इश्क़ ए बिस्मिल - 61 Tasneem Kauser द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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इश्क़ ए बिस्मिल - 61

पूरा स्कूल लगभग खाली हो चुका था। कुछ ही बच्चे नज़र आ रहे थे। Driver ने पूरे ग्राउंड में छान मार लिया मगर अज़ीन उसे कहीं भी नज़र नहीं आई थी। उसने ऑडिटोरियम, में जाकर देखा मगर उसका कहीं भी आता पता नहीं था। चूंकि स्कूल बोहत ज़्यादा बड़ा था इसलिए उसका पूरी जगह तलाश करना मुश्किल था इसलिए उसने दरबान, मासी सब से पूछ लिया मगर उसके सवाल पर अंजान थे। एक दो मासी ने स्कूल के सारे classes में भी देख लिया। जब कहीं भि उसका पता नहीं चला तब हार कर driver ने ज़मान खान को कॉल लगाया।

Driver की बात सुनते ही ज़मान खान अपनी कुर्सी से खड़े हो गए थे। उन्होंने तुरंत घर पे कॉल कर के अरीज से पूछा। वह अरीज को परेशान तो नहीं करना चाहते थे मगर उनका पूछना भी ज़रूरी था।

ज़मान खान की बात सुनकर अरीज के होश जैसे उड़ गए थे।

“नहीं बाबा... अज़ीन तो नहीं आई अभी तक... हदीद भी नहीं आया है... वह दोनों तो साथ ही मे आने वाले थे ना।“ अरीज का दिल बैठा जा रहा था मगर उसने जैसे ज़मान खान को जवाब नहीं दिया था बल्कि खुद को तसल्ली दी थी।

“हाँ मैं देखता हूँ... कहाँ है वह दोनों... आप परेशान मत होना... “ उन्होंने इतना कह कर फोन काट दिया था, मगर फोन के कट जाने पर भी अरीज बोहत परेशान रही थी।

दूसरी तरफ़ ज़मान खान ने driver को कहा था की हदीद से उनकी बात करवाए। हदीद से बात करने पर भी कुछ हासिल नहीं हुआ था। हदीद ने उन्हे भी वही कहा था जो उसने driver को बोला था। इसके बाद ज़मान खान का ऑफिस में बैठना मुश्किल हो गया था। वह अपने driver नदीम को लेकर हदीद के स्कूल पहुंचे थे।

वहाँ पहुंचते ही उन्होंने प्रिंसिपल से मुलाक़ात की थी। उनकी बात सुनकर प्रिंसिपल भी अचंभे में थी। बात होते होते पूरे स्कूल में फेल गई थी।

ज़मान खान को सारा कसूर स्कूल वालों का ही लग रहा था। उनके हिसाब से स्कूल वालों ने बच्चे के आने जाने पर ध्यान नहीं दिया इसलिए ऐसा हुआ था। चूंकि अज़ीन वाकई उनके स्कूल से गायब हुई थी इसलिए प्रिंसिपल मैम ज़मान खान की बातें बर्दाश्त कर रही थी। और दूसरी तरफ़ ज़मान खान के दिल दिमाग़ पर इस वक़्त क्या गुज़र रही थी प्रिंसिपल मैम ने इसका ख्याल रखा हुआ था। उन्होंने तुरंत अपनी सारी टीचर्स और स्टाफ़स को कॉल लगाई थी और सब से पूछ ताछ की थी।

टीचर्स ने यही जवाब दिया की अज़ीन अपनी सारी classes में मौजूद थी।

जब कुछ हाथ नहीं लगा तब प्रिंसिपल मैम ने ये तक कर डाला की अज़ीन की पूरी क्लास के स्टूडेंट्स के कांटैक्ट नंबर पे कॉल कर कर के सब से पूछा मगर हर बार उन्हे कुछ नहीं मिला था। यही सब करते करते दो घंटे गुज़र गए थे।

ज़मान खान का हाल सोच सोच कर बुरा हो रहा था। उन्होंने हदीद को भी घर जाने नहीं दिया था। वह नहीं चाहते थे के हदीद को अकेले घर आते देख अरीज अज़ीन के बारे में पूछे और उसे सब पता लग जाए।

हदीद इस पाबंदी पर गुस्सा पी कर रह गया था। उसने नहीं सोचा था की उसे इन सब मामलों में इस तरह से क़ैद कर के रखा जाएगा... मगर जो भी था वह अपनी जीत पर अंदर ही अंदर खुश हो रहा था।

