अपंग - 80 - अंतिम भाग Pranava Bharti द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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अपंग - 80 - अंतिम भाग

80

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" एक्च्वली, मेरी समझ में कुछ बातें नहीं आ रही हैं, नॉट एबल टू अंडरस्टैंड ---" रिचार्ड पहले से ही काफ़ी परेशान था | भानु भी बहुत परेशान थी | कैसे होते हैं लोग ? जीवन के मंच पर पहले ही हम नाटक करने आए हैं, उस पर यह और झूठे पात्रों का जमावड़ा ?? सदाचारी, रुक, सक्सेना --इन जैसे लोग विश्वास को सूली से लटका देते हैं |

" सदाचारी अच्छी तरह जानता था कि इसी शहर में उसका कच्चा चिट्ठा जानने वाले लोग रहते हैं, फिर भी उसका इतना दुस्साहस रहा कि उसी शहर में उसने बेटी और सक्सेना के साथ मिलकर तिगड़ी बनाई और लोगों को बेवकूफ़ बनाने के खेल खेलता रहा |" भानु ने कहा | भक्तों की भीड़ उमड़ी पड़ रही थी | क्या ये सब इनके विगत इतिहास से परिचित नहीं होंगे ?प्रश्न एक नहीं, न जाने कितने थे | कहाँ मिलते हैं सबके उत्तर ? अधर में त्रिशंकु की तरह लटके ही तो रह जाते हैं हम उन प्रश्नों में उलझकर |

' नहीं रिचार्ड, इसमें ऐसे लोगों की इतनी गलती नहीं होती जितनी उन लोगों की होती है जो इनके पीछे चलकर इन्हें और आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित करते रहते हैं | मुझे लाखी ने भी बताया था कि ये सब मिलकर यहाँ के लोगों को खूब उल्लू बनाते हैं | उनके अनुसार देवी जी को आशीष मिलता है और फिर वह सबको आशीर्वाद देती हैं | उन पर देवी सप्ताह में तीन दिन आती हैं --मंगलवार, शुक्रवार और इतवार ---हर बार अलग-अलग देवी-देवता आते हैं | जिस देवी-देवता में लोग श्रद्धा रखते हैं, वे उसके अनुसार आशीष लेने आते हैं | उस दिन मंदिर में बहुत भीड़ होती है और लोग देवी जी का आशीर्वाद पाने के लिए आसपास के गाँवों में से भी आते हैं ---खूब पैसा और सोना-चाँदी चढ़ाई जाती है और इन समाज के दुश्मनों के पेट में सब भरता रहता है | "

" अभी तो वह कितना घबराई हुई थी, फिर भी हमारे निकलते ही वह कैसे यह सब कर सकी होगी, ओ गॉड ! शी इज़ सो---?" पता नहीं वह क्या कहना चाहता था ?

"यह बिज़नैस है, आज का दिन किसी देवी- देवता के आशीर्वाद के लिए फ़िक्स होगा इसीलिए उसको यह नाटक करना ज़रूरी होगा न ?"भानु ने कहा |

" आई कांट लीव हर---आई वॉन्टेड टू टैल हर दैट शी इज़ इन द ब्लैक लिस्ट, अमेरिकन पोलिस वोंट लीव हर ---बट--शी शुड नॉट बी एलर्ट --सो--"रिचार्ड ने कहा |

'एलर्ट तो वो सभी हो गए होंगे 'भानु ने मन में सोचा लेकिन बोली कुछ नहीं |

दोनों घर पहुँच चुके थे, पुनीत कब से शोर मचा रहा था | माँ को देखते ही बिफ़र गया |

"सॉरी बेबी--कुछ काम था न --देखो हम जल्दी आ गए न --" भानु ने उसे गोदी में समेटकर प्यार किया |

बच्चे ने उठकर उस दिन ब्रश भी नहीं किया था | लाखी ने उसका दूध बनाकर रखा था लेकिन उसने माँ और रिचार्ड के नाम की रट लगा रखी थी |भानु उसे गोदी में लेकर बाथरूम में गई और ब्रश कराकर लाई |

"लाखी दीदी, दूध दो भई पुनीत बच्चे का ---" भानु ने बेटे से लाड़ लड़ाते हुए कहा | लाखी जल्दी से पुनीत का प्याला ले आई |

"अंकल डैड के साथ पीना है ----" बच्चा है, क्या उसे समझाया जा सकता था कि अंकल किस परेशानी में हैं ?

