Ishq a Bismil book and story is written by Tasneem Kauser in Hindi . This story is getting good reader response on Matrubharti app and web since it is published free to read for all readers online. Ishq a Bismil is also popular in फिक्शन कहानी in Hindi and it is receiving from online readers very fast. Signup now to get access to this story.
इश्क़ ए बिस्मिल - उपन्यास
Tasneem Kauser
द्वारा
हिंदी फिक्शन कहानी
लगभग तीन घंटों से उसका कमरा अजीबो-ग़रीब नक्शा पेश कर रहा था। कमरे की हालत देखकर ये जान पाना मुश्किल हो रहा था कि यह उसे बिगाड़ने की कोशिश थी या उसे संवारने कि जद्दोजहद।
बेड पे लगभग पूरा कमरा उन्डेला हुआ था। अलमारी के सारे कपड़े फैले हुए थे, कुछ किताबें थीं, कुछ पैकेट्स, कुछ खिलौने , कुछ boxes और उनमें बसी ढेर सारी यादें। यह उसके रोज़ का मआमूल सा बन गया था। यादों को उधेड़ना और फिर से बुन्ना। इस उधेड़बुन में उसने 6 साल गुज़ारे थे। ६ साल यूं तो उंगलियों पे बड़ी आसानी से गिने जा सकते हैं, मगर उन लम्हों का कोई हिसाब नहीं लगा सकता जो किसी के इंतज़ार में गुज़ारे गए हों।
शुक्र है, आज वह इंतज़ार ख़त्म होने को थी, इसलिए आज इन साथियों कि शुक्रगुज़ारी की जा रही थी। मुश्किल वक़्त मैं इन चीज़ों ने उसका बहुत साथ दिया था। साथियों को उनके मक़ाम पर पहुंचाने के बाद एक बार फ़िर से उसे फ़िक्र सताने लगी थी। आज शाम क्या पहना जाए। कपड़ों का ढेर था। मगर आज के ख़ास मौके के लिए उसे कुछ जच नहीं रहा था।
तेरा इंतज़ार!है फ़र्ज़ जैसा मुझ पेगर मुलाक़ात रद हुईतो ये इबादत मुझ पे क़र्ज़ हुई।ये क़ज़ा मैं कैसे चुकाउंगी?तेरी रज़ा मैं कैसे पाउंगी?लगभग तीन घंटों से उसका कमरा अजीबो-ग़रीब नक्शा पेश कर रहा था। कमरे की हालत देखकर ये ...और पढ़ेपाना मुश्किल हो रहा था कि यह उसे बिगाड़ने की कोशिश थी या उसे संवारने कि जद्दोजहद।बेड पे लगभग पूरा कमरा उन्डेला हुआ था। अलमारी के सारे कपड़े फैले हुए थे, कुछ किताबें थीं, कुछ पैकेट्स, कुछ खिलौने , कुछ boxes और उनमें बसी ढेर सारी यादें। यह उसके रोज़ का मआमूल सा बन गया था। यादों को उधेड़ना और
बहुत मसरूफ़ हूं मैं,जाने किस इल्हाम में हूं?मुझे ख़बर ही नहीं,के मैं किस मक़ाम पे हूं,वह नाश्ता कर रहा था जब अज़ीन कालेज के लिए तैयार हो कर नाश्ता करने डाइनिंग रूम में दाखिल हो रही थी, मगर आधी ...और पढ़ेपर ही उसके कदम ठहर गए थे। हदीद की पीठ उसकी तरफ़ थी और वह अपने आस पास से बेगाना उसकी पीठ को एक टुक तके जा रही थी, उसे होश तब आया जब आसिफ़ा बेगम की नागवार आवाज़ उसकी कानों तक पहुंची “तुम वहां खड़ी क्या तक रही हो? अगर नाश्ता नहीं करना है तो कालेज जाओ”मां की आवाज़
तुम्हारी यादों के झुरमुट में,एक उम्मीद जुगनू सी हैसुना है लोग बिझड़ते हैमिलने के लिए।घर तो वहीं था जहां उसने अब तक १२ साल गुज़रे थे, मगर आज से पहले उसे यह घर इतना खास नहीं लगा था। हालांकि ...और पढ़ेघर असाइशों और अराइशों (luxuries) का नमुना था। वहां की हर एक चीज़, हर एक सजावट, वहां के रहने वालों की बेमिसाल पसंद और ज़बरदस्त choice का आइना था। जितना आलीशान वह two-storey bunglow था उतना ही शानदार उसका गार्डन भी था जिसे माली के साथ साथ अज़ीन ने भी सींचा था। उसे गार्डेनिंग का शौक था। इस गार्डन से
पहले थे कुछ और,अब कुछ और हो गए होपहले थे फ़क़्त "यार",अब "जनाब" हो गए हो।पहले तो वह डर गई और उसे अपना दिल डर के कारण बंद होता महसूस हुआ मगर अगले ही लम्हे सामने खड़े बन्दे को ...और पढ़ेकर उसका दिल ज़ोरो-शोरो से धड़कने लगा। हाथ दिल को थामे हुआ था, और आंखें फटी हुई थीं। चारकोल कलर की ट्रेक पैन्ट और ब्लैक कलर की टी-शर्ट में ६ फ़ीट का क़द काफ़ी शानदार लग रहा था वह यक़ीनन बहुत हैंडसम और डैशिंग था। वह बिना अपनी पलक झपकाए बस उसे देखे गई थी।"तुम हो? मुझे लगा कोई चुड़ैल
वो राह मेरी मंज़िल को जाती ना थी,तेरी रामगिरी ने मेरे क़दम उठा दिए।"तुम ने ड्राइविंग नहीं सीखी?" हदीद ने कार स्टार्ट करते हुए उससे पूछा था।"सीखी है, मगर आपी ने चलाने कि इजाज़त नहीं दी है।" अज़ीन को ...और पढ़ेबात का काफ़ी मलाल था।"ओह! भाभी अभी भी तुम्हें लेकर उतनी ही फ़िक्र मन्द रहती है?" उसने हंसकर कहा।थोड़ी देर दोनों ख़ामोश रहे थे और यह ख़ामोशी अज़ीन को बहुत खल रही थी इसलिए उसने पूछा था।"तुम बताओ, तुम्हारा क्या प्लान है, जाब करोगे या भाईजान के साथ बिज़नेस जोइन?" "फ़िलहाल तो आराम करुंगा, मौज-मस्ती करुंगा, जब तक कोई काम