अपंग - 66 Pranava Bharti द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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अपंग - 66

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रिचार्ड ने कितनी मेहनत लगाकर भानु और पुनीत को भारत भिजवा तो दिया था लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी | भानु को माँ-बाबा का शरीर ही मिल सका था | पुनीत बार-बार पूछता, कुछ न कुछ ऐसे सवाल करता जो भानु को और भी परेशान करते क्योंकि वह बच्चे को उन बातों का उत्तर देने में असमर्थ थी, परेशान तो ही ----|

रिचार्ड भी दो दिन बाद आ गया था और उस अनजाने वातावरण में उसने अपने आपको सारे क्रियाकर्म करने के लिए तत्पर कर लिया था | राजेश के स्थान पर एक गोरे विदेशी को देखकर लोगों की आँखों में प्रश्नचिन्हों का उग जाना स्वाभाविक था लेकिन किसी का भानु से कुछ भी पूछने का साहस नहीं था | वह चुपचाप माँ-बाबा के सभी रीतिरिवाज़ पूरे करती रही |

रिचार्ड वकीलों से और कोर्ट से भी बात करके आया था | उसने भानु को बताया कि वह चिंता न करे, सब ठीक हो जाएगा | भानु की उदासी बढ़ती जा रही थी | उसने रिचार्ड से कहा कि जिन माँ-बाबा के डर से वह अपनी सारी पीड़ा उनसे छिपाकर बैठी थी, उनसे छिपती रही थी, आख़िर में उन्हें ही खो दिया | इससे तो वह इतने समय माँ-बाबा के पास ही न रह जाती, बेकार ही यहाँ-वहाँ भटकती रही | आख़िर वह किसको सुख दे सकी, किसका सुख देख सकी ? अपने जनक-जननी का, राजेश का ? रिचार्ड का? पुनीत का ? या खुद अपना ? अब तो सब कुछ समाप्त हो चुका था, सब कुछ समाप्त हो चुका था | सारी परिस्थिति ही उलट-पुलट हो चुकी थी |ज़िंदगी ---शून्य के कगार पर आ गई थी |

रिचार्ड इस बार पंद्रह दिनों तक उसके रहा था | उसने सदा उसे दिलासा दी थी हुए वह उस वास्तविकता से परिचित ही थी -- वह हमेशा ही उसके दिल से, उसके प्यार से, उसकी केयर से वाकिफ़ थी कि रिचार्ड उसके साथ है | उसे रिचार्ड अब कहाँ दूर लगता था लेकिन अब फिर से परिस्थितियाँ उनके बीच दूरी बनाने पर तुली हुईं थीं | वह जानती थी कि ये निर्णय हमारे हाथ में नहीं होते | ये कई तो दैवीय निर्णय होते हैं जिनसे हम बाबस्ता भी नहीं होते |

इस बात से भी वाकिफ़ थी कि रिचार्ड सच में उसके साथ था, और रहने वाला था जबकि उनके रिश्ते का कोई नाम नहीं था | कुछ बार बेनामी रिश्ते बहुत मुकम्मल होते हैं, बहुत पक्के !

भानु के केस के बारे में लगभग रोज़ ही उसकी रिचार्ड से बातें होतीं | वकील ने बताया था कि एक बार तो भानु और बच्चे को अमेरिका आना ही होगा, वह जल्दी ही उसके केस का फैसला करवा देगा | भानु पर अचानक ही फ़ैक्ट्री का पूरा बोझ आ पड़ा था | क्या किया जा सकता है ? एक छोटी सी ख़ुशी की आशा सी उसके मन में फूटी थी लेकिन यह इतना बड़ा गाज --उसकी ज़िंदगी को तहस-नहस कर देने के लिए बहुत अचानक अचंभित कर देने वाला था |