अपंग - 61 Pranava Bharti द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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अपंग - 61

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कैसे बात करे बच्चे से ---? आसान नहीं होता इतने छोटे बच्चे को समझाना लेकिन ज़रूरी तो है ही उसे बताना | कल को कोर्ट उससे पूछेगा कि उसे किसके पास रहना है ? मासूम बच्चा अपने निर्णय कैसे बता सकता है जब वह उस आदमी को अपना पिता ही नहीं समझ पाता है | उसके मन में उसका पिता इतनी गंदी भाषा व व्यवहार वाला नहीं ,रिचार्ड अंकल की तरह सोफेस्टिकेटेड होना चाहिए |

" आई लव यू ,नो डाउट एबाउट इट --बट रीयली फैड-अप ऑफ दिस नॉनसेंस | " रिचार्ड ने उस दिन एक लम्बी सी साँस ली थी |

भानु समझती नहीं क्या ? लेकिन सरहदें न होते हुए भी उनमें कैद उसका मन निर्णय लेने की स्थिति में ही नहीं रहता था जो स्वाभाविक भी था | वह जानती थी ,लड़ाई उसकी थी और उसमें युद्ध कर रहा था रिचार्ड ! बल्कि उसे तो लगता कि रिचार्ड की जैसे उसके और राजेश के बीच में चटनी बन रही थी जैसे सिल-बट्टे पर धनिया-पौदीना पीसे जाते हैं | उन्हें ज़ायके के लिए खाया जाता है ,चटकारे लिए जाते हैं और यहाँ कड़वे,कसैले अनुभव थे | जीवन सारा ही जैसे बेस्वाद हो रहा था |

"सॉरी रिचार्ड ---" कभी वह उसके सामने बोलती तो कभी अकेले में मन ही मन भी लेकिन सॉरी तो रिचार्ड के लिए उसके मन में था ही ,बेहद अफसोस !इस अफ़सोस से क्या हालात में कोई बदलाव आ जाएगा ?ऐसा तो बिलकुल भी नहीं था |

दिन गुज़रते जा रहे थे और साथ ही समय के माथे की लकीरें भी !कुछ दिनों बाद पता चला राजेश काम पर भी नहीं आ रहा था | भानुमति लगातार काम पर जा ही रही थी लेकिन राजेश की अनुपस्थिति उसे और भी असहज महसूस करती जबकि वह उसे कभी-कभार ही तो देखती थी ,लेकिन अब उसके अनुपस्थित होने की बात जानकर उसे जो चैनो-करार आना चाहिए था ,वह तो उसके मन में नहीं था | वह और भी उलझन महसूस कर रही थी |

उस दिन जब कई दिन पहले रिचार्ड सबको बाहर घुमाने ले गया था ,उस दिन दूर से ही पुनीत ने राजेश को जब देख लिया था ,वह कैसे चिल्लाया था |

"लुक,ही इज़ दैट मैन ----" उस जल्दी-जल्दी जाते हुए आदमी पर सभी की दृष्टि तो पड़ी थी जो किसी औरत के साथ मुँह छिपाकर भागा जा रहा था |

"ही इज़ ए मैन ,यू नो ---लैट हिम गो ---" भानुमति ने कुछ बेरुख़ी से कहा था और रिचार्ड उसका हाथ पकड़कर रेस्टोरेंट की ओर बढ़ गया था ,पूछते हुए कि वह क्या खाना पसंद करेगा |

"एनीथिंग---"पुनीत ने ठंडे लहज़े में ,कंधे उचकाकर उत्तर दिया था |

"बट--व्हाई ही डिड ही कम टू अवर प्लेस ?" रेस्टोरेंट के अंदर प्रवेश करते हुए उसका पूरा शरीर उस दिशा की और मुड़ा जा रहा था ,जिधर उसने राजेश को जाते देखा था |

"यू नो,ही इज़ योर फ़ादर ,योर डैड ----" रिचार्ड बच्चे को लेकर एक टेबल की ओर बढ़ गया था ,जहाँ 'रिज़र्व्ड' की छोटी सी पट्टी रखी हुई थी |

अचानक पुनीत का ध्यान उस मेज़ पर रखी हुई पट्टी पर गया ,क्षण भर के लिए जैसे वह भूल सा गया कि क्या कह रहा था | उसने रिचार्ड की ओर प्रश्नवाचक दृष्टि से देखा |

"यस,दिस इज़ रिज़र्व्ड फ़ॉर अस डीयर ---" रिचार्ड ने बच्चे के चेहरे पर खुशी को क़ायम रखने का प्रयास किया |

"इट्स ओके बट दैट मैन -" फिर उसकी सूईं वहीं जा पहुँची जिधर से रिचार्ड उठाकर लाया था |

बच्चे आख़िर बच्चे होते हैं |

जैनी उसके लिए उसकी पसंद की आइसक्रीम ले आई जिसे देखकर वह फिर से भूल सा गया कि आख़िर पूछ क्या रहा था ? वह अब मुस्कुराने लगा था ,उसके सामने वह चीज़ थी जिससे वह अपना पेट भर सकता था |

भानुमति अनमनी थी ,भानु क्या --सब ही अनमने थे | उस दिन कोई कहाँ कुछ खा पाया था | पास वाले मॉल से जैनी ज़रुरत का सामान खरीद लाई ही ,तब तक पुनीत सर अपनी आइसक्रीम के चटकारे ले रहे थे | कुछ देर बाद सब वापिस एपार्टमेंट में लौट आए थे |

जैनी पुनीत को लेकर उसके कमरे में चली गई थी ,कुछ खाता तो बना देती लेकिन वह आइसक्रीम से अपना छोटा सा पेट भर चुका था और निद्रा उसे अपनी आग़ोश में ले चुकी थी |

रिचार्ड सिटिंग-रूम में टहल रहा था ,कई बार उसने जाने के बारे में सोचा लेकिन भानु को इतना चुप देखकर वह जैनी को ऑर्डर न देकर अपने आप कॉफ़ी बना लाया था |

"थैंक्स" कहकर भानु ने उसके हाथ से कॉफ़ी ले ली थी | डबडबाई आँखों से उसकी ओर देखती रह गई |

रिचार्ड अपनी कॉफ़ी के साथ उसके पास सोफ़े पर बैठ गया था |