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टेढी पगडंडियाँ - उपन्यास
Sneh Goswami
द्वारा
हिंदी फिक्शन कहानी
टेढी पगडंडियाँ “ चाची ! ओ चाची ! तुझे भापा बुला रहा है खेत में ट्यूवैल पे । जल्दी जा “ - नाइयों का बिल्लू दहलीज पर खङा मुस्कियों हँसता हुआ पुकार रहा था । किरणा ने छाबे में रखी रोटियों पर निगाह मारी । रोटियाँ काफी बन गयी थी । फिर पाँच रोटी निकाल कर एक साफ सुथरे पोने में लपेट ली । मेथी आलू की सब्जी डब्बे में डालकर माथे पर झलकता पसीना पोंछा । बाकी रोटियाँ वहीं छाबे में ढक कर रखके उठ खङी हुई । नलके पर जाकर हाथ मुँह रगङ रगङ कर धोया ।
टेढी पगडंडियाँ “ चाची ! ओ चाची ! तुझे भापा बुला रहा है खेत में ट्यूवैल पे । जल्दी जा “ - नाइयों का बिल्लू दहलीज पर खङा मुस्कियों हँसता हुआ पुकार रहा था । किरणा ...और पढ़ेछाबे में रखी रोटियों पर निगाह मारी । रोटियाँ काफी बन गयी थी । फिर पाँच रोटी निकाल कर एक साफ सुथरे पोने में लपेट ली । मेथी आलू की सब्जी डब्बे में डालकर माथे पर झलकता पसीना पोंछा । बाकी रोटियाँ वहीं छाबे में ढक कर रखके उठ खङी हुई । नलके पर जाकर हाथ मुँह रगङ रगङ कर धोया ।
टेढी पगडंडियाँ 2 मंगर ने सुना तो मसखरी से पूछ बैठा , ये मेरी ही है न । किसी और की तो नहीं । कहने को तो यह मजाक था पर उसकी शक्ल बता रही ...और पढ़ेकि उसके मन में शक का कीङा कुलबुला रहा है । अगले दिन सुबह दिन निकलते ही वह कुलीनों की बस्ती के दो चक्कर काट आया कि कहीं बच्ची से मिलती जुलती शक्ल वाला कोई आदमी दीख जाये तो उसके सीने में अपना चाकू उतार दे पर उसके दोनों चक्कर बेकार गये । कहीं ऐसा कोई आदमी था ही नहीं तो
टेढी पगडंडियाँ 3 स्कूल घर से थोङी दूरी पर था । बच्चे रास्ते में अटकते घूमते स्कूल पहुँचते । रास्ते में लगी बेरियाँ और अमरूद उनका रास्ता रोककर खङे हो जाते । अब फल तोङकर जेबों ...और पढ़ेभरे बिना कोई आगे कैसे जा सकता था तो सब पहले पेङों की जङों में बस्ते जमाए जाते फिर वे सब पेङ पर चढ कर फल तोङते । जब अपने खजाने से संतुष्ट हो जाते तब स्कूल जाते । वैसे भी स्कूल में पढाने वाले मास्साब और बहनजी तो शहर से आने हुए , बस आएगी तभी आएंगे । और बस
4 सारी सोच को वहीं छोङ वह चौंके में गयी और गुरजप के लिए एक थाली में दही , मेथी और रोटी डाली , साथ ही अपनी थाली में भी एक रोटी रख लाई । रोटी खाते ...और पढ़ेगुरजप को याद आया - मम्मी भुट्टे । मैंने भुट्टे खाने हैं । तूने कहा था न , खेत से आती हुई मेरे लिए भुट्टे लाएगी । भुट्टे कहाँ रख दिये । उफ ये बाईक पर आने के चक्कर में भुट्टे तोङना तो भूल ही गयी । ये गुरनैब भी न कुछ कहाँ याद रहने देता है । सामने
टेढी पगडंडियाँ - 5 बसंत खेत में मुङ गया तो वह मुँह धोने नल पर चली गयी । हाथ मुँह धोकर वह रसोई में गयी । कैन का दूध पतीले में उलटाकर उसने गैस पर चढा दिया ...और पढ़ेऔर परात खींच कर आटा छानने लगी । आटा छानते हुए वह फिर से सोचने लगी – अगर वह इस समय अपने घर पर होती तो माँ इस समय नमक डली बेसनी रोटियाँ बना रही होती और वह लस्सी के साथ गरम गरम रोटी खा रही होती । माँ मनुहार कर करके रोटियाँ खिलाती । उसका पेट भर जाता पर