इश्क़ ए बिस्मिल - 45 Tasneem Kauser द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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इश्क़ ए बिस्मिल - 45

उमैर की नज़रें उन काग़ज़ के टुकड़ों के ढेर पर टिकी हुई थी।
अभी अभी ये क्या हुआ था?
क्या कोई ऐसा भी कर सकता था?
ये जानते हुए भी की इस घर पर उसका हक़ है।
एक हक़ उसके इस घर के वारिस होने का....
और दूसरा हक़ उसके मेहर का।
उसने इतनी आसानी से दोनों हक़ ठुकरा दिए थे।
उमैर को यकीन नहीं हो रहा था।
वह ऐसा कैसे कर सकती थी?
“इतनी छोटी सी उम्र में इतना ख़ुराफ़ाती दिमाग़ कहां से मिला तुम्हें?” उमैर के कानों में अपनी ही कही गई बात गूँज रही थी। अरीज से पहली मुलाक़ात में उसने उस से यही कहा था।
“जूते-चप्पल छोड़ बाज़ दफ़ा लोगों की एड़ियां तक घिस जाती है इतनी दौलत कमाने में...मगर कमाल है तुमने तो एक अलग रिकॉर्ड कायम किया होगा...बिना मेहनत किए कुछ घंटों में ६० करोड़ की जायदाद हासिल कर ली” पहली मुलाक़ात में दुल्हा अपनी दुल्हन को मूंह दिखाई में कुछ तोहफ़ा देता है... मगर उमैर ने उसे ताने दिए थे.... उसके सर पर इल्ज़ाम का ताज रखा था।
“उमैर तुम एक दिन बोहत पछताओगे.... तुम्हें ग़लती से हीरा मिल गया था मगर शायद तुम्हें अपनी खुश किमती पर यकीन नहीं था इसलिए तुमने उसे काँच का टुकड़ा समझ कर ठुकरा दिया.... एक बाप होते हुए अपने मूंह से ये निकालना मुझे ज़ेब (शोभा) तो नहीं देता मगर फिर भी कहे बग़ैर मैं रह भी नहीं सकता.... की तुम बोहत बद नसीब हो उमैर।“ उमैर के चेहरे का रंग उड़ गया था। उसे अपनी जान से भी ज़्यादा चाहने वाले बाबा उसके लिए ऐसा बोल रहे थे। वह उनकी बात पर तड़प कर उन्हें देखता रह गया था।
“मेरी ग़लती नहीं है...बिल्कुल भी नहीं....आपने मुझे पहले ये सब कुछ क्यूँ नही बताया?...आपने मुझ से ये हक़ीक़त छुपा कर रखी.... मेरी जगह कोई भी होता तो ऐसा ही करता....।“ वह अपनी सफाई पेश कर रहा था... अपनी बेबसी की वजह से उसे बिल्कुल अंदाज़ा नहीं था की वह कितनी ऊँची आवाज़ में अपने बाप से बात कर रहा था।
“मैं तुम्हें सब कुछ बताना चाहता था उमैर.... और मैं तुम्हें बताने आया भी था... मगर तुम कुछ सुन ने को तय्यार नही थे... मुझे सुने बग़ैर तुम अपने ही ख़्यालों में अरीज की एक इमेज बना कर बैठे थे। किसी के समझाने से बेहतर होता है जो इंसान खुद अपनी अकल लगा कर समझे और परखे... मैं भी चाहता था की तुम अरीज को खुद से समझो... कल हो के ये ना कहो... मैंने तुम्हारी ब्रेन वाशिंग की... अरीज का एक अच्छा इमेज बना कर तुमहारे दिमाग़ मे डाल दिया। मगर मैं बोहत बड़ा बेवाकूफ़ था!.... तुम उसे कैसे समझते?... तुम तो उसे समझना ही नहीं चाहते थे... तुम्हें उसके साथ रिश्ता निभाना ही नहीं था... क्योंकि तुम्हारे दिल ओ दिमाग़ मे किसी और लड़की की परछाई पहले से बसेरा डाल कर बैठी थी।“ ज़मान खान आज फट पड़े थे। उन्होंने आज उमैर को आड़े हाथों लेने मे कोई कसर नहीं छोड़ी थी। बदले में उमैर ने अपना सर नहीं में हिलाई थी। जैसे की वह कहना चाह रहा हो की वह अपनी जगह सही था... वह गलत नहीं था।
“छोटे दादा ने ये घर मेरे नाम क्यों की थी? आपके नाम क्यों नहीं?.... वह आपके नाम भी तो कर सकते थे... फिर मेरे गले में ये फन्दा क्यों डाला उन्होंने? वो काफी झल्ला गया था इस situation से।
