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टेढी पगडंडियाँ - 35

टेढी पगडंडियाँ

35


दस बजते न बजते बिशनी दाई ने हवेली के दरवाजे पर आकर आवाज लगाई - सरदारनी ओ सरदारनी , ल्या कोई सुच्ची सूट , कोई गुङ का थाल , कोई झांझर का जोङा । कोई टूम छल्ला । खोल रूपयों की थैली का मुँह । तेरी वेल बढे । हवेली और हवेली वालों के भाग जगे रहें ।
आ बिशनिए आजा । आ बैठ । चन्न कौर ने रसोई से ही आवाज दी ।
बिशनी अंदर आ गयी । और आँगन में आकर खङी हो गयी ।
चन्न कौर ने लस्सी का गिलास भरा । कटोरी में गुङ डाल कर ले आई । और पीढा बिशनी की ओर सरका दिया ।
ले तसल्ली से पहले लस्सी पी ले , फिर सुना , क्या सुनाना चाह रही है ।
बिशनी ने लस्सी का गिलास और गुङ की कटोरी पकङ ली – सरदारनी , कल शाम अपना बसंत आया था मेरे घर । कह कर गया कि भापे ने कोठी में बुलाया है । चाची को देख जा । मैं तो सवेर के दस काम छोङ कर भागी भागी गयी जी । भला भापे की चाची की बात हो और मैं टाईम से न पहुँचू , ऐसा तो कभी हो ही नहीं सकता । लओ जी सुबह उठते ही एक कप चाय का घूँट भरा और चल पङी जी । सीधी पहुँची जा के कोठी ।
रब तुम्हारे खानदान को सुख सौभाग्य दे । खुशियाँ खेङे बनाए रखे । खबर तो ईंट जैसी पक्की है सरदारनी । तेरी दिरानी माँ बनने वाली है । तीन महीने पूरे होने को हैं । पक्का बेटा होगा । सारे लक्षण बेटे के हैं । ला अब मेरा शगुण ला तो मैं घर जाकर रोटी टुक के बारे में सोचूँ ।
चन्न कौर चोंके में गयी और टोकरी में पङी सारी पकी रोटियाँ परने में बाँध के साथ रात की दाल की पतीली उसे पकङा दी ।
जीती रह । तेरा सुहाग भाग बना रहे । सिर के साईं की लंबी उम्र हो । बाल बच्चे बने रहें । नाती पोते गोदी में खेलें । तेरी हवेली बनी रहे । - बिशनी ने आशीर्वादों की झङी लगा दी ।
तब तक सिमरन एक थाली में गुङ और हजार रुपये रख कर ले आई । लाकर सास को पकङाए ।
ले बिशनी तेरा शगुण । बिशणी ने अपने दुपट्टे का आँचल फैलाया । चन्न कौर ने थाल का गुङ उसके आँचल में डाल दिया ।
सुन , अब पूरे टाईम तक कोठी में चक्कर लगाती रहना ।
जी मालकिन । आती जाती रहूँगी ।
बिशनी सौ सौ आशीष देती गुङ , रोटी और दाल ले कर चली गयी ।
चन्न कौर लपक कर डयोढी में पहुँची । अवतार सिंह कुछ गाँव वालों के साथ किसी मसले पर चर्चा कर रहा था । चन्न कौर को यहाँ आया देख वह खङा हो गया सब सुख तो है न । बिना किसी कारण के चन्न कौर कभी ऐसे डयोढी में नहीं आई ।
क्या हुआ सब ठीक है न ।
सब ठीक है । हमारे दुख के दिन टल गये । निरंजन दोबारा आने वाला है ।
अवतार सिंह ने प्रश्नसूचक नजरों से पत्नी को देखा ।
वो बिश्नी अभी कोठी जाकर आयी थी । उसने आकर बताया कि किरण माँ बनने वाली है ।
ये तो अच्छी खबर है । वाहेगुरू का शुक्र है कि उसने हवेली को यह दात दान की ।
मैं सुरजीत को किरण के पास भेज रही हूँ । अब से वहीं रहेगी । उसका ध्यान रखेगी ।
ठीक है जो तुझे सही लगे , कर ले ।
चन्न कौर वापिस भीतर लौटी । उसने सुरजीत को बुलाया । सुरजीत नल पर बरतन माँज रही थी । राख से सने हाथ लिए सामने आ खही हुई – जी सरदारनी जी ।
सुन , अबसे तुझे किरण के साथ रह कर उसका ध्यान रखना है । तू सम्भाल पाएगी न । मैं कोई खतरा मोल लेना नहीं चाहती । वह अभी बच्ची है । तुझे हर पल उसके साथ रहना है । उसकी अच्छे से देखभाल करनी है । समझी ।
जी समझ गयी ।
अब खङी न रह । जल्दी से बरतन साफ कर और जा उधर ।
सुरजीत ने बरतन समेट कर रसोई में रखे । अपने झोले में कपङे डाले और चलने को तैयार हो गयी ।
जाती हूँ , सरदारनी ।
जा और बीच बीच में मुझे हालचाल देने आती रहना ।
सुरजीत ने हामी भरी और चली गयी तो चन्न कौर ने सुख की साँस ली । चलो यह सुरजीत वहाँ का सब सम्हाल लेगी । अनुभवी औरत है । आगे पीछे कोई है नहीं । आराम से वहाँ कोठी में रह लेगी और किरण को सहारा हो जाएगा ।
उसके बाद उसने देसराज को बुलवाया । उसके साथ आटे की बोरी , दालें , घी का कनस्तर और छोटा मोटा सामान गुरद्वारे भिजवाया कि इस संग्राद ( संक्रांति ) को गुरद्वारे में संगत को लंगर खिलाना है । वहाँ से लौटे देसराज ने खबर दी कि वहाँ गुरनैब भापा वाटर कूलर और पंखे चाचे निरंजन के नाम से लगवा रहा है । चन्न कौर ने वाहे गुरु को सिर निवाया – वाहेगुरू गुरनैब को लंबी उम्र बख्शे और निरंजन की आत्मा को शांति मिले ।
सुरजीत ने कोठी का कुंडा खटखटाया । किरण ने दरवाजा खोला तो उसको एक तरफ करते हुए सुरजीत कोठी में दाखिल हुई । उसने कमरे में आकर इधर उधर देखा तो उसे दीवार में गङी एक कील दिखाई दी । उसने अपना थैला वहाँ टांग दिया । किरण भी पीछे पीछे कमरे में आई । करीब दो ढाई मील पैदल चल कर आने से सुरजीत के माथे पर पसीने की बूँदें छलक आई थी । उसने दुपट्टे के छोर से पसीना पौंछा – बहुरानी , माँ बनना औरत का सबसे बङा सौभाग्य होता है । कोई औरत माँ बन कर ही मुक्कमल होती है । तुझे बहुत बहुत बधाई । मुझे बङी सरदारनी ने भेजा है । आज से मैं यहाँ तेरे साथ रहूँगी । तुझे अब कोई काम करने की जरुरत नहीं है । सारा काम मेरा । तू बस खा और आराम कर । परमात्मा सब अच्छा करेगा ।
किरण की आँखें छलछला आई । उसकी अपनी माँ भी उसके लिए इतना न सोच पाती । उसका मन चन्न कौर के लिए श्रद्धा से भर गया ।

बाकी कहानी ्अगली कङी में ...

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