इश्क़ ए बिस्मिल - 57 Tasneem Kauser द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
  • ऋषि की शक्ति

    ऋषि की शक्ति एक बार एक ऋषि जंगल में रहते थे। वह बहुत शक्तिशा...

  • बुजुर्गो का आशिष - 9

    पटारा खुलते ही नसीब खुल गया... जब पटारे मैं रखी गई हर कहानी...

  • इश्क दा मारा - 24

    राजीव के भागने की खबर सुन कर यूवी परेशान हो जाता है और सोचने...

  • द्वारावती - 70

    70लौटकर दोनों समुद्र तट पर आ गए। समुद्र का बर्ताव कुछ भिन्न...

  • Venom Mafiya - 7

    अब आगे दीवाली के बाद की सुबह अंश के लिए नई मुश्किलें लेकर आई...

श्रेणी
शेयर करे

इश्क़ ए बिस्मिल - 57

जाने क्यों इतनी शिद्दत की तकलीफ़ सहने के बावजूद उसके आँखों से एक क़तरा आँसू नहीं निकला था। हाँ इतना ज़रूर हुआ था की आगे उसकी हिम्मत नहीं बढ़ी थी की ऐसे कुछ और तस्वीरें देखती। उसने सारे फोटोज़ वापस से envalope में डाले थे। मन बोहत भारी हो रहा था मगर फिर भी वह हदीद के दिए हुए काम को दिलो जान से सर अंजाम दे रही थी। थोड़ी देर की और कोशिशों के बाद उसके हाथ wardrobe की चाभी का गुच्छा उसके हाथ लग गया था। एक के बाद दूसरी सारी drawers उसने खोल कर देखी थी और ज़्यादातर सभी में उसे सनम से जुड़े हुए चीज़ेे बरामद हुई थी। आखिरकार सब से आखरी वाले drawer उसने खोला था जो के लॉकर के नीचे था और सभी drawers से साइज़ में भी काफी बड़ा था। उसमें पाँच फाइलें रखी हुई थी। उसने पहले फाइल को खोल कर देखा उसमे उमैर के एडुकेशनल सेर्टिफिकेटिस थे। अरीज समझ गई थी उमैर को क्या चाहिए था। उसने drawer से बाकी चार फ़ाइलें भी निकाल ली थी और ड्रेसिंग रूम से निकल गई थी। हदीद उमैर के बेड पर आराम से लेट कर अपने मोबाइल फोन पे गेम खेल रहा था।

“ये रही वो सारी documents।“ अरीज ने पाँचों फाइलें उसके आगे की थी। हदीद ये देख कर खुश हो गया था।

“Wow!... Good job… मुझे पता था आप ये कर लेंगी।“ हदीद कहते हुए बेड से एक झटके के साथ उठा था। उसने खुशी खुशी files लेने के लिए हाथ आगे किया था मगर अगले ही लम्हें अरीज ने वह files उस से परे कर दिया था। यह देख हदीद हैरान हो गया था और सवालिया नज़रों से अरीज को देख रहा था।

“ये आपको मिलेंगी... मगर मेरी एक शर्त पूरी करने पर।“ अरीज ने बड़े confidence के साथ कहा था।

शर्त का नाम सुनते ही हदीद के चेहरे का रंग उड़ गया था। वह अजीब नज़रों से अरीज को घूर रहा था। अरीज अंदर ही अंदर उसकी हालत देख कर मुस्कुरा रही थी।

“कौन सी शर्त?” हदीद ने उखड़े हुए लहज़े में पूछा था।

“यही के अज़ीन अब आपके स्कूल में पढ़ने के लिए जा रही है... तो आप उसका अब पूरा ख़्याल रखेंगे... आप उसे support करेंगे... स्कूल में उसकी हर तरह से हेल्प करेंगे।“ अरीज अपनी शर्तें बयान कर रही थी और हदीद उसे नागवार नज़रों से घूर रहा था।

ये क्या?.. एक तो अज़ीन उसके स्कूल आकर उसकी insult कर रही थी... उपर से उसकी बड़ी बहन उसी से फेवर की उम्मीद लगाए बैठी थी। दूसरी बात ये के उसके सामने ये बात confirm हो गई थी की हदीद की धमकियों का अज़ीन पर कुछ असर नहीं हुआ है। उसके मना करने के बावजूद वह उसके स्कूल में आ रही थी। फिर अचानक से उसे उमैर की धमकियाँ भी याद आई थी जो उसने हदीद को दी थी। इसका मतलब साफ था की वह एक तरफ़ अकेला था और दूसरी तरफ़ अज़ीन के साथ उसके आधे घर वाले।

“उसे मेरे support और हेल्प की क्या ज़रूरत है... जब उसने स्कूल आने की हिम्मत कर ही ली है तो फिर सब कुछ फेस करने की भी हिम्मत कर ले।“ हदीद ने चिढ़ कर जैसे खुले आम चुनौती दी थी।

“इसका मतलब है तुम्हें मेरी शर्त मंज़ूर नहीं है... ठीक है फिर... भूल जाओ इन फाइलों और इन सारी documents को...” अरीज ने कहने के साथ साथ वो सारी फाइलें भी उठा ली थी।

उसकी इस हरकत पे हदीद परेशान हो गया था।

Ok… Ok.. ठीक है... मंज़ूर है आपकी शर्त।“ हदीद ने ना चाहते हुए भी जैसे हथियार डाल दिए थे।

