टेढी पगडंडियाँ
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उस दिन वह पूरा दिन गुरनैब ने इधर उधर भटकते हुए बिताया । तपती हवा के साथ साथ वह यहाँ से वहाँ घूमता रहा । धीरे धीरे दोपहर ढलने लगी । फिर शाम उतर आई । सूरज अपने घर लौटने लगा था । सूरज की किरणें पेङ की ऊँची फुनगी पर जा बैठी । चरने गये पशु , गाय भैंसे अपने ठिकानों पर लौट आये । पक्षियों ने अपने घोंसलों की ओर मुङना और चहचहाना शुरु किया । खेतों में काम करते हुए किसान और दिहाङी करने गये मजदूर अपने घरों में लौटने शुरु हो गये थे । गुरनैब भी घर की ओर लौटा । हवेली के गेट पर पहुँचा ही था कि सामने की सङक से सिमरन आती दिखाई दी ।
अब ये कहाँ गयी थी और ननी कहाँ है ।
दोनों ने एक साथ हवेली में कदम रखा ।
ये तू पूरा दिन कहाँ भटक कर आ रहा है
पहले से उखङा हुआ गुरनैब हत्थे से ही उखङ गया – मेरी बात छोङ , तू कौन से पैरिस की सैर करके आ रही है अकेली ? कहाँ गयी थी बिना पूछे , बिना बताए ? किसी को बताने की कोई जरुरत है या नहीं ।
“ नहीं , कोई जरुरत नहीं । जो मेरा मन करेगा , वही करुँगी । जहाँ मन करेगा , वहीं जाऊँगी । तू क्या जो करता है , पूछ कर करता है या करने से पहले घर बताने आता है ? “
“ इतनी बकवास क्यों शुरु करली तूने ? सीधे सीधे पूछ रहा हूँ , बता दे , आ कहाँ से रही है ? “
“ तुझसे मतलब ? “
मतलब क्यों नहीं , बीबी है तू मेरी । एक घर में रहना है तो पता तो होना ही चाहिए ।
“ मैंने अब इस घर में नहीं रहना । बाहर रहूँगी , मेहनत करूँगी । ननी को अपने हिसाब से पालना है मुझे । “
ननी का ख्याल आते ही वह हवेली के भीतर भागी । उसने चौंका , कमरे सब देख डाले पर घर में इस समय कोई नहीं दीखा । उसे भीतर आते देखकर नौकर पानी का गिलास लिए आया ।
“ ये सब लोग कहाँ है ? कोई भी दिखाई नहीं दे रहा । न बीबीजी , न पापाजी , न चाची । ननी कहाँ है ? “
“ बहुरानी ! वे तो सारे संगत गये है । “
“ संगत ? यूँ अचानक ? “
“ वहाँ भी होनी बरत गयी है बिटिया ? “
“ मतलब “ ?
