इश्क़ ए बिस्मिल - 52 Tasneem Kauser द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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इश्क़ ए बिस्मिल - 52

मिस्टर खान, अज़ीन की मैथ्स और बंगाली बोहत अच्छी है मगर उसकी इंग्लिश बोहत वीक है इसलिए वह ये टेस्ट पास नहीं कर पाई और मुझे बोहत अफ़सोस के साथ कहना पड़ रहा हम उसे हमारे स्कूल में एडमिशन नहीं दे सकते।“ हदीद के स्कूल की प्रिंसिपल ने ज़मान खान से दो टोक बात की थी।

“मैम अज़ीन ने मैथ्स और बंगाली में कितना स्कोर किया है?” ज़मान खान प्रिंसिपल की बात को छोड़ अपना ही सवाल ले कर बैठ गए थे।

“In maths 100 upon 100 and in bengali 100 upon 97.” प्रिंसिपल ने एक नज़र पेपर पर दौड़ाते हुए उन्हें जवाब दिया था।

“Mam she has scored such a good marks in maths and bengali but still you are saying you won’t give her admission in your school.” ज़मान खान कहाँ पीछे हटने वालों मे से थे।

“Look Mr khan she’s from a government bengali medium school, she won’t be able to cope up with our educational environment” प्रिंसिपल मैम अब असल मुद्दे पे आई थी।

“तो मैम इसका मतलब ये है कि आप उसे सिर्फ़ इसलिए एडमिशन नही दे रहीं हैं क्योंकि वह एक गोवर्नमेंट स्कूल से पढ़ी है... राइट?.... “ ज़मान खान को प्रिंसिपल की बात का बोहत बुरा लगा था।

“नहीं मिस्टर खान... आप बात को समझ नहीं रहे है... वह बोहत तेज़ बच्ची है.... मगर कभी कभी ऐसे बच्चे peer pressure में आकर अपनी काबिलियत खो बैठते है और कभी कभी ये भी होता है की इतने सारे बच्चों के बीच खुद को दूसरों से अलग और अकेला समझ कर वह डिप्रेशन में चले जाते है। कुछ बच्चे उसे support करेंगे मगर कुछ बच्चे उसे bully करेंगे.... जब तक बात हम तक नहीं पहुंचेगी तब तक हम कुछ नहीं कर सकते और ये भी हो सकता है बात हम तक आते आते भगवान ना करे बोहत देर हो जाए.... ऐसे बच्चे अपने साथ कुछ भी कर सकते है।“ प्रिंसिपल मैम ने सिक्के का दूसरा पहलू उन्हें दिखाया था। ज़मान खान काफी गहरी सोच में डूब गए थे।

“मिस्टर खान आप एक काम कीजिये अज़ीन को दूसरे... किसी छोटे इंग्लिश मीडियम स्कूल में डाल दीजिए... और घर पर भी उसकी अच्छे से ग्रूमिंग कीजिए... May be… एक दो सालों के बाद उसमे थोड़ा confidence aa जाए थोड़ा बोहत इंग्लिश में बोलना सीख जाए ...तब हम खुशी खुशी उसे अपने स्कूल में एडमिशन दे देंगे।“ ज़मान खान के बुझे हुए चेहरे को देख कर प्रिंसिपल मैम ने उन्हें उम्मीद का जुगनू थमाया था।

“आपकी बात सही है मैम... मगर हमारे science में adaptaion नाम की चीज़ का भी ज़िक्र है। And humans are the most adaptable species on earth which is largely due to our higher intelligence. मैम हमें आगे बढ़ने के लिए nagetive नहीं बल्कि positive साइड को देखना चाहिए। ये भी तो हो सकता है ना मैम अज़ीन बोहत ऊँची उड़ान उड़ने वालों में से थी मगर उसे अभी तक बेहतरीन हवाओं का रुख ही नहीं मिला है। आप के स्कूल की वजह से हो सकता है वो बोहत आगे जाए।“ ज़मान खान हार मान लेने वालों में से नहीं थे... वह जो सोच लेते थे कर गुज़रते थे। उनकी लंबी चोड़ी explanation ने प्रिंसिपल मैम के चेहरे पर मुस्कुराहट खींच लाई थी।

“मिस्टर खान business विज़नेस छोड़िये आपको कुर्सी की ज़रूरत है... वही जगह आपके लिए सही है।“ प्रिंसिपल मैम ने हँसते हुए कहा था उनके साथ बैठी vice principal भी हंस रही थी।

“उस कुर्सी का तो पता नही लेकिन अगर आप मुझे अपनी कुर्सी दे दें तो मैं अभी के अभी अपने business से retirement ले लूँ।“ प्रिंसिपल ऑफिस का माहौल शायद ही कभी इतना मज़ाकिया हुआ होगा। सब के चेहरे पर हंसी थी। तभी ज़मान साहब ने कुछ ऐसा पूछ लिया था की प्रिंसिपल मैम की हंसी गायब तो हुई ही थी साथ में उनके चेहरे पर एक बेज़ारी हाइल हो गई थी।

