टेढी पगडंडियाँ - 41 Sneh Goswami द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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टेढी पगडंडियाँ - 41

टेढी पगडंडियाँ

41

गुरनैब एकटक किरण को देखे जा रहा था । किरण बेहद खूबसूरत थी , कोई अप्सरा पर आज से पहले इतनी सौंदर्य की मलिका कभी नहीं लगी थी । उसका रंग हल्दी और केसर मिला दूधिया रंग हो गया था । लेटी हुई किसी बादशाह की बेगम से कम न लगी । ऊपर से उसका यूँ शर्माना गजब ढा रहा था । काफी देर तक वह हथेलियों में मुँह छिपाये रही फिर धीरे धीरे अपनी ऊँगलियाँ सरकाई तो जैसे चाँद बदली से बाहर आ गया । उसके चेहरे की मुस्कान अलग चाँदनी की तरह चेहरे पर बिखरी हुई थी ।
किरण ने गुरनैब का चेहरा देखा । साथ ही उसकी नजर बेटे पर पङी । अनभयस्त हाथों में बच्चे का तौलिया सरक कर नीचे जमीन से लगने लगा था और बच्चा नंगा हुआ पङा था । किरण उठी और उसने गुरनैब के हाथों से बच्चे को पकङा । उसका तौलिया ठीक किया और अच्छे से लपेट कर दोबारा उसे पकङा दिया । इस उठाने पकङाने में बच्चा उठ गया और कुलबुलाने लगा तो गुरनैब घबरा गया । उसने तुरंत किरण को वापिस पकङाते हुए कहा – देख इसे शायद भूख लगी है ।
और तुरंत चलने को जूती पहनने लगा । सुरजीत तब तक चाय का गिलास लिये आ गयी थी तो वह फिर से बैठ गया और चुस्कियों में चाय पीने लगा । किरण दीवार की ओट लिए बच्चे को आँचल से ढक कर दूध पिला रही थी । चाय पीकर गुरनैब बाजार की ओर निकला । करीब बीस बाईस मिनट बाद वह बाजार में था । अब .. । थोङी देर बाद ही उसने खुद को सुनार की दुका में खङा पाया । दुकान वाला उसे आते देखकर हाथ जोङ कर खङा हो गया – आओ सरदार साहब । बैठो । क्या दिखाऊँ । बताओ जी ।
साथ ही उसने लङके को चाय लाने को बोल दिया ।
गुरनैब को वह दिन याद आया , जब वह सिमरन के साथ यहाँ आया था । पूरा दिन खरीददारी करने और खाना होटल में खाने के बाद वे यहाँ आये थे । उसने सिमरन के लिए एक प्यारी सी डायमंड की अँगूठी पसंद की थी जो सिमरन को बहुत पसंद आई थी । बी जी ने भी उसकी पसंद की दाद दी थी । आज सिमरन उससे रूठ कर घर से चली गयी है । उससे बात भी करना नहीं चाहती । उसने आँख में आये आँसुओं को सायास रोक लिया । नहीं , वह कमजोर नहीं पङेगा । जो भी जैसे भी हालात होंगे , उनका दिलेरी से सामना करेगा ।
इतनी देर में लङका चाय और बिस्कुट ले आया था और उसे पकङने का आग्रह कर रहा था । उसे संभलने का अवसर मिल गया । वह चाय पकङ कर घूँट घूँट पीने लगा । चाय ठीक ठीक बनी थी । .जैसे ही चाय निपटाकर उसने कप रखा – रमेश फिर आ गया .- हांजी सरदार साहब , हुकम करो जी । क्या दिखाऊँ आज ।
चूङियाँ दिखाओ ।
लो जी , अभी हाजिर हैं ।
वह एक के बाद एक डिब्बे खोलता जा रहा था । आखिर में गुरनैब ने कंगनों का खूबसूरत सा जोङा पसंद किया । कंगन की कारीगरी देखते ही बनती थी । डेढ लाख का चैक देकर उसने कंगन पैक करा लिये । बाहर निकला तो आसमान में तारे दिखाई देने लगे थे । सूरज छिप चुका था । उसने जीप गाँव की ओर मोङ दी । रास्ता लगभग सुनसान हो गया था । कोई कोई आदमी अपनी साइकिल पर दिखाई दे रहा था जो अपनी दिहाङी पूरी करके शहर से लौट रहा था । उसके पाँव रेस पर आ गये । लगभग जीप भगाता हुआ वह हवेली पहुँचा । चन्न कौर डयोढी में चिंता मग्न खङी थी । उसे घर आया देख उसकी साँस में साँस लौटी - कहाँ चला गया था तू ? सुबह नाश्ता करते करते बीच में ही छोङ कर भाग खङा हुआ । रात होने को आई और तू अब आ रहा है । पूरा दिन कहाँ घूमता रहा ।
कहीं नहीं बी जी , पहले कोठी गया था । काका तो बङा ही सोहना है । आज मैंने पहली बार देखा । एकदम गोरा चिट्टा । चाचे का छोटा माडल है । फिर बाजार चला गया । देख ये किरण के लिये लाया हूँ – उसने जेब से निकाल कर डिबिया माँ के सामने कर दी ।
चन्न कौर ने डिबिया खोली – ये तो बहुत ही सुंदर हैं । किरण के हाथों में खूब जचेंगे ।
चल अब खाना खाले ।
ठीक है बी जी । आप खाना डालो । मैं दो मिनट में हाथ मुँह धोकर आया ।
गुरनैब खाना खाने बैठा तो चन्न कौर ने कहा – कल काका पूरे तेरह दिन का हो जाएगा । उसे गुरद्वारे मत्था भी टिकाना है और बाबाजी से नाम भी निकलवाना है ।
जी बी जी । मैं सुबह जल्दी तैयार होकर गुरद्वारे चला जाऊँगा और देग प्रशाद बनवा लूँगा । तब तक आप भी आ जाना ।
सुबह गुरनैब साढे चार बजे ही उठ गया और नहा धोकर गुरद्वारे पहुँच गया । वहाँ पाठी भाई साहब से सारी बात करके वह कोठी आया और किरण को गुरद्वारे चलने के लिये कहा । किरण नहा धो चुकी थी और अब तैयार हो रही थी । सुरजीत बच्चे की मालिश करके उसे नहलाने की तैयारियों में लगी थी । पंद्रह मिनट में ही यह सब तैयार होकर गुरद्वारे पहुँच गये । वहाँ चन्न कौर और अवतार सिंह इन्हें द्वार पर ही खङे मिले ।
चन्न कौर ने किरण को भर नजर देखा । बङे सुरुचिपूर्ण ढंग से तैयार हुई थी किरण । हल्के आसमानी रंग का रुपहली कढाई वाला सिल्क का सूट पहना था और गोटा जङा दुपट्टा सिर पर लिया था । चन्न कौर ने ठंडी सांस ली । इतनी प्यारी है यह लङकी । अगर कोई न जानता हो तो इसे देख कर कोई नहीं कह सकता कि इसका जन्म किसी चमारटोले में चमारदम्पति से हुआ है । पूरी जट्टी लगती है । वही कद काठ , वैसा ही रूप और वैसा ही अनखीला चेहरा ।
किरण ने आगे बढकर धरती को स्पर्श कर पैरी पौना कहा तो चन्नकौर ने आशीषों की झङी लगा दी । किरण ने बच्चा चन्न कौर के हाथ में सौंप दिया । चन्न कौर ने बच्चे को गोद में लिया । और गले से लगा लिया ।

बाकी कहानी अगली कङी में ...