इश्क़ ए बिस्मिल - 43 Tasneem Kauser द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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इश्क़ ए बिस्मिल - 43

अरीज बिल्कुल खामोश थी हालांकि उसके दिल में तबाही जैसा आलम मचा हुआ था। वह पत्थराई हुई आँखों से एक टक उमैर को ही देख रही थी। आज उसे पता चला था इस रिश्ते से इंकार करने की असल वजह क्या थी? एक वादा था... किसी का भरोसा था जो उमैर नहीं तोड़ना चाहता था भले ही इसके लिए वह बाकी रिश्तों को तोड़ देता या फिर किसी के दिल को।
हाँ! दिल तो टूटा था अरीज का मगर बेआवाज़ इसलिए शायद उमैर को अंदाज़ा नहीं हुआ था अरीज के तकलीफ का। वह बड़ी ढिटाई से अरीज को देख रहा था। आँसुओं का एक गोला अरीज के हलक में फँस गया था वह चाह कर भी कुछ बोल नहीं पा रही थी। ज़मान खान अरीज से नज़रें नहीं मिला पा रहे थे इसलिए नज़रें नीची किये हुए सोफे पर अपना सर पकड़ कर बैठ गए थे।
उमैर को जो कहना था वह कह चुका था और उसने ज़मान खान का जवाब भी सुन लिया था... अगर अभी अरीज ना आती तो वो अपनी वकालत में कुछ और भी कहता मगर फ़िल्हाल उसने ये बात बाद पर उठा रखी थी और फिल्हाल वह यहाँ के गरम माहौल से निकल जाना चाहता था।
अरीज अभी भी वही दरवाज़े पर खड़ी थी और उमैर उसे क्रॉस करता हुआ दरवाज़े से निकल जाना चाहता था मगर जैसे वह उसके पास से गुज़रना चाहा अरीज ने उसका हाथ पकड़ लिया था। अरीज ने ये कैसे किया था उसे नहीं पता और उसकी इस हरकत पर हैरान तो उमैर भी हुआ था।
उमैर ने पहले अपने हाथ को उसके बाद फिर अरीज को देखा था अरीज उसे ही देख रही थी। अरीज की आँखों में आँसू नहीं थे मगर सैलाब आने का अंदेशा साफ़ दिखाई पड़ता था। अरीज ने अपनी सिसकती हुई साँसों को अपने अंदर धकेला था। जिस से उसका पूरा बदन काँप उठा था।
अब जब हिम्मत कर के अरीज ने उसका हाथ पकड़ ही लिया था तो फिर उसने छोड़ा भी नहीं था। वह उसका हाथ पकड़ कर कमरे के अंदर चली आई थी और उमैर जैसे उसकी उंगलियों की डोर से बंधा कठपुत्ले की तरह उसके साथ अंदर आ गया था। ज़मान खान के सामने खुद को और उसे खड़ा कर के उसने उसका हाथ छोड़ दिया था। उमैर जैसे किसी तिलिस्म के टूटने पर होश मे वापस आया था।
ज़मान खान ने अपना सर उठा कर उन दोनों को देखा था।
“आप अपना मोबाइल फोन कमरे में भूल कर आ गए थे। इस पर किसी की कॉल आ रही थी इसलिए मैं आपको ढूंढती हुई यहाँ चली आई थी।“ उसने बड़े हिम्मत कर के कहा था मगर ज़मान खान यहाँ पर हिम्मत नहीं दिखा पाए थे वह अरीज का हाथ पकड़ कर फूट फूट कर रोने लगे थे। उन्हें इस हाल में देख कर अरीज का दिल कट कर रह गया था। आज जिन हाथों ने उसे निवाला बना बना कर खिलाया था आज वही हाथ इतने कमज़ोर पड़ गए थे उन्हें रोने के लिए अरीज के हाथों का सहारा लेना पड़ रहा था।
जो बाढ़ इतनी देर से थमे हुए थे वह आखिरकार सैलाब बन कर उमड़ पड़े थे। अरीज ज़मान खान के क़दमों मे बैठ कर अपना सर उनके घुटनों पर टिका कर बे आवाज़ रोने लगी।
उमैर ये तमाशा देखना नहीं चाहता था हरगिज़ नहीं। सच बात ये थी के वह अपने बाप को कभी रोते हुए देख ही नहीं सकता था। मगर फ़िल्हाल वह देखने पर मजबूर हो गया था। वह ऐसे उन्हें रोता बिलकता हुआ छोड़ कर रूम से नहीं जा सकता था जब की उनके रोने की वजह ही उमैर हो।
