अपंग - उपन्यास
Pranava Bharti
द्वारा
हिंदी उपन्यास प्रकरण
समर्पित – ‘सुशीला’ की शीलवती प्रकृति और ‘सरला’ की सरलता को अपनी दो माँ सी ननदों को जो एक ही माह में इस दुनिया को छोड़कर परम तत्व में विलीन हो गईं | जो अदृश्य रूप में भी मेरी ...और पढ़ेमें रची-बसी हैं और मेरी दाहिनी, बाईं आँख बनकर सब कुछ देख-दिखा रही हैं! ============ उपन्यास से =========== मेरी आत्मा के भीगे हुए कागज़ पर बेरंगी स्याही से उतर आए हैं कुछ नाम जो बिखरते सूरज के समान लाल हैं और --- मेरे मन !मैं तुझे क्या कहूँ – पागल ? बुद्धिमान ? या और कुछ ? हर पल हर
समर्पित – ‘सुशीला’ की शीलवती प्रकृति और ‘सरला’ की सरलता को अपनी दो माँ सी ननदों को जो एक ही माह में इस दुनिया को छोड़कर परम तत्व में विलीन हो गईं | जो अदृश्य रूप में भी मेरी ...और पढ़ेमें रची-बसी हैं और मेरी दाहिनी, बाईं आँख बनकर सब कुछ देख-दिखा रही हैं! ============ उपन्यास से =========== मेरी आत्मा के भीगे हुए कागज़ पर बेरंगी स्याही से उतर आए हैं कुछ नाम जो बिखरते सूरज के समान लाल हैं और --- मेरे मन !मैं तुझे क्या कहूँ – पागल ? बुद्धिमान ? या और कुछ ? हर पल हर
2— टुकड़ों में बाँटे हुए दिनों को उसने बड़े ही सहेजकर अपने हृदय में समोकर रख लिया था | विदेश में लगभग दस वर्ष रही थी वह ! अचानक ही एक कार-दुर्घटना में माँ-बाबा दोनों की मृत्यु का हृदय ...और पढ़ेसमाचार पाते ही वह स्तब्ध सी हालत में पुनीत को साथ लेकर सदा के लिए भारत वापिस आ गई थी | राजेश तो पश्चिम की रंगत में इतना डूब चुका था कि उसका उस वातावरण से निकल पाना आश्चर्य ही होता | दस वर्ष के प्रवासी जीवन में हर वर्ष ही माँ-बाबा के पास आती रही थी वह ! राजेश
3--- विवाह के पूर्व ही माँ-बाबा को बताना पड़ा था सब कुछ | कुछ नहीं कहा उन्होंने !मूक, मौन यंत्रणा को झेलते हुए दो प्रौढ़ अपना कर्तव्य निबाहते रहे | और ---वह उस छटपटाहट को महसूस करती रही | ...और पढ़ेरही, भीतर की घुटन से लिपटी उसकी आत्मा कुछ छंट जाने की प्रतीक्षा करती रही | परंतु सब व्यर्थ—उसे राजेश के साथ जाना था, गई | सभी पति के घर जाते हैं –विवाह के लगभग एक वर्ष तक भारत ही में थी राजेश के साथ ! उसके प्रयत्न में कोई बाधा नहीं आई थी, वह करता ही रहा विदेश जाने
4--- सूर्य देवता गरमाने लगे थे | जगह-जगह से धूप के टुकड़े सामने पेड़ों के झुरमुट से छिप-छिपकर यहाँ-वहाँ फैलने लगे | भानुमति वहीं बैठी थी | उन टुकड़ों को समेटती –उनकी गर्मी महसूस करती रही --- ये टुकड़ों ...और पढ़ेबंटी धूप और मेरा जीवन कहीं संग-संग ही तो हम जन्मे न थे –छिपते-छिपाते अपनों से और औरों से --- ‘न्यु जर्सी में थी वह उन दिनों !हर रोज़ नई बातें, नई रातें ! शरीर वहाँ तो मन माँ-बाबा के पास ! हर रोज़ पार्टी और पार्टी के समय की ज़बरदस्ती ओढ़ी गई मुस्कान से उसका मुख दुखने लगता \
