अर्धांगिनी-अपरिभाषित प्रेम... - एपिसोड 56 रितेश एम. भटनागर... शब्दकार द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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अर्धांगिनी-अपरिभाषित प्रेम... - एपिसोड 56

जतिन के ऑफिस जाने के बाद अपने कमरे मे बैठे बबिता और विजय बाते कर रहे थे.... बाते करते हुये बबिता ने अपने पति विजय से कहा- मुझे बड़ी चिंता होती थी कभी कभी ये सोचकर कि जतिन की शादी जिस किसी भी लड़की के साथ होगी वो पता नही हमारे तौर तरीके सीख पायेगी भी या नही, पता नही उसका हमारे लिये व्यवहार कैसा होगा.... वैसे भी आजकल की जादातर  लड़कियों को सास ससुर के साथ रहना पसंद नही है ऐसे मे ऐसी सोच वाली बहू आ जायेगी तो बुढ़ापे मे हमारा क्या होगा... और हमारा बेटा जतिन जो इतने साफ दिल का है वो क्या करेगा, वो तो हमारे और अपनी पत्नी के बीच मे फंस कर रह जायेगा लेकिन मैत्री ने जिस तरह से इस घर के तौर तरीको को अपनाया है और इतने कम समय मे घर मे रम गयी है... ये देखकर मुझे बहुत सुकून महसूस होता है, मेरा तो मन करता है कि मै बस मैत्री के पास ही बैठी रहूं... इतनी सकारात्मक ऊर्जा है उसके अंदर...

बबिता की बात सुनकर विजय ने कहा- सही बात है... बड़ी अच्छी किस्मत है हम तीनो कि जो मैत्री जैसी बहू मिली है हमें.... वरना आजकल की लड़कियां कहां पसंद करती हैं घर के काम करना....

बबिता ने कहा- सच कह रहे हैं आप... अच्छा सुनिये मै जरा देखकर आती हूं कि मैत्री क्या कर रही है, वो जब मुझसे कुछ पूछती है ना तो मुझे बहुत अच्छा लगता है उसे घर की सारी चीजे बताने मे.... मै थोड़ी देर उसके पास बैठ कर आती हूं....

इसके बाद बबिता अपने कमरे से जब बाहर आयीं तो उन्होने देखा कि मैत्री रसोई मे कुछ बना रही है.... बबिता मैत्री के पास गयीं और मुस्कुराते हुये बोलीं- क्या बना रही हो मैत्री बेटा... 

मैत्री ने कहा- मम्मी जी दोपहर के खाने के लिये सब्जी बना रही हूं... 

बबिता ने कहा- अच्छा अच्छा... तो एक काम करो ना, लगे हाथ पराठे भी सेक दो... फिर आराम करलो, सुबह से काम मे लगी हुयी हो... 

मैत्री ने कहा- मम्मी जी मै पराठे दोपहर मे ही सेक दूंगी.. गरम गरम खा लीजियेगा.... ठंडे पराठे अच्छे नही लगते... 

मैत्री की बात सुनकर बबिता मुस्कुराने लगीं.... मैत्री ने फिर से बबिता से कहा- अम्म् मम्मी जी आज तो मैने अपने मन से बना दिया है खाना... बाकि कल से आप जो कहेंगी मै वो बना दिया करूंगी, मम्मी जी आपको और पापा जी को क्या अच्छा लगता है?? 

बबिता ने कहा- बेटा हम तो सब कुछ खा लेते हैं.... हमारा तो ऐसा कोई खास पसंद नापसंद वाला हिसाब नही है.... बाकि तुम्हारे पतिदेव के नखरे हैं... 

ऐसा कहकर बबिता हंसने लगीं और बबिता की बात सुनकर मैत्री को भी हंसी आ गयी.... हंसते हुये मैत्री ने कहा- मम्मी जी वो क्या क्या नही खाते.... 

बबिता ने कहा- उसे लौकी की सब्जी से बहुत चिढ़ है... लौकी की सब्जी सामने आते ही उसका मुंह बन जाता है, बाकि उसे अरहर की दाल तड़का लगी हुयी और उसमे कटी हरी मिर्च और धनिया डला होतो मजे से खाता है... उसके साथ चावलो मे लॉंग और काली मिर्च डली हो तब तो एकदम खुश हो जाता है... 

मैत्री बड़े ध्यान से बबिता की बात सुन रही थी कि अचानक वो बबिता से कुछ बोली.... उसकी बात सुनकर बबिता हंसने लगीं और हंसते हुये बोलीं- हां ये ठीक रहेगा... मजा आयेगा शाम को..... 

