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अपंग - 65

65

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जैनी बाहर से 'बाबा'--'बाबा' पुकारती रह गई उसे बच्चे को समय पर नाश्ता कराना होता था लेकिन वह तो उन दोनों के बीच में ऐसा मस्त था जैसे उसने कोई बड़ा सा खिलौनों, चॉकलेट्स या आइसक्रीम के साथ अपने प्यारे दोस्तों का खज़ाना पा लिया हो |भानु और रिचार्ड उसे इतना ख़ुश देखकर तृप्त हो रहे थे |एक बच्चे को क्या चाहिए ? प्यार, दुलार---

लैंड-लाइन की आवाज़ सुनकर कूदता-फांदता पुनीत कोने में रखी कॉर्नर टेबल पर रखे फ़ोन के पास जा पहुँचा | वह जानता था इस फ़ोन पर अधिकतर उसके नाना-नानी का फ़ोन आता था |

"हलो--नानू---" बच्चा चहका | आज तो उसे वह सब कुछ मिल रहा था जो वह चाहता था |

"आई एम दीवान ---" उधर से आवाज़ आई |

पुनीत पशोपेश में पड़ गया | रिचार्ड ने उसको असमंजस में देखा तो उसकी ओर बढ़ गया |

"हू इज़ दैट साइड ?" उसने बच्चे के हाथ से रिसीवर ले लिया था |

" रीच इंडिया इमीडिएटली ---" उधर से आवाज़ आई | वह उस आवाज़ को पहचानता नहीं था |

"हू इज़ कॉलिंग ?"

"दीवान दिस साइड ---भानुमति को जल्दी इण्डिया भेज दीजिए ---"

"व्हाट हैपेंड ?" रिचार्ड को लग ही रहा था कि कुछ तो गंभीर मसला है |काँपते ह्रदय से वह दीवान से बात करने लगा | लगभग दो/तीन मिनट के बाद उसने रिसीवर रख दिया और थके हुए क़दमों से सोफ़े पर आकर बैठ गया

"कौन था?क्या हुआ ?" भानु ने रिचार्ड को असमंजस में देखकर पूछा |

" हम्म -- " कहकर वह चुप हो गया | शायद जो उसने सुना था, उससे वह परेशान हो गया था | शायद समझ नहीं पा रहा था कि भानु को कैसे बताए ? बताना तो होगा ---

"ऐसा तो क्या हुआ है रिचार्ड ?एवरीथिंग ओके ?" भानु का मन जाने क्यों अचानक घबराने लगा |

"दैट वॉज़ मि. दीवान ?" उसने धीरे से कहा |

"मि. दीवान --? व्हाट हैप्पंड ?" अचानक ही उसका दिल धड़कने लगा |

पता चला माँ-बाबा कार से मसूरी जा रहे थे, उनका एक्सीडेंट हो गया था और वे दोनों ही हॉस्पिटल में थे |

भानुमति बिलकुल टूट गई लेकिन उसके पास रिचार्ड था जिसने उसे संभाला हुआ था, जो दौड़-भाग कर रहा था |पुनीत उन दोनों को देखकर सहम गया | अभी तो वह कितना खुश था, अचानक क्या हो गया ?बच्चा कहाँ समझ सकता है कि जो होना होता है, वह कभी भी, कहीं भी हो ही जाता है |पशोपेश में पड़ा, घबराया हुआ बच्चा अब ऐसे परेशान हो रहा था जैसे उसकी हँसी-खुशी के डिब्बे की चाबी अचानक किसी ने उसके हाथ से छीनकर कहीं दूर फेंक दी हो | बात न समझने पर भी उसका चेहरा पीला पड़ने लगा था |

रिचार्ड ने जैनी को आवाज़ दी और उसे वहाँ से ले जाने को कहा | वह वहाँ से जाना नहीं चाहता था लेकिन अचानक उदास हुए माहौल ने उसकी खिलखिलाहट पर चुप्पी की टेप लगा दी थी जैसे ----जैनी का हाथ पकड़कर, पीछे की ओर देखता हुआ वह लगभग पैर घसीटते हुए जैनी की ऊँगली पकड़े वहाँ से चला गया |

एक तरफ़ राजेश वाला केस था, दूसरी ओर भारत जाना ज़रूरी था |वहाँ के न तो कानून इतने लचर थे और न ही कोई आसान रास्ता था कि भानु आसानी से भारत आ सकती | रिचार्ड ने बड़ी मुश्किल से वकील से बात करके कोर्ट से इज़ाज़त ली | वकील को कुछ ज़रूरी कागज़ात पर भानु से हस्ताक्षर करवाने ज़रूरी थे | उसने अपना काम किया और भानु व पुनीत को बड़ी मुश्लिल से परिस्थितिवश भारत जाने की इज़ाज़त मिल सकी |

कमाल की बात थी, जब भानु का वकील राजेश से जाकर मिला वह बच्चे के बारे में साफ़ मुकर गया | उसने कहा कि उसे बच्चा-वच्चा नहीं चाहिए | तब उसने बच्चे के सामने आखिर क्यों इतना बड़ा हंगामा किया था?शायद उसे पता चल गया था कि उसका केस काफ़ी कमज़ोर था और भानु के पिता का एक भी पैसा उसे मिलने के आसार नहीं थे | बच्चे की मुसीबत वह क्यों फिर अपने गले में ढोल की तरह लटकाता ? रिचार्ड ने जिस वकील को केस दिया था वह उसने ऐसा ट्विस्ट किया कि राजेश के पसीने छूटने लगे | शायद इसीलिए उसने बच्चे को अपने साथ ले जाने का ड्रामा बंद कर दिया होगा जिससे काफ़ी बात संभल गई और वकील ने कुछ तरकीब लगाकर भानु और बच्चे को भारत भिजवा दिया |

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