टेढी पगडंडियाँ - 40 Sneh Goswami द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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टेढी पगडंडियाँ - 40

टेढी पगडंडियाँ

40

गुरनैब ने अभी आधा ही रास्ता पार किया था कि हल्की हल्की बारिश शुरु हो गयी । अभी कुछ देर पहले तो चारों ओर सुनहरी धूप खिली थी कि अचानक पता नहीं कहाँ से उङती हुई बदली छा गयी । कोई और समय होता तो गाङी की छत पर बूँदों की टप टप का संगीत उसे अच्छा लगना था पर इस मनस्थिति में उसका गुस्सा भङक गया । इस बादल के टुकङे को भी अभी आना था । उसने मन लगाने के लिए रेडियो आन कर लिया । वहाँ गाना बज रहा था – रिमझिम घिरे सावन , उलझ उलझ जाये मन । गाना सुन कर उसका उदास मन पहले से भी उदास हो गया । उसने रेडियो का कान उम्मेठ दिया । रेडियो एकदम चुप हो गया । मानो उसने डाँट खाकर मुँह पर ऊँगली रख ली हो । अगर वह कोई जीता जागता इंसान होता तो जरुर पूछता – भई मुझ पर क्यों गुस्सा होता है ?
मैने क्या किया ? तूने खुद से होकर कहा – गाओ तो मैं गाने लगा । इन बादलों पर गुस्सा कर रहा है ?
इन बादलों पर गुस्सा क्यों ? ये तो तेरे दुख में ही आँसू बहा रहे हैं । तेरी तकलीफ में तेरा साथ दे रहे हैं ।
गुरनैब ने अपना गुस्सा काबू किया । रास्ते को गौर से देखा । पहले ही वह रास्ता भटक कर कई मील के चक्कर में पङ चुका है । अब वह और नहीं भटकेगा ।
सामने सङक के किनारे उसे एक ढाबा दिखा तो उसे याद आया कि उसने सुबह से सिर्फ एक कप चाय पी है । सोचा था , चाय नाश्ता आज सिमरन के साथ ही कर लेगा पर सिमरन ने तो उसे चाय पानी पूछा ही नहीं । कैसी बेरुखी से बात की और उसे उठाकर बाहर कर दिया ।
हूँ । अब वह कभी सिमरन से बात नहीं करेगा । लेने जाने का सवाल ही नहीं । खुद से लौटी तो भी बात ही नहीं करेगा ।
उसने गाङी वहीं रोक ली और कुर्सी पर जा बैठा । उसे आते देख होटल का लङका आर्डर लेने उसके पास आया तो उसे चाय बनाने को बोल दिया । लङका चाय लाने के लिए मुङा - सुन साथ में दो आमलेट भी ले आना ।
जी साब ।
थोङी देर में लङका उसकी चाय और आमलेट की प्लेट लिए हाजिर हुआ तो उसे अहसास हुआ कि वह कितना भूखा था । जल्दी से उसने नाश्ता खत्म किया । पेट में कुछ पहुँच जाने से अब उसका मन शांत हो गया था । तब तक बरसात भी रुक गयी थी तो वह चल पङा । आधे घंटे बाद वह घर पहुँचा तो बी जी उसका बेसब्री से इंतजार कर रहे थे । जबसे ये तीन कत्ल हुए थे तबसे वे एक मिनट के लिए भी गुरनैब कहीं चला जाता तो वे घबरा उठते थे ।
कहाँ चला गया था तू सुबह सुबह । बता कर भी नहीं गया ।
यहीं था बीजी ।
यहीं कहाँ ? दोपहर हो गयी और तूने सुबह के परोंठे भी अब तक नहीं खाये ।
लाओ दो बीजी । सच में बहुत भूख लगी है ।
चन्न कौर एक थाली में मेथी के परोंठे , दही और लस्सी का गिलास ले आई ।
ले पकङ और तूने बताया नहीं इतनी सुबह कहाँ गया था ।
