टेढी पगडंडियाँ - 39 Sneh Goswami द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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टेढी पगडंडियाँ - 39

टेढी पगडंडियाँ


39

किरण के बेटे के जन्म की बात सुनते ही सिमरन उदास हो गयी । उसे तुरंत जसलीन चाची याद आ गयी । अल्हङ उम्र की चाची लंबी , भरवें शरीर की तीखे नैन नक्शों वाली औरत थी । काम करने में माहिर । सारे कामे कामियों को रोटी चाय देना उसी की जिम्मेदारी थी । थकना तो वह जानती ही न थी । हमउम्र होने की वजह से दोनों में सास बहु वाला रिश्ता न होकर सहेलियों जैसा प्यार था । करोङों में खेलती चाची अब एकदम फकीरनी हो गयी थी । न ससुराल में सिर का साईं , न मायके में बाप , न भाई । अब सूनी मांग और खाली गोद लिए मायके की दहलीज पर जा बैठी थी । पति एक्सीडैंट में चला गया , दोनों भाई किसी ने मार दिये थे । दोनों माँ बेटी कैसे कोई निवाला गले से उतारती होंगी । कैसे रात को सो पाती होंगी । दूर दूर तक फैले खेत किस काम के जब वारिस ही नहीं रहे । इतनी लॆबी चौङी जायदाद की संभाल करने को अकेली चाची की माँ या ये जसलीन चाची । कैसे संभलेगी खेती बाङी औरतों से ।
और ये किरण पहले चाचा के और अब भतीजे के सिर पर चढकर नाच रही है । इतनी बङी कोठी की मालकिन हो गयी है । मायके में भूख और नंगई देखती आई और यहाँ छत्तीस पकवान खाने को मिल रहे हैं । कहाँ जमींदारों का कूङा उठाती होगी , कहाँ यहाँ सेवा करने को बिशनी और सुरजीत दो दो नौकर मिल गये । वाहे गुरु की मरजी देखो कि अब बेटे की माँ भी हो गयी । गुरनैब को आया देख एक पल को वह भीतर ही भीतर पिघल रही थी कि अगर गुरनैब ने जोर देकर कहा तो ननी की बेहतरी के लिये वह घर लौट जाएगी । भूल जाएगी कि अब तक क्या हुआ । पर इस खबर ने उसका इरादा फिर से पत्थर की लकीर बना दिया ।
गुरनैब पूछ रहा था – चल अब तैयार हो जा । सीधी तरह से घर चल । घर सूना हुआ पङा है ।
सिर्फ घर ही न । सिमरन ने मन में एक बार फिर से सोचा ।
गुरनैब के भीतर से जट्ट मर्द बोल रहा था ।
सिमरन ने धीमी पर मजबूत आवाज में उत्तर दिया – सुन अब मैं वहाँ कभी नहीं आऊँगी और तू मुझे मजबूर भी मत करना । मैं नहीं चाहती कि मेरी बच्ची तलाकशुदा माँ बाप की बच्ची कहलाये । इसलिये कोर्ट कचहरी करने के लिये मुझे उकसाना भी मत । मैं यहाँ खुश हूँ । सारी सहूलत है यहाँ । अच्छी तनख्वाह मिल रही है । हम माँ बेटी का गुजारा हो जाएगा । तू वहाँ खुश रह । मजे कर । और हाँ तुझे अब जाना होगा क्योंकि मैं विद्यालय जा रही हूँ । बच्चे मैस के दरवाजे पर खङे मेरे आने का इंतजार कर रहे होंगे । मैं पहुँचूगी तब उन्हें मैस में ऐन्टरी मिलेगी । तब वे नाश्ता कर पाएंगे ।
मैं भी तुम्हारा इंतजार कर रहा हूँ सिमरन ।
सिमरन ने जैसे उसकी ये बात सुनी ही नहीं । वह हङबङी में थी – प्लीज चलो निकलो । मुझे देर हो रही है ।
गुरनैब ने आश्चर्य से सिमरन का चेहरा देखा । क्या ये वही सिमरन है जो बेल सी उससे लिपटी रहती थी । हर काम , हर बात के लिए उस पर निर्भर रहती । कभी मायके तक आज तक अकेली नहीं गयी और न बाजार । जहाँ भी जाना होता , या तो बीजी ले जाते या वह आप और आज वही सिमरन अकेले रहने की जिद लिये बैठी थी । वक्त ने क्या दिन दिखा दिये । वह सिर नीचा किये अपनी सोच में डूबा बैठा रहा कि सिमरन ने बैडरुम को ताले लगाकर बैठक बंद करने के लिए गुरनैब को देखा । गुरनैब बेमन से उठ खङा हुआ । वह ननी को एक बार गोद में उठाकर अपना प्यार उस पर लुटा देना चाहता था पर ननी तो बाहर निकल कर मैस की ओर दौङ गयी थी । उसकी तरफ एक बार देखा तक नहीं । जैसे वह कोई अजनबी हो । वह उठ गया । चलते हुए उसे ऐसा लग रहा था मानो उसके पैर मन मन के हो गये हैं । उठने में ही नहीं आ रहे । भारी मन और नम आँखें लिये वह अपनी जीप में जा बैठा । सिमरन ने बाहर के दरवाजे को ताला लगाया और मैस की ओर चल दी । गुरनैब जीप में बैठे बैठे उसे जाते हुए देखता रहा । जब वह दिखाई देना बंद हो गयी तो हार कर उसने चाबी घुमाई । जीप स्टार्ट हो गयी तो वह घर की ओर चल पङा । दिमाग की तो कढी हुई पङी थी । जीप अंधाधुंध भागती रही । वह अपनी सोच में डूबा रहा । अचानक उसे लगा कि जीप चलाते हुए उसे बहुत ज्यादा समय हो गया है । अभी तक वह अपने गाँव नहीं पहुँचा । उसने जीप एक किनारे लगाई और बाहर निकल कर पूछा तो पता चला कि वह सरदूलगढ पहुंचने वाला है । वह कब विपरीत दिशा में मुङ गया , उसे पता ही नहीं चला । इस समय वह बठिंडा से साठ किलोमीटर आ चुका था जबकि उसे सिर्फ बाईस किलोमीटर जाना था । उसे अपने आप पर खीझ आई । ये क्या बेवकूफी है । बुरी तरह से झुंझलाते हुए उसने जीप घुमाई । बीस बाईस मिनट का रास्ता अब दो घंटे का हो गया था पर चलना तो था ही । जीप चली तो वह मुस्कुरा उठा । जिंदगी भी तो ऐसी ही है । सीधे रास्ते चलते चलते कभी कभी गलत पगडंडी पर चढ जाती है । हम उस रास्ते पर चलते जाते हैं । फिर जब बहुत दूर निकल जाते हैं तो तब समझ में आता है कि आगे रास्ता ही बंद है । पीछे मुङने के रास्ते हम खुद ही बंद कर आये होते हैं तो वापिस कैसे मुङा जाये । फिर रास्ते के पत्थरों को हटा कर आगे बढने के सिवाय चारा ही क्या है ।

बाकी कहानी अगली कङी में ...