अरीज ने अपना दिल हल्का कर लिया था इसलिए उसने अब अपना सर उनके घुटनों पर से उठाया था और मुस्कुराते हुए ज़मान खान के आँसूं पूछे थे साथ मे अपना सर नहीं नहीं में हिला रही थी।
“आप किसी को भी इस खानदान से खारिज नहीं करेंगे अगर आप ने ऐसा किया तो तारीख(इतिहास) खुद दोहराई जाएगी....फिर से कोई बे आसरा अरीज पैदा हो जियेगी... जिसका भरा पूरा खानदान होते हुए भी उसके साथ कोई नहीं होगा... मगर मेरी खुश नसीबी थी के मुझे आप मिल गए थे, ज़रूरी नहीं आगे भी कोई आप जैसा किसी अरीज को मिल जाए।“ उसकी बात सुन कर ज़मान खान फिर से फूट फूट कर रोने लगे थे। उमैर हैरानो परेशान सब समझने की कोशिश कर रहा था मगर उसकी समझ में कुछ भी नहीं आ रहा था।
“नहीं... बिल्कुल नहीं... आप बिल्कुल नहीं रोयेंगे। बस मेरी बात पर गौर करेंगे।“ अरीज ने उनके आँसूं साफ़ किये थे।
“अगर ऐसा कर के आप समझते है की आप सही करेंगे तब फिर तो दादा जान ने भी बाबा को बेदखल कर के कोई ग़लत काम नहीं किया था। फिर क्यों आप उनकी तलाश में लगे रहते थे की वह कहीं से आपको मिल जाए?” अरीज कह रही थी और ज़मान खान किसी बच्चे की तरह रोए जा रहे थे दूसरी तरफ़ उमैर का सर फटा जा रहा था इस गुत्थी को सुलझाने में। उसे कुछ कुछ समझ कर भी कुछ समझ नही आ रहा था। वह इसी उलझन मे घिरा था जब ज़मान खान ने कहा था।
“इब्राहिम ने अपने पीछे अपनी बीवी को नहीं छोड़ा था। किसी को तलाक़ दे कर नहीं गया था वो।“ ज़मान खान कह नहीं रहे थे बल्कि उमैर के सर पे एक के बाद एक धमाका कर रहे थे।
“इब्राहिम?.... “ उमैर के मूँह से बेयकिनी में ये नाम निकला था।
“मगर ये छोड़ने की बात कर रहा है।“ ज़मान खान अपनी सुर्ख आँखों में जहान का गुस्सा लिए उमैर की तरफ़ उंगली उठा कर कह रहे थे।
“बाबा मगर इसमें इनकी कोई गलती नहीं है, इन्होंने किसी से मोहब्बत पहले की थी, किसी को अपनाने का वादा पहले किया था और मुझ से निकाह बाद में। अगर ये दोनों नहीं मिल पाए तो इन दोनों के बीच में आने का मलाल मुझे ज़िंदगी भर तड़पाता रहेगा। मेरी आप से गुज़ारिश है मुझे इन दोनों का मुजरिम ना बनाए, ....मेरे सर से ये बोझ उतार दें....इन दोनों का रिश्ता कुबूल कर लें.....।“ अरीज ने रोते हुए ज़मान खान के सामने अपने हाथ जोड़े थे।
ज़मान खान ने अरीज के जोड़े हुए हाथों को अपने हाथों में ले लिया था। उसके बाद ना चाहते हुए भी उन्होंने उमैर की तरफ़ देखा था जिसके चेहरे पर हवाइयाँ उड़ी हुई थी। वह बे यकिनी से अरीज को देख रहा था।
“जाओ उमैर अपनी ख़ुशी मनाओ...जो तुम चाहते थे वो तुम्हें मिल गया... तुम जीत गए... मुबारक हो तुम्हें.... बोहत बोहत मुबारक।“ ज़मान खान अपनी आँखों में शिकवों का ढेर लिए उसे देख रहे थे। उमैर अब अरीज को छोड़ उन्हें सुन और देख रहा था। उसे ऐसा लग रहा था ज़मान खान उसे मुबारक बाद नहीं दे रहे बल्कि उसके मूंह पर तमाचा मार रहे है.... वो तमाचा जिसमें उन्होंने अपना नहीं बल्कि अरीज का हाथ इस्तेमाल किया था.... और जिसकी जलन उसके चेहरे पर नहीं बल्कि उसके पूरे वजूद में कर्रेंट की तरह दौड़ गई थी।
क्या ज़मान खान उमैर को बेदखल कर के सही इंसाफ़ कर रहे थे?...
क्या अरीज ने ज़मान खान को रोक कर सही फैसला किया था?....
क्या अरीज के फै़सले से उमैर का दिल पिघल जायेगा?....
क्या उमैर ये जान कर के अरीज कोई और नहीं बल्कि उसके इब्राहिम चाचू की बेटी है इस से वह उसे अपना लेगा और सनम को भूल जायेगा?....
जानने के लिए मेरे साथ बने रहें और पढ़ते रहें