अरीज की कॉलेज में एडमिशन की बात करने के बाद वह अपने ऑफिस पहुंच गए थे और अपने driver से उन्होंने अरीज को घर ड्रॉप करवा दिया था।

आज वह अंदर ही अंदर बोहत खुश और मुत्माईन लग रहे थे की उन्होंने अपनी दोनों बेटियाँ अरीज और अज़ीन की पढ़ाई का मामला हल कर दिया है मगर उन्हे हरगिज़ नहीं इल्म था की आने वाले कुछ घंटों में उनका सारा सुकून बर्बाद होने वाला है।

ज़मान खान ने स्कूल वालों से बात कर के देख लिया था मगर उन्हें कोई फ़ायदा नहीं हुआ अब उनके पास बस एक ही रास्ता नज़र आ रहा था और वह था पुलिस को कॉल करना। उन्होंने अपना मोबाइल फोन निकाला था और सारी बातें पुलिस को बताई थी ये जाने बग़ैर की अरीज उनके पीछे खड़ी उनकी सारी बातें सुन रही थी। वह बात कर ही रहे थे की उन्हे अपने पीछे कुछ गिरने की आवाज़ आई उन्होंने पीछे मुड़ कर देखा तो अरीज फ़र्श पर ढेर हो चुकी थी।

वहाँ पर मौजूद सारे लोग उसकी तरफ़ दौड़ पड़े थे। ज़मान खान को अपनी मुश्क़िलें और बढ़ती नज़र आ रही थी। अरीज शॉक के मारे बेहोश हो गई थी।

ज़मान खान की कॉल आने के दो घंटे बाद भी जब हदीद और अज़ीन घर नहीं लौटे थे तो अरीज ने खुद स्कूल जाने का फै़सला किया था। जाने क्यों उसे अंदर से महसूस हो रहा था की ज़मान खान उस से कुछ छुपा रहे है शायद इसलिए की वह परेशान ना हो।

मगर यहाँ आने के बाद इस परेशानी ने तो उसे बेहोश ही कर डाला था।

उसे उठा कर स्कूल के सिक रूम में ले जाया गया और वहाँ पे मौजूद नर्स ने उसे फौरी तौर पर ट्रीटमेंट देने शुरू कर दी ताके उसे होश आ सके.... कुछ ही मिनटों के बाद वह होश में आ गई थी। और होश में आते ही वह रोते हुए ज़मान खान से कह रही थी।

“बाबा मेरी अज़ीन कहाँ होगी?....किस हाल में होगी?....अगर उसके साथ कुछ उल्टा सीधा हो गया तो?....बाबा मैं तो मर जाऊंगी....अगर उसे कुछ हो गया तो मैं ज़िंदा नहीं रह पाऊँगी... मैं माँ और बाबा को क्या मूंह दिखाऊंगी की मैं अपनी छोटी बहन का ख़्याल नहीं रख सकी....बाबा मेरी अज़ीन को मेरे पास ले आएं... “ वह होश में आ गई थी फिर भी अपने होश में नहीं थी... वह बिना कुछ सोचे समझे बस अपनी दिल की बातें कहे जा रही थी। उसका पूरा जिस्म ढीला पड़ गया था। वह सीधी तरह बैठ भी नही पा रही थी। बमुश्किल उसने ज़मान खान का हाथ पकड़ा हुआ था। ज़मान खान उसे अपने एक हाथ से संभाले हुए थे। और उसकी हालत देख कर अंदर ही अंदर रो रहे थे।

वही पे खड़े हुए हदीद को अब सच में टेंशन होने लगा था। उसने जो किया था वह एक बारह साल के बच्चे का काम था जो अपने गुस्से और ज़िद मे कुछ भी कर गुज़रते है लेकिन उन्हें उसके अंजाम का पता नहीं होता है... उसे भी पता नहीं था... उसे लगा था अरीज चली जाएगी और सब परेशान होंगे... उसे ढूंढेंगे फिर भूल जाएंगे... मगर यहाँ तो बात पूरे स्कूल से लेकर अब police station तक पहुंच गई थी। उपर से अरीज का ऐसा हाल तो उसने सोचा ही नहीं था। ज़िद.. गुस्से... और जुनून में सब से पहले जो चीज़ ख़तम होती है वह अकल होती है। और ये तो बड़े बड़ों के साथ होता है फिर भी हदीद तो खैर से एक बारह साल का बच्चा ही था।

क्या होगा अब आगे?

क्या हदीद को अब वाकई में पछतावा हो रहा है?

क्या इस पछतावे में वह सुधर जाएगा?

या फिर कोई और नयी बात शुरू हो जाएगी?