5----- रात की पार्टी में रिचार्ड की निगाहें उसे हर बार की तरह चुभेंगीं और वह हर बार की तरह कुछ न कर सकेगी | कर सकती यदि राज उसके पक्ष में होता| परंतु अब उसके मस्तिष्क में यहाँ ...और पढ़ेआ गया था कि राज कहीं से भी उसका था ही नहीं | यहाँ तक कि शरीर से भी उसका नहीं, मन तो बहुत दूर की बात है | रिचार्ड की कंपनी की ही कोई कर्मचारी मिस रुक राजेश के बहुत करीब आ चुकी थी | यह उड़ती खबर कब से उसके कानों में आ चुकी थी| वह बात और
--------- भानुमति का मस्तिष्क काम नहीं कर रहा था, क्या करे ? क्या कर सकती है ? उसको छोड़ सकती है किन्तु इतना आसान भी तो नहीं| जिन माँ-बाबा के लाख मना करने पर भी वह अपने आपको राजेश ...और पढ़ेप्रेम में डूबने से रोक नहीं सकी थी, यदि अभी वापिस लौट गई तो माँ-बाबा उसे देखकर ही मर जाएँगे | सोचने-समझने की शक्ति क्षीण होती जा रही थी उसकी ! मानो बदन पर लकुआ पड़ गया हो जो उसे उठने ही नहीं दे रहा था | उसे क्रांतिकारी, झाँसी की रानी के नाम से पुकारा जाता था, आज उसे
7--- “प्लीज –हैव इट ----“ रिचार्ड बीयर लेकर भानुमति के सामने आ खड़ा हुआ था | भानुमति को झुंझलाहट हुई लेकिन उसने चुपके से रिचार्ड के हाथ से ग्लास ले लिया और हाथ में पकड़े इधर-उधर देखती रही | ...और पढ़ेजाने राजेश कहाँ गायब हो गया था ? भानु को आश्चर्य होता था कि जिस कविता के माध्यम से वे दोनों जुड़े थे, वह संवेदना से जुड़ी थी | अचानक राजेश ने कैसे संवेदना को ताक पर रख दिया था ?न जाने राजेश की कविता अब कहाँ खो गई थी ? उसकी संवेदनशीलता ! उसका व्यवहार--–सब ही तो हवा में
8 राजेश ने उससे घर पर तो इस बारे में कोई बात नहीं की थी | अब क्या सुनाए वह ? वज केवल अपने ही लिखे हुए गीत कंपोज़ करती ही | इस मन:स्थिति में उसे कुछ याद भी ...और पढ़ेनहीं आ रहा था | पशोपेश में थी भानु ! उसके स्वागत में तालियों की गड़गड़ाहट बंद होने का नाम ही नहीं ले रही थी | दरअसल, वह अपनी स्थिति को समझने का प्रयत्न कर रही थी | “प्लीज़ भानुमति ---“ रिचार्ड पियानो को पकड़े हुए उसकी ओर झुका आ रहा था | वह एकदम सकपका सी गई| उसके सामने
9--- दिनों की अपनी रफ़्तार होती है, वे हमारी मुठ्ठियों में कैद होकर नहीं चुपचाप बैठे रहते | वे बीतते हैं अपनी मनमर्ज़ी से, रुकते हैं तो अपनी मनमर्ज़ी से और कभी ठिठककर हमें खड़े महसूस होते हैं तो ...और पढ़ेअपनी मनमर्जी से | दरअसल, वे कभी खड़े नहीं होते, उनका तो अपना मूड होता है जिसके अनुसार वे चलते हैं | वे हमें बताकर नहीं चलते, जैसे भानु को बताकर नहीं चलते थे | भानु को समझने की ज़रूरत थी कि आख़िर समय उससे क्या चाहता है ? दिन उससे कैसा रहने की उम्मीद करते हैं ? लेकिन नहीं
10--- दो दिन बीतते न बीतते भानु बहुत मायूस और तनावग्रस्त हो उठी | उसे अपने भारत की याद इतनी शिद्दत से आती कि उसका मन करता वह वहाँ से अभी छलांग भरकर अपने घर, अपनी माँ की गोद ...और पढ़ेचली जाए | वहाँ पर दिन कैसे गुज़र जाते थे, पता ही नहीं चलता था| बाबुल का प्यार, माँ का आँचल सब छोड़कर वह इस देश में जिसके सहारे चली आई थी उसका तो रवैया ही न जाने क्या और कैसे बदल गया था? वहाँ उसकी सहेलियाँ होतीं, उनके साथ घूमना-फिरना, कहकहे, शैतानियाँ, क्या नहीं करती रहती थी | यहाँ
