इश्क़ ए बिस्मिल - 67 Tasneem Kauser द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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इश्क़ ए बिस्मिल - 67

उमैर की चुप ने अरीज को मूंह खोलने पर मजबूर कर दिया था।
“हम दोनों सेकंड cousins है।“ अरीज ने सनम को जवाब दिया था। उसके जवाब ने उमैर को उसकी तरफ़ देखने पर मजबूर कर दिया था।
“What? I can’t believe…” सनम ने हैरानी का मुज़ाहिरा किया था। उमैर बिल्कुल ख़ामोश रहा था।
उसके बाद ना सनम ने कुछ कहा था और ना ही अरीज ने।
“मेहफ़िल में कैसे कह दे किसी से
दिल बंध रहा है एक अजनबी से
हाए करे अब क्या जतन
सुलग सुलग जाए मन
भीगे आज इस मौसम में लगी कैसी ये अगन
रिम झिम घिरे सावन”
कार में अभी भी गाना बज रहा था। शायद सब के चुप का भरम इसी ने रखा हुआ था।
ट्रैफिक ना होने की वजह से उमैर ने काफी जल्दी अरीज को उसके मंज़िल तक पहुंचाया था। गाड़ी ख़ान विल्ला के मैन गेट के बाहर रुकी थी।
ये देख सनम को एक और झटका लगा था।
“ये यहाँ रहती है?.... तुम्हारे घर में?” सनम ने हैरानी से उमैर से पूछा था। सनम कभी घर के अंदर नहीं गई थी मगर उसने बाहर से उमैर का घर देखा था इसलिए पहचान गई थी।
उसके सवाल पर उमैर ने अपने पीछे अरीज को देखा था वह भी उसे ही देख रही थी।
“अंदर चलें?” अरीज ने उमैर से कहा था। उमैर कुछ कहने के बजाय उसे बस देखता रह गया था।
“आप किसे सज़ा दे रहें है... ख़ुद को या घर वालों को? और सज़ा भी किस बात की?... किस लिए?.... ना यहाँ कोई इल्ज़ाम है... और ना ही कोई मुजरिम।“ आज अल्लाह ने उसे मौका दिया था और वह इसे हरगिज़ गवाना नहीं चाहती थी।
सनम अपनी गर्दन मोड़ कर अरीज को देख रही थी। उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था मगर वह समझने की कोशिश में लगी हुई थी।
“घर आ गया है तुम कार से उतर सकती हो।“ उमैर ने गुस्से में उसे कहा था।
“मैं आपके साथ ही अंदर जाऊंगी।“ अरीज ने भी उसकी आँखों में आँखें डाल कर एतमाद से कहा था।
“तुम किस हक़ से मुझ से ज़िद कर रही हो?” उमैर को उसके इस ज़िद पर और ज़्यादा गुस्सा आया था। अरीज को उसकी बात ने तकलीफ़ पहुंचाई थी... मगर वह हर तकलीफ़ को ज़ब्त कर गई थी।
“नहीं...मेरा कोई हक़ नहीं है... मगर आप के घर वालों का आप पर पुरा हक़ है....इन दो सालों में कभी आपने उनके बारे में सोचा है?... बाबा की क्या हालत हो गई है?...पछतावा उनको अंदर ही अंदर खाए जा रहा है... घर छोड़ कर चले जाने से रिश्तें नहीं टूटा करते... “ अरीज कहते कहते रो दी थी, वह अभी और भी कुछ कहने वाली थी मगर उमैर ने उसे रोक दिया।
“भाषण मत दो और जाओ यहाँ से।“ उसने काफी ऊँची आवाज़ में उस से कहा था। अरीज डर गई थी उसकी आँखों से आँसू बह रहे थे फिर भी उसने हिम्मत जुटा कर कहा था। उमैर के मूड से सनम भी डर गई थी।
“आप के बग़ैर हरगिज़ नहीं जाऊंगी... और अगर आप नहीं चल रहे तो मैं सनम को लेकर जा रही हूँ... अब तो आपको आना ही पड़ेगा।... चलिए सनम।“ अरीज ज़िद्दी बच्चों की तरह अपनी बात पर अड़ गई थी... उसकी ढिटाई पर उमैर हैरान रह गया था। दूसरी तरफ़ सनम अपना नाम उसके मूंह से सुनकर चौंक गई थी। वह हैरान थी की उसे इसका नाम कैसे पता। इसका मतलब था सनम उमैर के पूरे घर में मशहूर थी... और अब उसे यकीन हो चला था की उमैर के घर छोड़ने की वजह ही शायद उसकी शादी थी। यकीनन उमैर ने सनम के बारे में सबको बताया होगा और घर वाले नही माने तो वह घर छोड़ कर चला आया।
