अपंग - 24 Pranava Bharti द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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अपंग - 24

24

वह चुपचाप अपने कमरे में आ गई | कमरा देखकर भानु की आँखें फिर एक बार भर आईं | माँ ने जैसे कमरे की एक-एक चीज़ इतनी साफ़ करवाकर, सँभालकर रखवाई हुई थी जैसे सब कुछ नया हो | अपने कमरे की लॉबी में खड़ी रहकर वह बगीचे की सुगंधित पवन को फिर से अपने फेफड़ों में भरने लगी | उसे महसूस हो रहा था कि कमरे की छुअन को, उसकी सुगंध को पूरी अपने भीतर उतार ले |

रात भर वह अपनी किताबें, रेकॉर्ड्स, पेंटिग्स, कपड़ों को सहलाती रही | उन्हें छूती रही। गले लगाती रही | उसे पता ही नहीं चला कब वह उन सबके बीच में जैसे उनका ही एक भाग सा बनकर सो गई | उसे पता ही नहीं चला था, कब उसकी ऑंखें लग गईं थीं |

पता नहीं कब तक वह ऐसे ही पड़ी रहती यदि सुबह-सुबह आकर लाखी उसका दरवाज़ा न पीटती ! माँ ने बहुत समझाया, नीचे से उनकी आवाज़ अभी तक आ रही थी कि उसे दरवाज़ा न पीटे लेकिन वह कहाँ सुन रही थी किसी की ? बस, दरवाज़ा पीटे ही जा रही थी | भानु ने एक अँगड़ाई ली और देखा वह अपनी सब चीज़ों के बीच कार्पेट पर पड़ी थी | बड़ी निश्चिन्त सी लग रही थी आज वह अपने मन से, उठकर उसने दरवाज़ा खोल दिया |

"दीदी ---" लाखी उससे चिपट गई |

माँग में दूर तक सिंदूर भरे, हरी साड़ी में उसके सामने लाखी थी जो उससे चिपटकर आँसुओं से अपने गाल तर कर रही थी | कितनी बड़ी लगने लगी थी लाखी एक ब्याहता औरत बनकर !

"इत्ती बड़ी हो गई लाखी ?" फिर उसकी कमर सहलाते हुए बोली ;

"कैसी है?"

"आप बताइए दीदी, आप कैसे हैं ?"

"देख, मैं तो कितनी अच्छी हूँ ----" फिर चौंककर बोली

"मुन्ना से मिली तू ?"

"नहीं, कहाँ है ? मैंने सोचा आपके पास होगा |" उसने अपनी साड़ी से मुँह पोंछते हुए कहा |

"नहीं, मेरे पास अब उसका क्या काम ---माँ हैं न तो मैं चिंता क्यों करूँ ?" वह हँसकर बोली |

"हाँ, वो तो है ---"

माँ के सीढ़ियाँ चढ़ने की आवाज़ आ रही थी | ऊपर आकर मुन्ने को उसकी गोदी में देते हुए बोलीं ;

" कैसी तू माँ है और कैसा तेरा ये बेटा है ? दोनों को एक-दूसरे की परवाह ही नहीं है, ले |" कहकर उन्होंने पुनीत को उसकी गोदी में पकड़ा दिया |

"अरे माँ, आपके होते हुए मुझे इसकी चिंता करनी पड़े ? ये क्या बात हुई ? "उसने बेटे का मुख चूम लिया--

"माँ, आप ही ले जाइए इस पाजी को --"

"जब तुझे इसकी चिंता नहीं है तो हम भी क्यों करें | तेरे बाबा तो वैसे भी इसे छोड़ ही नहीं रहे |" कहकर वे उसे लेकर नीचे जाने लगीं |

"मैं तो मिल लूँ अपने मुन्ना से ---" लाखी ने भागकर उसे गोदी में ले लिया |

"तो मैं जाऊँ ? बाबा नाश्ते के लिए बैठे हैं | आ रही है न ?"

" मैं लेकर आती हूँ इसे ---" लाखी ने कहा |

"नहीं, तू इसको माँ को दे दे, मेरे साथ दो मिनट बैठ |"

"गुपर चुपर बाद में कर लेना, बाबा बैठे हैं नाश्ते के लिए |"

"पाँच मिनट में बस ---"

"खूब जानती हूँ तुम दोनों की पाँच मिनट, जल्दी आओ |" माँ ने मुन्ना को लाखी की गोदी से लिया और नीचे चली गईं |

"क्या दीदी ?" लाखी को समझ में नहीं आ रहा था आखिर क्यों दीदी उसको रोक रही थीं ?

भानु ने अपनी अटैची में से एक रंग-बिरंगी साड़ी निकली और उसके हाथों में पकड़ा दी | साड़ी देखकर लाखी का रोना फूट गया |

"क्या हुआ ? पसंद नहीं आई ?" भानु ने पूछा तो उसकी आँखों में मुस्कान भर गई |

"क्या बात कर रही हो दीदी ? इतनी सुन्दर साड़ी है ---"

"तो, रो क्यों रही है ?"

"आपको इतनी याद रहती है मेरी, जब भी कुछ वहां से भेजती हैं, मेरे लिए भी कुछ न कुछ होता ही है |"

"ये तो खुशी की बात है और तू रो रही है ?"

"यहाँ इतना प्यार मिलता है और वहाँ ---चलो दीदी बाबा इंतज़ार कर रहे हैं | "

उसने अपनी बात पलट दी थी |

"क्या कह रही थी ? बता तो सही ---"

"नहीं बताऊँगी तो कहाँ जाऊँगी दीदीअभी नीचे चलिए, बाबा इंतज़ार कर रहे हैं न !"

"तू चल, मैं अभी आई --माँ को हैल्प कर देना |

लाखी को नीचे भेजकर वह जल्दी से कपडे लेकर बाथरूम में चली गई | उसे पता था बाबा उसकी इंतज़ार में बैठे रहेंगे |

पाँच मिनट में वह फ़्रेश होकर निकल आई और शोर मचती हुई जीने से नीचे उतर गई |