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फ़्रेश होकर भानु नीचे आ गई, अब उसने मुन्ना को गोद में लेकर प्यार किया |
"क्या हुआ था ?" माँ ने पूछा | वह बहुत बेचैन थीं |
"कच्ची शराब पीकर और क्या ?"
"हाँ, आज के पेपर में भी है, सात आदमी मरे हैं ---"
"पता नहीं, बाबा कहाँ हैं, दिखाई नहीं दे रहे---|"
"फ़ैक्ट्री ---"
"वेरी गुड़ ! ज़रा इसको ले लो माँ, मैं ज़रा आती हूँ --"उसने बेटे को माँ को दे दिया | वह नींद में ही था | माँ ने उसे झूले में लिटा दिया और पास ही बैठकर झूलने लगीं |
ऊपर आकर उसने अपनी अलमारी में से कुछ पेपर्स तलाशने की शुरुआत की हीथी की उसे लगा बहुत थकी हुई है | वह भूल गई, क्या करने आई थी और अपने पलंग पर आकर लेट गई | पता ही नहीं चला, कब उसकी आँखें लग गईं |
आया अपने घर से नाहा-धोकर आ चुकी थी, दो-तीन बार ऊपर देख गई, वह बहुत गहरी सो रही थी |
"भानुमति ---कहाँ है बेटा ?" उसकी आँखें खुल गईं |
"यहाँ हूँ बाबा, ऊपर ---बोलिए --" उसने सीढ़ियों में से झाँककर कहा |
"आज ऑफ़िस भी नहीं आई ---" बाबा ने शिकायत की |
"अरे बाबा ! रोज़ मेरा आना ज़रूरी तो नहीं है | वह मुस्कुराती हुई नीचे उतरी |
चाय मेज़ पर लग चुकी थी |
"सुबह से भूखी है, अब जाकर ऊपर सो गई ---"
"बहुत थकान सी लग रही थी, अब अच्छे से खाऊँगी न --" भानु को सबको पटाना बहुत अच्छी तरह आता था |
"भई, आज दीवान अंकल भी बिटिया को बहुत याद कर रहे थे | " बाबा उदास थे |
"अच्छा ---पर क्यों ?" भानु ने पूछा |
"ये तो उन्हीं से पूछो ---|"बाबा ने उत्तर दिया तो भानु मुस्कुराई --
"बाबा ! शैतानी बिलकुल नहीं चलेगी | मेरे जाने के बाद भी तो अकेले जाना है आपको |"
"हम्म---वो तो जाना ही होगा |"
"अच्छा ! सच-सच बताइए, अब कैसा लगता है आपको ? " भानु ने बाबा से पूछा |
" सच-सच कहता हूँ मि लॉर्ड --बहुत अच्छा लग रहा है, वैरी रिलैक्स्ड !" बाबा ने हँसकर कहा |
"देखा, कहा था न मैंने, बेकार ही बाबा को जेल में डाल रखा था |"
"हाँ जी, एक बात सुनो, भानु की अम्मा ---" बाबा ने कहा और भानु की और आँख से इशारा किया |
"कहिए --" उन्होंने कहा |
"आपके पं सदाचारी कहीं लापता हो गए हैं |"
"मतलब ?" वह चौंकी |
"मतलब देहरादून में तो हैं नहीं वो --सक्सेना ने उन्हें अपनी चपेट में ले लिया था | बस्स --तभी से लापता हैं --लगता है, अपने बेटे के पास स्टेट्स में चले गए हों ---"
"ऐसे, कैसे जा सकते हैं ? " माँ को अजीब लगा |
"ऐसे लोगों के लिए बहुत रस्ते होते हैं माँ.सीधे रास्ते से तो जाते नहीं ये लोग ---" भानु ने कहा |
"उनके लिए कुछ भी असंभव नहीं है | "
दो दिनों के बाद फिर से भानुमति लाखी के पास गई | उसके पास कई औरतें बैठी थीं | वे उसके पहुँचते ही विलाप करने लगीं, बेकार ही दिखावे में हूँ--हूँ कर रही थीं वे |विलाप नहीं कर रही थी तो लखी जिसका सुहाग दो दिन पहले उजड़ा था | थोड़ी देर रो-धोकर वे सभी चली गईं | क्या हाल बना दी थी उस बच्ची की !
भानुमति वैसे भी लाखी से अकेले में बात करना चाहती थी |
"कैसी है लाखी ? कैसा लग रहा है ?" उसने लाखी के सिर पर हाथ फिराया |
"कैसा भी नहीं दीदी ---" लाखी बड़ी तटस्थ थी |
"लाखी ---"
"ऐसा तो होना ही था एक दिन ---" उसने उसी भाव से कहा |
"ऐसा क्यों बोल रही है ?"
"आपको तो पता ही है दीदी, क्यों ? " लखी की आँखों में एक भी आँसू नहीं था |
"अच्छा, सुन --मुझे तो जाना ही होगा | ये सब कुछ खतम करके तुझे सीधे माँ के पास जाना है |"
"बहुत डर लगता है दीदी, आप होतीं तो ---"
"मैं कुछ नहीं हूँ, जो कुछ करता है, इंसान खुद ही करता है |"फिर बोली ;
"माँ से बात की है, तू आगे पड़ेगी |"
"आप जल्दी जा रही हो दीदी ?" भानु के जाने की बात सुनकर लाखी की आँखों में पानी भर आया |
कैसी बात है न, जो लड़की अपने आदमी के जाने पर नहीं रोई, वह भानु दीदी के जाने की बात सुनकर रोनर लगी थी | रिश्ते न तो खून के होते हैं, न ही स्वार्थ के ! रिश्ते होते हैं अपनेपन से ! ये ही रिश्ता लाखी का भानु के साथ था | भानु राजेश से दुखी थी और लाखी अपने आदमी से !
"ले, माँ ने भेजी हैं ---" भानु ने चार साड़ियों का पैकेट उसे पकड़ाया और कुछ रुपए निकलकर भी दिए |
"वो पहले वाले हैं न तेरे पास ?"
"हाँ, दीदी, बापू माँग रहा था ---|" लाखी बोली |
"उसे क्या पता तेरे पास रूपए हैं ? भानु ने पूछा |
"पता नहीं, चुगली खाई होगी किसी ने ----" लाखी ने कहा |
"चलती हूँ लाखी, कुछ ज़रुरत पड़े तो माँ हैं, पता नहीं तुझसे कब मिलना होगा ?बस--मैं तुझे पढ़ा-लिखा देखना चाहती हूँ |"
"दीदी ---" लाखी फिर से सिसक उठी |