इश्क़ ए बिस्मिल - 8 Tasneem Kauser द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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इश्क़ ए बिस्मिल - 8

तुम्हारे साथ की ज़रूरत है,

लम्हों की रानाईयां अकेले समेटी नहीं जाती,

चलो माना हूं मैं ख़ुदग़र्ज़ ही सही,

ज़िंदगी की कठिनाईयां अब अकेले झेली नहीं जाती।।

नेहा के जाने के बाद वह थोड़ा नार्मल फ़ील कर रही थी। दिमाग़ में मची खलबली थोड़ी शांत हुई थी। उसने नसरीन(मैड) से कह दिया था के वह अपने कमरे में है और उसे कोई डिस्टर्ब ना करें जबहि चाहने के बावजूद अरीज उसके कमरे में नहीं आई थी। लेकिन जब डिनर के लिए भी वह नीचे नहीं आई तो अरीज उसका खाना लेकर उसके कमरे में आ गई।

वह आंखें बंद करके लेटी हुई थी। अरीज बिना आवाज़ किए खाना टेबल पर रख कर उसके सिरहाने पर बैठ कर उसके बालों में हाथ फेरने लगी जिससे वह चोंक कर उठ गयी। जब बहन को देखा तो सर उसके गोद पर रख कर अपनी आंखें बंद कर ली थी। अरीज उसी तरह उसके बालों में हाथ फेरती रही।

"कैसी तबीयत है तुम्हारी?"

"शशश! कुछ मत बोलें, बस चुप रहें। मुझे ख़ामोशी को महसूस करने दें"। उसने वैसे ही आंखें बंद करके कहा।

अरीज ने कोई ज़बरदस्ती नहीं की। वह जानती थी, उस से कुछ बोलने का कोई फायदा नहीं है। उसने दिल ही दिल में उसकी आने वाली ज़िन्दगी के लिए दुआएं की और खाना वापस ले कर चली गई। उसके जाने के कुछ देर बाद ही वह सो गई थी।

सुबह हर रोज़ की तरह अपने वक़्त पर ही हुआ था। वही रोज़ की तरह रोशनियां.... ताज़गी.....नयी ज़िन्दगी लिए हुए। वह नीचे आई तो उसे कुछ अलग लगा, घर में हर रोज़ की तरह माहौल नहीं था, नसरीन से पुछने पर पता चला घर पर कल हदीद के आने की खुशी में पार्टी है। उसे कुछ हैरानी हुई क्योंकि ज़्यादातर पार्टीज़ उमैर होटल्ज़ में ही अरेंज करवाते थे।

घर पर नौकरों के अलावा सिर्फ़ वह और अरीज ही थीं। उसका आज काॅलेज जाने का दिल तो नहीं था मगर अचानक से उसने इरादा बना लिया था। वह वापस से अपने कमरे में तैयार होने चली गई थी।

ड्राइवर मक़सूद के साथ काॅलेज पहूंचते ही उसका सामना साहिर से हुआ था। उसे देखते ही अज़ीन का मूड ख़राब हो गया था। वह उस से नज़रें बचाती हुई तेज़ क़दमों से वहां से निकल जाना चाहती थी मगर साहिर भी उसका पीछा करते हुए उसके साथ चलने लगा। ग्राउंड एरिया से चलते हुए वह कोरिडोर तक पहुंच गयें थी।

"अज़ीन! अज़ीन! एक मिनट रुको! मेरी बात तो सुनो।" वह उसे अनसुना करते हुए वैसे ही तेज़ क़दमों से चलती रही तो साहिर को गुस्सा आ गया उसने उसका बाज़ू पकड़ कर उसे रोका और दीवार से उसे लगाकर अपने दोनों हाथों को उसके गिर्द दीवार पर टिका कर ख़ुद उसके सामने दीवार बन कर खड़ा हो गया था। अज़ीन हक्का-बक्का रह गई। उसकी बड़ी-बड़ी आंखें और ज़्यादा बड़ी हो गई थी। शुक्र था आस पास कोई लोग नहीं थे। उसने अचानक से काॅलेज जाने का फ़ैसला किया था जिसकी वजह से वह काॅलेज लेट पहुंची थी और क्लासेज़ शुरू हो चुकी थी इसलिए इस वक़्त ज़्यादातर जगहों पर सन्नाटा छाया हुआ था, वरना यक़ीनन आज काॅलेज में उसका नाम सुर्खियों में होता।

वह अन्दर से काफ़ी डर गई थी मगर साहिर के सामने उसने ज़ाहिर होने नहीं दिया था।

"तुम जानना चाहते हो वह कौन था? तो सुनो! वह हदीद ख़ान था, मेरी सगी बहन का देवर और मेरी बचपन की मुहब्बत। नहीं! मुहब्बत शायद एक छोटा लफ़्ज़ है, इसे इश्क कहना ज़्यादा बेहतर होगा। हां! मुझे उस से इश्क है। उसके बाबा ने हमारा रिश्ता बचपन में ही तय कर दिया था।" उसने बड़ी हिम्मत जुटा कर आंखों में आंखें डालकर कहा था। यह सुनकर साहिर का दिमाग़ सुन्न हो गया था। अज़ीन के गिर्द दीवार पर टिके उसके हाथ अचानक से ढीले पड़ गए थे। उसके कमज़ोर होते इरादों को देख अज़ीन को और हिम्मत मिली थी।

