टेढी पगडंडियाँ - 38 Sneh Goswami द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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टेढी पगडंडियाँ - 38

टेढी पगडंडियाँ -

38

किरण को अस्पताल से दूसरे दिन शाम को छुट्टी मिल गयी और वह कोठी लौट आयी । वह बेहद खुश थी । अब वह अकेली नहीं थी । उसका अकेलापन बाँटने उसका अपना अंश उसकी बगल में लेटा था । हाँ थोङी थोङी देर में उसे अपनी माँ , अपना मायका गाँव याद आ जाता और वह उदास हो जाती । सुरजीत यह सब देखती और एक ठंडी साँस लेकर रह जाती । बच्चा बिल्कुल निरंजन का ऱूप था । वही ऊँचा माथा , बङी बङी आँखें , चौङे कंधे , लंबी बाहें , तीखी नाक । पर रंग था गुरनैब के रंग जैसा खिलता हुआ । जबघा और ठोडी की बनत भी हूबहू गुरनैब जैसी थी । कद भी लंबा लग रहा था । नहला धुला कर सुरजीत ने उसे सफेद रंग का छोटा सा कुरता पहना दिया था ।
किरण को घर आये कुछ दिन बीते होंगे कि उसके गाँव की महेंद्र कौर अपने हाथ में एक थैला पकङे दाखिल हुई ।
किरण !
ओ किरण ।
दरवाजा सुरजीत ने खोला था – आ बहन , अंदर आ जा । जापे वाले घर में यूं आवाजें नहीं देते । जच्चा और बच्चा दोनों डर जाते हैं ।
किरण ने झांक कर देखा – अरे यह तो उसके गाँव की मीतो बुआ है । झीवरों की बेटी । अपने वेहङे से निकल कर जब सरपंच के घर जाते थे तो रास्ते में एक छोटे से टोले के शुरुआत में ही मीतो बुआ का घर था । मीतो के बापू कुएँ से पानी खींचकर प्रधान की रसोई में पानी पहुँचाने की बेगार करते थे । गाँव में किसी के घर शादी होती तो उनके दिन बहुरते । तब बारात के नहाने धोने की व्यवस्था करना , पत्तल जिमाना उनके जिम्मे होता । सो उनके लिए शादी वाले घर से नया कुर्ता पजामा और सस्ता सा साफा आता जिसे पहन कर वे बारात के आगे आगे हुकम बजाते घूमते । तब उन्हें और उनके परिवार को भरपेट खाना नसीब होता । और इनाम में दो चार रुपये न्योछावर के । मीतो बुआ के ब्याह की किरण को थोङी बहुत याद है , जोगानंद में ब्याही थी बुआ ।
अरे बुआ तू यहाँ । वह बुआ से चिपक ही गयी । जी भर कर रोई उस दिन किरण । मायके का तो कुत्ता भी प्यारा होता है फिर यह तो उसके गाँव की बेटी थी । उसी नाते से उसकी बुआ हुई । मायके से पहली बार कोई उसे मिलने आया था ।
बुआ ने भी उसे रो लेने दिया । दस मिनट बाद वह प्रकृतिस्थ हुई तो उसने पूछा - बुआ तेरा ससुराल तो जोगानंद में है न .।
हाँ बच्ची । यहाँ से पास ही है गाँव । सुबह पैदल निकली थी घर से पर रास्ते में एक जीप मिल गयी तो आधे से ज्यादा रास्ता मिनटों में पार हो गया । ताई ने बताया कि दो दिन पहले बलजीत मिली थी । उसने बताया थे तेरे बेटे के बारे में । कल गयी थी मैं बीङतलाब तो भाभी से भी मिली थी । उसे मैने तेरे बारे में बताया , तेरे बेटे के बारे में बताया तो शाम को वह आकर यह दे गयी थी – उसने थैले से दो झबले निकाले जो माँ ने हाथ से सिले थे । साथ सौ का एक नोट भी था । किरण उन झबलों को कितनी देर छाती से लगाए