सनम को ये बोहत अच्छा मौका मिला था इस घर से जुड़ने का... उमैर के जज़्बात की वजह से वह हरगिज़ ये सुनेहरा मौका नहीं गवाना चाहती थी।
“ये लड़की सही कह रही है...” सनम ने उमैर से कहा था। उसकी बात पर उमैर चौंक गया था।
“खूनी रिश्ते इस तरह से नही टूटते... मैं घर के अंदर जा रही हूँ और मेरे साथ तुम्हे भी आना होगा।“ सनम ने कहते हुए गाड़ी का दरवाज़ा खोल दिया था।
“सनम...क्या कर रही हो?... अंदर बैठी रहो।“ उमैर ने झल्ला कर कहा था।
मगर सनम सुन ने वाली कहा थी वह दरवाज़ा खोल कर बाहर निकल चुकी थी।
उमैर ने अरीज को खा जाने वाली नज़रों से घूरा था वह उमैर को देखते हुए दरवाज़ा खोल कर गाड़ी के बाहर निकल चुकी थी।
बारिश भी अब धीमी हो गई थी। अरीज ने मैन गेट को खटखटाया। चौकीदार ने दरवाज़ा खोला था। वह दोनों दरवाज़े के अंदर जा चुकी थी।
उमैर गुस्से से गाड़ी में बैठा रहा था। अरीज से ज़्यादा उसे अभी सनम पर गुस्सा आ रहा था।
थोड़ी देर यूँही गाड़ी में बैठने के बाद उसने गाड़ी की horn बजाई थी। अंदर चलती अरीज ने horn की आवाज़ को सुनकर खुशी से पीछे मुड़ी थी और वहीं पर रुक गई थी, मगर सनम को इस खूबसूरत घर का नज़ारा देख कर उसे ना कुछ सुनाई दे रहा था और ना ही कुछ दिखाई। वह फटी फटी आँखों से ख़ान विल्ला को देख रही थी और आगे बढ़ती चली जा रही थी जैसे ये घर नहीं कोई चम्बुक हो।
चौकीदार ने बड़ा दरवाज़ा खोला था और उमैर गाड़ी के साथ अंदर आ गया था। उसने गाड़ी पार्क की थी और अब राहदारी पे खड़ी अरीज के पास आया था।
“तुमने सही नहीं किया।“ उसने अपनी उंगली उठा कर अरीज से कहा था।
“बोहत बोहत शुक्रिया।“ अरीज ने जैसे उसकी बात सुनी ही नहीं थी। उसकी आँखे भीगी हुई थी मगर होंठ मुस्कुरा रहे थे।
उमैर को दो साल पहले गुज़रने वाला वाक़िया याद आया था। जब अरीज से vase टूट गया था... और उमैर ने उसे बातें सुनाई थी मगर अरीज ने मुस्कुरा कर उसका शुक्रिया अदा किया था।
“दो साल गुज़र गए थे मगर ये लड़की आज भी वैसे ही है।“ उमैर ने अपने मन में सोचा था।
“अंदर चलें?” अरीज ने उस से कहा था।
उमैर समझ गया था इस पागल लड़की से बहस कर के कोई फ़ायदा नही है। वह अरीज के हम क़दम चल पड़ा था।
सनम अंदर पहुंच कर घर को चारों तरफ़ आँखे उठा कर घूम कर देख रही थी जब ही उसकी नज़र मैन गेट पर पड़ी थी अरीज और उमैर ने एक साथ घर के अंदर कदम रखे थे। उन दोनों को एक साथ देख कर जाने क्यों सनम चौंक गई थी। थोड़ी देर पहले घर की खुबसुरती से mesmerize होने वाली सनम अचानक से घर को भूल गई थी।
उसके चेहरे पर हवाईयाँ उड़ी हुई थी और वह परेशान नज़रों से उमैर और अरीज को देख रही थी।
क्या होगा आगे?
क्या सनम अपनी insecureness की वजह से उमैर को लेकर इस घर से चली जायेगी?
या फिर अपनी ख्वाहिशों से मजबूर हो जाएगी?
सनम और उमैर को लाकर क्या अरीज ने अपनी इम्तिहान की घड़ी शुरू कर ली थी?
अब किन किन आज़माइशों से होकर अरीज गुज़रेगी?
उमैर को घर वापस ला कर क्या वह आसिफ़ा बेगम की नज़रों में सुरखुरु हो जायेगी?
और उमैर वह किन हालातों से गुज़रेगा?