इश्क़ ए बिस्मिल - 55 Tasneem Kauser द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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इश्क़ ए बिस्मिल - 55

मोम मुझे यकीन नहीं हो रहा है... बाबा ऐसा कैसे कर सकते है?... मुझे याद नहीं की उन्होंने मुझे कभी इतनी सारी शॉपिंग कराई हो...”

सोनिया को अरीज की शॉपिंग बैग्स देख कर ही सदमा लग गया था। वह गरदन में उस वक़्त चहल कदमी करते हुए अपने मोबाइल फोन से फेसबुक चला रही थी जब ज़मान खान की गाड़ी मैन गेट से अंदर आई थी। उसने पहले तो ध्यान नहीं दिया, कार गार्डेन के बीच बनी पक्की राहदारी से होते हुए कार पोर्च की तरफ़ बढ़ रही थी, जब उसकी नज़र कार की पिछली सीट पर बैठी अरीज पर गई थी। वह तजससुस से मजबूर होकर कार पोर्च की तरफ़ भागी थी और थोड़ी दूरी पर खड़े होकर देख रही थी। ज़मान खान की कार हमेशा की तरह उनका driver नदीम चला रहा था। सबसे पहले ज़मान खान फ्रंट सीट से उतरे थे फिर उन्होंने पिछली सीट का दरवाज़ा खोला था जिससे अरीज बाहर आई थी। उसके बाद अरीज कार के दरवाज़े से आधा अंदर होकर कुछ निकाल रही थी। जब वह पूरी बाहर आई तो उसके हाथ में ढेर सारे बैग्स थे। Driver नदीम अपनी सीट से उतरा था और दूसरी तरफ़ का दरवाज़ा खोल कर अज़ीन को उठा कर उतरा था, उसके बाद उसने कार की दिग्गी खोली थी और उसमे से बोहत सारे बैग्स और कर्टोंस निकाले थे। Driver नदीम के हाथ से कुछ बैग्स ज़मान खान ने लिए थे तभी घर के अंदर से एक नौकर बरामद हुआ था... कुछ समान उसने उठाए थे.... फिर सब के सब घर के अंदर चले गए थे। दूर खड़ी सोनिया हैरानो परेशान थी।

आसिफ़ा बेगम ने उसे बताया था की उसके भाई उमैर का निकाह ज़मान खान ने ज़बरदस्ती इस दो टके की लड़की से करवा दिया है। उसे लगा था एक गरीब घर की लड़की को उसके बाबा घर ले आए थे... वो भी अपने घर की बहू बना कर... चलो नेकी की थी उन्होंने... यहाँ तक तो ठीक था... मगर ये क्या?...वह तो इस लड़की को उसके बराबर लाकर खड़ा कर रहे थे... सोनिया के बराबर!...

सोनिया का ये नज़ारा देख कर बुरा हाल हो रहा था। वह अपने पेर पटकती हुई आसिफ़ा बेगम के पास पहुंची थी और उसने जो देखा था वो सब उन्हें बताने लगी।

“मैं तुमसे उस दिन क्या कह रही थी सोनिया?... मगर तुम्हें तो अपना ही सदमा खाये जा रहा था... तुमने मेरी बात को इतना lightly लिया था उस दिन।“ आसिफ़ा बेगम उसे वह दिन याद दिला रही थी जब उमैर ने उसे डाँटा था और वह रोते हुए अपने रूम आई थी। आसिफ़ा बेगम उसे अरीज के बारे में बता रहीं थी मगर उसे सिर्फ़ अपनी insult का ही रोना आ रहा था, उसके आगे उसे सारी बातें बोहत छोटी और मामूली लग रही थी।

“मॉम.. मैंने इस बात को इसलिए lightly लिया था क्योंकि भाई अपने इस रिश्ते को accept नहीं कर रहे थे। जब वो ही इस रिश्ते को मान नही रहे थे तो फिर इस लड़की का होना ना होना क्या फ़र्क पड़ता ही। मुझे लगा था गरीब लड़की है.. घर के किसी कोने में पड़ी रहेगी।“ असल में आज सोनिया अरीज की शान ओ शौकत देख कर बोहत हर्ट हुई थी इसलिए वह आसिफ़ा बेगम को सफाई दे रही थी।

“बोहत खूब तुमने सोचा था बेटा... घर के एक कोने में पड़ी रहेगी.... तुम अभी हो कहाँ सोनिया?.. घर के एक कोने में पड़े रहना तो दूर की बात है तुम्हारे बाबा ने तो ये घर ही उसके नाम कर दिया है।“ आसिफ़ा बेगम को सोनिया की खुसहफ़ेहमी पर हंसी आई थी।

