टेढी पगडंडियाँ - 51 Sneh Goswami द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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टेढी पगडंडियाँ - 51

 

 

51

जसलीन गुरजप को देर तक देखती रही । हूबहू निरंजन । रंग उसने गुरनैब का लिया था पर नैन नक्श कद काठ पूरे का पूरा निरंजन का । उसने गुरजप को ढेर सारा प्यार किया ।कस कर गले से लगा लेती । उससे अलग होती फिर से गले लगा लेती । किरण उनका मिलन देखती रही ।
अगर तुमने हमें माफ कर दिया हो तो हमारे साथ चल कर हवेली में रहो बहन जी । पापाजी और बी जी बिल्कुल अकेले पङ गये हैं । सारा दिन उदास रहते हैं । तुम आ जाओगी तो उन्हें जीने का सहारा मिल जाएगा । सिमरन बहन भी यहाँ से चली गयी है । आज भी नहीं आई ।
सिमरन ने जो किया ठीक किया । अब वह स्वाभिमान से जी रही है । ननी सात आठ साल की हो गयी है और दो साल में उसके बराबर हो जाएगी । बङी बेटियाँ बेटियाँ कम सहेलियाँ ज्यादा होती हैं । सुख दुख मिल कर बाँट लेंगी ।
मेरा तो तुम जानती ही हो । निरंजन यूं चला गया । मेरे दोनों भाई कतल कर दिये गये । अब इतनी बङी जायदाद है । खेत हैं । अकेली विधवा माँ है । इस सबको छोङ कर आ नहीं सकती ।
उसने झोले से कुछ कागज निकाले और गुरजप की हथोली पर ऱख दिये ।
ये क्या है बहन ।
ये मेरे और मेरे बेटे के बीच की बात है । आज पहली बार अपने बेटे को देखा है तो शगुण तो देना बनता है कि नहीं । तुम बीच में न ही बोलो तो अच्छा है ।
उसने अपने ड्राइवर को फोन मिलाया – कहाँ है भाई । लंगर छक लिया हो तो आ जा । चलना है ।
अभी से । इतनी जल्दी ।
हाँ . आना जरूरी था इसलिए आ गयी । अब भोग पङ गया । जाना ही है । तब तक ड्राइवर आ गया था । किरण को वहीं छोङ कर वे दोनों माँ बेटी चल पङी ।
पर बीजी और पापाजी से तो मिलकर जाना ।
उसकी आवाज गाङी के इंजन की आवाज में दब गयी और कार धूल उङाती चली गयी । किरण कुछ देर तो वहीं खङी रही फिर अपने आप में लौटी । अंदर लोग अभी पंगत में बैठे भोजन खा रहे थे । वह सब्जी की बाल्टी लाकर पंगत में बाँटने लगी ।
उसके गाँव के लोग भी खाना खाकर जाने की तैयारी कर रहे थे । वे चलने से पहले चन्न कौर से मिलने गये । चन्न कौर ने सारे लोगों को एक एक पगङी उपहार में दी । सबके लिए दो टोकरे मिठाई के दिये । और तीन लिफाफे मंगर और उसकी घरवाली के लिए दिये । एक कुर्ता पायजामा मंगर का , एक बनारसी सिल्क का सूट भानी का और जीन्स के साथ शर्ट बीरे के लिए । एक टोकरा मिठाई भी उनके लिए पकङाई ।
बीजी इतना सारा ... । किरण ने विरोध करना चाहा ।
तू चुप कर । आज इतना बङा कारज पूरा हुआ है तो मायकेवालों का इतना तो हक बनता ही है न । किरण फिर कुछ नहीं बोली । सब लोग बार बार झुक झुक कर सत श्री अकाल बुलाते हुए विदा हुए । सारे रास्ते अवतार सिंह , चन्न कौर के विनम्र स्वभाव की चर्चा करते हुए वे किरण के भाग्य की सराहना करते रहे । मंगर भानी और बीरे जब यह सब सुना तो उन्होंने अपने भाग्य के लिए परमात्मा का शुक्र किया ।