11— भानुमति की बात सुनकर राजेश का जैसे खून ही खौल उठा | “अदनी सी लड़की ! किसे कह रही हो तुम अदनी सी लड़की ? कितना साथ देती है मेरा हर चीज़ में | लोगों में हँसती बोलती, ...और पढ़ेप्यार से बात करती लड़की तुम्हें अदनी सी लगी और तुम ?जिसे लोगों से बात करने का सलीका का भी नहीं है, वह क्या है ?” भानु ने महसूस किया था कि राज कुछ अधिक ही उस लड़की का दीवाना है | उसे समझ में नहीं आ रहा था कि आख़िर उस लड़की में ऐसा था क्या ? अपने आप
12 भानुमति को एक क्षण भर के लिए महसूस हुआ शायद राजेश खिल उठेगा, खुश हो जाएगा, झूम उठेगा पिता बनने की बात सुनकर और आने वाले अतिथि के स्वागत में उसे गले से लगा लेगा | उससे चिपट ...और पढ़ेलेकिन ऐसा कुछ नहीं था | वह उसको ऐसे खड़ा रह गया जैसे उसने किसी भूत को देख लिया हो | और भूत ही उससे कुछ बात सुन रहा हो | "ये सच है ! ओ माइ गॉड ! ये सब क्या कह रही हो तुम ? मुझे जलाने के लिए ही कह रही हो न ?" उसने बौखलाहट में
13 --- रिचार्ड उसकी ओर बेहद आकर्षित था, वह अच्छी प्रकार जानती थी | राज चाहता था कि उसकी पत्नी रिचार्ड से मित्रता कर ले जिससे उसको कम्पनी में और भी बढ़िया पोज़ीशन मिल जाए | उसे तो रिचार्ड ...और पढ़ेबगल में हर दूसरे दिन नया चेहरा दिखाई देता था लेकिन उसने महसूस किया था कि उसकी पत्नी की ओर रिचार्ड कुछ अधिक ही आकर्षित है | क्या कमी थी रिचार्ड को ? एक से एक खूबसूरत उसकी हमबिस्तर बनने को तैयार रहती लेकिन यह भानुमति थी, एक भारतीय स्त्री ! जिसका अपना चरित्र था, अपनी सोच थी और था
14 -- ---------------- रिचार्ड चला गया था वह जैसे बैठी थी, वैसे ही बैठी रह गई थी | आख़िर ये हो क्या रहा था ? उसे सचमुच लगा, वह एक अनजाने देश में, अनजानों के बीच कितनी अकेली खड़ी ...और पढ़े| उसे लगा, वह किसी समुद्र में है और न जाने कितने समुद्री जीव उसके चारों और घूम रहे हैं, वे उसको चीर-फाड़ देना चाहते हैं | अभी और क्या- क्या देखना, सहना होगा| ऐसे भयंकर, गहन, बहावदार समुद्र में से वह कैसे निकलेगी ? उसको तो तैरना भी नहीं आता ठीक से ! उसने रिचार्ड को कभी भी ख़राब
15---- जीवन की कठोर वास्तविकता यह है कि हँसी-ख़ुशी का समय पँख लगाकर जाने किस पुरवाई के साथ निकल लेता है लेकिन तकलीफ़ का, पीड़ा का, अकेलेपन का समय जैसे वहीं ठहर जाता है, धुंध भरे रास्तों में न ...और पढ़ेकहाँ छिपा लेता है समय अपने आपको, फिर उसमें से निकलकर कभी भी आ खड़ा होता है सामने जैसे हमें चिढ़ाना चाहता हो | उस घटना के बाद भानुमति बिलकुल अकेली रह गई थी, एकाकी ! तन और मन दोनों ! स्वयं को सँभालने में असमर्थ पाती हुई सी ! पैट, पत्नी दोनों की मन:स्थिति इतनी तनावपूर्ण हो चुकी थी
16 गर्भावस्था में कोई तो चाहिए था जो भानु को मॉरल सपोर्ट दे सकता | लेकिन कौन ? राजेश को तो उसका चेहरा देखते ही न जाने क्या होने लगता | वह अजीब प्रकार के मुंह बनाने लगता | ...और पढ़ेभानु को भी कहाँ उसका चेहरा देखकर तृप्ति मिलती थी ? केसा पिता था जो अपने ही बच्चे से छुटकारा पाना चाहता था ? कोई भी देश हो, जाति हो अथवा धर्म हो नव-आगंतुक शिशु का सब लोग स्वागत ही करते हैं लेकिन --- कभी-कभी राजेश रुक को घर ले आता जो भानुमति को ज़रा सी भी लिफ़्ट न देती
