहा- अच्छा.... ये तो बहुत अच्छी बात है..... (इसके बाद सुनील की तरफ मुंह करके बबिता बोलीं) सुनील बेटा तुम तो बड़े छुपे रुस्तम निकले.... 

बबिता की बात सुनकर सब लोग हंसने लगे..... इसके बाद बबिता ने मैत्री के पापा जगदीश प्रसाद, मम्मी सरोज, चाचा नरेश और चाची सुनीता को एक एक करके बड़े ही सम्मान के साथ वो कपड़े उपहार मे दिये जो वो अपने साथ लाये थे... बबिता ने जब जगदीश प्रसाद को उनका उपहार दिया था तब वो बोले- अरे बहन जी इसकी क्या जरूरत थी... आपका यहां आना ही हमारे लिये सबसे बड़ा उपहार है...(थोड़ा हिचकते हुये जगदीश प्रसाद आगे बोले) वैसे भी हम लड़की वाले हैं और हम तो वैसे भी क.. कुछ नही ले सकते..... 

जगदीश प्रसाद की बात सुनकर जतिन के पापा विजय ने कहा- ओहो भाईसाहब आप भी कहां पुरानी बातो के बारे मे सोच रहे हैं... ये सब गुजरे जमाने की बाते हैं और वैसे भी हमारा सनातन समय के साथ उचित बदलावो को स्वीकार करने वाला धर्म है... और आपसे किसने कहा कि  मैत्री आपकी है आप तो कन्यादान कर चुके हैं ना... तो इस हिसाब से तो वो शादी वाले दिन ही हमारी बेटी हो गयी थी..... इसलिये ये सब मत सोचिये और भाईसाहब  शादी दो परिवारो का मिलन भी होता है और यही छोटी छोटी खुशियां तो हैं जो हम एक दूसरे के साथ बांटते हैं.... और ये कोई उपहार नही बल्कि हमारे दिल मे जो सम्मान आप सबके लिये है वो सम्मान हम आपको दे रहे हैं.... इसलिये हिचकिये मत और इसे स्वीकार कर लीजिये.... (इसके बाद जतिन की तरफ देखकर विजय ने कहा) क्यो जतिन बेटा सही कह रहा हूं ना... 

अपने पापा की बात सुनकर जतिन ने कहा- जीीी... हां.. बिल्कुल .. अम्म्म् अब मै क्या बोलूं बड़ों के बीच मे.... 

जतिन जब अपनी बात कह रहा था तब सरोज खुश होते हुये जतिन को देेखकर निहाल सी हुयी जा रही थीं... वो बार बार जतिन से "जतिन बेटा ये खाओ, जतिन बेटा वो खाओ, जतिन बेटा ये, जतिन बेटा वो कहे जा रही थीं" सरोज को जतिन बहुत प्यारा लगता था... बिल्कुल ठीक वैसा जैसा उन्होने अपनी लाडली मैत्री के लिये कभी सोचा था... 

इधर विजय के समझाने पर जगदीश प्रसाद मान गये और मन ही मन इतना खुश हुये ये सोचकर कि "शायद ये मेरे पिछले जन्म के ही कुछ पुण्य रहे होंगे जो इतनी महान सोच वाले परिवार मे मेरी गुड़िया का रिश्ता हुआ"  

इसके बाद हंसी खुशी के माहौल मे सबने चाय नाश्ता करने के थोड़ी देर बाद लंच किया और लंच करने के थोड़ी देर बाद बारी आयी मैत्री को वापस कानपुर भेजने की... लेकिन इस बार मैत्री के परिवार मे मैत्री के ससुराल जाने के नाम से कोई दुखी नही था, हां सबका मन जरूर भारी था और सब थोड़े बहुत भावुक थे लेकिन दुखी कोई नही था... जब जतिन, मैत्री, बबिता और विजय कानपुर के लिये निकलने वाले थे तो उससे पहले सरोज ने सबसे पहले जतिन का  टीका किया, गरी का गोला दिया, एक जोड़ी पैंट शर्ट का कपड़ा दिया और एक लिफाफा दिया जिसमे कुछ पैसे रखे थे... वो लिफाफा देख कर जतिन ने कहा- माता जी मै ये नही ले सकता.... 

जतिन के ऐसा कहने पर सरोज ने बड़े प्यार से जतिन के सिर पर हाथ रखते हुये कहा- बेटा.... अगर मैत्री अब विजय भाईसाहब और बबिता बहन जी की बेटी हो गयी है तो आप भी तो हमारे बेटे हो गये हैं... तो क्या एक मां अपने बेटे को एक छोटी सी भेंट नही दे सकती?? 

जतिन संकुचाया हुआ सा बोला- अम्म्म्... बिल्कुल दे सकती हैं... आपका तो अधिकार है.... 