रिचार्ड ने सुना नहीं, वह फ़ोन पर था |

"इज़ ही एंग्री मॉम ?" रिचार्ड ने सुना नहीं, बच्चे को लगा, कुछ गड़बड़ है |

"नो, ही इज़ बिज़ी, नॉट एंग्री डीयर ---" भानु ने बच्चे को बहलाने की कोशिश की |

"ही इज़ नॉट लिस्निंग ---" वह ज़ोर से बोला | रिचार्ड बात कर चुका था |

"क्या हुआ ---व्हाट हैपन्ड डीयर ---?" रिचार्ड उसके पास आ गया |

" आपके पास बैठकर दूध पीना है ----" बच्चे ने बड़े लाड़ से कहा |

"ओ ---श्योर डीयर ---" रिचार्ड उसके पास वाली कुर्सी पर जा बैठा और प्याला अपने हाथ में लेकर बच्चे के मुँह से लगा दिया | पुनीत गटागट दूध पी गया और रिचार्ड की गोदी में सरक आया |

" डार्लिंग, आई हैव टू गो बैक टू यू.एस ----" उसने पुनीत को बहुत प्यार से कहा |

"नो---यू कांट गो ---" बच्चा रुंआसा हो उठा |

" आई हैव सम वैरी इम्पॉर्टेन्ट वर्क सो----"

" यू हैड कम टू स्टे फ़ॉर फ़्यू डेज़ ---" भानु को भी एकदम धक्का सा लगा |

रिचार्ड को देखकर कितनी खिल गई थी वह, अचानक ---उसका मन बुझ गया | कंपेनियन होना कितना ज़रूरी है, उसे उस समय अधिक कचोटता था जब वह परेशान होती थी |

" आई एम बाउंड टू टेक सम स्टैप्स अगेंस्ट ऑल दिस ---" वह जैसे वहाँ था ही नहीं |

"ज़रूर लेना --कुछ दिन तो रुको ----"

"सॉरी, मुझको जाना पड़ेगा, वो भी जल्दी --" भानु का दिल जैसे ो पड़ा |

"आई हैव टू कम विद यू -----" बच्चे ने अपना निर्णय सुना दिया था |

" यू कैन कम विद मॉम डीयर ---"उसने भानु की ओर देखा | उसकी आँखें उसे साथ चलने के लिए निमंत्रित कर रही थीं |

"हम चलेंगे बेटा और अंकल भी आएंगे ----|"भानु की गीली पलकें देखकर रिचार्ड ने कहा ;

" क्यों नहीं चलती हो भानु ?क्या है यहाँ ? "

"वही जो तुम्हारा वहाँ है ---" भानु ने उत्तर दिया | उसकी आँखों से आँसू बहने लगे |

"आई अंडरस्टेंड भानु --सॉरी, आई डिड नॉट वॉन्ट टू मेक यू क्राई ---"

लाखी पुनीत को बहलाकर ले गई थी | वह वहाँ से जाने के लिए तैयार ही नहीं हो रहा था |

दिन ही नहीं बीत रहा था जैसे ---

साँझ हुई, दिल्ली पुलिस की गाड़ी कोठी के गेट पर थी |

" सर ! वी हैव एरेस्टेड थ्री ऑफ़ देम ----" पुलिस की जीप में सदाचारी, रुक्मणि, सक्सेना बंद थे |