मैं सिमरन को लेने गया था । उसे घर से गये हुए तीन महीने होने को आये पर उसने आने से साफ इंकार कर दिया ।
सिमरन के पास ? कैसी है वो ? “ ठीक तो है न ?
ठीक है । ऐश कर रही है ।
अपने घर बार के बिना कैसी ऐश बेटा । और ननी , वो कैसी है ।
वो तो मेरे पास ही नहीं आई । देख कर ही रोने लग गयी । पहचानती ही नहीं मुझे ।
मैने बुलाया तो गोद में आने की बजाय दूर भाग गयी ।
कोई बात नहीं । तू चिंता मत कर । तेरी सलामती की चिंता में सिमरन ऐसा कर रही है । इतनी घटनाये अचानक से घट गयी हैं न । तेरे लिए मन में थोङा गुस्सा भी है । तू उसे संभलने के लिए थोङा वक्त दे । समय के साथ सब ठीक हो जाएगा ।
गुरनैब से अगला टुकङा गले से नीचे न उतारा गया । वह थाली सरका कर उठ गया । नलके पर जाकर उसने हाथ धोए और हवेली से बाहर निकल गया ।
चन्न कौर उसे पुकारती ही रह गयी – बाहर जाने से पहले रोटी तो खत्म कर जा । ओए तूने अभी एक ही परौंठा तो खाया है । लेकिन उसकी पुकार हवेली की दीवारों से टकराकर लौट आई । गुरनैब तो तब तक अगली बीही पार कर चुका था । वे धम्म से मंजी पर बैठ गयी । इस बिखरते घर को सम्भालने के लिए वह करे तो क्या करे ।
अब सच्चा मालिक ही कोई राह सुझाए तो बेङा पार हो ।
हवेली से निकल कर गुरनैब चलते चलते कोठी जा पहुंचा । कोठी का दरवाजा खुला ही था । सुरजीत किसी काम से बाहर आई हुई थी । छोटे सरदार को आया देख कर वह दरवाजे से एक तरफ हो गयी । गुरनैब दहलीज लाँघ कर भीतर आया । किरण धूप में बिछी चारपायी पर लेटी हुई थी । शायद सो रही थी । गुरनैब सामने बिछी दूसरी चारपायी पर बैठ गया । तब तक सुरजीत अंदर से दरी और चादर उठा लाई थी – आप उठो सरदार साहब अलानी चारपायी पर नहीं बैठते । और वह अस्त व्यस्त हुई चादर बिछाने लगी । किरण की नींद खुल गयी थी । वह चारपायी पर बैठ गयी ।
तू लेटी रह न । मैं तो इधर से गुजर रहा था । सोचा हाल चाल पूछता चलूँ ।
नहीं नहीं कोई बात नहीं यह छोटा सरदार सारी रात सोने नहीं देता । नींद पूरी नहीं होती । इसलिए लेटते ही आँख लग गयी ।
तब तक सुरजीत ने सोते हुए बच्चे को गुरनैब की गोद में लिटा दिया । बच्चा उठाये गुरनैब को देखकर किरण का जी जुङा आया । कितने सुंदर लग रहे दोनों एक साथ । किसी की नजर न लगे ।
बाजार से कुछ मंगवाना तो नहीं है ।
नहीं अभी तो सारा राशन है । बी जी ने बहुत सारा सामान भिजवा दिया है . दो महीने नहीं खत्म होने वाला ।
गुरनैब ने किरण को देखा । उसका रंग पीला हल्दी हुआ पङा था । थोङी कमजोर भी हो रही थी फिर भी उसके चेहरे पर अलग ही रौनक और चमक थी । मातृत्व की अनोखी चमक । माँ बनकर वह पहले से भी खूबसूरत हो गयी थी । गुरनैब उसका चेहरा देखता रह गया ।
ऐसे क्या देख रहा है
लग रहा है तुझे पहली बार देख रहा हूँ । पहले से कहीं ज्यादा खूबसूरत लग रही है ।
धत ऐसा नहीं कहते - किरण ने शर्माकर अपना चेहरा अपनी हथेली में छिपा लिया ।

बाकी कहानी अगली कङी में ...