17 --- माँ-बाबा के पत्र बराबर आते रहते थे | माँ उसे लिखती रहतीं कि वह अपना ध्यान रखे | हाँ, उन्हें राजेश के पत्र न लिखने से शिकायत रहती | भानु टाल जाती, लिख देती कि राजेश बहुत ...और पढ़ेरहता है | माँ को चैन न पड़ता, सोचतीं और लिख भी देतीं की ऎसी क्या व्यस्तता हो सकती है आख़िर जो राजेश अपने पहले बच्चे के लिए भी थोड़ा समय नहीं निकालता, कम से कम उसे माँ-बाबा के साथ अपना उल्लास तो शेयर करना चाहिए था| उन्हें उससे बात करने की लालसा बनी रहती लेकिन जब वह पत्नी से
18 कई घंटों की शारीरिक व मानसिक टूटन के बाद भानु ने एक बालक को जन्म दिया, ए मेल चाइल्ड ! भानुमति की प्रतीक्षा पूरी हो गई थी, उसने चैन की साँस ली | उसके 'लेबरपेन्स' के बीच में ...और पढ़ेबार उससे पूछा गया था कि बच्चे का पिता उसके साथ क्यों नहीं था ? वह कुछ उत्तर नहीं दे पाई थी | डॉक्टर परिचित तो थे ही, डिलीवरी के बाद फिर डॉक्टर ने उससे यही प्रश्न पूछा | "आउट ऑफ़ स्टेशन ---" बोलकर वह चुप हो गई | उसने अपने नन्हे बच्चे का स्वागत किया, अकेले ही, ऑल अलोन
19 भानुमति को समझ में ही नहीं रहा था कि वह रिचार्ड को किस प्रकार से 'ग्रीट' करे ? कैसे उसे धन्यवाद दे? कितने काम दिनों की दोस्ती थी उसकी रिचार्ड के साथ, उसमें भी कोई ऐसा रिश्ता तो ...और पढ़ेनहीं था कि उसे भानुमति का ध्यान रखने की मज़बूरी हो | "आई वॉज़ एक्सपेक्टिंग योर डिलीवरी---" कुछ देर ठहरकर बोला ; यू हैव टू सफ़र एलोन ? नो कम्पेनियन ---" उसने उदासी से कहा | "लाइफ़ इज़ लाइक दिस ओनली ---" भानु बोली "हर आदमी के अंदर एक विलपॉवर होती है जो ईश्वर के रूप में उसकी हैल्प करती
20 ------ रिचार्ड प्रतिदिन एक करीबी रिश्तेदार की तरह भानुमति के पास आता रहा | उसने राजेश को समझाने की बहुत कोशिश की लेकिन राजेश रुक और उसके जैसे लोगों में इस तरह से खो चुका था कि रिचार्ड ...और पढ़ेउसे उस बेहूदी भीड़ में से निकालकर नहीं ला सका | न जाने क्यों रिचार्ड चाहते हुए भी राजेश को अपनी कम्पनी में से निकाल नहीं सका | बहुत बार सोचता लेकिन फिर उसे महसूस होता शायद वह सुधर ही जाए और भानु का बिखरा हुआ घर सँभल जाए | वह भानुमति को बहुत-बहुत पसंद करता था.उसे अपना बहुत अच्छा
21 -- सच बात तो यह थी कि भानुमति रिचार्ड की और अपनी मित्रता को कोई नाम ही नहीं दे पाई थी | मिरांडा को भानु के पास बैठना इतना अच्छा लगता था कि वह कभी भी चली आती ...और पढ़ेफिर बहुत देर बैठकर जाती | मिरांडा अनमैरिड थी और भगवान कृष्ण की दीवानी थी | वह धीरे-धीरे हिंदी बोलने लगी थी और उससे मीरा, कृष्ण और राधा के बारे में बात करती रहती थी | भानु से उसने बहुत सी कहानियाँ सुन ली थीं और वह कहती थी कि वह भी कृष्ण से शादी बनाना चाहती थी | "मैं
