इश्क़ ए बिस्मिल - 62 Tasneem Kauser द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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इश्क़ ए बिस्मिल - 62

हदीद को अपनी मुश्क़िलें खत्म होने की बजाय बढ़ती हुई दिख रही थी। अगर पुलिस अज़ीन को ढूंढ लाती है तो हदीद की खैर नहीं और अगर ना ढूंढ पाती है तो अरीज को कुछ हो जाएगा और अरीज तो उसकी भाभी थी। इस से पहले तो उसे अरीज से इतना लगाव नहीं हुआ था मगर अभी उसका जो हाल हदीद देख रहा था उसकी जगह कोई और होता तो उसका भी दिल पिघल जाता ... उपर से हदीद ने अरीज से वादा भी किया था की उसकी हेल्प करेगा। अगर अरीज अभी उस से उस वादे का पूछ बैठती तो फिर वह क्या जवाब देता।
अरीज एक बार फिर से बेहोश हो गई थी। ये सब देख के हदीद के जिस्म का पूरा खून जैसे खुश्क हो गया था। एंबुलेंस बुलाई गई थी और अरीज को अब ज़मान खान हॉस्पिटल लेकर जा रहे थे।
यूँ तो उन्हें police station जाना था मगर अरीज को ऐसे हाल में कैसे छोड़ कर जा सकते थे।
अज़ीन बस में बैठी कोलकाता शहर से बाहर संतरागछि पहुंच गई थी। जब उसे पता चला की हदीद उसके साथ नहीं है और वह गुम हो गई है।
बस में बैठे सारे चेहरे अचानक से उसे दरावने लग रहे थे।
वह ज़ोर ज़ोर से अरीज को पुकार पुकार कर रो रही थी। बस के लोग बड़ी उलझन में फँसे थे की अब क्या करे।
अरीज के गले में ना तो इडेंटिटी कार्ड था ना उसके स्कूल यूनिफॉर्म पे बना मोनोग्राम उसके स्कूल का पूरा नाम बता रहा था।
क्योंकि बस कोलकाता शहर से बाहर निकल चुकी थी तो वहाँ के बासिंदा भी वही उतर चुके थे और जो बस में बचे थे वो बंगाल के छोटे छोटे शहर के भोले भाले लोग थे जिन्हें कोलकाता की स्कूल की मोनोग्राम से उसके नाम का पता नहीं चल पा रहा था।
अज़ीन से कुछ पूछते तो वह सिर्फ़ रोए जाती... इतने लोगों के होने के बावजूद किसी के ध्यान में ये नहीं आया की उसके स्कूल बैग को चेक करें... शायद उसके स्कूल की डायरी या फिर नोट बुक मिल जाए और उस से कुछ पता चल जाए।
वहाँ पे मौजूद लोगों में से कुछ ही अज़ीन के साथ रुके थे बाक़ी सारे अपनी मंज़िल की तरफ़ चले गए थे।
उन्हीं लोगों ने आपस में मशवरा किया था की अज़ीन को police station ले कर चलना चाहिए।
अज़ीन police station पहुंच गई थी और अब पुलिस वाले उस से पूछ ताछ कर रहे थे। मगर अज़ीन कुछ भी ठीक से उन्हें बता नहीं पा रही थी।
जब ही एक हवलदार ने उसकी बैग की तलाशी ली। शुक्र है उसमे उसकी स्कूल की डायरी मौजूद थी। स्कूल डायरी की फ्रंट पेज में उसकी सारी इंफोर्मेशन और डिटेल्स मैजूद थी।
इंस्पेक्टर ने तुरंत guardian का नंबर डायल किया था।
ज़मान खान ने हदीद को driver के साथ घर भेज दिया था और खुद अरीज के साथ हॉस्पिटल में थे।