जहाँ आसिफ़ा बेगम की बात खत्म हुई थी वहीं पे सोनिया को चार सौ चालिस वॉट्स का झटका लगा था।

“What?” सोनिया ने बेयकीनी से लगभग चिल्लाते हुए कहा था।

“O my God… I can’t believe this.. How… How baba could do this?... How…? “ सोनिया ने अपना सर पकड़ लिया था।

“जब तुम्हारे बाबा ने ये घर उसके नाम करते हुए कुछ नही सोचा... तो फिर ये शॉपिंग तो उसके आगे बोहत छोटी सी चीज़ है.... आगे आगे देखो वो और क्या क्या करते है।“ आसिफ़ा बेगम खुद भी गहरे सदमें में डूबी हुई लग रहीं थी। सोनिया को तो जैसे सोच सोच कर चक्कर आ रहे थे।

“आप कैसे चुप बैठ सकती है... आपने अभी तक कुछ किया क्यों नहीं?” वह अब आसिफ़ा बेगम पर है चढ़ाई कर रही थी।

“तुम्हें लगता है की मैंने कुछ नही किया होगा?... अपनी तरफ़ से जो हो सकता था कर रही थी... मगर तुम्हारे बाबा ने मुझे उस नीच लड़की के सामने थप्पड़ मारा.. और धमकी भी दी के अगर मैं कुछ करूँगी तो तुम्हारा बाप मुझे तलाक़ दे देगा।“ ये कहते कहते आसिफ़ा बेगम की आँखों में आँसू आ गए थे। दूसरी तरफ़ सोनिया उनकी बात सुन कर शॉक में पड़ गई थी। उसने बेयकीनी से अपने दोनों हाथ अपने मूंह पर रखे थे। फिर उसने अपनी माँ के आँसू को पोछा था और उन्हें अपने गले से लगा कर दिलासे दे रही थी।

जभी आसिफ़ा बेगम के कमरे में हदीद पहुंचा था। वह कुछ कहते हुए कमरे में घुसा था मगर माँ बेटी का ये नज़ारा देख कर उसके मूंह को ब्रेक लग गया था।

“ये क्या हो रहा है?” हदीद ने हैरानी से पूछा था। मगर उसे देख कर सोनिया ने जैसे अपना आपा खो दिया था।

“मॉम बाहर निकाले इस लड़के को अपने रूम से... उस दिन के बाद से मुझे इस से चिढ़ हो गई है।“ सोनिया का बस नहीं चल रहा था की वह बेड से उठ कर हदीद पर बरस पड़े। हदीद सोनिया के खतरनाक तेवर को देख कर सहम गया था।

“मॉम... मुझे प्लिज़ आप से एक काम है... इन्हें चुप करायें और मेरी बात सुनें पहले।“ हदीद डर डर के आसिफ़ा बेगम से कह रहा था।

“ओह!... तो तुम्हें काम है... तो फिर यहाँ क्या कर रहे हो?.... जाओ उस से कहो ना जिसके लिए तुमने भाई के सामने उसके support में गवाही दी थी... बड़े हीरो बन रहे थे... जाओ ना... “ सोनिया उस दिन का वाकिया अभी तक भूलि नही थी बल्कि अपने दिल में उस दिन का गुस्सा पाल रही थी।

हदीद डर के मारे आगे नहीं बढ़ रहा था... वह जहाँ का वहीं खड़ा रहा था।

“हदीद जाओ यहाँ से... “ बेटी की तड़प को देख कर आसिफ़ा बेगम ने भी हदीद पर फरमान जारी किया था। वह सोनिया को रोता बिल्ख़ता देख ही नहीं सकती थी।

हदीद माँ की बात सुन कर मूंह लटका कर उनके रूम से निकल गया था और अब वह अरीज के रूम का दरवाज़ा खटखटा रहा था।

वह ऐसा करना हरगिज़ नहीं चाहता था मगर उसके पास अब कोई चारा नहीं था।

ऐसी क्या मजबूरी आन पड़ी थी हदीद को के वह बहन सोनिया के भगाये जाने पर अरीज की तरफ़ आ गया था?

क्या आने वाले कल में भी कुछ ऐसा होगा की हदीद अरीज को ही अपना समझने लगेगा?

क्या होगा आगे?

जान ने के लिए बने रहें मेरे साथ और पढ़ते रहें इश्क़ ए बिस्मिल