“क्योंकि मैंने लेने से इंकार कर दिया था...जो चीज़ मेरे छोटे भाई के लिए छोटे बाबा ने हराम कर दिया था वो मैं अपने लिए कैसे हलाल समझ सकता था? मै तो ये भी नहीं चाहता था की वो ये सारी प्रोपर्टी तुम्हारे नाम करते.. मगर तुम्हारी!... अपनी मरी हुई बहन की मौत का सौदा किया था उसने।“ आज उमैर को उसके सारे सवालों के जवाब मिल रहे थे।
“मौत?” उमैर ने ना समझी में पूछा था।
“हाँ मौत! तुम्हारी खाला आतीफ़ा के साथ इब्राहिम ने शादी से इंकार कर दिया था क्योंकि वह अरीज की माँ इंशा से मोहब्बत करता था। वह ये इंकार बर्दाश्त नहीं कर पाई और खुदखुशी कर ली। इब्राहिम को बेदखल करने के बाद छोटे बाबा ने अपनी सारी प्रोपर्टीज, shares, सब कुछ मेरे नाम करने की कोशिश की... मैंने लेने से साफ इंकार कर दिया... लेकिन तुम्हारी माँ लालची लोमड़ी की तरह सामने आई और तुम्हारे नाम सब कुछ करने को कहा... और साथ में ये भी जता दिया की छोटे बाबा ने उस पर कोई एहसान नहीं किया है उमैर के नाम सब कुछ कर के.... उसकी बहन की ज़िंदगी के सामने इसकी क़ीमत कुछ भी नहीं है।“ उमैर के सर पे धमाका सा हो रहा था। उसे बिल्कुल भी इन सब बातों का पता नहीं था। जब इब्राहिम घर छोड़ कर गया था उस वक़्त उमैर सिर्फ़ चार साल का था। सोनिया और हदीद तो पैदा भी नहीं हुए थे। उसके बाद भी घर में कभी इन सब बातों का उसके सामने ज़िक्र ही नहीं हुआ। हाँ बस वह इतना ज़रूर देखता था की उसके माँ और बाबा की कभी आपस में बनती नहीं थी। आसिफ़ा बेगम अक्सर उन पर चढ़ाई करती रहती थी और ज़मान खान हमेशा उन्हें दर्गुज़र करते रहते थे। ज़्यादा तर वह अपना वक़्त अपने काम मे लगाया करते थे। इसलिए उमैर को माँ के निस्बत अपने बाप से ज़्यादा मोहब्बत थी। वह अपने बाप की नर्म मिज़ाजी से ज़्यादा इम्प्रेस रहता था।
“और वो कंपनी के shares जो मेरे नाम है? वो सब भी छोटे दादा की दी हुई है?” उमैर को अपना वजूद रेत के महल की तरह ढहता हुआ महसूस हुआ।
“हाँ। 65 परसेंट shares छोटे बाबा की थी, 25 परसेंट मेरे बाबा की और 10 परसेंट दूसरों की।“ ज़मान खान ने इतिहास का एक एक पन्ना उसके सामने खोल कर रख दिया था। उमैर जैसे बोहत बड़े क़र्ज़ तले खुद को दबा हुआ महसूस कर रहा था।
“इसका मतलब है ‘वो जो क़र्ज़ था’ आपने इस तरह मुझ से वसूला है? ये सब करने की क्या ज़रूरत थी.... मुझ से एक बार कह देते मैं सब कुछ अरीज और अज़ीन के नाम कर देता। आप ने ऐसा क्यूँ किया बाबा?... क्यूँ?.... क्यों मुझे किसी के क़र्ज़ तले दबा कर इतना छोटा कर दिया... आख़िर क्यूँ?” ये सब सुनने के बाद उमैर पर जैसे जुनून तारी हो गई थी। वह ज़ोर ज़ोर से चीख़ रहा था।
“निकाह की क्या ज़रूरत थी... एक बार मुझे सब बता देते मैं वैसे ही सब कुछ उन दोनों के नाम कर देता.... आप ने मुझे अरीज के सामने गिरा दिया... मुझे बोहत छोटा कर दिया... बल्कि मैं तो अब अपनी नज़रों मे भी गिर चुका हूँ... बोहत छोटा महसूस कर रहा हूँ खुद को... “ वह ज़िद्दी बच्चों की तरह चीख़ चीख़ कर रो रहा था। उसकी हालत देख कर ज़मान खान बोहत घबरा गए थे। वह पच्चीस साल का छह फीट का नौजवान मर्द एक बच्चे की तरह रो रहा था। ज़मान खान ने उसे संभालने के लिए उसे गले लगाया मगर उसने उनका हाथ झड़क दिया।