"अगर तुम्हें मेरा उस से मिलना अच्छा नहीं लगा तो आगे भी सुनते चलो, मैंने अपनी ज़िंदगी के २१ साल का बड़ा हिस्सा उसके घर में रह कर परवरिश पाई है। मैं अभी भी उसके घर में रहती हूं और मेरी ज़िंदगी की सबसे बड़ी ख़्वाहिश है कि बाकी की भी ज़िंदगी मैं उसी घर में गुज़ारुं। इसलिए बेहतर होगा मेरी ज़िंदगी से अपना रास्ता अलग कर लो। इसी में हम दोनों की भलाई है।" वह दोनों एक दूसरे की आंखों में आंखें डाले हुए थे मगर दोनों की आंखों का अक्स अलग था। एक की आंखें गुस्से और हिम्मत की झलक लिए हुआ था तो दूसरे की आंखों में जलती आग अब मद्धम पड़ गई थी। एक को अपना सब कुछ जाता हुआ दिख रहा था तो दूसरे को अपनी जीत का ग़ुमान हो रहा था।

क्लासेज़ ख़त्म होने की बेल बजी थी अज़ीन ने अपने दोनों हाथों से उसे अपने सामने से परे किया था और वह बड़ी आसानी से हो भी गया था। अज़ीन दौड़ती हुई वहां से भागी थी।

उसकी क्लास शुरू हो चुकी थी, नेहा उसके बगल में थी मगर साहिर कहीं नहीं था। अज़ीन ने उसे ना पाकर सुख का सांस लिया था।

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डिनर के लिए वह नीचे आई थी। शुक्र था घर के सभी लोग यहां मौजूद थे। उमैर ने उसका हाल पूछा था, आसिफ़ा बेगम ने बुरा सा मुंह बनाया था और हदीद उसने तो सरासर उसकी मौजूदगी को नज़र अंदाज़ कर दिया था। अज़ीन की नज़रें बार बार हदीद पर उठ रही थी मगर वह वैसे ही उसे इग्नोर करता रहा। अज़ीन ने फ़ैसला किया था आज ही उसे अपने दिल का हाल बताएगी मगर हदीद की इग्नौरेन्स ने उसकी हिम्मत को तोड़ दी थी। सो उसने कल पर ही सब कुछ छोड़ दिया था।

सुबह हर रोज़ की तरह वह काॅलेज गई थी, और साहिर को ना पाकर शुक्र मनाया था।

घर वापस आ कर वह अपने कमरे में जाकर सो गयी थी।

शाम होने को थी जब उसकी आंखें लाॅन में होने वाली गहमागहमी से खुली। उसने खिड़की से बाहर झांक कर देखा काफ़ी बड़े पैमाने पर पार्टी की अरेंजमेंट हो रही थी। वह कुछ देर यूंही देखती रही। सूरज ढल चुका था और ख़ान विल्ला को दुल्हन की तरह सजा दिया गया था। हर तरफ़ जैसे रोशनियों की बारात उतर आई थी। फूलों की ख़ुशबू चारों ओर हवा को महका रही थी। इतना हसीन समां हो रहा था पर अज़ीन के दिल का मौसम अच्छा ना था तो उसे यह रंग... यह रोशनियां....यह ख़ुशबू कुछ भी नहीं भा रहा था।

फिर भी उसने खुद को जबरन पार्टी के लिए तैयार किया था। बौटल ग्रीन गाउन में उसकी सफ़ेद रंगत और भी ज़्यादा खिल गई थी। Diamond और emerald stone का बेहद ख़ूबसूरत earings और necklace उसके हुस्न को चार चांद लगा रहा था। यह diamond emerald का सेट उसे उमैर ने दिया था। अज़ीन के मूंह से बातों बातों में बस यूंही उसकी ख़्वाहिश और पसंद निकल गई थी और अगले दिन ही उमैर ने उसे यह सेट गिफ़्ट कर दी थी। उसके बाद आसिफ़ा बेगम ने बहुत ज़्यादा हंगामा किया और अरीज को तानें दिए तो अरीज ने अज़ीन को वह सेट ही कभी भी पहनने से मना कर दिया, जिसका अज़ीन को बहुत बुरा लगा और मन ही मन बहन‌ से बदगुमान होने लगी। काले लम्बे बालों को नीचे से culrs दिया था, बहुत ही हल्का सा मेकअप था जो उसे नेचुरल लुक दे रहा था और उसकी मासूमियत को बरक़रार रखे हुआ था।

जब वह नीचे आई तब पार्टी अपने ऊरुज पर था। आसिफ़ा बेगम डिज़ाइनर साड़ी में अपने पूरे ग़ुरूर के साथ सब से मिल रहीं थीं, सोनिया ब्लैक गाउन में मां के साथ साथ थी तो वहीं दूसरी तरफ़ अरीज मेहमानों की आवभगत में लगी हुई थी और हदीद अपने पुराने स्कूल के साथियों के साथ गपशप में लगा हुआ था। बेध्यानी में हदीद कि एक नज़र उसकी तरफ़ उठी थी और फिर पलटना भूल गयी थी। सिर्फ़ एक वही नहीं था, बहुत सारे लोगों के साथ ऐसा हुआ था और उन में से एक नाम अभी अभी पार्टी में शामिल हुए साहिर हसन का भी था। बड़ी ही दिलचस्प मुस्कुराहट लिए उसे देख रहा था।

उसकी नज़रों से बेखबर अज़ीन, हदीद में खोई हुई थी जब साहिर चलता हुआ उसके पास आया था और उसे "हाय" कहा था। अज़ीन को उसकी मौजूदगी का इल्म नहीं था वह बेयक़ीनी से उसे देखती रह गई, और उन से थोड़े फ़ासले पर खड़ा हदीद उन दोनों को।