इश्क़ ए बिस्मिल - 44 Tasneem Kauser द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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इश्क़ ए बिस्मिल - 44

उमैर खुद को किसी पाताल में गिरा हुआ महसूस कर रहा था। वह अपनी लड़ाई खुद लड़ने आया था मगर उसे ऐसा लग रहा था की अरीज ने उसे जीत भीख में दे दी हो। वह अपनी लड़ाई लड़े बग़ैर ही जीत गया था और उसे ये जीत हरगिज़ नहीं भा रही थी।
लेकिन अब वह कर भी क्या सकता था?
सनम के साथ शादी से इंकार? सिर्फ़ अपनी अना (ego) में इसलिए की अरीज ने उसे सनम की भीख दी थी?...
और अरीज वह कौन थी?
उसे अचानक से हॉस्पिटल का वो admit फॉर्म याद आया था जब वह अज़ीन को वहाँ लेकर गया था और father’s name के बगल के ब्लैंक स्पेस में अरीज ने इब्राहिम खान लिखा था। उस वक़्त उसे बिल्कुल भी अंदाज़ा नहीं हुआ था की ये इब्राहिम खान कोई और नहीं बल्कि उसके छोटे चाचू है। वह समझता भी कैसे इब्राहिम नाम के दुनिया में बोहत सारे लोग होंगे दूसरी बात उसे तो यही पता था की इब्राहिम चाचू की मौत किसी एक्सीडेंट में हो गई थी। छोटे दादा (सुलेमान खान) अक्सर किसी के भी पूछने पर यही जवाब देते थे के उनका बेटा मर गया है किसी हादसे में।
अरीज उसकी सेकंड cousin थी? वह सब सोचने के बाद बार बार इसी एक बात पर आकर अटक जा रहा था।
क्या कहा था उसने? बाबा से?
“आप किसी को भी इस खानदान से खारिज नहीं करेंगे अगर आप ने ऐसा किया तो तारीख(इतिहास) खुद दोहराई जाएगी....फिर से कोई बे आसरा अरीज पैदा हो जियेगी... जिसका भरा पूरा खानदान होते हुए भी उसके साथ कोई नहीं होगा... मगर मेरी खुश नसीबी थी के मुझे आप मिल गए थे, ज़रूरी नहीं आगे भी कोई आप जैसा किसी अरीज को मिल जाए।“
उमैर के ज़हन में ये बातें गूँज रही थी।
“अगर ऐसा कर के आप समझते है की आप सही करेंगे तब फिर तो दादा जान ने भी बाबा को बेदखल कर के कोई ग़लत काम नहीं किया था। फिर क्यों आप उनकी तलाश में लगे रहते थे की वह कहीं से आपको मिल जाए?”
अब उसे समझ आया था की बाबा ने ये घर अरीज के नाम क्यूँ करवाया था?
क्योंकि इस घर के असल हक़दार इब्राहिम चाचू थे मगर छोटे दादा ने उन्हें अपनी जायदाद से आक़ (बेदखल) कर दिया था।
इस हिसाब से इब्राहिम चाचू के बाद ये घर अरीज और अज़ीन का होता मगर उसे ये बात समझ नहीं आ रही थी की छोटे दादा ने ये घर उसके बाबा की जगह उसके नाम क्यों कर दिया था?
बोहत सारे सवाल थे जिसमे वह खुद को जकड़ा हुआ महसूस कर रहा था।
कौन देता उसके सारे सवालों के जवाब?
