इश्क़ ए बिस्मिल - 74 Tasneem Kauser द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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इश्क़ ए बिस्मिल - 74

उमैर उसकी तरफ़ देखे बग़ैर उसके जवाब का इंतेज़ार कर रहा था। “ये बिल्कुल ग़लत बात है... मैं कोई टॉप नहीं करती कॉलेज में.... पता नहीं बच्चों ने ऐसा क्यों कहा था?” उसने जवाब देते हुए अपनी पेशानी पे आए पसीने की नन्ही बूंदों को पोछा हालाँकि गाड़ी में ए. सी. चल रहा था।
“तुम कॉलेज में टॉप करती हो या नहीं इस से मुझे कोई मतलब नहीं है। मैं बस तुमहारे कॉलेज का नाम जानना चाहता हूँ ताकि तुम्हें वहाँ पे ड्रॉप कर सकूँ।“ उसने गाड़ी चलते हुए एक नज़र उस पर डाल कर जैसे कुछ जताते हुए कहा था।
अरीज के उपर मानो जैसे मनो पानी का घडा़ उंडेल दिया गया हो। उमैर ने बैठे बैठे उसकी इतनी बड़ी बेइज़्ज़ती कर दी थी।
“ये बात आपको पूछने की ज़रूरत नहीं थी... आप अपनी अकल इस्तेमाल कर सकते थे। ये आपका शहर है आपको पता होगा की कल जिस जगह आपने मुझे लिफ़्ट दी थी वहाँ आस पास कौन सा कॉलेज है?” अरीज ने चिढ़ कर उसे जवाब दिया था जिसे सुन कर उमैर को यकीन नहीं हुआ था की वह इतनी तलखियाँ लेकर भी उस से बातें कर सकती है। कल तक तो वह उसकी हर झिड़कियाँ बोहत अच्छे से ना सिर्फ़ बर्दाश्त कर रही थी बल्कि बड़े प्यार से उसका जवाब भी दे रही थी मगर अभी तो जैसे उसकी काया ही पलट गई थी। उमैर उसका जवाब पा कर बिल्कुल खामोश हो गया था। बात तो अरीज की भी ठीक थी जब उस से कोई मतलब ही नही रखना है तो पूछने की क्या ज़रूरत थी अपनी अकल लगाता और खुद ही समझ जाता।
उमैर ने उसके कॉलेज के गेट पास गाड़ी रोकी थी और वह उसका शुक्रिया अदा कर के दरवाज़ा खोल कर बाहर निकल ही रही थी की उमैर ने उस से कहा था।
“मैं तुम्हें पिक करने कितने बजे आ जाऊँ?” उसने अरीज को गाड़ी से उतरते हुए देख कर पूछा था।
“इसकी कोई ज़रूरत नहीं हैं... मैं मैनेज कर लूंगी... लेकिन हाँ अगर आपको पिक करना ही है तो बच्चों को स्कूल से पिक कर लीजिएगा।“ अरीज इतना कह कर गाड़ी से उतर गई थी और उमैर कार के अंदर बैठा उसे कॉलेज के अंदर जाते हुए देखता रहा था।
वह कॉलेज से घर टैक्सी कर के आ गई थी और उमैर हदीद और अज़ीन को पिक कर के घर आ गया था।
घर आकर पता चला था की सोनिया, आसिफ़ा बेगम और सनम engagement की शॉपिंग के लिए बाहर गए हुए है।
शाम तक ज़मान खान भी ऑफिस से घर आ गए थे। वह फ्रेश होकर अपनी स्टडी रूम में आ गए थे। उन्होंने पढ़ने के लिए शेल्फ से एक किताब निकाली थी मगर वह एक पन्ना भी पढ़ नहीं पाए थे। दिलो दिमाग़ में अजीब सी गेहमा गेहमी चली हुई थी। उन्होंने किताब को उलट कर टेबल पर रखा था और खुद आँखें बंद कर के रॉकिंग चेयर पर पे अपनी पेशानी को थाम कर ढह से गए थे।
अरीज कल की ली हुई किताब वापस रखने के इरादे से स्टडी रूम आई थी मगर ज़मान खान को ऐसे हाल में देख कर वह वापस गई थी और उनके लिए चाय ले आई थी।
चाय टेबल पर रखने के बावजूद ज़मान खान की आँखें नहीं खुली थी।
अरीज ने अपने नर्मो नाज़ुक हाथ से उनका सर दबाने लगी, तभी उनकी आँखें खुली थी और वह अरीज को पाकर मुस्कुराने लगे थे। उन्होंने अभी भी अपनी आँखें बंद की हुई थी।
“अरीज आप बिल्कुल अपने नाम की तरह है...” उन्होंने वैसे ही आँखें बंद कर के अपने अंदर जैसे सुकून उतारते हुए उस से कहा था।
“मतलब?” अरीज उनकी बातें नही समझ पाई थी।
