इश्क़ ए बिस्मिल - 49 Tasneem Kauser द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
श्रेणी
शेयर करे

इश्क़ ए बिस्मिल - 49

अरीज अपना दर्द भूल कर अब आसिफ़ा बेगम को फटी फटी आँखों से देख रही थी। कुछ देर पहले उसके गाल पर रखे उसके हाथ अब मूंह पर रखे थे।
दूसरी तरफ़ आसिफ़ा बेगम के आँखों में जैसे खून उतर आया था। वह एक घायल शेरनी की तरह ज़मान खान को देखे जा रही थी।
“तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई उसे हाथ लगाने की?.... क्या सोच कर तुमने उस पर हाथ उठाया?...” ज़मान खान जैसे अपने लफ़्ज़ों को चबा चबा कर बोल रहे थे। उनकी आँखें गुस्से से लाल हो रही थी।
“आपने मुझ पर हाथ उठाया?... वो भी इस दो कौड़ी की लड़की के लिए?” वह बेयकीनी से ज़मान खान से पूछ रही थी। वह अपनी आँखों में दुनिया जहान का नफ़रत लिए अरीज को घूर रही थी। ज़मान खान ने ज़िंदगी में पहली बार उन पर हाथ उठाया था। इस से पहले वह उनकी हर हटधर्मि को खून का घूँट पी कर बर्दाश्त करते आए थे। इसलिए आसिफ़ा बेगम को इस की ज़रा भी उम्मीद नहीं थी। और ये तप्पड़ उनके दिल को जा लगी थी।
अरीज को उनकी नज़रों से खौफ़ आ रहा था। उसे डर लग रहा था की गुस्से में कहीं ना आसिफ़ा बेगम उसे कुछ फेक कर मार दे।
“सिर्फ़ हाथ नहीं मेरा दिल कर रहा है मैं तुम्हे धक्के दे कर अभी इसी वक़्त घर से निकाल दूँ।“ ज़मान खान का उनसे भी ज़्यादा गुस्से से बुरा हाल हो रहा था
“मेरा बेटा कहाँ है?... ऐसा क्या किया है इस लड़की ने की वो घर छोड़ कर... अपना सब कुछ छोड़ कर चला गया है.... “ आसिफ़ा बेगम गुस्से से बेहाल हो रही थी।
“तुम्हारा बेटा अपनी मर्ज़ी से गया है... इसमें अरीज का कोई हाथ नहीं है।“ ज़मान खान ऊँची आवाज़ में बोल रहे थे। पास खड़ी नसीमा बुआ डर डर कर तमाशा देख रही थी।
“आप कहिएगा और मैं मान लूंगी?.... इसी लड़की ने अपनी दौलत का धोन्स जमाया होगा... इसलिए मेरा बच्चा सब कुछ छोड़ छाड़ का चला गया।“ वह कहते कहते रोने लगीं थी।
“तुम मानो या ना मानो.... मुझे इस की कोई परवाह नहीं है... अगर किसी की परवाह है तो सिर्फ़ अरीज और अज़ीन की.... और मुद्दा यहाँ पर तुमहारे लाडले के घर छोड़ कर जाने की नहीं है... असल मुद्दा ये है की तुमने अरीज पर हाथ कैसे उठाया?” ज़मान खान अपनी बात पर डटे हुए थे।
“बाबा बस करें... प्लिज़ चलें यहाँ से... प्लिज़” अरीज रोते हुए उनका हाथ पकड़ कर उन्हें चलने को बोल रही थी। आसिफ़ा बेगम का गुस्सा और भी ज़्यादा बढ़ गया था। उन्हें अरीज की ये बात सरासर उसकी नौटंकी लग रही थी। और ज़मान खान को उसका बाबा कहना ज़हर लग रहा था।
“ये तुम्हें बाबा क्यों कह रही है?.... ये सिर्फ़ और सिर्फ़ मेरे बच्चों के बाबा है... ज़्यादा रिश्तेदारी बढ़ने की ज़रूरत नहीं है।“ वह फिर से उबल पड़ी थी। अरीज पहले से और भी ज़्यादा सहम गई थी।
“ये मुझे बाबा इसलिए कह रही हैं क्योंकि मैं इसका बाबा हूँ... उमैर... सोनिया और हदीद उन सब से ज़्यादा मुझ पर अरीज का हक़ है।“ ज़मान खान ने उनके सवाल का जवाब काफी जताते हुए अंदाज़ में दिया था।
“और मेरी ये आखरी वार्निंग कान खोल कर सुन लो आसिफ़ा। आइंदा तुमने फिर ऐसी जुर्रत की तो तप्पड़ की जगह मैं तुमहारे मूंह पर तलाक़ मारूंगा।“ आसिफ़ा बेगम सन्नाटे में घिर गई। उनका दिमाग़ ये सुन कर अचानक से काम करना बंद हो गया था।
ज़मान खान अरीज का हाथ पकड़ कर उसे कमरे से लेकर जा रहे थे नसीमा बुआ अभी भी दरवाज़े पर खड़ी थी और आसिफ़ा बेगम जैसे अपने होंश से बेगाना होती हुई सब कुछ देख रही थी।
ज़मान खान इस से पहले भी उनसे तलाक़ की बात कर चुके थे मगर आज जो उनका धमकाने का अंदाज़ था उस से आसिफ़ा बेगम की रूह तक काँप गई थी। वह खुश फहमी में थी की उनके बच्चों की आड़ में आसिफ़ा बेगम कुछ भी अरीज के साथ कर सकती है मगर यहाँ उन्होंने साफ साफ़ देख और सुन दोनों लिया था की ज़मान खान को आसिफ़ा बेगम तो दूर उन्हें उनके बच्चों की भी परवाह नहीं थी। उन्हें किसी की परवाह थी तो वो सिर्फ़ और सिर्फ़ इन दोनों बहनो की परवाह थी। आसिफ़ा बेगम को यकीन नहीं हो रहा था की ज़मान खान को अपने जवान बेटे के घर से जाने का कोई गम नहीं था। आसिफ़ा बेगम सिकते में खड़ी की खड़ी रह गई थी।
कुछ दिनों के बाद.....
