अपंग - 42 Pranava Bharti द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
  • एक मुलाकात

    एक मुलाक़ातले : विजय शर्मा एरी(लगभग 1500 शब्दों की कहानी)---...

  • The Book of the Secrets of Enoch.... - 4

    अध्याय 16, XVI1 उन पुरूषों ने मुझे दूसरा मार्ग, अर्थात चंद्र...

  • Stranger Things in India

    भारत के एक शांत से कस्बे देवपुर में ज़िंदगी हमेशा की तरह चल...

  • दर्द से जीत तक - भाग 8

    कुछ महीने बाद...वही रोशनी, वही खुशी,लेकिन इस बार मंच नहीं —...

  • अधुरी खिताब - 55

    --- एपिसोड 55 — “नदी किनारे अधूरी रात”रात अपने काले आँचल को...

श्रेणी
शेयर करे

अपंग - 42

42

भानु के वहाँ पहुँचते ही वहाँ इक्कठी हुई औरतों ने अपने मुँह पल्लू में छिपाकर अजीब से स्वर में सामूहिक विलाप करना शुरू कर दिया था | लाखी सहमी सी एक कोने में बैठी थी | वह उसकी ओर बढ़ गई ;

"ला---खी ----" भानु ने कहा |

"क्या हो गया ये सब ? कैसे ?" उसने लाखी को अपने गले से चिपका लिया | लाखी की आँखें जैसे कहीं कुछ घूर रही थीं | लाखी कुछ बोल ही नहीं प रही थी | औरतों ने और भी ज़ोर से चिल्लाकर रोना शुरू किया | भानु का दिल घबराने लगा और माथा चढ़ने लगा | उसके लिए एक कुर्सी लाई गई लेकिन वह लाखी के पास ही ज़मीन पर बैठा गई |

अंतिम यात्रा की तैयारी के लिए सामान के लिए लाखी से पैसे माँगे गए तो उसने सूनी आँखों से अपने चाँदी के कड़े निकालकर सामने रख दिए | डॉ हाथ उन्हें उठाने के लिए आगे बढ़े तो एक आवाज़ आई --

"रुको ----" कड़े उठाने वाला आदमी सहम गया |

"कितने पैसे चाहिए ---?"भानु ने पूछा |

शायद आदमी को समझ नहीं आया, वह इधर-उधर ताकने लगा |

"तुमसे ही पूछ रही हूँ ---"

"ये ही कोई 2/3 हज़ार ---" उसने धीरे से कहा |

"कड़े लाखी को दो ---" आदमी ने हाथ में लाखी के चाँदी के कड़े दबा रखे थे |

"हाँ --जी ---" उस आदमी ने अपने हाथ से कड़े नीचे रखा दिए |

भानु ने अपने पर्स से 3 हज़ार निकालकर उस आदमी को दिए |

"हो जाएगा ?" भानु ने पूछा |

"हाँ जी --हाँ जी --" वह हकलाता हुआ दूसरे उन लोगों के पास चला गया जो लाखी के पति की अंतिम यात्रा की तैयारी कर रहे थे |

लोग तैयारी का सामान लेने चले गए, कुछ वहीं पर कुछ बातें करते रहे | जल्दी ही वे सब सामान लेकर आ भी गए थे | कोई नया आदमी आता तो घूँघट में मुँह छिपाकर चिल्लाकर रोने लगतीं |

सब तैयारी हो गई और जैसे ही सब अर्थी उठाकर जाने लगे औरतें और ज़ोर ज़ोर से छाती पीट पीटकर, हाय-हाय करके रोने लगीं | लाखी की आँखों में ज़रा भी आँसू थे ही नहीं | अजीब सी आँखें फाड़कर वह इधर-उधर देखे जा रही थी जैसे न जाने उसके सामने क्या तमाशा हो रहा हो |

"अरी ! रो ले, जा रिया है ---" औरतों ने उसे कुहनी मारकर कहा |

सब कुछ हो जाने के बाद भानु ने उसके सिर पर हाथ फिराया | उसकी चूड़ियाँ, बिंदी ---माथा, गला, कलाई सब सूने कर दिए गए थे |लाखी फिर भी चुप थी |

भानु लाखी को एक तरफ कोने में ले गई ;

"लाखी, संभल के रहना | ये रख ले, किसी को कुछ भी देने की ज़रूरत नहीं है | बाद में और दे जाऊँगी |" भानु ने लाखी को कुछ रुपए दिए |

अब लाखी भानु के कंधे का सहारा लेकर ज़ोर से रो फूट-फूटकर रो पड़ी |

"आप भी चली जाओगी ! मैं तो अब बिलकुल अकेली पड़ जाऊँगी |"

"तुझसे मिले बिना थोड़े ही जाऊंगी ---"

लखी के आस-पड़ौस के लोग, आस-पास के रिश्तेदार न जाने उनके रिवाज़ के अनुसार कौनसी रस्में करना चाहते थे | भानु बहुत असहज होती जा रही थी |

"मैं चलती हूँ ...फिर मिलती हूँ।" भानु आया को लेकर वहाँ से निकल गई थी और आया को बीच में उसके घर छोड़कर अपने घर पहुँची थी।

बेटे ने उसे देखकर उसके पास आने के लिए हाथ बढ़ाए लेकिन वह उसे दूर से ही प्यार करके ऊपर अपने कमरे में चली गई और सीधे बाथरूम में जाकर शावर के नीचे खड़ी हो गई।

*****