उनका दिल दुआएं खैर कर रहा था। उनकी ज़ुबान बेआवाज़ दुरुद् शरीफ़ का विर्द कर रही थी तब ही उनके मोबाइल फोन के स्क्रीन पर एक अंजाना नंबर जगमगया था। उन्होंने अल्लाह का नाम लेकर एक उम्मीद से कॉल पिक किया था।
“हेल्लो... जी आप ज़मान खान बोल रहे है?” एक रोब दार आवाज़ ने उनसे पूछा था।
“जी.... मैं बात कर रहा हूँ।“ ज़मान खान ने अपने धड़कते दिल को संभालते हुए कहा था।
“मैं संतरागाछी पुलिस स्टेशन से इंस्पेक्टर बिजॉय मजूमदार बात कर रहा हूँ... हमें एक बच्ची मिली है...अज़ीन ज़हूर जिसके स्कूल डायरी से आपका नंबर मिला है... इसलिए आप प्लिज़ यहाँ आ जाए।“ इंस्पेक्टर साहब ने अपने पेशेवर अंदाज़ में कहा था जिसे सुनकर ज़मान खान की जान में जान वापस आई थी। उन्होंने अल्लाह का शुक्र अदा किया और अरीज को हॉस्पिटल में अपने driver के साथ छोड़ कर खुद कार लेकर अज़ीन को लाने के लिए निकल गए।
अरीज को डॉ ने नींद की इंजेक्शन दी थी ताके उसे जो फिट्स आ रहे थे उस से उसे आराम मिल सके।
ज़मान खान को लग रहा था वह बिना एक पल ज़ाया किए तुरंत अज़ीन के पास पहुंच जाए। रास्ते में थोड़ी सी भी ट्रैफिक उन्हें बोहत परेशान कर रही थी।
क्योंकि वह कार में सफ़र कर रहे थे और उन्होंने जल्दी पहुंचने के लिए सबसे छोटा रूट लिया था... और फ्लाई ओवर की मदद से वह एक घंटे की drive के बाद पुलिस स्टेशन पहुंच गए थे।
अज़ीन उन्हें देखते ही रोती हुई उन से जाकर लिपट गई थी। ज़मान खान ने पुलिस की सारी करवाई पूरी की थी। अज़ीन का रोना बंद हो गया था इसलिए पुलिस इंस्पेक्टर ने उस से थोड़ी पूछ ताछ करनी चाहि की वह आखिर यहाँ आई कैसे मगर वह तो जैसे सब कुछ भूल बैठी थी। आखिर हार कर पुलिस इंस्पेक्टर ने उसे जाने की इजाज़त दे दी। मगर अज़ीन की चुप्पी ज़मान खान को भी
परेशान कर रही थी वह भी जानना चाहते थे की आखिर ये सब हुआ कैसे है।
लेकिन उन्होंने ये बात बाद पे छोड़ दिया वह खुद भी अज़ीन को डिस्टर्ब नहीं करना चाहते थे।
वह डिरेक्ट् अज़ीन के साथ हॉस्पिटल पहुंचे थे। एक घंटा संतरागाछी जाने में... दो घंटे पुलिस की करवाई में और एक घंटा वापस आने में... यूँ मिल मिला कर वह चार घंटे के बाद अरीज के पास लौटे थे। अरीज अभी भी बेहोश पड़ी थी। उसके होश में वापस आने के लिए ज़मान खान से सब्र नहीं हो पा रहा था। उन्होंने अरीज को driver के साथ कैंटीन में भेज दिया था ताकि वह उसे कुछ खिला पिला दे, और खुद अरीज के रूम के बाहर बैठे थे।
शुक्र था और दो घंटे की इंतज़ार के बाद वह होश में आ गई थी और ज़मान खान ने उसके कुछ कहने या पूछने से पहले उसके सामने अज़ीन को खड़ा कर दिया था।