“ऐसे नहीं... पहले promise करो...” अरीज ने उसके वार उसी पे लौटाए थे।

हदीद ने गुस्से में उसके हाथ पर अपना हाथ रखा था।

“Ok… Promise” हदीद ने promise किया था और अरीज ने ख़ुशी ख़ुशी उसके हाथ में वो सारी फ़ाइलें थमा दी थी। उसे हदीद पे इतना प्यार आया था की उसने उसकी पेशानी को चूम लिया था। हदीद उसके प्यार से irritate हो गया था। वह उसे नगवारी से देखता हुआ उमैर के कमरे से निकल गया था।


आज महीना बीत गया था मगर डाइनिंग टेबल रोज़ की तरह आसिफ़ा बेगम और सोनिया से खाली था।

अरीज और अज़ीन ज़मान खान के बुलाने पर नाश्ता करने आई थी।

“बाबा मुझे अच्छा नहीं लगता... आप ऐसा क्यों कर रहें है?... मेरी और अज़ीन की वजह से यहाँ पर ऑन्टी और सोनिया नहीं आती... प्लिज़ आप हमें यहाँ पे मत बुलाया करें।“ अरीज ने आज हिम्मत कर के ज़मान खान से इस मामले में बात कर ही ली थी।

ज़मान खान जो अख़बार की सुर्ख़ियाँ खंगाल रहे थे... अरीज के कहने पर अख़बार को तह कर के साइड पर रख दिए थे।

“बेटा.. यहाँ आना, ना आना उनकी अपनी मर्ज़ी है... मैं उनके साथ ग़लत तब करता जब उनके ना चाहने के बावजूद उन्हें यहाँ पर आने का फरमान देता.... उनकी ख़ुशी जिसमे है मैं उन्हें उस से रोक नहीं रहा हूँ... और रही बात आप दोनों की... तो इस घर का फ़र्द होने के नाते यहाँ पर हक़ से नाश्ता, या फिर खाना खाना आपका हक़ है.. इस से आपको कोई नहीं रोक सकता।“ ज़मान खान ने संजीदा लहज़े में अपना अटल फ़ैसल सुनाया था।

अरीज चुप हो गई थी।

“और हाँ बेटा... नाश्ता कर के आप दोनों तैयार हो जाना.. हमें बाहर जाना है।“ ज़मान खान ने नाश्ता करते हुए अरीज से कहा था। उनकी बात पर अरीज हैरान हो गई थी।

“बाबा अब क्या बाकी रह गया है?... मेरे ख़्याल से हम ने कल ही सारी शॉपिंग कर ली थी।“ बाहर जाने के नाम से अरीज को घबराहट तारी हो गई थी। अरीज के ना ना करने के बावजूद ज़मान खान ने उसे कल क्या कुछ नहीं दिला दिया था। इतने महंगे महंगे कपड़े, सैंडलस, बैग्स, वाचेस् और भी बोहत कुछ... Price tags देख कर ही अरीज को सदमा लगा जा रहा था... मगर ज़मान खान ने भी ठान लिया था की इन सब मामलों में अरीज की एक भी नहीं सुनेंगे और जो उन्हें बेहतर लगेगा वही करेंगे।

और आज जाने वह क्या सोच कर बैठे थे। अरीज ने एक लंबी सांस ली थी और खुद को रिलेक्स किया था।

नाश्ता से फ़ारिग होकर वह दोनों बहने तैयार होने के लिए चली गई थी। ज़मान खान अपने घर वाले ऑफिस मे बैठे लैपटॉप पर काम कर रहे थे।

जैसे वह दोनों तैयार होकर उनके पास आई पंद्रह मिनट मे वह अपना काम निपटाते उन दोनों को लेकर घर से निकल गए थे।

उनकी कार एक बोहत ही शानदार सी कॉमर्शियल बिल्डिंग के पार्किंग एरिया में रुकी थी। वहाँ के watchman से लेकर हर छोटे बड़े स्टाफ़ उन्हें गुड मॉर्निंग सर, तो कभी सलाम सर कह रहे थे।

वह चेहरे पर मुस्कुराहट सजाए हर एक छोटे बड़े को बड़े प्यार से जवाब दे रहे थे।

अरीज ज़मान खान के इखलाक और नेक दिली की कायल हो गई थी।

वह उन दोनों को लेकर बिल्डिंग में चले गए थे। यहाँ पर लोगों की तादाद भी ज़्यादा थी इसलिए उन्हें ग्रीटिंग भी ज़्यादा मिल रही थी।

लिफ़्ट से होते हुए वह अपने कैबिन ऑफिस में पहुंचे थे। बड़ा ही खूबसूरत और शानदार सा ऑफिस था उनका। वह उन दोनों बहनो को सोफे पर बैठा कर उनके लिए इंटरकॉम् में कुछ पीने के लिए ऑर्डर दे रहे थे। उसके बाद उन्होंने अरीज से पूछा था।

“कैसा लगा आपको अपना ऑफिस?”

“बोहत खूबसूरत है बाबा... अल्लाह आपको दिन दुगनी रात चौगुनी तरक्की आता फरमाये... “ अरीज ने दिल से उन्हें दुआ दी थी।

तभी ज़मान खान के ऑफिस का फोन बजा था। उन्होंने रेसिवर उठाया था और कहाँ था।

“हाँ उन्हें भेज दो।“ इतना कह कर उन्होंने फोन का रेसिवर रख दिया था।

आखिर किसको बुलाया था ज़मान खान ने?

आगे क्या होने वाला था?