बैठी रही । ताई दोबारा आने का वादा करके चली गयी पर किरण बार बार उन झबलों को छू कर देखती रही । कभी हाथ में पकङती , कभी गालों से लगाती । । हालांकि झबले बहुत सस्ते से कपङे के बने थे और अनघङ तरीके से सिले गये थे पर यह झबले उसके लिए अनमोल थे । मायके से उसके लिए पहली सौगात आई थी । उसने बेटे को उठा कर गले से लगा लिया । यही बेटा उसके अकेलेपन का सहारा था । उसे परिवार से जोङने वाली कङी था । अब गुरनैब आते जाते थोङी देर के लिए आँगन में आता । एक झलक बच्चे की लेता और चला जाता । बिशनी अभी आ रही थी। वह बच्चे की मालिश करके उसे नहला जाती । किरण की मालिश कर जाती । बदले में दोनों वक्त की रोटी खा लेती । उसके घर में कोई न था । पति को गुजरे सात आठ साल हो गये थे । दो बेटियाँ थी जिनकी शादी गाँव के लोगों ने मिलजुल कर कर दी थी । वे अपने घर बार की थी । कहने को तो एक बेटा भी है पर न हुए जैसा । शादी होते ही बहु को लेकर शहर जाकर बस गया । सुना है किसी दुकान में नौकरी करता है । उसके बाद उसने बूढी मां की कभी सुध नहीं ली । बिशनी लोगों के प्रसव कराके , प्रसूता की सेवा करके दिन काट रही है । किरण से उसका स्वाभाविक लगाव हो गया है । दोनों के दुख एक जैसे है न इसीलिए दोनों को एक दूसरे से सच्ची हमदर्दी है ।
अकेलापन किसी सजा से कम नहीं है । हमारे यहाँ अक्सर बङे बूढे कहते सुने जा सकते हैं ,कि अकेला तो रोही रेगिस्तान में पेङ भी न हो । इंसान तो वैसे भी सामाजिक प्राणी है जिसे रोने हँसने और गाने के लिए हमेशा साथ की जरुरत होती है । अकेले तो नाचा भी नहीं जाता । लेकिन जिन लोगों के नसीब में अकेलापन लिखा हो वे क्या करें । गुरनैब चाचा के चले जाने पर बिल्कुल अकेला पङ गया था । रही सही कसर सिमरन ने पूरी कर दी । ननी के बिना उसका बिल्कुल दिल न लगता । कुछ दिन तो वह अपने आप से ही लङता रहा । उसका मन करता कि वह जाकर सिमरन को लौटा लाए पर अभिमान जाने न देता । खुद ही तो गयी है । अपने आप लौट आएगी जब वहाँ परेशान हो जाएगी । वह हर रोज उसके लौटने का इंतजार करता और जब शाम ढल जाती तो मायूस होकर इधर उधर भटकता रहता । घूमते घूमते थक जाता तो कोठी का चक्कर लगा लेता । आखिर एक दिन उसने बङिंगखेङा जाकर सिमरन को लौटा लाने का फैसला किया और सुबह सुबह जीप लेकर निकल गया । लेकिन वहाँ जाकर वह हैरान रह गया कि इन तीन महीनो में ननी उसे बिल्कुल भूल चुकी थी । उसे देखते ही वह दरवाजे के पीछे छिप गयी । उसने जबरदस्ती उसे उठाने की कोशिश की तो चिल्ला चिल्ला कर रोने लग गयी । वह हैरान परेशान वहीं खङा रह गया ।
सिमरन स्कूल के लिए तैयार हो रही थी - उसने पूछा – तू आज भी जाएगी
हाँ
सिमरन ने संक्षिप्त सा उत्तर दिया और जूते पहनने लगी ।
मैं तुझे लेने आया था
क्या है घर में
वो किरण के बेटा हुआ था न तो परसों पूरे सवा महीने का हो जाएगा ।
तो खुशी मनाओ सब ।
तूने घर नहीं आना । यहाँ आये तुझे तीन महीने होगये है ।
सिमरन गंभीर हो गयी ।

बाकी कहानी अगली कङी में ...