“हे!.... ये तो तुम्हारे फादर है ना?...” जुनैद की बात पर हदीद ने मुड़ कर अपने पीछे देखा था। ये नज़ारा देख कर उसके हाथ से बॉल छुट गया था। वह जुनैद के सवाल का कोई जवाब नहीं दे पाया था। उसके तन बदन में एक डर की लहर दौड़ गई थी। वह डर सिर्फ़ डर नहीं था... वह उसके insult का डर था। हदीद अपने टीम का प्रिंस था... लीडर था... इसलिए उसे अपने इमेज की बोहत ज़्यादा परवाह थी। वह अपने बने बनाये इमेज को खराब नहीं करना चाहता था। मगर एक डर उसके दिल से चिमट सी गई थी इसलिए वह खेलना भूल गया था।
“हाँ!... ये तो हदीद के फादर ही है।“ टिया ने जुनैद की बात पर confirm का ठप्पा लगाया था। हदीद अभी भी चुप खड़ा देख रहा था।
“मगर वो लड़की उनके साथ कौन है?.... शायद उनके मैड या सर्वेंट की बेटी होगी।“ टिया ने कयास लगाया था।
“तुम कैसे कह सकती हो?” रोहन को उसका क़यास और कंफिडेंस बिल्कुल नहीं भाया था।
“यार look at her attire…. कितने low quality के है... ऐसे कपड़े तो हमारे यहाँ नौकर के बच्चे ही पहनते है... वह अच्छे कपड़े तब ही पहनते है जब हम उन्हें देते है क्योंकि वो महंगे कपड़े afford नहीं कर सकते।“ टिया के बातों में गुरूर झलक रहा था। जुनैद को उसकी बातें बिल्कुल भी अच्छी नहीं लगी थी
“यार तो तुम कौन सा afford कर सकती हो?” रोहन ने तुरंत एक जुमला उसके लिए छोड़ा था। जिसे सुन कर टिया ना समझी में गुस्से से तिलमिला गई थी
“क्या मतलब है तुम्हारा?” वह रोहन को जैसे खा जाने वाली थी।
“बात सिंपल है की तुम कौन सा उनके लिए महंगे कपड़े afford कर सकती हो...तुम उनके लिए कुछ खरीद ही नहीं सकती... तुम उन्हें महंगे कपड़े कौन सा कोई खरीद कर देती हो... वह तो तुम उन्हें अपनी उतरन देती हो।“ रोहन ने अपनी बात तफ़्सील से बताई थी। उसकी बात पर सब हंस पड़े थे सिवाए टिया के जो गुस्से से उसे घूर रही थी और हदीद के जो अभी हंसना तो दूर मुस्कुराने के काबिल भी नहीं था।
हदीद अब भी चुप था। दरासल वह अपने दोस्तों के सामने शर्म से कुछ कह नहीं पा रहा था। उसके बाबा अज़ीन को उसके स्कूल लेकर आए थे उनके साथ अरीज भी पीछे खड़ी थी। उनके स्कूल के वाइस प्रिंसिपल उनके साथ प्रिंसिपल ऑफिस से निकले थे और अब उनसे जाने क्या मुस्कुरा मुस्कुरा कर बातें कर रहे थे और साथ में स्कूल के चक्कर भी लगा रहे थे। हदीद जो समझ रहा था, वो वह ना होने की दिल ही दिल में दुआएँ मांग रहा था।
तभी टिया ने कुछ और आगे कहा था।
“और उसके बालों को तो देखो... ऐसा लग रहा है किसी चूहे ने सामने से क़तर दिया है।“ टिया ये कह कर ज़ोर ज़ोर से हसने लगी थी। रोहन को टिया की बात अच्छी नहीं लगी थी। हदीद और आगे कुछ भी सुन ने के मूड में नहीं था इसलिए वह बॉल बास्केट में उछाल कर चुप चाप ग्राउंड से चला गया था।
ये तो आप सब जान ही गए होंगे की ज़मान खान अज़ीन को हदीद के स्कूल क्यों लेकर आए है?...
मगर अब ये जानना बाकी है की हदीद क्या करेगा इस नागहानी मुसीबत का?...
क्या होगा जब उसके दोस्तों को पता चलेगा की ये लड़की कोई और नही बल्कि हदीद की भाभी की बहन है?...
क्या ये जानने के बाद भी हदीद अपनी टीम का कैप्टन रहेगा?...
या उस से ये ओहदा छीन लिया जायेगा?
जानने के लिए बने रहे मेरे साथ और पढ़ते रहें इश्क़ ए बिस्मिल