22 अपने देश की खुशबू आसमान से ही उसके नथुनों में समाने लगी थी और दिल्ली में उतारते ही उसने एक चैन की साँस ली जिससे उसने अपने भीतर अपने भारत की सुगंध को समेट लिया | हाय, कहाँ ...और पढ़ेमें चली गई थी ? इतना लम्बा समय लग रहा था उसे | भावुकता के मरे उसकी आँखों में आँसू आ गए | माँ-बाबा को रिचार्ड द्वारा भेजी गई सूचना मिल चुकी थी | वे दोनों ड्राइवर को लेकर उसे लेने आ गए थे | भानुमति कुछ ऐसे माँ के चिपट गई जैसे किसी खोए हुए बच्चे को बड़े दिनों
23 बाबा गोद में मुन्ने को चिपकाए बैठे थे | माँ डाइनिंग टेबल पर बैठकर उसका इंतज़ार कर रही थीं | "काकी ---" उसने बिम्मो को छोड़कर महाराजिन काकी का पल्लू पकड़ लिया था | "कैसी हो बिटिया ?" ...और पढ़ेभानु के सर पर हाथ फेरा | "आपकी चाय के बिना कैसी हो सकती हूँ काकी ---?" "तो चलो, आओ चाय पीयो ---" महाराजिन ने कहा | "चलिए, पिलाइए --अरे ! आपने तो क्या-क्या सजा दिया काकी --इतना सारा रोज़ खिलाओगी तो फट जाऊँगी मैं ?" कहकर वह ज़ोर से हँसी और कुर्सी खिसकाकर बैठने लगी ; "ओय ! फिरंगन
24 वह चुपचाप अपने कमरे में आ गई | कमरा देखकर भानु की आँखें फिर एक बार भर आईं | माँ ने जैसे कमरे की एक-एक चीज़ इतनी साफ़ करवाकर, सँभालकर रखवाई हुई थी जैसे सब कुछ नया हो ...और पढ़ेअपने कमरे की लॉबी में खड़ी रहकर वह बगीचे की सुगंधित पवन को फिर से अपने फेफड़ों में भरने लगी | उसे महसूस हो रहा था कि कमरे की छुअन को, उसकी सुगंध को पूरी अपने भीतर उतार ले | रात भर वह अपनी किताबें, रेकॉर्ड्स, पेंटिग्स, कपड़ों को सहलाती रही | उन्हें छूती रही। गले लगाती रही | उसे
25 उसने पाँच मिनट में ही अपने लम्बे बालों को धो भी लिया था जैसे तैसे और उनमें से पानी छतराती हुई नीचे उतर रही थी | "कितने प्यारे हैं मेरी भानु के बाल ---अच्छा है कटवाए नहीं --" ...और पढ़ेने उसके बालों को प्यार से निहारते हुए कहा | "अरे ! आपने कितनी मेहनत की है मेरे बालों पर, कटवा कैसे लेती ?" कुछ इतराकर वह माँ के गले लिपट गई | उसे याद आ गया कि उसके बाल कटवाने के लिए राज ने उस पर कितना ज़ोर डाला था लेकिन उसने कटवाकर ही तो नहीं दिए | जब
26 -------- बाबा अपनी पूरी फॉर्म में आने लगे थे धीरे-धीरे | भारतीय संगीत व सभी कलाओं के प्रेमी बाबा उसके साथ पहले कितनी चर्चाएं किया करते थे | उसे कत्थक नृत्य व शास्त्रीय संगीत सीखने वे ...और पढ़ेउसके साथ जाते थे | कभी, कोई बहुत व्यस्तता आ गई हो तो बात अलग है किंतु वे चाहते थे कि वे अपनी बिटिया के साथ जितना रहा सकें, रहें | उसको साथ जुड़े हुए दोस्तों की कारी गरी देखने का, उन्हें सुनने का। उनको नृत्य करते देखना, पेंटिंग देखना यहाँ तक कि बेटी की रचनाएँ सुनना भी उनके प्रिय
27 --- माँ -बाबा उसके पास जाने ही वाले थे लेकिन बाबा की तबियत खराब होने से उन दोनों का जाना कैंसिल हो गया था | "बताओ, हो न आते बच्चों के पास, इतनी बदपरहेज़ी करते रहते हो | ...और पढ़ेन तबियत खराब हो गई ?" माँ ने बाबा पर नाराज़गी दिखाते हुए कहा | भानुमति को कितनी तसल्ली मिली थी जब उसने सुना था कि माँ -बाबा नहीं आ पाएँगे |जबकि बाबा की तबियत के बारे में जानकर उसकी जान भी निकल गई थी | क्या करती ? वहाँ जैसा वातावरण था उसके दिल की धड़कनें तो इतनी बढ़