“और मैम हदीद उसके बारे में बताए वह कैसा cooperate कर रहा है स्कूल में?” ज़मान खान को अचानक से अपने होनहार बेटे का ख्याल आया था।

“उफ्फ़ मिस्टर खान! क्या बताऊँ आपको? ये सारी trophies देख रहे है आप?” प्रिंसिपल मैम ने अपनी उंगली पूरे कमरे में घुमाई थी.... उनका पूरा ऑफिस की दीवारे जा बजा trophies और certificates से भरी पड़ी थी। ज़मान खान की आँखें और सर भी प्रिंसिपल मैम की उंगली के साथ पूरे कमरे का चक्कर लगाए थे।

“बस इन्ही trophies के वजह से उसे अपने स्कूल में बर्दाश्त कर रही हूँ। हर एक activities में वो नंबर one पे है....उसकी वजह से हमारा स्कूल आये दिन न्यूज़ पेपर की सुर्खियों में रहता है। हमारे स्कूल को जितने भी awards मिले है उन सब में हदीद का बोहत बड़ा हाथ है..... मैं इस के लिए उस पर proud फील करती हूँ के वो हमारे स्कूल का हिस्सा है... मगर स्टडीज़ और शैतानी में?.... उफ्फ़ भगवान बचाये उस से।“ इतना कहते कहते प्रिंसिपल मैम ने अपने कानों को हाथ लगाया था। उन्हें देख कर ज़मान खान की हंसी निकली जा रही थी मगर उन्होंने बड़ी मुश्किल से खुद पर ज़ब्त किया था। हदीद की activities का सुन कर ज़मान खान का सीना चोड़ा हो गया था। वह बोहत खुश थे हदीद के लिए भी और अज़ीन के लिए भी।


सुबह हदीद का स्कूल शुरू होने से पहले उमैर वहाँ जाकर देख चुका था मगर हदीद की लेट लतीफी की वजह से उसका काम नहीं हो पाया था इसलिए उसने एक और चांस ली थी और वह उसके स्कूल की छुट्टी होने के वक़्त में वहाँ पहुंच गया था।

उसे अपने भाई से कल जल्दी स्कूल आने की बिल्कुल भी उम्मीद नहीं थी। वह सुबह ही की तरह स्कूल के मैन गेट पर जा कर खड़ा हो गया था।

स्कूल की छुट्टी की बेल बज चुकी थी और अब बेल बजे हुए बीस मिनट हो चुके थे मगर जनाब हदीद का अभी तक कहीं भी आता पता नहीं था। जैसे जैसे वक़्त गुज़र रहा था उमैर का पारा वैसे ही वैसे हाई होता जा रहा था। अपनी ज़िंदगी में मसरूफ़ उमैर ने कभी अपने छोटे भाई पर ध्यान ही नहीं दिया था की वह कब स्कूल आता है और कब स्कूल जाता है। पहले अपनी आला तालीम के लिए वह लंदन में रहा और जब वापस अपने वतन लौटा तो उसकी ज़िंदगी में उसका business और फिर सनम यही दोनों रह गए थे। आज उमैर को हदीद की ज़रूरत पड़ी और वह उसके काम नहीं आ रहा था तब उसे एहसास हो रहा था की उसने अपने भाई को कितनी छुट दे रखी है।

खैर आधे घंटे के इंतज़ार के बाद हदीद का चाँद सा चेहरा उमैर को दिखा, मगर इस चाँद को देखते ही ठंडक की बजाय उमैर सर से पाऊँ तक तप गया था। हदीद अपने ही धुन में बातें करते हुए अपने दोस्तों के साथ स्कूल से बाहर निकल रहा था। जब अचानक से उमैर ने उसका बाज़ु पकड़ कर उसे रोका था।

एक बार फिर से उमैर को देख कर हदीद सिटपिटा गया था। उसे अपने दोस्तों का ख्याल आया। उसने झट से उन्हें आगे बढ़ने को कहा और खुद उमैर के सवाल जवाब के लिए खुद को रोक लिया। उसे समझ नहीं आ रहा था की अचानक से उसकी ज़िंदगी मे ये कौन सा गरहन लग गया है जो उसकी ज़िंदगी में उसे डर का सामना बार बार करना पड़ रहा है। यकायक उसे अज़ीन का खयाल आया और उसे याद करते ही उसका हलक तक कड़वा हो गया।

“कहाँ थे तुम?.... क्या हो रहा है ये सब?.... किसी चीज़ की कोई प्रोपर टाइमिंग है की नहीं तुम्हारी लाइफ में?.... सुधर जाओ वरना हदीद हटा कर तुम्हारा नाम लेट लतीफ़ रख दूंगा।“ उमैर खासे गुस्से मे उसे warn कर रहा था।

“भाई मैं अपने टीम और हाउस दोनों का कैप्टन हूँ। मुझे सब देखने के लिए.... कभी कभी मीटिंग के लिए रुकना पड़ता है।“ उसने परेशान होते हुए उमैर को जवाब दिया था।

“क्या.. क्या... क्या?... ये बारह साल की उमर में कौन सा टीम कैप्टन पैदा हो गया है भाई?.... किसे सीखा रहे हो हीरो?.... “ उमैर को उसकी बात झूठ लगी थी, और कैसे नहीं लगती इतनी कम उमर में हाउस कैप्टन तो चलता है मगर टीम का कैप्टन?

