इश्क़ ए बिस्मिल - 42 Tasneem Kauser द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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इश्क़ ए बिस्मिल - 42

ज़मान खान उन दोनों बहनों को खिला कर उमैर को ढूंढते हुए उसके कमरे में आए थे। उमैर अपनी बेड पे सीधा लेटा हुआ था उसकी टांगें बेड से नीचे लटक रही थी।
“बोलो क्या बात करनी थी तुम्हें?” ज़मान खान आते ही उस से पूछ बैठे थे।
“बाबा अगर आपको याद होगा तो आपने मुझ से कहा था की आपके लिए मेरी ख़ुशी ज़्यादा एहमियत रखती है?” वह बेड पर से उठ कर खड़ा हो गया था और अब ज़मान खान के बिल्कुल आमने सामने खड़ा था।
“हम्म! ये सच है मेरे नज़दीक तुम्हारी खुशी बोहत एहमियत रखती है।“ वह उसके पास बोहत अच्छा मूड लेकर आए थे मगर उमैर की बातों ने उन्हें काफ़ी संजीदा कर दिया था।
“तो फिर बाबा मेरी खुशी अरीज से बिल्कुल भी नहीं है... आपने मुझ से कहा था की अगर मैं चाहूँ तो अरीज को तलाक़ दे सकता हूँ।“ उमैर ने कहा था और ज़मान खान अपनी अंगारे बरसती हुई आँखों से उसे घूर रहे थे।
“उसे तलाक़ देकर क्या करोगे? ... वह कौन सा तुम्हारे सर पे सवार है जो तुम्हें वह बोझ लग रही है और तुम उसे छुटकारा पाना चाहते हो?” ज़मान खान ने बोहत उखड़ कर उमैर से कहा था। उमैर ने एक लंबी साँस हवा के सुपुर्द कर दी थी जैसे वह थक गया हो।
“बताओ मुझे उमैर तुमने उसकी कौन सी ज़िम्मेदारी उठा रखी है जो तुम अब थक चुके हो और उसे छोड़ने की बात कर रहे हो। एक ही घर में तुम दोनों अजनबियों की तरह रहते हो...वह तुम्हारे बेड रूम में आई तो तुमने ये बेडरूम छोड़ दिया... वह टेबल पर खाने के लिए आई तो तुम टेबल से उठ गए...।“ ज़मान खान कह ही रहे थे की उमैर ने उन्हें उनकी बात पूरी भी करने नहीं दी और बीच में बोल पड़ा।
“मुझे ये ज़बरदस्ती का रिश्ता कुबूल नहीं है बाबा.... मैं उसे अपनी बीवी के रूप में पसंद नहीं करता।“ उमैर पर अब फ्रस्ट्रेशन सवार हो गया था।
“वह सिर्फ़ अठारह साल की है उमैर.... मैं चाहता भी नहीं हूँ की अगले तीन चार सालों तक तुम उसे अपनी बीवी समझो। तुम पर कोई ज़ोर ज़बरदस्ती नहीं हो रही है... अपनी लाइफ जैसे इस निकाह से पहले जीते थे वैसे ही जिओ... धीरे धीरे उसे समझो... उसे दोस्त बनाओ...उसे मज़बूत बनाओ... तुम्हारे पास बोहत वक़्त है।“ ज़मान खान ने उसके शाने (कंधे) पर हाथ रख कर उसे समझाया था। वह समझ रहे थे की उमैर अब फ्रस्ट्रेट हो चुका है।
“ये सारी बातें बाद की है बाबा... फिल्हाल असल बात ये है की आप अपनी ज़ुबान से मुकर रहे है। आप ने उस दिन मुझ से कहा था की मैं अगर चाहूँ तो अरीज को तलाक़ दे सकता हूँ और इस ज़बरदस्ती के रिश्ते से आज़ादी हासिल कर सकता हूँ मगर अभी आप एक अलग फलसफा सुना रहे है।“ उमैर ने उनका हाथ अपने शाने से हटा दिया था जिसका ज़मान खान को बोहत बुरा लगा था।
“सही कहा तुमने मैं अपनी ज़ुबान से मुकर रहा हूँ लेकिन मैं मुकर सिर्फ़ इसलिए रहा हूँ की मैंने अरीज को भी ज़ुबान दी है की एक दिन सब ठीक हो जायेगा... मैं उसे सब्र का दामन थमा कर उसे बे आसरा नहीं कर सकता अगर ऐसा हो गया तो फिर किसी को भी सब्र और उम्मीद पर यकीन नहीं रहेगा।“ उन्होंने अपना गुस्सा ज़ब्त कर के कहा था।