“उमैर! मेरा बच्चा... मेरी बात सुनो...इसके सिवा और कोई रास्ता नहीं था।“ वह उसे बार बार पकड़ रहे थे और वह बार बार उनका हाथ झड़क रहा था। वह उनसे दूर होते होते दीवार से जा कर लग गया था और फिर फ़र्श पर रेत की दीवार की तरह ढहता चला गया था। वह अब फ़र्श पर बैठ कर जैसे मातम मना रहा था। उसकी ये हालत देख कर ज़मान खान के दिल पर जैसे हज़ारों तीर चले थे। उन्होंने उमैर को पहले कभी ऐसी हालत में नहीं देखा था। वह बोहत हिम्मती नौजवान था। उन्होंने तो कभी उसके बचपन मे भी किसी चीज़ की ज़िद करते हुए उसे रोते नहीं देखा था। ज़मान खान एक बाप थे। उनका बेटा चाहे उन्हें कितनी दफा भी झिड़कता वह उसे ऐसे हाल में अकेला छोड़ कर नहीं जाते।
“उमैर मेरी बात सुनो!... Please पहले मेरी पूरी बात सुन लो...।“ उमैर दीवार से टेक लगा कर अपने गुटनों को हल्का सा मोड़ कर अपनी टाँगे फैला कर फ़र्श पर बैठा हुआ था। ज़मान खान उस से कह रहे थे मगर वह उन्हें नहीं देख रहा था... वह सीधा दीवार पर जाने क्या देख रहा था। उसकी आँखें पत्थराइ हुई थी जिसमें कोई हरकत ही नही थी... वह बिना पलक झपकाए बस सीधा देख रहा था।
“उमैर!... छोटे बाबा ने इब्राहिम को आक़ कर दिया था इसका मतलब है उन्होंने उसके हर हक़ और हर फ़र्ज़ को फरामोश कर दिया था... एक तरह से समझो इब्राहिम उनके लिए मर गया था। अगर मैं तुम्हे सब बता देता तो भी तुम अरीज को वापस कुछ नहीं कर सकते थे क्योंकि अगर तुम ऐसा करते....तो सिर्फ़ इसलिए करते की वह इब्राहिम की बेटी है या फिर सुलेमान खान की पोती। मगर आक़ करने के बाद तो सारा रिश्ता ही खतम हो गया था तो फिर किस हक़ से तुम उसे ये वापस करते। छोटे बाबा की वसीयत को रद कर के तुम ऐसा नहीं कर सकते थे। आक़ करने के बाद पुराने सारे रिश्तें ख़तम हो गए थे... उमैर मुझे ये क़र्ज़ चुकाना था... मुझे अरीज को सब कुछ वापस देना था.... मगर कैसे?.... एक नया रिश्ता बना कर.... इब्राहिम खान की बेटी नहीं.... सुलेमान खान की पोती नहीं.... उमैर खान की बीवी बना कर.... और प्रॉपर्टी यूँही नहीं देना था...इसे देने के लिए एक नया जवाज़ चाहिए था.... और मेहर से बेहतर और अच्छा जवाज़ तो कोई हो ही नही सकता था।“ उमैर उन्हें सुन रहा था... मगर अभी भी उसकी आँखें उसी दीवार पर टिकी हुई थी। ज़मान खान ने इतिहास का वो आखरी पन्ना भी खोल कर उसके सामने रख दिया था। उमैर को सारे जवाब मिल गए थे। मगर कभी कभी सवालों का बे जवाब होना ही बेहतर होता है। ज़रूरी नहीं के हर जवाब मसले को हल ही कर दें... कभी कभी ये ज़िंदगी को और भी उलझा देते है...सवाल एक सफ़र है, तो जवाब एक मंज़िल.... मंज़िल मन चाहा मिला तो ठीक वरना ज़िंदगी भर का मलाल उस सफ़र के साथ आपके पीछे पीछे आ जाती है।
मेहर!
क्या था ये?
एक लड़की...एक औरत का कानूनी हक़।
ये ज़माना उल्टी चाल चलने वालों में से है
जहाँ शरियत में औरत के हक़ की बात कही गई है
वहाँ पे मर्द झूठा हक़...एक नया कानून बना कर दहेज को वसूल रहें है
मूंह मांगी अपनी क़ीमत लगाते है
और जब मेहर की बात आती है तो तोल मोल करते है
खैर... जो भी है... ये ज़माना ऐसा ही है... और शायद क़यामत तक ऐसा ही रहेगा
मगर यहाँ पे मेहर एक अलग रूप मे आया है...
एक लड़की को हक़ दिलाने के रूप में
एक क़र्ज़ को चुकाने के रूप में
अब सच उमैर के सामने था
आगे वह क्या करेगा?
अरीज को अपनाएगा?
सनम को भूल जायेगा?
सब छोड़ छाड़ के खुद कहीं चला जायेगा?
आगे क्या होगा?
जानने के लिए बने रहें मेरे साथ और पढ़ते रहें