“किसी दिन मेरी टीचर्स से पूछ लें आकर।“ हदीद ने मूंह फुला कर बस इतना ही कहा था।

“मुझे तुम से एक काम है।“ उमैर पहली बातों को छोड़ अपने मतलब की बात पर आया था।

“वो तो दिख ही रहा है।“ हदीद ने बोहत आहिस्ता से कहा था मगर उमैर ने फिर भी सब साफ सुन लिया था।

“क्या कहा?” उमैर ने गुस्से से पूछा।

“कुछ नहीं आप बोले... मैं क्या मदद कर सकता हूँ आपकी?... वैसे एक सवाल मेरा भी था की आप घर क्यों नहीं आ रहे है?” हदीद को अचानक से याद आया था तो उसने पूछ लिया।

“Busy हूँ कहीं... और तुम इतना ध्यान मत दिया करो इन सब बातों पर... अपनी टीम पर ध्यान दो।“ उमैर ने उसे चुप करवा दिया था, और आगे अपनी कहने लगा था।

“और बड़े ध्यान से सुनो।.... मेरी wardrobe के अंदर safe के ठीक नीचे एक drawer है। उस में मेरी कुछ documents है, वो सारे documents बड़े ध्यान से सारे के सारे मेरे पास लेकर कल आओ... सुबह स्कूल शुरू होने से पहले मैं तुम्हारा यही पे इंतज़ार करूँगा.... और हाँ वो drawer लॉकड है उसकी चाभी तुम्हें मेरे wardrobe के अंदर ही कहीं मिलेगी.... Exact कहाँ पर है मुझे याद नहीं है... तो तुम ढूंढ लेना.... और घर पे किसी से मत बोलना के मैने तुमसे ये सब माँगा है.... समझ आई बात?” वह हदीद को लंबी चोड़ी नसीहते देकर काम दे गया था। हदीद के सर के उपर से आधी बात गुज़र भी गई थी और अब वह काफी बौखलाया हुआ लग रहा था।

“इतना मुश्किल काम।“ वह कहे बिना नहीं रह सका था। उसे तो अपनी ही रखी हुई चीजें नहीं मिलती थी। उसे हर कुछ हाथ में रेडी चाहिए होता था और उमैर उसे कैसा टास्क दे गया था... ये उसके लिए किसी treasure hunt से कम मुश्किल नही लग रहा था।

“भाई आप भाभी से क्यों नहीं कहते इस काम के लिए?” उसने अपनी जान छुड़ाने के लिए उसे मशवरा दिया था मगर भाभी शब्द सुनते ही उमैर का पारा हाई हो गया था।

“ये क्या भाभी...भाभी.. लगा रखा है तुमने? मुझे मशवरे देने की ज़रूरत नहीं है तुम्हें.... जितना कहा गया है बस उतना ही करो... समझे?” उमैर ने उसे डाँट कर चुप करा दिया था। डाँट सुनने पर हदीद का मूंह लटक गया था। अब इस टास्क से बचने का कोई ज़रिया नहीं था। वह जाने क्यों और कहाँ से इस झमेले में फस गया था।

“मेरी शिकायत के लिए ठीक उनसे बातें होती है मगर जब काम का वक़्त आया तो मुझे फसा दिया।“ हदीद ने अपने मन मे सोचा था।


प्रिंसिपल मैम की बातें कुछ गलत नहीं थी... Peer pressure and peer influence अक्सर बच्चों की जिंदगियां तब्दील कर देते है। वह अपनी पहचान खो देते है। मगर बात ये है की ऐसा होता क्यों है शायद इस लिए की हमें अपने अंदर खुद पर भरोसा नहीं होता है।

और bully ये तो एक और बोहत खतरनाक हथियार है जो किसी किसी बच्चे को डिप्रेशन में डालने के लिए उसे उसकी काबिलियत से दूर करने के लिए काफी कारगर साबित होता है।

तो अब बात ये है की क्या होगा अज़ीन का?

क्या वह peer pressure में आकर खुद को positive way में बदल लेगी?

या फ़िर bully होकर अपनी सलाहियतें और काबिलियत खो बैठेगी?

वह कौन से documents है जिसे उमैर हदीद से लाने के लिए कह रहा है?

क्या होगा आगे जानने के लिए बने रहे मेरे साथ और पढ़ते रहे