अरीज अज़ीन को देखते ही खुशी के मारे रो पड़ी थी। वह उसे गले लगा कर जाने कितनी देर रोती रही थी। अपनी बहन की हालत देख कर अज़ीन भी रो रही थी और साथ उसे ये भी एहसास हुआ था की उसकी बहन उस से कितना प्यार करती है।
अज़ीन सोच कर ही डर गई थी की अगर वह कुछ और वक़्त के बाद मिलती तो शायद उसकी बहन को कुछ हो जाता।
“तुम कहीं जा रहे हो?” उमैर को पैकिंग करता देख कर सनम ने उस से पूछा था।
उसके पूछने पर उमैर ने सरसरी सा जवाब दिया था।
“हाँ” उसने बिना उसकी तरफ़ देखे जवाब दिया था। उसका सारा ध्यान अपनी पैकिंग की तरफ़ था।
“मगर कहाँ जा रहे हो?” सनम जान ने को बेकरार थी।
“लंदन... “ इस दफ़ा उमैर ने उसे देखा था।
“क्या?... लंदन?.... मगर कैसे?” सनम को जाने क्यों उसकी बात पे यकीन नहीं आया था।
“क्यों?... नहीं जा सकता क्या?” उमैर ने हँसकर कहा था।
“हाँ जा सकते हो... मगर कैसे और क्यों जा रहे हो ये समझ नही आ रहा है।“ उमैर की बात पर सनम झेंप गई थी और अब अपनी हैरानी पर पर्दे डाल रही थी।
“तुम ज़्यादा कुछ मत समझो...” उमैर ने उसके दोनों बाज़ुओं को पकड़ कर मुस्कुराते हुए कहा था।
“मैं भी चलूँ तुम्हारे साथ?” सनम ने तुरंत फ़रमाइश पेश की थी।
“बिल्कुल नहीं...सनम तुम मेरे साथ अब पुरानी दुनिया में जीना छोड़ दो... जहाँ मैं business trip पे जाया करता था और साथ में तुम्हे भी लेकर जाता था.... मगर अभी मौजूदा हाल ये है की मैं बेरोज़गार हूँ... मेरा खुद गुज़ारा करना मुश्किल है मैं तुम्हें कैसे खिलाऊंगा।“ उमैर ने उसे बड़े प्यार से समझते हुए कहा था।
उसके जवाब पर सनम ने एक ठंडी सांस भरी थी और दिल में सोचा था... वो भी क्या दिन थे जब ज़िंदगी किसी खूबसूरत ख़्वाब की तरह गुज़रती थी। ऐशो आराम वाली ज़िंदगी... साल में तीन या चार बार फ़ॉरेन की ट्रिप, साथ में खूबसूरत और दिलदार साथी...लोग उसे देख कर रश्क करते थे...और सनम खुद पर गुरूर... इसी गुरूर में उसने सभी से नाता तोड़ दिया था... वह चाहे उसे जन्म देने वाली माँ थी... या फिर दोस्त...। उमैर से मिलने के बाद उसे अब किसी रिश्तों की ज़रूरत ही नहीं थी। उसे कभी कभी खुद पर भी रश्क़ आता था। क्या उस से भी कोई ज़्यादा खुश किस्मत था?
मगर ज़िंदगी की हक़ीक़त तो ये थी की इंसान की किस्मत हमेशा एक जैसी नहीं होती है। वक़्त के साथ साथ ये भी करवट बदलती है और इसमें कोई गलत भी नहीं है। ज़िंदगी में लचक होनी चाहिए.. वक़्त के दरिया के साथ साथ उसे भी बहना चाहिए... बहते दरिया में हर तरह की चुनौतियां आती है और हमें उन सब से डट कर सामना करना चाहिए।
ठेहरे हुए पानी में भी बदबू आ जाती है और इसी तरह अगर ज़िंदगी ठहर गई तो इंसान की शख्सियत में भी ज़ंग लग जाती है।
क्या होगा आगे?
क्या होगा सनम का अगला फै़सला?
और क्या चल रहा है उमैर के दिमाग़ में?