अर्धांगिनी-अपरिभाषित प्रेम... - एपिसोड 55 रितेश एम. भटनागर... शब्दकार द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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अर्धांगिनी-अपरिभाषित प्रेम... - एपिसोड 55

मैत्री की बनायी रंगोली देखकर जहां एक तरफ बबिता और विजय बेहद खुश थे ये सोचकर कि मैत्री कितनी गुणी है और कितना अच्छा हुनर है इसके अंदर वहीं दूसरी तरफ मैत्री का अपने नये घर के प्रति, नये परिवार के प्रति समर्पण और जिम्मेदारी से चीजो को करने का तरीका जतिन को एक अलग ही खुशी दे रहा था... सब लोगो से अपने काम की तारीफें सुनने के बाद मैत्री ने बबिता से कहा- मम्मी जी आप और पापा जी पूजा कर लीजिये.... नाश्ता लगभग तैयार ही है... पूजा करके फिर नाश्ता कर लीजियेगा...

मैत्री की बात सुनकर बबिता ने खुश होते हुये कहा- बेटा इतनी जल्दी नाश्ता बना भी लिया... और ये दोनो रंगोलियां भी बना लीं.... कितने बजे जाग गयी थीं..??

मैत्री ने कहा- जी चार बजे.... मैने सोचा आप सबके जागने से पहले ही मै अपनी पूजा करके सारी तैयारी कर लूं ताकि आप सबकी पूजा के बाद फौरन नाश्ता हो जाये....

बबिता ने कहा- वाह बेटा क्या बात है.... तुम दस मिनट बाद चाय चढ़ा देना गैस पर, हम सब साथ मिलकर ही नाश्ता करेंगे...

इसके बाद बबिता और विजय पूजा करने भगवान के कमरे मे चले गये.... पूजा करने के बाद सब साथ बैठकर नाश्ता कर ही रहे थे कि तभी बबिता ने मैत्री से पूछा- मैत्री बेटा ये आइडिया तुम्हारे दिमाग मे आया कहां से? ये पीतल के पॉट वाला... ये सच मे बहुत सुंदर लग रहा है.... इससे पहले कभी नही देखा कहीं पर... इस रंगोली को देखकर ऐसा लग रहा है मानो आंखो के जरिये पूरा शरीर शीतल सा हो गया है.... 

मैत्री ने कहा- थैंक्यू मम्मी जी... मुझे तो लग रहा था कि पता नही आप सबको ये पसंद आयेगा या नही... 

मैत्री की बात सुनकर पास ही बैठकर नाश्ता कर रहे विजय ने कहा- नही नही बेटा ये तो इतना सुंदर है और तुमने इतनी मेहनत करी तो पसंद क्यो ना आता.... वैसे बबिता सही पूछ रही है कि तुम्हारे दिमाग मे ये आइडिया कैसे आया....मैने भी नही देखा ऐसा पहले कभी.... 

सबकी बाते सुन रहा जतिन उस पॉट की तरफ प्यार से निहारे जा रहा था... उस पॉट को देखते हुये जतिन ने कहा- मैने देखा है... पर कहां देखा है ये याद नही आ रहा है..... पर कहीं तो देखा है मैने ऐसा कुछ.... 

सबकी बाते सुनकर मैत्री ने कहा- असल मे करीब चार पांच साल पहले मै,मम्मी- पापा, राजेश भइया और नेहा भाभी... हम सब लोग घूमने गये थे साउथ इंडिया, तब हम पॉंडिचेरी भी गये थे... तो वहां जिस होटल मे हम रुके थे उसके रिसेप्शन मे ऐसा पॉट मैने देखा था, वहां पर जादातर घरो और ऑफिसो मे वो लोग सुबह सुबह ऐसी रंगोली बनाते हैं ताकि उनके घर और ऑफिस मे सकारात्मक ऊर्जा बनी रहे.... बस मुझे ये बहुत अच्छा लगा तो मै घर पर भी बनाने लगी..

मैत्री की बात सुनकर जतिन ने चौंकते हुये कहा- हां मैत्री तुम सही कह रही हो... मैने भी ऐसा पॉट चेन्नई मे देखा था.. एक बार कंपनी की बिजनेस मीटिंग मे गया था तब.. 


जतिन की बात सुनकर मैत्री ने कहा- जी... वहां जादातर जगहो पर ऐसी रंगोली बनाते हैं लोग और मुझे रंगोली बनाना वैसे भी बहुत अच्छा लगता है..... लेकिन बीच मे सब छूट गया... (ये बात बोलकर मैत्री उदास हो गयी और आगे बोली) आज काफी सालों के बाद मैने अपना पसंदीदा काम किया है... 