अरीज ज़मान खान के पैर के पास से उठ खड़ी हुई थी और उसने जैसे ऐलान किया था।
“बाबा मैं कुछ और भी कहना चाहती हूँ।“ वह ज़मान खान को कहते हुए उमैर के पास गई थी। उमैर उसे ही देख रहा था और अरीज बिना किसी डर या खौफ़ के उसे।
“आपको यहाँ रोकने का बस मेरा एक ही मक़सद था.... आप इसे सौदा समझें या फिर मेरी गुज़ारिश।..... आप जिस से चाहे शादी करें... मगर मुझे तलाक़ दिया बग़ैर।“ उसने बात खतम की थी और उसे सुन कर उमैर के होंठों पे एक तंज़िया मुस्कान उभर आई थी। उमैर को अपनी सोच पर हंसी आई थी... वह कैसे सोच सकता था अरीज ऐसे ही बिना किसी सौदेबाज़ी के पीछे हट जाएगी।
अरीज की बात पर हैरान तो ज़मान खान भी हो गए थे।
“तुम चाहती हो मैं दो नाव का सवारी बन जाऊँ? पहले तो बोहत बड़ी बड़ी बातें कर रही थी अब क्या हुआ?” उमैर ने उसका मज़ाक उड़ा कर उस से कहा था।
“मैं आपके और आपकी मोहब्बत के बीच में कभी नहीं आऊँगी।“अरीज ने अपनी बात साफ़ करनी चाही मगर उमैर फिर से बोल पड़ा।
“तुम्हें क्या लगता है सनम ये जान कर के मेरी already एक बीवी है और वो मुझ से शादी पर राज़ी हो जाएगी? मैं तुम्हारा क़िस्सा ख़तम कर के ही उस से शादी करूँगा... और तुम कौन होती हो मुझे मेरी मोहब्बत की भीख देने वाली?” वह गुस्से में काफी हार्श हो रहा था जब ही ज़मान खान से रहा नहीं गया।
“उमैर!” आवाज़ नीची करो!” ज़मान खान दहाड़े थे मगर उमैर ने उनकी तरफ़ नज़र भी नहीं की... वह गुस्से से अरीज को ही घूरता रहा था।
“नहीं अरीज! अब मैं भी नहीं चाहता की तुम इसके साथ रहो... ये तुम्हारे किसी लिहाज़ से भी लायक नहीं है।“ ज़मान खान को अपने बेटे से कभी भी इस बात की उम्मीद नहीं थी की वो इतना ज़िद्दी भी हो सकता है। किसी बात को वह इस तरह पकड़ के बैठ जाएगा... आज उसके निकाह को इतने दिन हो गए थे मगर वह अपनी बात से टस से मस नहीं हुआ था।
“नहीं बाबा...मुझे तलाक़ नहीं चाहिए क्योंकि मुझे कभी भी दूसरी शादी नहीं करनी है। मुझे पता है अगर मैंने तलाक़ ले ली तो कभी ना कभी आप मेरा घर बसाने की दूसरी कोशिश ज़रूर करेंगे और मैं ये नहीं चाहती। मैं ये घर छोड़ कर कहीं नहीं जाऊँगी... यहाँ मेरे बाबा का बचपन है ... मैं इस जगह को छोड़ कर कहीं भी नहीं जाऊँगी... जब कहीँ जाना नहीं है... रहना यहीं है तो फिर मैं तलाक़ क्यों लूँ।“ अरीज ने अपनी दिल की बात साफ़ लफ़्ज़ों में कह दिया था। उमैर उसकी बात सुन कर शांत हो गया था। वह और कहता भी क्या... ये एक बेटी के जज़्बात का मुआमला था। ज़मान खान भी चुप हो गए थे... अरीज कुछ ग़लत नहीं कह रही थी... वह यही इरादा रखते थे की वह उसका घर बसा देंगे।
“उमैर साहब आप घबराए नहीं... सनम को कभी ये पता नहीं चलेगा के हमारा रिश्ता क्या है। मैं इस घर में इब्राहिम खान की बेटी के हैसियत से रहूँगी आपकी बीवी के हैसियत से नहीं।“ उसने मुड़ कर वापस उमैर को देखते हुए कहा था। उसके बाद उसने उमैर के बेड की साइड टेबल की drawer को खोला था, उसमे से एक फाइल निकाली थी और फाइल के अंदर से एक काग्ज़ात। और फिर उसने वह काग्ज़ात उमैर के सामने फाड़ कर टुकड़ों में तब्दील कर दिया था, और उसके सामने फ़र्श पर ढेर कर दिया था। उसने अपनी नज़रें उमैर पर ही गाड़ी हुई थी। जब की उमैर ना समझी में उसे हैरानी से देखता रह गया था लेकिन ज़मान खान बोल पड़े थे।
“अरीज ये क्या किया तुमने?.... तुमने इस घर के पेपर्स फाड़ दिए?” वह भी हैरानी के समुंदर में गोते खा रहे थे।
“उमैर साहब मैं आपको ये मेहर माफ़ करती हूँ।“ वह दोनों बाप बेटे शॉक मे पड़ गए थे।
अरीज उसके बाद वहाँ पर रुकी नहीं थी... आँसूं पूछती हुई सीधा कमरे से निकल गई थी।
क्या वजह थी की सुलेमान खान ने ये घर उमैर के नाम से किया था?...
“क्या अरीज ने जो किया था सही किया था?...
क्या अब भी अरीज पर लगाए इल्ज़ाम उमैर वापस ले लेगा, की उसने घर की लालच मे उस से निकाह किया था?
और क्या क्या राज़ खुलने बाकी थे उमैर के सामने?
जानने के लिए मेरे साथ बने रहें और पढ़ते रहें