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टेढी पगडंडियाँ - 50

टेढी पगडंडियाँ 

 

50 

 

मंगर जब भी किरण को याद करता , उसका मन गर्व से भर उठता । सही कहता था न वह , यह लङकी तो इस दुनिया की है ही नहीं , किसी और ही दुनिया से उतरी है और अचानक उनके घर आ गयी वरना कहाँ परियों जैसी किरण और कहाँ उनकी टूटी फूटी झोंपङी । कभी लगता ही नहीं था कि वह उनकी बेटी है । पढाई में कितनी होशियार थी , हमेशा फर्सट आती । सबसे ज्यादा नम्बर लेकर पास होती । दोनों बहन भाइयों की जान बसती थी उसमें । सीरीं के साथ कितना घुलमिल कर रहती थी । दो रूखा सूखा कौर खाकर मगन हुई रहती । सस्ते से सूटों में भी उसका रूप कहाँ छिपता था । बातों से सबका मन मोह रखा था उसने । ससुराल में भी अपने गुणों से सबका मन जीत लिया । जब मैं गया था तो गुलाबी जोङे में एकदम रानी लग रही थी । एकदम सूच्चा जोङा पहन रखा था उसने । मेरी तो हिम्मत ही नहीं हुई उससे बात करने की । ऐसे ही उठकर चला आया । बाद में सुना , बहुत बङी कोठी बनवा दी है सरदार साहब ने । उनका बेटा किरण का कितना ख्याल रखता है , इसका सबूत तो मिल रहा है । कितनी लङकियाँ हैं जिनके पति ने उनके कहने पर कालेज बनवाया । कालेज तो दूर की बात है , कोई ढंग का घर ही बनवा दिया हो । हम गरीबों की बेटियों को एक छत और दो वक्त की रोटी मिल जाए तो खुशकिस्मती मानी जाती है । सीरीं भी इसी घर की बेटी है । बेचारी चार बच्चों को पालने में ही हलकान हुई रहती है । सारा दिन काम ही काम । उलझी रहती है उसी में । एक दिन के लिए आ जाए तो घर के काम की चिंता उसके साथ ही आ जाती है । इसलिए कहाँ आ पाती है यहाँ । जब से शादी होकर ससुराल गयी है , मुश्किल से चार पाँच बार रहने आई होगी । वह भी हफ्ते के लिए कह कर आती है और तीसरे दिन लौटना पङ जाता है । यह किरण तो पाँच साल में एक बार भी नहीं आई । अगर उसे बुलाएं तो ...। वह अपनी इस सोच पर मुस्कुरा दिया । वह रानी अब हमारे गरीबों के कच्ची मिट्टी के झोंपङे में कैसे आएगी और अगर सौभाग्य से आ ही गयी तो उसे खिलाएंगे क्या ? चटनी और मूंग की दाल , हमें तो यही छप्पन भोग है । यही पेट भर मिल जाए तो बहुत है । वह तो अपने घर में ठीक है , जहाँ है वहीं खुश रहे । उसने पाग के छोर से बह आए आँसुओं को पौंछा और जूता गाँठने लगा ।
उधर भानी की खुशी संभाले न संभल रही थी । वह काम करती करती सुहाग गाने लगती । गाते गाते रो पङती । आँसू पौंछकर फिर से गाने लगती । कभी डोली के गीत गाती , कभी सोहर । इस बेटी को न हल्दी लगा पाई थी न तेल चढाया था । मेंहदी की रसम भी न हुई थी । न घर में मडुआ बाँधा गया था । एक तमन्ना रह गयी थी कि दुल्हन बनी किरण को एक नजर देख पाती । पर मन में एक तसल्ली भी थी कि किरण सही घर में थी । जहाँ पैसा था , इज्जत थी । अपना पूरा जोर लगाकर , सब घरबार बेच कर भी वह उसके लिए ऐसा घर वर न ढूँढ पाते । जो होता है , अच्छा ही होता है । उसका मन कर रहा था कि एक बार जा कर किरण का राजभाग अपनी आँखों से देख आए पर संकोच की बङी सी दीवार उसके सामने खङी थी । उसे कैसे पार किया जाय । मंगर तो एक बार जाकर देख ही आया है । बाकी गाँव के लोग आते जाते वहाँ की खबरें सुना जाते हैं तो मन के शांति मिल जाती है । एक माँ के लिए इससे ज्यादा क्या चाहिए ।