“सही बात है... गलती मेरी है मुझे उस दिन आपकी बात माननी ही नहीं चाहिए थी... मुझे इस निकाह के लिए कभी हाँ नहीं करना चाहिए था।“ उमैर ने अपनी आँखों को सिकोड़ कर कहा था जैसे उसकी आँखों मे कीर्चियाँ चुभी हो।
“तो तुमने क्यों हाँ की थी उमैर? मैंने तुमसे कुछ माँगा था... तुम मुझे साफ़ साफ़ इंकार कर देते... मैं समझ जाता की एक बाप अपनी औलाद को अपनी ज़िंदगी दे सकता है मगर एक औलाद अपने बाप को एक खुशी नहीं दे सकता... उसे ये मान नहीं दे सकता की उसकी परवरिश के साथ साथ उसकी ज़िंदगी के कुछ बड़े फै़सले का भी उसे हक़ है। खैर अब तुम मुझे झूठा कहो या धोके बाज़ मैं तुम्हें अरीज को तलाक़ देने की इजाज़त हरगिज़ नहीं दूंगा। अब ये निकाह हो चुका है उमैर तो अब कुछ नहीं हो सकता... तुम्हारे पास बोहत सारा वक़्त है बेहतर है की तुम अपने दिल को समझा दो।“ वह अपना अटल फैसला सुना चुके थे और अब कमरे से बाहर जाने के लिए मुड़े थे। उनके सामने दरवाज़े पर अरीज जाने कब से खड़ी सब बातें सुन रही थी। ज़मान खान उसके सामने शर्मिंदगी महसूस कर रहे थे। उनके बढ़ते क़दम वहीं पर जम गए थे और वह दोनों एक दूसरे को खामोशी से देख रहे थे। तभी उनके पीछे से उमैर की आवाज़ फ़िर से उभरी थी वह बिना मुड़े और ज़मान खान को देखे उनसे कह रहा था।
“मैं किसी और को पसंद करता हूँ बाबा और उसे ज़ुबान दे चुका हूँ के मैं उस से शादी करूँगा।“ एक धमाका था जो उमैर ने ज़मान खान की समातों में किया था...वह अभी भी अरीज को ही देख रहे थे और अरीज उन्हें। दोनों की हालत लगभग एक जैसी ही थी टूटे हुए से मालूम हो रहे थे बस उन दोनों में फ़र्क इतना था की अरीज पत्थर की हो गई थी वह अपनी जगह से हिल भी नहीं पा रही थी यहाँ तक की कुछ लमहों के लिए उसकी साँसे भी उपर की उपर और नीचे की नीचे रह गई थी वहीं दूसरी तरफ़ ज़मान खान ने अपने पत्थर होते हुए वजूद को जुंबिश (हरकत) दी थी और वह मुड़ कर उमैर को देखने पर मजबूर हो गए थे।
“अगर तुम उसे ज़ुबान दे ही चुके हो तो फिर उस से जाकर शादी कर लो, लेकिन उस के बाद फिर इस घर की देहलीज़ पर क़दम ना रखना। उसके बाद ना हम तुम्हारे लिए होंगे और ना तुम हमारे लिए। मैं तुम्हे अपनी औलाद से खारिज कर दूंगा।“ ज़मान खान की इस बात पर उमैर ने उन्हें मुड़ कर देखा था और सामने दरवाज़े पर अरीज को पाया था। किसी के दिल को तोड़ने का कोई एहसास नहीं हुआ था हाँ जो हुआ था वो अपनी तौहीन का एहसास हुआ था जो ज़मान खान ने किया था वो भी अरीज के सामने।
अरीज के दिल पे जो हल्की सी मोहब्बत की परछाई पड़ी थी क्या अब वह ढल जायेगी?....
क्या वो एहसास खतम हो जायेगा जो वो कल से उमैर के अच्छे इंसाफ के लिए कर रही थी?....
क्या ज़मान खान ने उमैर को अपने खानदान से खारिज करने का फैसला सही लिया था?....
क्या उमैर अपनी जगह सही था के उसने भी सनम को उस से शादी करने की ज़ुबान दी थी?....
क्या होगा आगे जानने के लिए पढ़ते रहे “