अपंग - 67 Pranava Bharti द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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अपंग - 67

67

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अपने पति के गुज़र जाने के बाद लाखी यहीं माँ -बाबा के पास रहने लगी थी | वह उन दोनों का सगी बेटी की तरह ध्यान रखती और पढ़ाई करती | भानु माँ से उसका पूरा ध्यान रखने को कहकर गई थी और उसे पढ़ाई भी करनी है, यह बात उसे अच्छी तरह समझा गई थी |

लाखी उसकी इतनी अपनी थी कि उसने कभी उसका कहना नहीं टाला | उसे मालूम था कि भानु दीदी कभी उसका साथ नहीं छोड़ सकती | अगर उसका कोई है तो भानु दीदी ही हैं | वह खूब मन से पढ़ाई करती और माँ-बाबा की सेवा करती |

लाखी को इस बात का बहुत दुःख था कि माँ-बाबा के साथ वह और ड्राइवर अंकल भी थे | ड्राइवर अंकल को थोड़ी सी चोट आई थी, दो-चार दिनों में उन्हें अस्पताल से छुट्टी मिल गई थी लेकिन इसको गाड़ी ने दूर फेंक दिया था और यह ऎसी जगह जाकर गिरी थी कि कुछ खरोंचों के अलावा इसके कोई गंभीर चोट नहीं आई थी | वह भानु के पास बैठी रोती रहती कि उसका भाग्य कितना ख़राब है, माँ-बाबा की जगह अगर वह चली जाती तो किसी को क्या फ़र्क पड़ता लेकिन-

"तू पागल है क्या ? तेरे हाथ में था क्या कुछ ? जो होना होता है, वह होता ही है | तुझे अपनी पढ़ाई पर ध्यान देना है।, समझी ?" भानु उसे जब-तब समझाती रहती |

मि. दीवान ने पहले से ही फ़ैक्ट्री की सारी ज़िम्मेदारी अपने ऊपर ले रखी थी | बाबा जब भी उससे बात करते दीवान की प्रशंसा ही करते, अपनी बिटिया को भी कहते कि वह न आई होती तो सब कुछ गड़बड़ा ही रहा था | वे अपने सभी कर्मचारियों से संतुष्ट थे और अपने आपको बहुत फ्री महसूस करते थे | इसीलिए जब भी मन होता पत्नी को लेकर ड्राइवर के साथ आस-पास की जगहों पर चक्कर मारने चले जाते | लाखी सदा ही उनके साथ रहती और उन दोनों का सारा काम सँभालती | उन्हें ऐसा महसूस ही नहीं होता था कि उनकी भानु उनके पास नहीं थी |

परिस्थितियाँ कितनी तेज़ी से बदलती हैं, आदमी कहाँ जानता है ? सभी नाटक देखते रह जाते हैं और पात्र अपना रोल निभाकर आगे बढ़ जाते हैं | भानु ने फ़ैक्ट्री जाना शुरू कर दिया था, रिचार्ड से रोज़ ही बातें होतीं रहतीं | कभी वह परेशान होती, वह तुरंत ही पूछता--

"शैल आई कम भानु ? प्लीज़ डोंट हेज़ीटेट इफ़ यू नीड मी ----" वह कहता |

बता देगी जब ज़रुरत होगी, भानु को यही जवाब सूझता |

"अंकल ! आपसे कुछ पूछना चाहती थी ---" एक दिन हिसाब समझाकर कुर्सी से खड़े होते हुए मि. दीवान से उसने अचानक ही कहा |

" हाँ, बोलो न बेटा ----"उन्होंने अपना हाथ उसके सिर पर रख दिया |

" अंकल, अब आप ही हैं जिन्हें यह सब संभालना है | आपने इतने दिनों में फिर से बिज़नेस को कहाँ से कहाँ पहुंचा दिया लेकिन मुझे लगता है अब इसे और फ़ैलाने की ज़रुरत नहीं है | जितना है, वही ठीक से सम्भला रहे --बस ---" वह चुप हो गई |

"अब आपको ही सारी ज़िम्मेदारी लेनी है, फ़ैक्ट्री के साथ घर की भी ---" भानु ने एक लम्बी साँस ली |

"क्या हुआ बेटा, कुछ गड़बड़ हो गई है क्या ?" मि. दीवान ने पूछा |

"नहीं, नहीं अंकल ---कैसी बात कर रहे हैं --लेकिन --एक बात का दुःख है मुझे !"

