टेढी पगडंडियाँ - 37 Sneh Goswami द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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टेढी पगडंडियाँ - 37

टेढी पगडंडियाँ

37


सिमरन ने कामर्स की लैक्चरार यानि कि पी जी टी के तौर पर जवाहर नवोदय विद्यालय में काम करना शुरु कर दिया था । उसे रहने केलिए सैमीफर्नीशड क्वाटर मिल गया । खाना वह मैस में ही खा लेती । यहाँ कैम्पस में करीब तीस लोग रहते थे । ज्यादातर परिवार थे तो यहाँ किसी किस्म का भय न था । उसके बिल्कुल साथ वाले घर में मिस्टर और मिसेज शर्मा रहते थे । उनकी दो बेटियाँ और एक बेटा थे । ननी जल्दी ही इस परिवार से हिल गयी । जब सिमरन पढाने कक्षा में जाती , ननी मिसेज शर्मा के साथ खेलती रहती वरना पूरा दिन सिमरन की ऊँगली पकङ पूरे कैंपस में घूमती रहती ।
यह नवोदय विद्यालय सहशिक्षा आधारित आवासिय संस्था था जिसमें छठी से लेकर बारहवीं तक के छात्र रहते थे । मुख्य द्वार से भीतर जाने पर पहले स्टाफ क्वार्टर आते फिर थोङा चलने पर एक तरफ मैस नजर आती, दूसरी ओर प्रशासकीय इमारत । इस इमारत में प्राचार्य का कक्ष , क्लर्कों का कमरा , दिखाई देता फिर भीतर कक्षाएँ । एक तरफ विशाल सभागार बना था । उसी के साथ एक बहुत बङा हाल कमरा था जिसमें बच्चे स्वअध्धयन करते थे । मैस के एक ओर लङकियों के होस्टल थे और दूसरी ओर लङकों के । दोनों के सामने बङे बङे खेल के मैदान थे । पूरा कैम्पस पंद्रह एकङ जमीन में फैला था ।
यहाँ की एक नियमित दिनचर्या थी । रोज सुबह पाँच बजे उठना और फिर बच्चों को उठाना । साढे पाँच बजे व्यायाम के लिए मैदान में आना और पीटी टीचर की देखरेख में कसरत कराना । सात बजे तक मैदान में रहने के बाद नहाना धोना और सही आठ बजे तैयार होकर मैस में खाना खाने पहुँचना । नाश्ता खत्म होते ही प्रार्थना सभा में प्रार्थना फिर ग्यारह बजे तक कक्षाएँ । सवा ग्यारह दूध और फल । फिर डेढ बजे तक कक्षाएँ । वहाँ से सीधा मैस में लंच । साढे तीन बजे हाल में स्वअध्धययन । साढे चार बजे चाय और स्नैकस । पाँच बजे मैदान में खेल । सात बजे टी वी । आठ बजे खाना । नौ बजे लाईट बंद । यह प्रतिदिन की दिनचर्या थी जिसमें किसी विशेष परिस्थिति में ही परिवर्तन होता । सिमरन को शुरु शुरु में दो चार दिन इस व्यवस्था को अपनाने में समय लगा फिर धीरे धीरे वह इसकी अभ्यस्त हो गयी । क्योकि यह आवासीय था इसलिए सभी कर्मचारी यहीं कैम्पस में ही रहते थे और एक निर्धारित क्रम के अनुसार ही उन्हें बाहर जाने की अनुमति मिलती थी । सिमरन को यह अच्छा लगा । अब से गाँव जाने की कोई बाध्यता न रही थी । वह न मायके गयी न ससुराल । हाँ किरण के गर्भ से होने की जानकारी मिली तो घर जाने की उसकी इच्छा खत्म ही हो गयी ।
उस दिन वैशाखी थी गुरुद्वारे में सुबह सुबह से ही संगत ने जाना शुरु कर दिया । लोग नहा धोकर गुरुद्वारे में मत्था टेका । पाठी भाईजी गुरुबाणी से शब्द पढ रहे थे कि किरण को दर्द शुरु हो गये । सुरजीत ने दौङ कर बसंत को पुकारा और गुरनैब को बुलाने के लिए भेजा । गुरनैब गुरद्वारे जाने के लिए निकल रहा था तुरंत जीप लेकर आ गया । बिशनी , सुरजीत और किरण को लेकर वह बठिंडा चल पङे । वहाँ डाक्टर केतकी के क्लिनिक में किरण का नाम दर्ज था तो सीधे वह लोग वहीं पहुँचे । दस बजते न बजते किरण ने बेटे को जन्म दिया । किरण और बच्चे को स्वस्थ देख गुरनैब प्रसन्न हो गया । नर्स ने जब बच्चे को उसकी गोद में दिया तो उसने हजार रुपए मिठाई के लिए पकङा दिये । बच्चे का चेहरा मोहरा बिल्कुल निरंजन पर था और गोरा रंग और लंबी पतली ऊँगलियाँ , चौङे कंधे गुरनैब के । गुरनैब सोच में पङ गया – यह बच्चा उसका भाई कहलाएगा या बेटा । चाचा निरंजन के रिश्ते से वह उसका भाई लगना चाहिए और किरण से अपने रिश्ते के चलते उसका बेटा ।
उसने अपना सिर झटका । ऐसे खुशी के मौके पर यह सब नहीं सोचना है । तभी उसे सामने से पापा जी और बीजी आते दिखाई दिये । वे सिमरन के लिए हरीरा और सोंफ अजवाइन का पानी लाए थे । चन्न कौर ने किरण के सिर पर हाथ फेरा । बच्चे को शगुण दिया । थोङी देर रुक कर वे दोनों लौट गये । किरण को शाम को छुट्टी मिलनी थी । उसे दवाई दी गयी थी इसलिए वह सो गयी । गुरनैब भी शाम को लौटने की बात कह कर बाजार निकल गया । वहाँ से किला साहब गुरद्वारे में अरदास करवा कर वह दिन ढले लौटा और किरण को छुट्टी दिलवा कर गाँव ले आया ।
किरण को आज अपनी माई बहुत याद आ रही थी । सीरीं तो यहीं बठिंडा में ही ब्याही थी पर उन सबसे तो उसका रिश्ता ही खत्म हो चुका था । पिछले एक साल से कोई न आया था न गया था । पता नहीं अपने नाती के जन्म की खबर को वे लोग कैसे लेते । और यह खबर उन तक पहुँचाएगा कौन । काश आज माँ उसके पास होती । उसकी आँखों में आँसू आ गये । जिन्हें रोकने के लिए उसे बहुत मेहनत करनी पङी । सुरजीत ने उसकी भीगी आँखें देखी तो पास सरक आई । इस लङकी से उसे अपनी बच्ची जैसा मोह हो गया था । पिछले पाँच महीने से वह इसी के साथ रह रही थी – क्या हुआ किरण । उसने प्यार से उसके माथे को छुआ । कहीं दर्द हो रहा है क्या बुखार तो है नहीं ।
नहीं मौसी . कोई दर्द नहीं है । ऐसे ही मन भर आया ।
मैं समझती हूँ बेटे , आज न निरंजन है , न तेरे घर के । खुशी के मौके पर खुशी बाँटने वाला होना जरुरी होता है । भापा है न । तू चिंता मत कर ।
आप हो न मौसी । ये तो ऐसे ही ...।
जापे में रोते नहीं बेटे । शरीर बहुत कमजोर होता है न । अपना ध्यान रख ।
जी मौसी ।

बाकी कहानी अगली कङी में ...