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टेढी पगडंडियाँ - 17

टेढी पगडंडियाँ

17

चन्न कौर हवेली के भीतर लौट चुकी थी । साथ ही उसकी नौकरानियाँ भी । बीङ तलाब से आये लोग भी अपने गाँव लौट गये थे । बङे सरदार अवतार सिंह ने जीप में बैठकर चाबी घुमायी और वह भी बाहर चल पङा ।
चलिए बीबीजी , सब चले गये , अब हम भी चलें घेर में – बसंत ने पास आकर दोबारा उसे पुकारा तो वह मोहाविष्ट सी चुपचाप उसके पीछे चल पङी ।
रास्ते भर किरण चुप रही । गुमसुम । सिर झुकाए बसंत के पीछे चलती रही । उसका दिमाग सुन्न हुआ पङा था । ऊपर से देखने में वह जितनी शांत दिख रही थी , उसका मन उतना ही बेचैन था । थोङी देर पहले उसके सामने उसका अपना , सगा बाप खङा था और वह बेगानों की तरह अपराधिन बनी सिर झुकाये एक कोने में खङी रही । एक बार भी आगे बढकर नहीं पूछा कि बापू तू कैसा है । मेरे खो जाने पर तुम सबने क्या किया । वह कयामत की रात कैसे बितायी तुम लोगों ने । बीरा कैसा है । कहाँ कहाँ भटका होगा मुझे ढूँढने के लिए । माँ का क्या हाल होगा । तुम लोगों ने तब से खाना खाया भी है या नहीं । न ही वह यह बता पाई कि इस पूरे घटनाक्रम में वह पूरी तरह निर्दोष है । न ही यह कि यह सरदार लोग बिल्कुल बच्चों जैसे हैं सीधे सादे ।
अगले पल उसे ख्याल आया , वह उनके साथ जा सकती थी । तो गयी क्यों नहीं । फिर अगले पल उसने सोचा – जा तो वह पहले भी सकती थी । इन सरदारों ने उसे कौन सा बाँधके रखा था । दरवाजे खिङकियाँ सब खुले थे । फिर भी वह नहीं भागी , न भागने की कोशिश की । एक बार कोशिश तो करनी चाहिए थी । पर अब तो उसने अपने ही हाथों से अपने सारे रास्ते बंद कर दिये । अब तो यही घर उसकी नियति है । अब वह कहाँ जाएगी । कैसे जा पाएगी ।
यही सब सोचते सोचते कब वह घेर में पहुँची । कब फाटक पार हुआ , उसे कुछ पता नहीं चला । उसी तरह अपने ख्यालों में खोयी खोयी वह कमरे में गयी तो बुरी तरह से चौंक गयी । कमरे में निरंजन पलंग की पाटी पकङकर दरवाजे पर टकटकी लगाये बैठा था । कुछ तो वह किरण की खूबसूरती से घायल हो गया था और कुछ किरण के ललकारने से उसकी अनख जाग गयी थी कि वह ऐसी हरकत कर बैठा । तब तो परिणाम उसने सोचा ही नहीं था । अब वह कुछ घबराया हुआ था कि पंचायत या पुलिस न जाने क्या करेगी और भाई पर इस सबका क्या असर होगा । खुद उसके साथ तो जो होना है सो हो पर अपने बाप जैसे बङे भाई का अपमान वह सह न सकेगा । इस रंग उङी किरण को देखकर वह पहले से भी ज्यादा सहम गया – क्या हुआ वहाँ ?
