अपंग - 16 Pranava Bharti द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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अपंग - 16

16

गर्भावस्था में कोई तो चाहिए था जो भानु को मॉरल सपोर्ट दे सकता | लेकिन कौन ? राजेश को तो उसका चेहरा देखते ही न जाने क्या होने लगता | वह अजीब प्रकार के मुंह बनाने लगता | और भानु को भी कहाँ उसका चेहरा देखकर तृप्ति मिलती थी ? केसा पिता था जो अपने ही बच्चे से छुटकारा पाना चाहता था ? कोई भी देश हो, जाति हो अथवा धर्म हो नव-आगंतुक शिशु का सब लोग स्वागत ही करते हैं लेकिन ---

कभी-कभी राजेश रुक को घर ले आता जो भानुमति को ज़रा सी भी लिफ़्ट न देती | हाँ, भानु तो ऐसे देश की बेटी थी जहाँ 'अतिथि देवो भव' को सर्वोपरि माना गया है | कितनी भी कुढ़ती लेकिन एक प्रयास ज़रूर करती मुस्कुराने का जबकि रुक राजेश की भाँति ही उसकी ओर देखकर मुँह बनाकर राजेश के पीछे-पीछे कमरे में समा जाती | अजीब लगता था भानु को --ऐसे भी बेशर्म इंसान होते हैं ! होते हैं, उसके सामने ही थे | वह क्रोध और पीड़ा से भीग जाती |

आस-पड़ौस के रहने वाले भी एक-दूसरे की खबर पूछ लेते हैं किन्तु राजेश जिसके सहारे, जिसके पीछे-पीछे वह यहाँ पत्नी, हमसफ़र बनकर आई थी, वह तो उसको पड़ौसी की नज़र से भी नहीं देखता था | पता नहीं कैसे जीए जा रही थी भानुमति ! उसे लगता, वह एक बेशर्म ज़िंदगी जी रही है !यह ही क्या कम था कि राजेश ने उसे अभी तक एपार्टमेंट खाली करने के लिए नहीं कहा था !

कभी-कभी वह इन सब बातों की चर्चा रिचार्ड से कर बैठती, रिचार्ड उसे तुरंत अपने साथ चलने के लिए बोल देता | भला, यह कैसे संभव हो सकता था भानु के लिए ? वह खुद भी जानता ही था कि भानुमति बड़ी ख़ुद्दार स्त्री है, वह कभी भी उसके घर नहीं आना चाहेगी चाहे उसे कितनी मुसीबतें क्यों न उठानी पड़ें| रिचार्ड के प्रस्ताव पर वह मुस्कुराकर बात खत्म कर देती |

"आई शैल ट्राई टू कन्विन्स राजेश, यू डोंट वरी एबाउट इट ---"

"नो रिचार्ड, आइ डू नॉट वॉन्ट समबडी शुड इंटरफ़ीयर इन माई फ़ैमिली लाइफ़"

"ओ ! माई गॉड ! यू आर स्टिल इन फ़ैमिली ? ओ ! यूं आर ग्रेट भानुमति --"

"नो, आई एम नॉट ग्रेट, आई एम एन इंडियन ---"

"दैट्स व्हाई --" उसकी आँखों में भानुमति के लिए एक चमक उभर आई | वह मन ही मन कहा उठा --

'ओ ! ग्रेट लेडी !' वैसे ही रिचार्ड के मन में भारतीय संस्कृति व संस्कारों के प्रति कम आदर भाव न था जो राजेश और रूथ जैसे लोगों ने कम कर दिया था लेकिन भानुमति को मिलकर, उससे मित्रता करके वह जैसे धन्य हो गया था |