इधर दूसरी तरफ अपने ऑफिस मे बैठा जतिन जो भले ही लंच अपने साथ लाने को तैयार नही था पर मैत्री के हक जता कर लंच देने की वजह से वो अंदर ही अंदर बहुत खुश था और इंतजार कर रहा था कि कब लंच टाइम हो और वो मैत्री के हाथ के बने उस लंच को खाये.... जतिन का मन तो कर रहा था लंच करने का लेकिन एक झेंप भी थी उसके मन मे, झेंप इस बात को लेकर थी कि उसके ऑफिस मे काम करने वाली चार लड़कियां अक्सर जतिन से लंच करने के लिये कहती थीं और वो "आप लोग खा लो मुझे भूख नही है" कहकर लंच के लिये मना कर देता था... और आज वो खुद लंच ले गया था तो ऐसे मे अगर वो लड़कियां जतिन को लंच करते देख लेतीं तो मैत्री को लेकर उसकी टांग खींचतीं... इसलिये जतिन ने दोपहर मे अपने केबिन के बाहर ऑफिस मे पानी वगैरह पिलाने वाले  एक लड़के को बैठा दिया और कह दिया कि" दस पंद्रह मिनट किसी को अंदर मत आने देना...." इसके बाद जतिन ने जल्दी जल्दी लंच कर लिया.... इधर मैत्री ने भी घर मे सबको गर्म गर्म पराठे बना कर खिला दिये थे... 

रात मे जतिन अपने टाइम यानि नौ बजे जब घर पंहुचा तो उसने देखा कि मैत्री उसके मम्मी पापा के साथ बैठकर टीवी पर सीरियल देख रही थी, मैत्री ने जब जतिन को देखा तो वो अपनी जगह से उठकर जतिन के लिये पानी लेने रसोई मे चली गयी.... जतिन भी उसके पीछे पीछे वो बैग जिसमे खाने वाले डिब्बे रखकर मैत्री ने उसे दिये थे को लेकर रसोई मे चला गया,रसोई मे जाकर उस बैग मे से जतिन ने एक डिब्बा निकाला और जोर से रसोई की पटिया पर रख दिया... डिब्बे के पटकने की आवाज सुनकर फ्रिज मे से पानी निकाल कर गिलास मे डाल रही मैत्री ने जब पलट के जतिन की तरफ देखा तो वो उसकी तरफ देखकर ही मुस्कुरा रहा था, मैत्री की तरफ मुस्कुराते हुये देखकर जतिन ने एक एक करके चारो डिब्बे ऐसे ही पटक कर पटिया पर रखे और मजाकिया लहजे मे बोला- मैत्री देख लो... एक एक डिब्बा खाली है, मैने पूरा खाना खा लिया और खाना बहुत टेस्टी था... मजा आ गया खाकर... 

जतिन की बात सुनकर मैत्री खुश हो गयी और धीरे से बोली- अब तो रोज ले जायेंगे ना?? 

जतिन ने कहा - बिल्कुल... तुम्हारा आदेश और मै ना मानूं ऐसा कैसे हो सकता है... 

मैत्री ने कहा- अच्छा तो फिर नया लंचबॉक्स आप लाये? 

जतिन ने कहा- हां... ले आया, कार मे ही रखा रह गया है अभी थोड़ी देर मे निकाल दूंगा, अच्छा मैत्री मुझे बहुत जोरो की भूख लगी है... खाना बन गया है क्या? 

मैत्री ने कहा- हां जी खाना बन गया है बस रोटियां सेकनी हैं... आप फ्रेश हो जाइये तब तक मै रोटियां सेक देती हूं... 

जतिन ने कहा- हां तुम सेकना शुरू करो मै अभी आया कपड़े चेंज करके फिर सब साथ मे बैठकर ही खायेंगे.... 

इसके बाद जतिन अपने कमरे मे चला गया और मैत्री ने रोटियां सेकनी शुरू कर दीं... थोड़ी देर बाद कपड़े बदल कर जतिन ड्राइंगरूम मे आकर बैठ गया और खाने का इंतजार करने लगा, जतिन अपना मोबाइल हाथ मे लिये हुये उसमे कुछ कर रहा था... चूंकि दिन मे मैत्री ने बबिता से जो बात कही थी वो बात बबिता ने अपने पति विजय को भी बता दी थी जिसकी वजह से बबिता और विजय एक दूसरे को देखकर मुस्कुरा रहे थे, थोड़ी देर बाद मैत्री जतिन के लिये खाना लेकर कमरे मे आयी और खाने की प्लेट जतिन के सामने रखते हुये बोली- सुनिये जी... खाना खा लीजिये... 