अपनी बात कहते कहते उदास हुयी मैत्री को इस तरह उदास होते देख जतिन समझ गया कि मैत्री के कहे गये "बीच मे" शब्द का क्या मतलब है... वो समझ गया कि मैत्री ने रवि से शादी के बाद के हालातो के बारे मे सोचकर ये बात बोली है.... चूंकि शादी के समय मैत्री के पापा जगदीश प्रसाद ने कई बार ये बात बोली थी कि "मेरी बेटी ने बहुत कष्ट सहे हैं" इसलिये जतिन को अंदाजा तो था कि मैत्री के साथ पिछली शादी मे कुछ तो ऐसा हुआ है जिसकी वजह से उसे कष्ट सहने पड़े थे... और वो सगाई वाले दिन भी जतिन का गाना सुनकर जो रोते हुये बोली थी कि "मेरी कोई गलती नही थी" वो बात भी शायद उसी स्याह अतीत से जुड़ी हुयी थी... लेकिन जतिन ने या उसके परिवार के किसी भी सदस्य ने मैत्री से कभी भी ये सोचकर उसके अतीत का जिक्र नही किया ताकि उसे बुरा ना महसूस हो या दुख ना हो.... और जतिन ये भी समझ रहा था कि कोई तो वाजिब कारण होगा जो मैत्री सिर्फ उसके साथ संकोच करती है बाकि सबके साथ वो खुल गयी है.... जतिन मैत्री के बारे मे सोच ही रहा था कि मैत्री की बात सुनकर बबिता ने कहा- कोई बात नही बेटा, अब फिर से शुरू करलो... अब इस घर को कैसे रखना है, कैसे सजाना है इसकी जिम्मेदारी धीरे धीरे तुम ही लेना शुरू करो... बाकि मै तो हूं ही तुम्हारे साथ... 

इसके बाद जैसे ही सबका नाश्ता खत्म हुआ... जतिन अपनी जगह से उठा और सबके झूटे बर्तन उठाने लगा... मैत्री उसे बर्तन उठाते देखकर बोली- आप रुकिये मै उठाती हूं.... 
जतिन ने कहा- अरे कोई बात नही... 

अपनी बात कहकर जतिन ने जब मैत्री के झूटे बर्तन उठाने की कोशिश करी तो वो संकुचाई हुयी सी अपने बर्तन हाथ मे पकड़ के पीछे करते हुये बोली- अरे नही नही... मै रख दूंगी... 

मैत्री को ऐसे संकुचाते देख बबिता ने कहा- मैत्री बेटा... हमारे यहां जिसे जो काम समझ मे आता है वो... वो काम कर लेता है, यहां ऐसा कुछ नही है कि ये काम सिर्फ तुम्हे ही करना पड़ेगा, हो सकता है कल मै या तुम्हारे ससुर जी ये काम कर दें.... 

बबिता की बात सुनकर मैत्री ने कहा- नही नही मम्मी जी मै आपको और पापा जी को ये सब करने ही नही दूंगी.... 

इसके बाद मैत्री ने जतिन के हाथ से झूटे बर्तन ऐसे लिये जैसे उसने छीने हों... जतिन के हाथ से भी बर्तन लेकर मैत्री रसोई मे चली गयी... मैत्री को  इस तरह से हक जताकर अपना काम करते देख जतिन को बहुत अच्छा लगा... और वो मुस्कुरा कर मैत्री को रसोई मे जाते हुये देखता रह गया, मैत्री जब रसोई की तरफ चली गयी तो उसके जाने के बाद जतिन जब अपनी मम्मी बबिता की तरफ मुड़ा तो उसने देखा कि बबिता उसकी तरफ देखकर मुस्कुरा रही थी.... जतिन को अपनी मम्मी की मुस्कुराहट देख कर ऐसा लगा मानो उनकी मुस्कुराहट कह रही हो कि " जतिन तेरी उस रात की मैत्री के लिये करी गयी जिद बिल्कुल सही थी" इसके बाद जतिन ने जब अपने पापा विजय की तरफ देखा तो वो भी जतिन की तरफ देखकर मुस्कुरा रहे थे, अपने मम्मी पापा को अपनी तरफ मुस्कुराते देखकर जतिन थोड़ा शर्मा गया... और मुस्कुराते हुये सिर झुकाकर अपने कमरे मे चला गया, जतिन के कमरे मे जाते ही मैत्री वापस से ड्राइंगरूम मे आयी और बबिता से बोली - मम्मी जी वो टिफिन कहां रखा है... 

मैत्री की बात सुनकर बबिता चौंकते हुये बोलीं- टिफिन!! क्यो बेटा टिफिन का क्या करना है?? 

मैत्री ने कहा- जी वो... इनके लिये लंच बनाना है तो इन्हे देना है... 

बबिता ने हल्का सा हंसते हुये कहा- पर बेटा वो तो लंच ले ही नही जाता है, मैने भी बहुत समझाया एक दो बार दिया भी बहुत पहले पर उसे ध्यान ही नही रहता खाने का वो इतना व्यस्त हो जाता है ऑफिस जाकर, तुम जतिन से पूछ लो... शायद तुम्हारी बात मान जाये.... 

