इश्क़ ए बिस्मिल - 68 Tasneem Kauser द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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इश्क़ ए बिस्मिल - 68

अरीज उन दोनों को लेकर लिविंग रूम में पहुंची थी।
“आप दोनों बैठें... मैं आंटी को बुला कर लाती हूँ।“ अरीज चहकती हुई आसिफ़ा बेगम के कमरे की तरफ़ बढ़ी थी।
“मैं भागा नहीं जा रहा हूँ... तुम पहले अपने कपड़े चेंज कर लो।“ उमैर खुद को बोहत देर से रोक रहा था...मगर फिर भी उसे देख कर रहा नहीं गया था। अरीज के लिए उमैर की फ़िक्र सनम को अच्छी नहीं लगी थी।
“मैं पहले उन्हें बता देती हूँ।“ अरीज भी कहाँ रुकने वाली थी। उसके पैरों में तो जैसे पर निकल आए थे।
वह गई थी और आसिफ़ा बेगम उसके पीछे पीछे आई थी। उन्हें अरीज की बात पर यकीन नहीं आया था, मगर लिविंग रूम में उमैर और सनम को बैठा देख कर वह खुशी से निहाल हो गई थी।
उन्होंने उमैर की बलाइयाँ लेनी शुरू कर दी थी। उसे अपने सीने से लगा कर कितनी देर तक रोती रही थी। उसके बाद वह सनम के पास गई थी और उसे सीने से लगाया था और फिर उसकी पेशानी को चूमा था।
अरीज वहीं पर खड़ी सब देख रही थी। आसिफ़ा बेगम का ये प्यार सनम के लिए देख कर उसे बुरा तो नहीं लगा था मगर हाँ एक कसक सी उठी थी और दिल मे ही रह गई थी।
“तुम ने अच्छा नहीं किया उमैर मेरे साथ... एक माँ को इस क़दर कोई तड़पाता है भला... तुम मेरे सामने अगर गए होते तो मैं तुम्हे कभी जाने ही नहीं देती...मगर अब चाहे कोई भी मेरे और तुम्हारे खिलाफ़ आकर खड़ा हो जाए मैं सब से तुम्हारे लिए लड़ पड़ूँगी लेकिन तुम्हे अब कहीं जाने नहीं दूँगी।“ आसिफ़ा बेगम उमैर का हाथ पकड़ कर जज़्बाती हो रही थी साथ में उन्होंने अरीज को देख कर उसे दबे लफ़्ज़ों में वॉर्न भी किया था। अरीज उनका मतलब खूब समझ गई थी इसलिए उस ने वहाँ से हट जाना ही गनीमत समझी थी।
वह किचन की तरफ़ बढ़ गई थी। आसिफ़ा बेगम ने नफ़रत भरी नज़रों से उसे जाते हुए देखा था।
दूसरी तरफ़ आसिफ़ा बेगम का मोहब्बत लुटाता हुआ रवैय्या सनम को बोहत भा रहा था, इस से उसे पता चल रहा था की उमैर की माँ ने उसे अपनी बहु के रूप में कुबूल कर लिया था और इसी वजह से वह थोड़ी देर के लिए अरीज को भूल गई थी।
“मॉम... मैं यहाँ रहने नहीं आया हूँ... अरीज ने मुझे ज़बर्दस्ती यहाँ खीच लाया है वरना मेरा यहाँ आने का बिल्कुल कोई इरादा नहीं था।
“बस बोहत कर ली तुमने अपनी मनमानी उमैर... मैं अब तुम्हारी एक भी चलने नहीं दूँगी... तुम अब कहीं नहीं जा रहे... सुना तुमने?” उन्होंने रूठते हुए उमैर से कहा था।
“मैं भी इसे यही समझाती रहती थी आंटी... Family is the most important thing… इसी से हमारी पहचान है... इस से अलग होकर हम हमारी पहचान ही खो देंगे।“ सनम ने भी आसिफ़ा बेगम की साइड से कहा था.. उसकी बात पर आसिफ़ा बेगम वारी नियारी जा रही थी तो दूसरी तरफ़ उमैर उसे बस देख कर रह गया था।