दिल्ली पुलिस के साथ अमेरिकन एम्बेसी का एक ऑफ़िसर था |

भानु हकबकी रह गई |

"थैंक यू सर, आपकी इन्फॉर्मेशन से काम आसान हो गया | ये लोग तो भागने की तैयारी में थे |" भानु को तो पहले ही शक था |

"थैंक्स ऑफ़िसर, वैरी फ़ास्ट --थैंक यू वेरी मच | आई विल मीट यू इन डेल्ही, इन फ़ैक्ट इन यू एस एम्बेसी ---"

" सर, हम लोग दिल्ली के लिए निकल रहे हैं | कल मिलते हैं ---"

"ओ, यस ---"

जीप तीनों अपराधियों को लेकर दिल्ली की ओर चल दी थी |

अब दोनों के चेहरों के तनाव कम हो गए थे | अंदर जाते ही भानु फफककर रो पड़ी |

पुनीत भी आ गया था, उदास था | बड़ी मुश्किल से डिनर में उसने थोड़ा सा रिचार्ड के हाथ से खाया |

"डोंट गो अंकल ---" उसके गालों पर आँसू बह रहे थे |

'आई विल कम सून डार्लिंग ----"

जैसे सब कुछ सूना हो गया था | पुनीत अपने कमरे में उन दोनों को ले गया | दोनों के बीच में, हाथ पकड़कर सोया | बीच-बीच में चौंककर उठ जाता, फिर दोनों को देखकर आश्वस्त हो जाता | वह जानता तो था ही रिचार्ड को अगले दिन जाना है |भानु और रिचार्ड पूरी रात भर हाथ पकड़े अधलेटे से पुनीत की गर्दन के नीचे से एक-दूसरे को महसूस करते रहे |

सुबह जल्दी टैक्सी आ गई | थोड़ी सी आवाज़ से ही पुनीत की कच्ची नींद खुल गई और वह दोनों के साथ नीचे उतर आया |

रिचार्ड को दिल्ली में यू एस की एम्बेसी में हाज़िर होना था | उसे दिल्ली पहुँचने में ही शाम हो गई थी | अब मिलने की बात अगले दिन पर टल गई |

रात में रिचार्ड को होटल में रहना था | रात भर वह पहले पुनीत से फिर भानु से बातें करता रहा |

सूनापन उन दोनों के बीच में ठहर गया था | इतनी दूरी से भी किसी को महसूस किया जा सकता है ? वे दोनों कर रहे थे |

वहाँ का काम हो गया था लेकिन रुक यू एस की असली मुजरिम थी | उसे वहाँ भेजा जाना था | रिचार्ड का भी हाज़िर होना ज़रूरी था |

प्लेन में बोर्ड करते समय रिचार्ड को महसूस हुआ ;

"अंकल डैड, जल्दी आना ---" पुनीत ज़ोर से चिल्ला रहा था | भानु की आँखें आँसुओं से लबालब भरी थीं | उसने टीशू से अपनी आँखें पोंछ लीं |

"आर यू ओके सर---" सुंदर सी एयर होस्टेस उसके पास जूस लेकर आई थी |

"ओ --यस --थेंक्स --"उसने ज्यूस लेकर रख लिया |

उसने लिखा ;

मेरी ज़िंदगी का पहला और आख़िरी शेर ---

मिलने को तो क्या-क्या नहीं मिलता है जहाँ में

लेकिन --ये दर्दे जाम तो देता है मज़ा और ------

नहीं मालूम, इन दोनों के प्रेम की कहानी किस ओर मुड़ी लेकिन यह तो निश्चित ही है कि मन से मन का मिलन सदा के लिए हो चुका था |

प्रेम शरीर के अलावा बहुत कुछ है जिसकी छुअन ताउम्र ताज़गी देती है |

 

इति

डॉ. प्रणव भारती

pranavabharti@gmail.com

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