जतिन की बात सुनकर सरोज ने कहा- हां तो बस... उसी अधिकार के चलते मै आपको ये लिफाफा दे रही हूं... आप इसे रख लो.... 

सरोज ने अपनी बात कहकर हंसते हुये जतिन के हाथ मे वो लिफाफा पकड़ा दिया तो जतिन अपनी मम्मी बबिता की तरफ देखने लगा.... जतिन के देखने पर बबिता ने कहा- रख ले बेटा... कोई बात नही ये सब तो चलता है... 

इसके बाद सबका टीका वगैरह करके सबको विदा करने के लिये जब मैत्री के घरवाले जतिन और उसके परिवार के साथ बाहर गेट तक जाने के लिये निकले तो मैत्री अपने हाथ मे बड़ा सा बॉक्स लेकर बाहर की तरफ जाने लगी.... उस बॉक्स को देखकर जतिन ने धीरे से मैत्री से कहा- ये क्या है मैत्री..?? 

मैत्री जानती थी कि जतिन को उसके मम्मी पापा से गिफ्ट लेना अच्छा नही लगता है इसलिये उसने धीरे से जवाब दिया- जी इसमे सीक्रेट सरप्राइज है... जो मै आप सबको कल दिखाउंगी.... और ये आपने जो पैसे दिये थे उनसे ही लिया है... 

मैत्री की बात सुनकर जतिन ने कहा- ओह.. तब ठीक है..!! 

इसके बाद कार के पास पंहुच के जतिन ने सारा सामान अपनी कार की डिक्की मे रख दिया... इधर दूसरी तरफ भले आज मैत्री के अपने घर वापस जाने से कोई दुखी नही था लेकिन जगदीश प्रसाद का चेहरा बुझा बुझा सा लग रहा था... मैत्री जब मिलने के लिये उनके पास गयी तो उनके सीने से लगकर बोली- पापा आपने अपनी आंखो से देख लिया ना कि सब कितने अच्छे हैं... प्लीज अब मत रोइयेगा... 
मैत्री का सिर सहलाते हुये जगदीश प्रसाद ने कहा- नही बेटा अब रोने की कोई वजह नही है, अब मुझे तेरी कोई चिंता नही है... क्योकि मै जानता हूं कि तेरा ध्यान बहुत अच्छे से रखा जा रहा है.... 

इसके बाद एक एक करके मैत्री सबसे मिली और सबने बड़े प्यार से खुश होते हुये मैत्री को ऐसे ही खुश रहने की बात करके उसके सिर पर हाथ रखकर आशीर्वाद दिया... सबसे मिलकर मैत्री समेत बाकी सभी लोग कार मे बैठ गये.... कार मे बैठने के बाद जतिन ने जैसे ही कार स्टार्ट की मैत्री थोड़ा भावुक हो गयी.... और खिड़की से बाहर खड़े अपने मम्मी पापा को देखने लगी.... अपने मम्मी पापा को देखकर उसकी आंखो मे आंसू आ गये और भावुक सी मुस्कुराहट अपने होंठो पर लिये वो सबको बाय करने लगी.... बबिता चूंकि समझ गयी थीं कि मैत्री भावुक हो रही है इसलिये जतिन के कार आगे बढ़ाते ही बबिता ने मैत्री के कंधे पर हाथ रखा और बड़े ही प्यार से उसे अपनी तरफ थोड़ा सा खींच कर उसके आंसू पोंछते हुये उसे देखकर मुस्कुराने लगीं... बबिता के इतने प्यार से आंसू पोंछने पर मैत्री को बहुत अच्छा लगा और वो भी बबिता को देखकर मुस्कुराने लगी और उनके कंधे पर अपना सिर रख लिया... मैत्री के भी प्यार जताने पर बबिता ने प्यार से  उसका सिर सहलाते हुये कहा- बेटा अब मेरे मां बाबू जी तो रहे नही लेकिन मै जब भी कभी अपने भाइयो के पास कुछ दिनो के लिये अपने मायके जाती हूं ना तो आज इतने सालों बाद भी वहां से वापस आते हुये मेरी भी आंखो मे आंसू आ जाते हैं.... और तुम्हे तो दिन ही कितने हुये हैं.... हैना..!! 

बबिता के इतने प्यार से अपनी बात कहने पर मैत्री ने भी उनके प्यार को पूरा पूरा मान सम्मान देते हुये उनकी हथेली को अपनी हथेली से पकड़ लिया और बड़े ही प्यार से अपनी उंगलियां बबिता के हाथ की उंगलियो मे फंसा कर अपना प्यार और सम्मान उन पर जाहिर कर दिया... 

क्रमशः