"माँ-बाबा के जाने का दुःख तो यहाँ किसको नहीं है बेटा, आपके बाबा जैसे सज्जन पुरुष अब कहाँ मिलते हैं ---?" पल भर चुप रहकर बोले ;

"पर, हुआ क्या ?"

"अंकल, कोई भी मुझसे कुछ पूछता क्यों नहीं है ? ऐसे समय में भी राजेश नहीं आया बल्कि एक गोरे आदमी ने मेरे साथ खड़े होकर सारा काम संभाला | मैं जानती हूँ कि सबके मन में उत्सुकता है लेकिन कोई मुझसे कुछ पूछता ही नहीं है, यहाँ तक कि लाखी भी --अजीब नहीं है यह बात ?"

वह रो पड़ी और मि. दीवान हकबके से रह गए |जैसे बगलें झाँकने लगे, क्या बताएँ ? क्या पूछें ?वे किसी और ही मनोदशा में थे, वे और वहाँ के सभी लोग उसके मन पर किसी प्रकार का बोझ नहीं डालना चाहते थे |

"पगली, हम तो सब तुझे बड़ा प्रैक्टिकल समझते थे पर तू तो बिलकुल ही कच्ची निकली ---"

"आपको मैं बाबा जैसा ही मानती हूँ अंकल, आप जानते हैं --आपने भी कुछ नहीं पूछा --क्यों ? मैं जानती हूँ, कुछ बातों में मैं ज़रा ज़्यादा ही रूखी हूँ लेकिन अंकल उस समय फ़ैक्ट्री को बचाने के लिए मुझे स्ट्रिक्ट होना पड़ा था ---" कहकर वह फिर से सुबक उठी | क्यों दिखा रही थी ज़िंदगी ऐसे खेल उसे ?

"मैं या बाबा कोई भी हों, सब समझते थे, तूने बहुत ठीक किया था, बाबा उस समय बिलकुल अकेले पड़ गए थे न !उन्हें पूरा विश्वास था तुझ पर ---" वे फिर चुप हो गए और कुछ क्षणों बाद ऎसी बात बोले जिससे अब भानु की आँखें फटी रह गईं |

"बेटा ! दरसल--- सबको पता था ---इसीलिए किसी ने, बाबा-माँ ने भी तुमसे कुछ पूछने की ज़रूरत महसूस नहीं की |

"माँ-बाबा को भी ? लेकिन कब से ? कैसे ?"" वह पशोपेश में पड़ गई | उसका मुँह शर्म से फक्क पड़ गया |

"जबसे तुम बच्चे को लेकर यहाँ से गईं थीं , उन्हें तबसे पता था | " मि. दीवान ने बताया |

"तुम्हारे माँ-बाबा होते तो वो भी तुमसे कुछ नहीं पूछते ---वो दोनों तुम्हारे लिए बहुत दुखी रहते थे और इसीलिए चाहते थे कि तुम यहीं आ जाओ | यहाँ सब कुछ तुम्हारा था, तुम राजेश की हरकतें छिपाने के चक्कर में बेकार ही यहाँ से वहाँ गईं | वे भी तुम्हें कुछ नहीं कह पाए --"

"पर --इस सबके बावज़ूद उन्होंने मुझसे कुछ नहीं कहा ---उन्हें पता कैसे चला आख़िर ?"

"पंडित सदाचारी बीच में न जाने कैसे-कैसे उल्टे-सीधे रास्तों से अमरीका भाग गए थे फिर पता चला तो वहाँ की सरकार ने उन पर जुर्माना किया और अमरीका से बाहर फेंक दिया | बेचारे लौट के बुद्धू घर को आए |"

"पर, वो तो यहाँ राजनीति में चले गए थे ---!" भानु ने अचानक पूछा |

"वहाँ भी पिट गए तो उल्टे रास्ते से अमरीका भागे | ऐसे लोगों का कोई ईमान तो होता नहीं है |"

"पर --वहाँ क्यों ? यहाँ तो वो बरसों से थे ---!"

