इश्क़ ए बिस्मिल - 54 Tasneem Kauser द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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इश्क़ ए बिस्मिल - 54

उमैर खुद के लिए शॉपिंग करने के इरादे से शॉपिंग माल आया था। उसके पास सिर्फ़ दो जोड़े कपड़े थे पहनने के लिए। एक जोड़ी जो वो अपने घर से पहन कर आया था और दूसरी जोड़ी वो जो सनम उसके लिए मजबूरन लेकर आई थी।

हदीद के स्कूल से आने के बाद उमैर सनम को मॉल लेकर आ गया था। सनम शॉपिंग के लिए झट से तैयार हो गई क्योंकि आज उसने ऑफिस से छुट्टी ली हुई थी।

उमैर ने बोहत सारी शॉपिंग तो नहीं की थी मगर हाँ अपनी ज़रूरत का थोड़ा बोहत समान ले लिया था और एक दो चीजें सनम को भी दिला दी थी मगर इस बार उसकी दिलाई हुई चीजें बोहत महंगी नहीं थी जैसी महंगी चीज़ें वह सनम दो देता आया था। सनम थोड़ा अपसेट हुई थी मगर उसने ज़ाहिर नहीं किया।

शॉपिंग करने के बाद सनम का इरादा था मॉल के फूड कोर्ट जाने का मगर उमैर ने उसे मना कर दिया। सनम एक बार फिर से बुझ गई। उमैर मॉल से निकल कर एक छोटे से रेस्तुरंत में गया था। सनम को बोहत अजीब फील हुआ था क्योंकि उमैर के साथ वह taj bengal, peerless, ITC जैसे बड़े बड़े हॉटेल्स और रेस्तुरंत में जाया करती थी। ऐसी बात नहीं थी की वह ऐसे छोटे मोटे रेस्तुरंट कभी नहीं गई थी। उमैर से मिलने से पहले वह ऐसे ही जगहों पे अक्सर जाया करती थी यहाँ तक के स्ट्रीट फूड भी खाया करती थी। लेकिन जब से उसे उमैर की संगत मिली थी उसके लाइफ स्टाइल ही जैसे चेंज हो गए थे।

वह मन मार कर वहाँ खाना खा रही थी और साथ में खुद को संभालते हुए बड़े हौसले से काम भी ले रही थी। उमैर पुरी शॉपिंग करते वक़्त और अभी भी बिल्कुल चुप रहा था। जब ज़रूरत होती तभी अपना मूंह खोलता।

“तुमने तो अपना वॉलेट, कार्ड्स सब कुछ घर पे छोड़ दिया था... तो फ़िर तुम्हारे पास पैसे कहा से आए।“ सनम ने स्पून से बिरयानी अपने मूंह में डालते हुए उस से पूछा था।

“ह्म्म्म... “ उमैर ने सिर्फ़ इतना ही कहा था। उसके जवाब पर सनम तप कर रह गई थी।

“मैं तुम से पूछ रही हूँ... पैसे कहाँ से आए?” उसने झुंझला कर दुबारा पूछा था।

“क़र्ज़ लिया है.... एक दोस्त से... “ उमैर ने खाते हुए अपनी नज़रें प्लेट पर रखते हुए कहा था।

“क़र्ज़ लिया है?.... तुम ने तो कभी किसी दोस्त से क़र्ज़ नहीं लिया था... फिर क्या ज़रूरत थी क़र्ज़ लेने की?... क्या इज़्ज़त रह गई होगी तुम्हारी अपने दोस्त के सामने?” सनम ने गुस्से और परेशानी की मिलीजुली केफियत में कहा था।

“क़र्ज़!.... हाह!... “ सनम के मूंह से क़र्ज़ लफ़्ज़ सुनते ही उमैर को जैसे खुद पर हंसी आई थी।

“हाँ... क्या ज़रूरत थी लेने की....अपने घर जाते वहाँ से पैसे ले आते...” सनम की बात पर उमैर ने उसे बेयकिनि से देखा था। उसके ऐसे देखने पर सनम ने वज़ाहत पेश की थी।

“तुमने इतना बड़ा business empire संभाला हुआ था... चलो तुम उन पर हक़ जमाना नहीं चाहते मगर अपनी सैलरी समझ कर तो ले सकते हो ना।“ सनम उसे जताते हुए लफ़्ज़ों में कह रही थी। उसके जवाब में उमैर ने कुछ नहीं कहा था। बस अपना सारा फोकस खाने पर लगाए हुए था ऐसे जैसे वह कोई स्कूल का बच्चा हो और उसके सामने उसकी टीचर बैठी हो।

सनम ने अपना गुस्सा ठंडा करने के लिए पानी का ग्लास उठाया था।

“इसका मतलब ये मोबाइल फोन भी क़र्ज़ के पैसों से है?....” सनम आज बाज़ आने वालों मे से नहीं थी।

