अपंग - 41 Pranava Bharti द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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अपंग - 41

41

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माँ -बाबा का पुनीत से बहुत लगाव हो गया था | इतने दिनों में माँ घर में एक छोटे बच्चे को देखकर माँ फूली नहीं समाती थी | खूब ध्यान रखा जाता था उसका सो खूब गोल-मटोल हो गया था | लेकिन अब भानुमति के वापिस जाने का समया गया था केवल पाँच दिन शेष थे |

लाखी आती तो खूब रोने लगती ;

"दीदी ! आपके बिना बिलकुल अच्छा नहीं लगता | "

लाखी से छोटी बहन की तरह प्यार करती थी भानु, उसकी सारी बातें सुनती, उसे पास बिठाकर समझाती, उसके आँसू पोंछती लेकिन अपनी पीड़ा किसी के साथ शेयर नहीं कह पाती थी | कैसे कहती ? किससे कहती ? यहाँ किसी से कुछ कहना मतलब माँ-बाबा के कानों तक बात पहुँचना | सब तो उसका यहाँ से जाना ही बेहतर था नहीं तो कभी बात खुल सकती थी | अब तो वापिस लौटकर रिचार्ड से ही बात कर सकती थी | भानु ने कभी स्वप्न में भी नहीं सोचा था कि रिचार्ड नाम का यह अमरीकी उसके इतना करीब आ जाएगा कि वह अपना दर्द केवल उससे ही बाँट सकती थी ! फ़ैक्ट्री की समस्या भी काफ़ी हद तक हल हो चुकी थी | मि.दीवान ने उससे वायदा किया था कि वे हर सप्ताह यहाँ की ख़बर उसको देंगे | अभी तो उसने रिचार्ड का नं ही दे रखा था | अभी जाकर उसे जाकर अपना एपार्टमेंट बदलना था | अब सम्भव नहीं था राजेश के साथ एक ही छत के नीचे रहना | आखिर पुनीत तो उसका ही बच्चा था जिसे उसने ढंग से देखा तक नहीं था फिर वह अपने बच्चे को उसके घर की छत के नीचे कैसे पल सकती थी ?

माँ-बाबा तो जाने उसे कितने गिफ़्ट्स से लाड देना चाहते थे लेकिन उसके ले जाने की भी एक सीमा थी | राजेश के लिए तो उन्होंने जैसे सारा बाज़ार ही खरीद डाला था | भानु सारे पैकेट्स एक के ऊपर एक लगती जा रही थी कि पुनीत की आया भागती दौड़ती हुई आई ;

"दीदी! एक बुरी खबर है --" उसने अपनी सांसों को कंट्रोल करने की कोशिश करते हुए कहा|

"क्या हुआ ?" उसके ऐसे दौड़कर आने से भानु भी घबरा सी गई |

"क्या हुआ --बोलो न !" भानु ने पूछा |

" वो लाखी है न ---"

"क्या हुआ लाखी को ?"भानु ने घबराते हुए पूछा | हाय ! कभी उसके पति ने उसको कुछ कर न दिया हो --" भानु सच में घबरा गई थी

"लाखी को कुछ नहीं हुआ, उसका आदमी नहीं रहा --"आया ने हाँफ़ते हुए बताया |

"ओह ! कैसे ? " भानु ने घबराकर पुछा | लाखी का मासूम सा चेहरा उसकी आँखों के सामने नाच उठा | उस पर जैसे गाज गिर पड़ी |

"तुम्हें कैसे पता चला ?" भानु ने पूछा |

"उसके मुहल्ले का कोई आदमी अभी माँ जी को बताकर गया है | "

"हे राम ! " भानु हड़बड़ाती हुई आया के साथ नीचे आ गई |

माँ भी हकबकी सी पुनीत को गोदी में लिए खडी थीं |

"भानुमति ---!" माँ बहुत हड़बड़ाई हुईं थीं |

"हाँ, क्या करूँ ?मैं जाती हूँ माँ ---"

"अकेली ---?"

"मुन्ना के पास भी तो किसी को रहना ज़रूरी है |"

"ड्राइवर भी नहीं है ----" माँ के चेहरे पर घबराहट और विवशता बिखरी हुई थी |

"कोई बात नहीं, मैं दूसरी गाडी ले जाती हूँ---आया, तुम चल सकोगी मेरे साथ ?" भानु ने मुन्ना की आया से पूछा |

"जी, दीदी --"

"बस, इसे ले जाती हूँ, आप प्लीज़ बाबा को बिलकुल ख़बर न ला लगने देना | "

भानुमति चल दी, अचानक यद् आया कि न जाने लाखी के पास पैसे भी होंगे कि नहीं ?वह ऊपर अपने कमरे में जाने लगी लेकिन माँ बच्चे को आया की गोद में देकर नीचे अपने कमरे में गईं और नोटों की एक गड्डी लाकर भानु के हाथ में पकड़ा दी, बोलीं ;

"अब तू जा, देर हो जाएगी, पता नहीं लाखी किस कंडीशन में होगी |"उन्होंने आया की पुनीत को ले लिया |

गाड़ी सरर ---से उनके सामने से निकल गई |