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भानुमति ने फ़ैक्ट्री के नं डायल किया |
"प्लीज़ कनैक्ट मी टू मि. दीवान |" उसने ऑपरेटर से कहा |
"आप कौन बोल रही हैं ?" ऑपरेटर ने क्या पूछ लिया कि भानु गुस्से से लाल-पीली हो आई |
"मैं कोई भी हूँ --आप उनकी टेबल पर फ़ोन दीजिए ---"
"जी--जी --मैम ---प्लीज़ होल्ड ऑन ---जस्ट वन मिनिट ---"
"लीजिए, बात कीजिए ---" ऑपरेटर ने फ़ोन मि. दीवान की टेबल पर देकर भानु से कहा |
"मैं बोल रही हूँ भानुमति मि. दीवान ----"
"अरे ! बिटिया, आप मुझसे बिना मिले चली गईं ?"
"तभी तो आपसे बात कर रही हूँ --आप नहीं थे जब मैं बाबा के साथ आई थी --"
"हाँ ---" दीवान ने धीरे से कहा |
"तो कब मिल रहे हैं ? आज आइए न शाम को "
"ठीक है, फ़ोन रखता हूँ ---" मि. दीवान की तरफ़ से एकदम फ़ोन बंद कर दिया गया |
भानुमति ने फिर से फ़ोन मिलाया, इस बार सक्सेना की मेज़ पर उसके प्राइवेट फ़ोन पर बात की उसने |
"आई एम भानुमति मि. सक्सेना --प्लीज़ सैंड ऑल द रेकॉर्ड्स विडी मि. दीवान --" भानुमति ने सक्सेना को ऑर्डर दिया |
"मि. दीवान ----व्हाय --?"
"देयर इज़ नो क्वेश्चन --व्हाय ?आई वॉन्ट टु मीट हिम | डु यूं नो, ही इज़ द सीनियर मोस्ट पर्सन ऑफ़ द फ़ैक्ट्री ---यू मस्ट बी एवेयर ऑफ़ इट ---" भानुमति बड़ी ठहरी हुई गंभीर आवाज़ में बोल रही थी |
ऐस महसूस हुआ जैसे सक्सेना सन्न सा हो गया हो वह चुपचाप फ़ोन कान पर लगाए बैठा रहा | भानु को उसकी साँसों की आवाज़ सुनाई दे रही थी |
"देखिए, मि.सक्सेना, डोंट टेक इट अदरवाइज़ ---आप ही बताइए, नए कर्मचारियों की जगह लंबे अर्से से काम करने वाले कर्मचारियों से पूछताछ होनी चाहिए न--- ?"
"जी --जी बिलकुल ठीक कहा आपने --" सक्सेना के मुँह से जैसे खुशी फूट गई हो |
भानुमति घर पर बैठे हुए सक्सेना का चित्र देख रही थी | उसके चेहरे पर मुस्कान खेल गई | कैसे डबल स्टैंडर्ड लोग होते हैं न !
"थैंक्स मि. सक्सेना ---" कहकर भानुमति ने फ़ोन रखा दिया |
शाम को मि. दीवान सारे रेकॉर्ड्स के साथ भानुमति के सामने थे | उनके सामने कोई वर्मा भी था |
"मैंने तो सिर्फ़ आपको बुलाया था ----" भानु ने वर्मा की तरफ़ देखते हुए प्रश्नवाचक दृष्टि उस पर डाली |
"वो --बेटी ---"
भानुमति ने महसूस किया दीवान कुछ कहने से हिचकिचा रहे थे |
"मैं इनको नहीं जानती, आपसे ही सवाल करूँगी ---" भानुमति ने सख़्त शब्दों में कहा |
"मैडम ! आपने डैडी जानते हैं मुझे ---मैं वर्मा ----"
"बाबा का इन बातों में कोई काम नहीं है मि. वर्मा ---ही इज़ ऑन रेस्ट ---आप चाहें तो बाहर वाले कमरे में बैठें --आपके लिए चाय वगैरह वहीं भिजवा दिया जाएगा --"
भानुमति ने सख़्त शब्दों में कहा | उसे बिलकुल अच्छा नहीं लग रहा था कि सक्सेना ने अपने सी.आई. डी को क्यों भेज दिया था !
वर्मा ने भानुमति की आवाज़ में छिपी नारगी भाँप ली थी | वह चुपचाप नीची नज़रें किए बाहर वाली बैठक में चला गया जो फॉर्मल लोगों के लिए थी | बाहर फ़ैक्ट्री का ड्राइवर भी था, दोनों को ह चाय-नाश्ता भिजवा दिया गया | वर्मा का मूड खराब हो गया था उसे जिस काम के लिए भेजा गया था, वह उसमें असफ़ल हो गया था|लेकिन कुछ कर नहीं सकता था |
भानुमति अंदर के सिटिंग-रूम में मि. दीवान के साथ थी |
"सॉरी दीवान अंकल ---" भानु ने मि. दीवान से माफ़ी माँगी |
"मैं तो घबरा गया था ---" उन्होंने कहा | "
"कमाल करते हैं आप --कितना घबरा रहे थे कि आपकी आवाज़ भी थी से नहीं निकल रही थी ---"मि.दीवान ने एक लम्बी साँस लेकर कहा |
"मेरे घर जाने के बाद बात करतीं तो अच्छा था ---" उन्होंने कहा |
"इतने पेशेंस ही कहाँ रह गए थे | फ़ैक्ट्री में आप थे नहीं | माँ-बाबा से पूछा कि सक्सेना कैसे जनरल मैनेजर बन गया ? | मुझे तो इन सबमें पूरा गैंग होने की आशंका नज़र आ रही है | "
"तुम तक रही हो बेटी, ये पूरा गैंग ही है | अब भी तुमने समय पर पकड़ लिया है | मैंने तो सेठ जी को कई बार इशारा किया पर उनकी तबियत ठीक न होने से और ---सक्सेना पं सदाचारी का आदमी है और सदाचारी का तुम्हारी माता जी पर बहुत प्रभाव है ---" कहकर मि. दीवान चुप हो गए |