"वहाँ उनकी कोई लड़की है रुक्मणि ---उसीके पास गए थे लेकिन टिक नहीं पाए वहाँ पर --उसी से खबरें पता चलती थीं उन्हें तुम्हारी | यहाँ पर तुम्हारे बारे में कुछ-कुछ उड़ाते रहे | "

"रुक्मणि---? कहीं रुक तो नहीं ?" अचानक भानु के मुँह से निकला |

"हाँ, वहाँ उसे रुक ही कहते हैं ----" मि. दीवान ने सिर हिलाया |

"तुम्हारे बाबा के एक दोस्त एक बार न्यू जर्सी गए थे, वहाँ उन्हें तुम्हारे बारे में सब कुछ उन्होंने खुद देखा और उन्हें सब कुछ पता चला | उन्हें पता चला कि राजेश रुक के साथ है और रिचार्ड से तुम्हारी दोस्ती है | वही तुम्हारा ध्यान रख रहा है | तुमने घर बदला, नौकरी करने लगीं, उन्हें सब कुछ पता था | "

"ओह !" भानु अपना सिर पकड़कर बैठ गई |

"उन लोगों ने मुझसे कुछ भी नहीं पूछा ---" वह उदास थी |

"वे तुम्हें परेशान नहीं करना चाहते थे | राजेश के लिए तुम्हारा चुनाव गलत हो चुका था, वे जानते थे लेकिन अब उस बात को देर हो चुकी थी, अब कुछ भी किया तो जा नहीं सकता था | एक बार मुझसे बात करते हुए उन्होंने कहा भी था कि जो हो चुका है, उसकी लकीर को पीटने से तो कोई फ़ायदा हो नहीं सकता था | उन्हें विश्वास था कि उनकी बेटी जो भी करेगी, ठीक ही करेगी | "

मि.दीवान की बात सुनकर भानु को लगा वह किस समुद्र में छलाँग लगा ले | जिन बातों से परेशान न करने की बात लेकर वह ख़ुद परेशान होती रही थी, वही बातें अब उसे और परेशान कर रही थीं |आज माँ-बाबा भी नहीं थे जिनकी गोदी में सिर रखकर वह रो सकती !

आज लाखी पुनीत को भानु के साथ फ़ैक्ट्री लेकर आई थी | वहाँ पर भी बहुत बड़ा बगीचा था | इस प्यारे बच्चे को देखकर वहाँ के लोग उसका खूब ध्यान रखते थे | वह मशीनों के पास जाकर वर्कर्स से कुछ न कुछ पूछता रहता था |

भानु अपने चैम्बर में थी, दीवान अंकल उसे समझाने की कोशिश कर रहे थे, तभी उनसे ये सब बातें हुईं थीं | परेशान सी तो थी ही भानु , तभी न जाने अचानक कहाँ से लाखी वहाँ आ गई और भानु से चिपटकर रोने लगी | शायद उसने बहुत कुछ सुन लिया था |

"क्या हुआ ?" भानु ने लाखी से पूछने की कोशिश की लेकिन दीवान अंकल के चेहरे के भावों ने सब कुछ समझा दिया |

"चल, चुप हो जा, जो कुछ हो गया, कुछ भी वापिस नहीं लौट सकता --" भानु ने लाखी के आँसू पोंछते हुए पूछा ;

"पुनीत कहाँ है ?"

"ड्राइवर अंकल के साथ मनोज भैया की मशीन के पास खड़ा बातें कर रहा है कि वह मशीन कैसे काम करती है ?" लाखी ने आँसू पोंछकर कहा |

लाखी को चुप कराते हुए भानु ने मि.दीवान से कहा;

"अब चलें अंकल, फिर आपसे बात करुंगी |"