अगली सवेर ही लङकों ने बैलगाङियाँ सजा ली । जिनके पास जीप थी वे जीप निकाल लाए । गाँव में दो ट्रैक्टर भी थे तो उन्हें भी सजा लिया गया । लोग तैयार होकर सङकों पर आ गये थे । जिसे जहाँ जगह मिली ,सवार हो गया । गाँव से दो टोलियों में लोग सुखानंद के लिए चल पङे हैं । दोपहर तक पहुँच जाएंगे । दोपहर का लंगर वहीं खाएंगे । रात को कालेज के लान ही में सो जाएंगे । सुबह नहा धोकर पाठ सुनेंगे । लंगर में हाथ बँटाएंगे । कीर्तन सुनेंगे । प्रशाद लेकर लौट आएंगे । जो आज नहीं जा पा रहे है वे सब कल सुबह निकलेंगे । मंगर ने जेब से ग्यारह सौ के मुङे तुङे नोट गिन कर सरपंच को दिये । भाई जी ये आप किरण के हाथ में रख देना और सिर पर हाथ फेर देना ।
सरपंच ने नोट संभाले और मंगर के कंधे थपथपा कर ट्रैक्टर पर सवार हो गया । मंगर उन्हें दूर तक जाते हुए देखता रहा फिर खुद को काम में व्यस्त कर लिया । ये लोग करीब साढे ग्यारह बजे सुखानंद पहुँच गये । कालेज ढूँढने में उन्हें कोई परेशानी नहीं हुई । कारें , जीपें ,ट्रैक्टर ट्रालियाँ , पैदल सब उसी दिशा में बढे जा रहे थे । वे लोग भी उन सब के साथ चलते हुए खेतों के साथ साथ चल कर कालेज पहुँच गये । सामने कालेज की भव्य इमारत थी । बाहर दूर दूर तक वाहनों की कतारें लगी थी । बङे से गेट को पार करते ही लान में दरियां बिछी थी जिन पर कतारों में बैठे हजारों लोग पकौङे , जलेबी और चाय का नाश्ता कर रहे थे । इन्हें भी सेवादारों ने पंगत में बैठा दिया । नाश्ता करके सबने हाथ पैर धोए और गुरु साहब की हुजूरी में माथा टेका । कङाह प्रशाद की देग लेकर वे बाहर निकले ही थे कि सामने से किरण आती दिखाई दी । किरण इन सब गाँव वालों से मिल कर बहुत भावुक हो गयी । उस पर जब सरपंच ने जेब से मंगर का दिया शगुण निकाला तो किरऩ को अपने आप को सम्हालना मुश्किल हो गया । उसने पैसे लेने से मना किया ही था कि एक ओर से चन्न कौर आ गयी । - रख ले किरण । ये माँ बाप का प्यार है , उनकी असीसें हैं जो बङे नसीब से मिलती हैं । और उसने पैसे पकङ कर जबरदस्ती किरण की मुट्ठी में बंद कर दिये ।
तीन दिन लगातार गुरबानी की अमृतवाणी का पाठ होता रहा । रागी कीर्तन कर संगतों को निहाल करते रहे । अंत में आनंद साहब की पौङियाँ पढी गयी । अरदास होने वाली थी कि जसलीन के साथ उसकी माँ अमृत कौर ने आगे आ माथा टेका । गुरनैब और किरण ने उन्हें देखा तो संतोष की सांस ली । अरदास हुई । गुरनैब ने रुमाला और इक्कीस हजार रुपये जसलीन के हाथ पर रखे - ले चाची , दे दे । सारे पाठियों को सिरोपाव दिये गये । प्रशाद लेकर सारी संगत ने भोजन किया । जसलीन ने चन्न कौर और अवतार सिंह के पैर छुए । चन्न कौर ने जसलीन को गले से लगा लिया । दोनों औरतें एक दूसरे के गले से चिपकी न जाने कब तक आँसू बहाती रही । किऱण ने आकर जसलीन के पैर पकङ लिए – मुझे माफ कर दे बहन ।
तू माफी क्यों माँगती है पगली । तेरा क्या कसूर है हम दोनों की तकदीर तो एक जैसी है । दोनों का घर बार छूट गया ।
ये तेरा बेटा है ,बहन । किरण ने घबराये हुए गुरजप का हाथ जसलीन को पकङाया – ये तेरी माँ है बेटा । मैंने तुझे कई बार बताया था न ।
बङी माँ , सत श्री काल ।
सत श्री अकाल बच्चे । जसलीन ने गुरजप को गले से लगा लिया ।

 

 

बाकी कहानी अगली कङी में ...

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