शाम को चार बजे तक सब लोग खा पीकर उनकी तारीफ करते हुए विदा हो गये । टैंट वाले टैंट , दरियाँ , आदि सामान ले गये । बरतन वालियों ने सारे बरतन मांज कर साफ कर दिये तो गुरनैब वह भी गुरद्वारे छोङ आया ।
घर आकर किरण को उन कागजों की याद आई जो जसलीन ने गुरजप को दिये थे । उसने खोल कर देखे । यह तो जमीन के कागज थे जो अवतार सिंह ने जसलीन को दिये होंगे । जसलीन ने निरंजन के हिस्से की सारी जमीन जायदाद गुरजप के नाम कर दी थी ।
अगले दिन से कालेज में बाकायदा कक्षाएँ शुरु हो गयी । अब किरण सुबह उठकर गुरजप को तैयार करती और उसे उसके स्कूल छोङते हुए कालेज जाती । दोपहर में गुरनैब स्कूल से उसे हवेली ले आता । जहाँ वह बी जी के साथ खेलता रहता । शाम को किरण जब घर आती तो बसंत उसे कोठी ले आता । बीजी की सेहत सुधर रही थी । अब वे दोपहर का इंतजार करती । कब एक बजें और गुरनैब गुरजप को लेकर आए । गुरजप के आते ही अवतार सिंह और चन्न कौर बच्चा बन जाते । वे गुरनैब का बचपन दोबारा जी रहे थे । गुरजप भी बङी हवेली में आकर बहुत खुश रहता ।
देखते ही देखते तीन साल बीत गये । किरण के फाइनल एग्जाम खत्म हो गये थे । अब परीक्षाओं का परिणाम आने वाला था । किरण से ज्यादा गुरनैब को परिणाम की चिंता हो रही थी । वह हर रोज गर्ग बुक डिपो पर चला जाता – भइया बी ए फाइनल का रिजल्ट कब तक आ जाएगा । किरण हँसती – इस तरह रोज रोज पूछने से रिजल्ट जल्दी आ जाएगा । इतनी बेचैनी तो तुम्हें उस दिन भी नहीं हुई जिस दिन गुरजप दुनिया में आने वाला था । गुरनैब बुरी तरह से झेंप जाता और उसी झेंप में यूनीवर्सिटी के किसी क्लर्क को फोन मिला बैठता ।
आखिर में इंतजार की घङियाँ खत्म हो गयी । रिजल्ट आ गया । किरण के पेपर बहुत अच्छे हुए थे लेकिन उसके इतने अच्छे अंक आ जाएंगे , यह तो उसने सोचा ही नहीं था । वह पिचासी प्रतिशत अंक लेकर पास हो गयी थी । मार्कशीट देखते हुए उसकी आँखें भर आई । आँसू बहने लगे । आँखों के सामने धुंध सी छा गयी । बी ए पास करना उसका बहुत पुराना सपना था । उससे भी ज्यादा बीरे ने यह सपना देखा था । आज अगर बीरा यहाँ होता तो उसकी खुशी का कोई ओर छोर न होता । सारे गाँव में लोगों को रोक रोक कर बताता । मां आटा भूनकर कसार बनाती और सारे अङोस पङोस में बाँट कर आती । बापू का चेहरा गर्व से भर उठता । वह अपने गाँव की पहली ग्रेजुएट लङकी होती । पर अब तो यह खबर उन तक पहुँचेगी भी या नहीं , कौन जाने ।
तभी गुरनैब सामने से मिठाई का डिब्बा पकङे आता दिखाई दिया । उसने आते ही मिठाई का डिब्बा खोल कर एक लड्डू किरण के मुँह में टूँस दिया ।
वाह किरण , तूने तो कमाल कर दिया । इतने अच्छे नम्बर लेकर पास हुई है , मैंने तो उम्मीद ही नहीं की थी ।
मैंने भी कहाँ सोचा था । अच्छा , कालेज का रिजल्ट कैसा रहा ।
बहुत बढिया । अट्ठानवे प्रतिशत रहा । एक लङकी की कम्पार्टमैंट आई है । वह भी सितंबर में पास कर जाएगी ।
यह तो बहुत अच्छा रहा । अब एम ए की क्लासें भी शुरु करेंगे ।
तू एम ए करना चाहती है ?
मैं इस बार सिविल सर्विस की परीक्षा देना चाहती हूँ । अगर तू चाहे ।
यह तो बढिया सोचा तूने । कह कर किरण को गले से लगा लिया गुरनैब ने । दोनों के जिस्म एकाकार हो गये थे ।

 

समाप्त