बबिता के अपनी बात कहने पर मैत्री जतिन से बात करने कमरे मे चली गयी... कमरे मे जाकर मैत्री ने देखा कि जतिन कानो मे ईयरफोन लगाये अपने लैपटॉप पर गाने सुन रहा था, असल मे आज सुबह से मैत्री ने जो किया था उसे देखकर जतिन को उसपर प्यार आ रहा था पर वो अपने वादे से बंधा होने के कारण ना तो मैत्री से कुछ कह पा रहा था और ना अपना प्यार मैत्री पर जता पा रहा था... इसलिये अपने कमरे मे बैठा लव सॉंग्स सुन रहा था और मैत्री के लिये अपने प्यार को महसूस करके खुश हो रहा था... 

कमरे मे आयी मैत्री को देखकर जतिन ने अपने कानो से ईयरफोन निकाले और बहुत ही प्यार भरे तरीके से मैत्री की तरफ देखकर मुस्कुराते हुये कहा- हम्म्म्... हो गया सारा काम?? 

मैत्री ने कहा- नही जी अभी नही.. एक जरूरी काम अभी बाकी है... 

जतिन ने कहा- अब क्या जरूरी काम बाकी है... अब थोड़ा आराम करलो , कामवाली जब झाड़ू पोंछा बर्तन करके चली जाये तब कुछ करना ... और कामवाली से कह देना कि वो दरवाजे वाली रंगोली को संभालकर ही सफाई करे, मैत्री आज मुझे बहुत अच्छा लगा तुम्हारा इस तरह जिम्मेदारी से घर को सजाना.... 

मैत्री ने कहा- थैक्यू जी... पर मुझे आपसे एक शिकायत है.... 

जतिन चौंकते हुये बोला- शिकायत!! पर क्यो मैत्री.... मैने क्या किया.... 

मैत्री ने कहा- आप लंच क्यो नही ले जाते हैं... 
जतिन ने कहा- आदत ही नही है दोपहर मे खाना खाने की, संडे को या छुट्टी वाले दिन तो खा लेता हूं पर ऑफिस मे मन नही करता.... 

मैत्री ने बड़े प्यार से हक जताते हुये कहा- पर ये तो गंदी आदत है ना.... इतना काम रहता है आपको... खाना तो जरूरी है ना जी, भूख तो लगती ही होगी.. 

जतिन मुस्कुराते हुये बोला- ह.. हां लगती है कभी कभी तो चाय पी लेता हूं... भूख मर जाती है... 

मैत्री ने कहा- खाली पेट चाय नुक्सान करती है ना, आज से आप लंच ले जायेंगे... और खाना खाकर खाली टिफिन लेकर ही आयेंगे.... ठीक है..!! 

मैत्री ने इतने प्यार से हक जताते हुये अपनी बात कही कि जतिन उसकी बात नही काट पाया.... और बोला- अच्छा ठीक है.... मै ले जाउंगा लंच और पूरा खाउंगा भी.... (इसके बाद मैत्री को चिढा़ते हुये से लहजे मे जतिन ने कहा) पर टिफिन कहां है.... टिफिन तो होगा ही नही.... 

इसके बाद शैतानी भरे लहजे मे ताली बजाकर हंसते हुये जतिन ने कहा- येेेे..एेेेेएएए.... मै जीत गया.... अब नो लंच... 

जतिन को देखकर मैत्री हंसने लगी और हंसते हुये बोली- ओहोहोहो जादा खुश मत होइये... मैने रसोई मे देख लिया है तीन चार छोटे डिब्बे हैं.. जिनमे थोड़ी थोड़ी चीजे रखी हुयी हैं... मै उन्हे किसी और जगह रख दूंगी... आज उनसे ही काम चला लीजिये और शाम को नया लंच बॉक्स लेकर आइयेगा... 

मैत्री की बात सुनकर जतिन बच्चो जैसा मुंह बनाते हुये बोला- अच्छा जी.... तुमने सारा इंतजाम कर लिया मेरे लंच का... तो ठीक है ले जायेंगे और क्या.... 

जतिन को ऐसे ड्रामा करते देख मैत्री हंसने लगी और बोली- चलिये ठीक है... मै रसोई मे जाकर आपके लिये लंच बना देती हूं फटाफट से.... 

इसके बाद मैत्री अपने कमरे से रसोई की तरफ जाने लगी और उसे जाते देख जतिन मन ही मन सोचने लगा कि "अब तुम्हारे हाथ के प्यार से भरे खाने को मै कैसे मना कर सकता हूं मैत्री... तुम नही जानती कि तुम कितनी स्पेशल हो मेरे लिये" 

इसके बाद मैत्री ने जतिन के लिये लंच बनाया और उन्ही डिब्बो मे रख दिया जिनका जिक्र उसने जतिन से किया था, जतिन भी खुशी खुशी वो लंच लेकर ऑफिस चला गया.... अपनी अर्धांगिनी के हाथ से बना लंच लेकर पहली बार ऑफिस जाते हुये जतिन को मन ही मन बहुत खुशी हो रही थी.... 

क्रमशः