“अरीज का मतलब मीठी खुशभू... आप भी बिल्कुल खुशबू की तरह है बेज़र सी, खुशबू की तरह लोगों को तरो ताज़ा करती है, उन्हें शादमान करती है, मगर लोगों को दिखाई नहीं देती... अपने वजूद की नफ़ी करके दूसरों की वजूद से ही अपनी पहचान बना लेती है, बिल्कुल ऐसी ही है आप।“ उन्होंने अपना फलसफा बयान किया था।
“हाँ खुशबू के लिए तो आपने सही कहा है मगर मैं ऐसी हूँ की नहीं ये मुझे नहीं पता।“ अरीज ने कुछ सोच कर उनसे कहा था। उसकी बात पर ज़मान खान मुस्कुरा दिए थे।
“ये भी आपकी एक खासियत है... आप कभी अपनी क्रेडिट नहीं लेती।“ ज़मान खान ने इस दफ़ा अपनी आँखे खोल कर कहा था।
अरीज ने बदले में कुछ नहीं कहा था और ऐसे ही उनका सर दबाती गयी।
थोड़ी देर के बाद उसने कहा था। अब आप चाय पी लें वरना बिल्कुल ठंडी हो जाएगी।
उसकी बात पर ज़मान खान सीधे होकर बैठे थे और चाय का कप उठा लिया था।
अरीज ने ग़ज़ल की किताब वापस शेल्फ में रखी थी और दूसरी किताबों को पढ़ने के लिए उनपर नज़रें दौड़ा रही थी जब ही अचानक से ज़मान खान ने उस से कहा था।
“I’m sorry अरीज... मैं खुद को आपके सामने बोहत शर्मिंदा सा महसूस कर रहा हूँ।“ उनकी बात पर अरीज ने उन्हें मुड़ कर देखा था... वह हाथ में चाय का कप लिए उसे देख कर खोए खोए अंदाज़ में बोल रहे थे।
“बाबा ऐसा कह कर आप मुझे तकलीफ़ मत पहुंचाए।“ वह ज़मान खान की बातों का मतलब लम्हों में समझ गई थी।
“बल्कि शर्मिंदगी तो मुझे महसूस होती है की मेरी वजह से ये पूरा घर बिखर कर रह गया है... और इस के लिए मैं आप सब से माफ़ी मांगना चाहती हूँ।“ वह उनके पास आते हुए कह रही थी।
“ऐसी कोई बात नहीं है...आपकी वजह से नहीं ये घर तो बोहत पहले से बिखरा पड़ा था... ऐसे में उमैर मेरी आखरी उम्मीद थी मगर अफ़सोस.... “ वह कहते कहते चुप हो गए थे और फिर एक लंबी सांस लेकर उन्होंने अपने दिल को थोड़ा सुकून पहुंचाया था।
“प्लिज़ बाबा आप इतना मत सोचा करें... मेरे और उमैर के रिश्ते को लेकर तो बिल्कुल भी नहीं.... सच कहूँ तो उमैर जैसे इंसान के लिए सनम जैसी ही लड़की ठीक है।“ उसने हल्के फुल्के लहज़े में कहा था मगर उसकी बात सुन कर ज़मान खान चौंक गए थे और उसे देखने लगे थे। मगर वह ये कहते हुए उनसे नज़रें नहीं मिला पा रही थी इसलिए किताबों को देखने के बहाने शेल्वस् के पास गई थी और किताबों को देखते हुए उन से कह रही थी।
“हाँ बाबा... जो हो रहा है बिल्कुल सही हो रहा है... Actually मुझे उमैर बिल्कुल भी नहीं पसंद है...” उसकी इस बात पर ज़मान खान को थोड़ा दुख हुआ था।
वह उसे टोके बग़ैर नहीं रह सके थे “अरीज उमैर मेरा लखते जिगर है.. हाँ अभी फिल्हाल उसके अकल पर पत्थर पड़ गया है मगर वह ऐसा बिल्कुल नहीं है के कोई उसे ना पसंद करे।“
“हाँ होंगे अच्छे मगर मुझे पसंद नहीं है....अब देखिये ना कितने ज़िद्दी है... एक बात को पकड़ कर बैठ गए है... हम सब उस वाक़िये को भूलना चाह रहे है मगर उन्होंने तो उस वाक़िये को अपना ओढ़ना बिछौना बना लिया है... हर वक़्त गुस्से में रहते है... हर वक़्त उनके मूंह पे बारह बजा रहता है... चलो भय अब जो हो गया सो हो गया... भूल जाओ उन सब बातों को...मिट्टी डालो उनपर... लेकिन नही.. उन्हें तो... “ अरीज अपने धुन में बस कहे जा रही थी... तभी उसे अपनी पसंद की एक किताब मिल गई वह उस किताब को लेकर मुड़ी ही थी और जैसे उसे चार सौ चालीस का शोक लगा था... उमैर ठीक उसके सामने खड़ा था और अपना हाथ बंध कर उसे गुस्से में देख रहा था। अरीज की आँखें फटी की फटी रह गई थी। उसका हाल ये देख कर बुरा हो गया था उसने उमैर के पीछे ज़मान खान पर नज़र डाली थी वह अपना सर पकड़े हुए बैठे थे।