किरण को न जाने क्या हुआ । वह कोई जवाब देने के बजाय दौङकर निरंजन के गले लग गयी । न जाने कितनी देर तक वह उसके अंग लगी हिटकोरे ले लेकर रोती रही । इस बीच कब निरंजन के मजबूत हाथों ने उसे थाम लिया , कब वह बेल की तरह बरगद से चिपक गयी । कब निरंजन के होंठो ने उसके होंठो को अपनी गिरफ्त में लिया , किसी को कोई पता नहीं । उन दोनों को भी नहीं । बिहारी की मुग्धा नायिका की तरह वह निरंजन के आगोश में समाती चली गयी । कोई शगन स्वारथ नहीं हुआ । न सुहाग के गीत गाये गये । न शगुण की मेहदी लगी । न शहनाई बजी , न बैंड बजे । न मंत्र पढे गये । न कन्यादान हुआ और किरण चाचे की हो गयी । दिन अभी छिपा न था । सूरज की सुनहरी आभा पूरे आसमान में बिखरी हुई थी । मानो सूरज किरण की सुहाग सेज को अपनी किरणों के गोटे से सजा रहा था । आज किरण के सुहाग का दिन था । लोगों की सुहागरात होती है , उसके हिस्से सुहागदिन आया था । एक देह भट्टी की तरह सुलगी और देर तक उफनती रही । फिर वेगभरी नदी शांत होकर सो गयी । रूह को सुकून मिला तो शरीर भी नींद के समंदर में डूब गये । दिन ढला । शाम ढली । छम छम पायल बजाती सितारों की चुनरी लपेटे रात गाँव में उतर आई । किरण और निरंजन सोते रहे । देर रात गये निरंजन की नींद खुली । गुरनैब बाहर खङा उसे पुकार रहा था ।
निरंजन उठकर बाहर आया तो गुरनैब ने टोका – ओए चाचे आज घर नहीं जाना । ज्यादा लेट करेगा तो चाची ने उडीक उडीक कर ( इंतजार करके )यहीं आ जाना है । न भी आई तो तेरे जाते ही हंगामा खङा कर देंगी । माता ने अलग सवाल खङे कर देने हैं । मेरी वाली भी पक्का गरम हुई बैठी होनी है । दोनों को संभालना आसान है क्या और आज तो पापाजी का मूड भी देखना पङना है । जाते ही जूते न पङ जाएं ।
इस लङकी के पीछे जूते पङ गये तो खा लेंगे । ओ चल , ठीक है , चल चलते हैं - निरंजन ने एक निगाह कमरे में निश्चिंत होकर सोती किरण को देखा । किरण छोटी बच्ची की तरह इकट्ठी हुई सो रही थी । आँसुओं से भीगा चेहरा ऐसा लग रहा था जैसे गुलाब के फूलों पर शबनम बिखरी हो । बाल बिखर कर माथे पर आ गये थे । होठ रह रहकर लरज उठते । साँस लेने सो छाती ऊपर नीचे हो रही थी । सोती हुई इस समय वह बेहद खूबसूरत लग रही थी । निरंजन का मन हुआ , वह एक बार फिर से उसे छूकर देख ले पर उसने अपने मन को मजबूत किया और गुरनैब के साथ घेर से बाहर हो गया ।
जब ये दोनों हवेली पहुँचे तो सब अपनी अपनी चारपाइयों पर लेट चुके थे । तभी घङी ने रात के ग्यारह बजाये । चन्न कौर ने दोनों को देखा तो दोनों के लिए रोटी परोस लायी । दोनोंवहीं चौंके में बैठ गये और चुपचाप रोटी खाने लगे । चन्न कौर रोटी डालती रही और वे चुपचाप रोटी खाते रहे । आखिर चुप्पी चन्न कौर ने ही तोङी – घेर में थे दोनों अब तक ।
नजरें झुकाये झुकाये निरंजन ने उत्तर दिया – जी भाभी ।
सुन जसलीन को गुस्सा मत दिलाना । पहले ही परेशान है बेचारी । अगर आज दो बात कहे तो चुपचाप सुन लेना । तूने उसके साथ बहुत ज्यादती की है ।
और तू सिमरन के पास जा गुरनैब । बेचारी बहु बच्ची को लेकर अकेली परेशान हो रही थी अभी बङी मुश्किल से सोई है ।

बाकी कहानी अगली कङी में ...

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