कुछ देर यूँही रूठना मनाना चलता रहा आखिर कार उमैर माँ की तड़प और सनम की ज़िद के आगे हार गया। उतनी देर में अरीज चाय के साथ खाने की कुछ चीज़ें लिए trolly घसीटती हुई वहाँ पर पहुंची थी। Trolly पर से चीज़ें उठा उठा कर उसने सेंटर टेबल पर रखा था और फिर उठ कर वहाँ से जाने को हुई थी मगर आसिफ़ा बेगम ने उसे रोक लिया था।
“तुम कहाँ जा रही हो अरीज?... सनम पहली दफ़ा हमारे घर आई है.. इसकी खातिरदारी नहीं करोगी?” आसिफ़ा बेगम ने ऐसे प्यार से कहा था जैसे के उनके और अरीज के बीच कोई खलीश ही ना हो। दरासल वह अरीज को ज़लील करना चाहती थी... उसे अंदर ही अंदर तड़पाना चाहती थी।
उमैर के जाने के कुछ दिनों बाद ही ज़मान ख़ान ने उन्हे सब कुछ बता दिया था की अरीज ने उमैर को दूसरी शादी की इजाज़त दे दी थी इसलिए उमैर अगर घर छोड़ कर गया है तो इसमें अरीज का कोई कसूर नहीं है।
इसलिए अभी आसिफ़ा बेगम इस बात का फायदा उठा कर अरीज के सब्र का इम्तिहान ले रही थी।
उनकी बात मानते हुए अरीज ने अपने बढ़ते हुए क़दम को पीछे लिया था और सनम और उमैर को चाय सर्व कर रही थी।
लोग कुर्बानी अपनी खुशी से देते है मगर इसका ये मतलब हरगिज़ नहीं होता की उसमे देने वाले लोग खुश होते है।
अरीज ने भी बोहत बड़ी कुर्बानी दी थी मगर अपने दिल पर पत्थर नहीं बल्कि पूरा का पूरा पहाड़ रख कर.. और अब इस कुर्बानी का फ़ायदा आसिफ़ा बेगम बड़े शोक से उठा रही थी वह अरीज के दिल को लहू लुहान कर देना चाहती थी।
दिल की हालत तो उमैर की भी बुरी हो रही थी। चाहे उसके और अरीज के दरमियाँ कैसा भी रिश्ता हो वह थी तो उसकी बीवी ही... और एक बीवी के सामने अपने साथ दूसरी लड़की को बैठा कर उसे अच्छा नहीं लग रहा था।
उसने अरीज को सड़क पर बारिश में भीगते देखा था मगर उसका बिल्कुल इरादा नही था की वह अपनी कार उसके लिए रोकता...
इसलिए उसने गाड़ी आगे बढ़ा ली थी... लेकिन फिर जाने क्या हुआ था की ना चाहते हुए भी उसने अपनी गाड़ी रिवर्स की थी और अरीज को घर ड्रॉप करने का फैसला किया। उसे अच्छा नहीं लगा था की सनम और अरीज कभी आमने सामने उसके सामने हो... मगर ऐसे situation में वह कर भी क्या सकता था। उसका इरादा बस इतना था की जल्द से जल्द वह उसे घर ड्रॉप कर दे उसके बाद दुबारा ना वो उसे देखे और ना ये... मगर यहाँ तो बाद ही कुछ और हो गई थी...
अरीज ने उसे एक बार फिर हैरान कर दिया था... वह एक लड़की को कैसे अपनी जगह दे सकती थी?.... क्या उसके दिल के किसी भी कोने में इस रिश्ते को लेकर ज़रा भी कोई एहसास नहीं था?.... क्या वह इतनी बेहिस थी... या फिर पागल... या अबनार्मल... मोहब्बत... लगाव जैसा तो उमैर के दिल में भी नहीं था इस रिश्ते को लेकर या अरीज को लेकर मगर वह इतना नॉर्मल तो ज़रूर था की अपनी girlfriend को अपनी बीवी के सामने खड़ा करके उसे अजीब लग रहा था।
और ये कोई ताजुब वाली बात नहीं थी उमैर की जगह कोई भी होता तो उसे ऐसा ही लगता.. मगर अरीज?... जाने वह किस मिट्टी से बनी थी?