अपंग - 27 Pranava Bharti द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
श्रेणी
शेयर करे

अपंग - 27

27

---

माँ -बाबा उसके पास जाने ही वाले थे लेकिन बाबा की तबियत खराब होने से उन दोनों का जाना कैंसिल हो गया था |

"बताओ, हो न आते बच्चों के पास, इतनी बदपरहेज़ी करते रहते हो | तभी न तबियत खराब हो गई ?" माँ ने बाबा पर नाराज़गी दिखाते हुए कहा |

भानुमति को कितनी तसल्ली मिली थी जब उसने सुना था कि माँ -बाबा नहीं आ पाएँगे |जबकि बाबा की तबियत के बारे में जानकर उसकी जान भी निकल गई थी | क्या करती ? वहाँ जैसा वातावरण था उसके दिल की धड़कनें तो इतनी बढ़ गईं थीं कि मन में बार-बार यही मन रही थी कि किसी प्रकार माँ-बाबा का आना कौंसिल हो जाए लेकिन आखिर को तो पिता थे उनकी तबियत खराब होने की बात सुनकर तो उसके होश ही उड़ गए थे लेकिन करती क्या ? अपनी परिस्थिति में फँसी वह किसी से कुछ कहने के लायक तो थी नहीं |

"माँ, आपके आने की बात सुनकर तो राजेश बहुत ही खुश हुए | पर बाबा की बीमारी की बात जानकर हम इतने परेशान हो गए थे, हमारी तो साँस ही निकल गई थी | हमारी तो जैसे साँसें ही रुक गईं थीं माँ से बात करके --"

"तेरी माँ तो यूँ ही घबरा जाती है | भला कुछ हुआ मुझे ? माइनर सा हार्ट अटैक ही तो था | " बाबा ने कहा |

"हाँ, हार्ट अटैक तो जैसे छोटी सी बात है ?" भानु चिढ़ गई | सच तो यह था कि वह मन से चाहती थी कि माँ-बाबा उसके पास आकर कुछ दिन रहें लेकिन उस वातावरण में कैसे माँ-बाबा को परेशान कर सकती थी ? माँ के बारे में सुनकर भानु चुप न रह सकी |

"हाँ, वो औरत है न और आप लोग समझते हैं कि हर औरत तो यूँ ही घबरा जाती है ---करैक्ट ?" भानु पटाक से बोल उठी |

वह पहले की तरह बोली तो बाबा और माँ को बहुत अच्छा लगा | इस बार उसके आने के बाद वे दोनों ही उसके प्रति थोड़ा चिंतित तो थे ही, न जाने क्या चल रहा है उनकी बिटिया की ज़िंदगी में ? आज वह कुछ ऐसे ही बोली जैसे पहले पटाक सी बोल उठती थी |

"हूँ--अब आई पहले वाली भानुमति बिटिया के रूप में, अब तक तो बुज़ुर्ग सी बनी बैठी थी |

" अरे बाबा, कितने दिनों बाद आई हूँ, कितने दिनों बाद अपने भारत की ख़ुशबू मेरे भीतर भरी है -- कुछ तो फ़र्क पड़ेगा ही न ?"उसकी उदासी उसके शब्दों से निकलकर सामने आ ही गई |

" तो चले आओ न बेटी तुम लोग, कितने अकेले पद गए हैं हम लोग ! जानते हो, विदेश जाने की उन लोगों को ज़रुरत होती है जिनके पास यहाँ पर कुछ खाने -कमाने के लिए नहीं होता | " बाबा की रूँआसी आवाज़ भानु के दिल में सीसे सी उतर गई |

"बाबा---" कहते हुए भानु अपने पिता के सीने से चिपट गई | दोनों की आँखों में आँसुओं की बाढ़ भर आई थी जिसको वे दोनों ही छिपाने की कोशिश कर रहे थे लेकिन ऐसे कहीं पीड़ा छिपाई जा सकती है | 

"मैं--मैं --इस बार राजेश को समझने की पूरी कोशिश करूंगी |" रोते हुए भानु ने कहा |

वह जानती थी कि कितना बड़ा झूठ बोल रही है | अपने माँ-बाबा की छोटी सी इच्छा पूरी नहीं कर सकती थी वह !कैसा विवाह किया था उसने ? बाबा ने उसके सर पर फिर से सर पर हाथ फिराया तो फिर से उसका मन बाबा से चिपटकर रोने को हो आया |