जतिन जो अपने मोबाइल मे कुछ कर रहा था.... मैत्री के बोलने पर मोबाइल की तरफ देखते हुये बोला- हां अभी खाता हूं.... 
इसके बाद मैत्री वहां से चली गयी... और जतिन ने जैसे ही मोबाइल से नजर हटा कर खाने की प्लेट की तरफ देखा... वो चौंक गया और अजीब सा गंदा मुंह बनाते हुये बबिता की तरफ देखते हुये बोला-  मम्मा ये क्या है...!! 

बबिता ने कहा- क्या है.. खाना है... और क्या है... 

जतिन ने कहा- अरे वो तो ठीक है पर खाने मे लौकी की सब्जी...!! 

बबिता जो पहले से जानती थीं कि रात के खाने मे ये होने वाला है वो बड़ी मुश्किल से अपनी हंसी रोककर बोलीं- तो क्या हुआ, मैत्री ने इतने प्यार से बनायी है लौकी की सब्जी... तो खा ले... 

जतिन उदास से लहजे मे बोला- ह.. हां ये बात भी सही है... चलो खा ही लेता हूं... 

चूंकि जतिन को लौकी की सब्जी बिल्कुल भी अच्छी नही लगती थी लेकिन वो मैत्री ने बनायी थी इसलिये वो जादा नखरे नही कर पाया... मुंह बनाते हुये उसने रोटी का टुकड़ा तोड़ कर ठिठके हुये तरीके से अपना हाथ अपने मुंह की तरफ बढ़ाना शुरू किया तो उसे देखकर बबिता और विजय अपनी हंसी रोक नही पाये और जोर से हंसने लगे... उन्हे ऐेसे हंसते देखकर जतिन जिसका मुंह पहले से ही चढ़ा हुआ था... अजीब से हावभाव करके उनसे बोला- आप लोग हंस क्यो रहे हो.... 

जतिन के पूछने पर बबिता ने कहा- ला इधर दे खाने की प्लेट, कैसे कैसे अजीब से मुंह बना रहा है.... मै खा लूंगी

बबिता के ऐसा कहने पर जतिन ने कहा- फिर मै क्या खाउंगा... 

जतिन के पूछने पर बबिता ने रसोई की तरफ इशारा करके कहा- तू वो खायेगा... 

बबिता के इशारा करने पर जतिन ने जब रसोई की तरफ मुड़ के देखा तो पाया कि मैत्री हंसते हुये खाने की दूसरी थाली ला रही है.... खाने की दूसरी थाली जब मैत्री ने जतिन के सामने रखी तो उसे देखकर जतिन को सारा माजरा समझ आ गया... और वो सरप्राइज होकर खुश होते हुये बोला- अच्छा जी ये मुझे चिढ़ाने के लिये किया गया था.... मेरे खिलाफ साजिश!! 

ऐसा कहकर जतिन ने जब मैत्री की तरफ देखा तो मैत्री जो पहले से ही दबी हुई हंसी हंस रही थी वो जतिन के अजीब से मजाकिया हाव भाव देखकर जोर से हंसने लगी.... और इतना हंसने लगी कि हंसते हंसते उसकी आंखो मे आंसू आ गये, मैत्री जब हंस रही थी तब जतिन उसे हंसता हुआ देखकर बस देखता ही रह गया... आज पहला ऐसा मौका था जब जतिन ने मैत्री को इतना खुलकर हंसते देखा था, मैत्री को हंसते हुये देखकर जतिन मन ही मन बहुत खुश हो रहा था... हंसती हुयी मैत्री को और जादा हंसाने के लिये जतिन और जादा टेढ़े मुंह बनाकर उसकी तरफ देख रहा था.... जिसे देखकर मैत्री और हंस रही थी.... हंसते हंसते मैत्री ने कहा- सॉरी जी... बस ऐसे ही छोटा सा मजाक किया था... 

मैत्री की बात सुनकर जतिन के पापा विजय ने कहा- अब होगी बराबरी की टक्कर... जतिन तू बहुत टांग खिचाई करता था ना सबकी... अब देख आ गयी तुझे टक्कर देने वाली.... 

असल मे दिन मे मैत्री ने बबिता से यही कहा था कि वो लौकी की थोड़ी सी सब्जी बनाकर जतिन के सामने रखेगी और बाकी उसकी मनपसंद अरहर की दाल जैसी उसे पसंद है और चावल भी बना लेगी... 


दिन मे बनाये गये मैत्री के इस मजाकिया प्लान ने सबको हंसा दिया और बाद मे सबने खुशी के इस माहौल मे साथ बैठकर खाना खाया... 

क्रमशः