अपंग - 28 Pranava Bharti द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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अपंग - 28

28 

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  भानु का मन फिर से कितना भारी हो गया था। न बाबा के पास से जाने का मन था और न ही उनके पास बैठने का साहस ! बाबा उसके सर पर बार-बार हाथ फिराकर जैसे उसे शांत करने की चेष्टा करते रहे | जैसे वे जानते थे कि उसके भीतर आखिर चल क्या रहा था ? आखिर पिता थे, वो भी एक स्नेहिल मित्र पिता --कैसे न समझते ? इतना तो माँ-बाबा दोनों ही समझते थे कि उनकी बिटिया के मन में बड़ी उहापोह है !

लाखी नाश्ता करके आ गई थी | भानुमति उसे लेकर ऊपर अपने कमरे में आ गई | 

छुटकू पुनीत का पालना माँ ने अपने कमरे में रखवा लिया था | मुन्ने के भारत आने से पहले ही माँ ने मुन्ने के लिए एक ट्रेंड आया ढूंढकर रख ली थी | वह भी आज आने वाली थी | अब उनकी बेटी बिलकुल निश्चिन्त थी और स्वतंत्र भी | जब चाहे कहीं आए-जाए, जब चाहे सोकर उठे, जब चाहे खेले-कूदे और जब चाहे सहेलियों के साथ पार्टी और शॉपिंग करे | हाँ, और जब चाहे अपने ऑल टाइम फ़ेवरेट संगीत -नृत्य के कॉन्सर्ट्स में जाए | उसे कोई चिंता नहीं होनी चाहिए बस ---वहाँ बेचारी अकेले ही सब-कुछ संभालती होगी | 

"दीदी! पहले आपका कमरा संगवा दूँ ---" ऊपर आते ही लखी बोली | 

"नहीं, हो जाएगा सब--पहले तू ये बता कैसे रह रही है ? खुश तो है? और तेरा आदमी ---?" वह लाखी के बारे में बहुत कंसर्न थी, हमेशा से ही | 

"क्यों दुखी होना है दीदी जानकर ?" लाखी ने पलकें भिगो लीं थीं | 

"तू क्या समझती है, तू नहीं बताएगी तो मुझे कुछ भी पता नहीं चलेगा ?"

"ऐसा मैं न समझ सकती हूँ और कहने का तो सवाल ही नहीं है |" वह अपनी साड़ी के पल्लू में आँख, नाक पोंछ रही थी | 

 "तो --बता मुझे क्या हुआ था ?" 

"आपकी चिट्ठी आती थी अमरीका से तो आप हमेशा लिखती थीं कि अभी मेरा ब्याह न करो, मैं आऊंगी तब ---पर माँ को तो पैसे की पड़ी थी | उसे कहाँ फरक पड़ रहा था कि उसकी 15 साल की बेटी चालीस साल के आदमी के साथ कैसे रहती होगी?" लाखी का बदन थर थर कांपने लगा और सुबकियों में जैसे बाढ़ आ गई | 

"बड़ी मुश्किल से मिली होगी इस उम्र में उसे तू--तब भी तेरे साथ अच्छा नहीं रख सका ? उसकी बेटी से भी छोटी बच्ची ! "भानु को क्रोध आ रहा था लेकिन उसके क्रोध का क्या अचार पड़ना था ? उसने अपने जीवन में कौनसे मुस्कानों, खुशियों के वृक्ष लगा लिए थे ? आखिर वह तो अपने आप मनमर्ज़ी से ब्याह कर गई थी | 

"कहाँ दीदी, उसे क्या फरक पड़ता है ? दो ब्याह तो कर चुका है पहली --भाग गई, एक मर गई |उसे क्या फरक पड़ा ? अब और छोटी मिल गई उसे |"लगातार बहते आँसुओं से उसे गाल तर हुए जा रहे थे | 

"तेरे साथ कैसे रहता है ? वैसे करता क्या है ?" 

"ड्राइवर है दीदी, पैसा खूब है | मुझे खाने-कपडे की कोई कमी नहीं है, जहाँ भी जाता है, वहीं से ढेर सारी चीज़ें लाता है लेकिन ---" वह अचानक चुप हो गई | 

"लेकिन क्या ?--बोल न !"

"पता नहीं, कोई रिश्ते की भाभी हैं, उनके पास पड़ा रहता है | मेरे पास तो बदन नोचने आता है ---" कहकर लाखी ने अपना मुंह घुटनों में छिपा लिया | 

भानु ने उसे अपनी गोदी में समेट लिया | इतनी स्नेहिल छुअन से वह फूट-फूटकर रो पड़ी | 

" चुप हो जा, कोई न कोई हल निकल ही जाएगा, चल आँसु पोंछ ले | मेरी बहादुर लाखी है तू ---" भानु ने उसे चुप करते हुए कहा | 

लेकिन वह खुद ही सोच रही थी, क्या हल निकल जाएगा ? उसका कोई नज़र आ रहा है क्या? ज़िंदगी शब्दों के खेल खिला रही है, क्या कुछ बदल पा रहे हैं हम ? भानु सोच रही थी और लाखी को सहलाते हुए अपने और राज के रिश्ते को सोच रही थी |