तभी उमैर ने उस से कहा था। “पता है सनम! मर्द बेकार कब लगने लगता है? ....जब वो खाली बैठता है तब नही... जब वो खाली हाथ बैठ जाता है तब लगता है।“ उसने सनम की आँखों मे देख कर जताते हुए बोल रहा था।

सनम को उसकी बातें चुभी थी।

“तुम मुझे ताने दे रहे हो?... “ सनम ने गुस्से से पूछा था।

“हक़ीक़त बयान कर रहा हूँ... लेकिन अगर तुम्हें ताने लग रहे हैं तो ये भी सही है।“ उमैर ने मुस्कुरा कर कहा था मगर सनम मुस्कुरा ना सकी थी।

कितनी देर उन दोनों के बीच ख़ामोशी का राज रहा यकायक सनम को कुछ याद आया।

“तुमने लिफ़्ट में उस लड़की को देखा था?... “ उसकी बात पर उमैर के हाथ थम से गए थे।

“कौन सी लड़की?” वह जान बूझ कर उसे भूल रहा था।

“वही लड़की... जो हमारे सामने लिफ़्ट में खड़ी थी.... येल्लो सूट... वाइट दुपट्टा... “ सनम ने उसे याद दिलाने की कोशिश की।

“होगी.... मैंने ध्यान नहीं दिया।“ वह उसे टाल रहा था।

“अच्छा हुआ तुमने ध्यान नहीं दिया...ऐसी लड़कियाँ यही तो चाहती है की सब उस पर ध्यान दें।“ सनम को जाने क्यों ख़ुशी मिली थी।

“क्यों...क्या किया था उस लड़की ने?” उमैर पूछे बगैर नहीं रह सका था।

“वो क्या करेगी... अरे पता नहीं खुद को क्या समझ रही थी?” उसे याद कर के जाने क्यों सनम बौखला गई थी।

“क्यों बोहत खूबसूरत थी क्या?” सनम की बातों ने उमैर को उस से ये पूछने पर मजबूर कर दिया था।

“बिल्कुल भी नहीं... वही तो... अगर खूबसूरत होती.. तो उसका ये attitude समझ भी आता।“ सनम की बात पर उमैर को हंसी आ गई थी। वह चाह कर भी अपनी हंसी रोकने में कामयाब नहीं हो पाया था।

“तुम क्यों हँस रहे हो?” सनम को उसकी हंसी बुरी लगी थी।

“तुम लड़कियाँ अगर हम मर्दों के ज़िंदगी में नहीं होती तो फिर हम मर्द शायद हंसना ही भूल जाते... Thank you so much for that…. “ उमैर ने मुस्कुरा कर उसके हाथ के उपर अपना हाथ रखा था। आज इतने दिनों के बाद उमैर के चेहरे पर हंसी लौटी थी। सनम की insecureness पे उसे प्यार आ गया था। कुछ लम्हों के लिए ही सही वह सब भूल बैठा था। सनम की शादी को लेकर उसका अधूरा जवाब... उसका बदला हुआ रवैय्या... उसकी बेज़ारी सब कुछ...।

वह सनम का शुक्रिया अदा कर रहा था क्योंकि वह उसके हँसने की वजह बनी थी... मगर वह अरीज को सिरे से नज़रंदाज़ कर गया था जिसकी ज़ात की वजह से उसे हँसने का बहाना मिला था।

सनम बेशक खूबसूरत थी मगर उसकी खुबसुरती में ज़्यादा अमल दखल बनावटी था जबकि दूसरी तरफ़ अरीज ... वह बनावट से पाक थी।उसकी ज़ात... उसका ज़ाहिर(जो सब के सामने है)... उसका बातिन (जो सब से छुपा हुआ है) सब एक पारस की तरह है... जो दिखने में आकर्षक तो है ही... लेकिन अगर उसे कोई छु ले तो वो सोना बन जाता।

जाने क्या था सनम में जिसकी चकाचौंध में उसे अरीज जैसी पारसा पारस नहीं दिखाई दे रही थी?...

या फिर ये एक ज़िद थी की वह उसकी तरफ़ देखना ही नहीं चाहता था...

या फिर... अरीज एक खंजर थी जिसकी ज़ात ने उसकी ज़ात को.. उसकी ख़ुद्दारी को.... उसके अहम को लहू लुहान किया था।

क्या उमैर कभी इस दर्द से निकल पाएगा?

क्या वह अरीज और सनम दोनों को समझ पाएगा? ...

क्या होगा आगे?

जानने के लिए बने रहे मेरे साथ और पढ़ते रहें इश्क़ ए बिस्मिल