आप जब सुबह घर से निकली , उस समय अभी अंधेरा ही था । सब सोये पङे थे । दिन अभी निकला नहीं था । सात बजे होने हैं कि संगत मंडी से खबर आ गयी । कल रात हमारी हवेली की अंतिम अरदास से वापिस लौट रहे जंगीरसिंह और सतबीरसिंह दोनों भाइयों को किसी ने संगत मंडी के बाहर रास्ते से थोङा हटकर बने खेतों के बीचोबीच गोलियों से भून कर मार डाला था । दोनों का राजदूत वहीं उनके पास उल्टा पङा था । पूरी छ की छ गोलियाँ सामने से सीने में ठोकी गयी थी । दोनों ने मौत को सामने देखकर मोटरसाईकिल शायद खेतों के बीच से भगाने की कोशिश की थी पर मारने वाले ने सम्भलने का कोई मौका नहीं छोङा था और दोनों वहीं खेतों के बीचोबीच ढेर हो गये थे । सुबह खेत में काम करने आए किसानों और सीरीयों ने देखा तो दौङकर उनके घर जाकर मासी को बताया । एक बंदा इधर भगाया । खबर मिलते ही सारे चले गये ।
खबर इतनी ह्रदयविदारक थी कि सिमरन से खङा न रहा गया । वह जहाँ खङी थी , वहीं बैठ गयी ।
हे भगवान , अब ये क्या हुआ ? पहला सदमा कम था क्या ? चाची का क्या बनेगा । पहले चाचा अचानक चला गया । उसे गये अभी तेरह दिन ही बीते हैं । अभी तो उसके सोग से बाहर नहीं निकले कि चाची के दोनों भाई यूँ मर गये । तीनों जीजा साला थोङे ही दिनों के फेर में । एकदम कङियल जवान तीनों के तीनों । उम्र तीनों की तीस से चालीस के आसपास रही होगी । बेचारी चाची कैसे सहेगी इतना बङा दुख । और मासी उसका बेचारी का क्या होगा । मौसा को मरे अभी चार साल हुए होंगे और अब पहले जवाईं और फिर जवान दोनों बेटे । कैसे जिएगी वह । बेचारी अकेली विधवा औरत । उसके तो सारे सहारे खत्म हो गये । इतनी सारी खेती , जमीन जायदाद कैसे सम्हालेगी वह ।
सिमरन की आँखों से लगातार आँसू बह रहे थे । गुरनैब ने सिमरन को यों बिखरते और बिलखते देखा तो पास आकर सीने से लगा लिया । सिमरन उसकी छाती से लगी न जाने कितनी देर रोती रही । थोङी देर पहले का असमंजस अब दूर हो गया था ।
इंटरव्यू के बाद उसे सर्विस पर आने के लिए चार दिन मिले थे और उसने दो दिन में अपनी सहमति देनी थी । उसके बाद अगले सदस्य को बुलावा भेजा जाना तय था । बस में बैठी हुई वह अपनेआप से लङती रही थी । जाए या न जाए । हाँ कहे या न कहे । घर में कैसे बताएगी कि उसे नौकरी मिल गयी है और वह ननी को लेकर इस माहौल से दूर चली जाना चाहती है । वह सोच सोच कर पगला गयी थी कि सास और ससुर से कैसे बात करेगी । आजतक तो कभी मुँह खोला नहीं । कभी कुछ कहने की जरुरत ही नहीं पङी । बिना कहे ही सब कुछ समझ जाती है चन्न कौर । उसके मन की हर इच्छा पूरी कर देती है । इन लोगों से दूर होने की कल्पना मात्र उसे असहनीय लगी थी । ननी तो इनसे ऐसी हिलीमिली है कि एक पल के लिए भी उसके पास नहीं आती ।
पर अब नहीं । कोई दुविधा नहीं । उसे हर हालत में यहाँ से निकलना है । अपना कैरियर बनाना है । ननी को एक सुरक्षित भविष्य देना है ।
उसने आँसू पोंछे ।
“ सुन ! मुझे नवोदय विद्यालय में लैक्चरार की नौकरी मिल गयी है । खाना मेस में मिलेगा और रहने को क्वार्टर भी । मैं परसों जा रही हूँ । “
“ पागल हो गयी है तू । यहाँ किस चीज की कमी है तुझे जो तुझे कमाने की पङी है । कहीं नहीं जाना तूने । आराम से घर में रह । “
“ जाना तो है मुझे । आराम से वह रह रही है न चमारी । इतने कत्ल करवाके चैन से सबकी छाती पर मूँग दल रही है । “
“ तू उसे बीच में क्यों ले आयी । तेरा क्या ले रही है वह । “
और कुछ लेना बाकी रह गया है तो वह भी दे आ न । एक की तो जान ही ले ली ।
कर तुझे जो करना है गुरनैब गुस्से में पैर पटकता हवेली से बाहर हो गया ।
बाकी कहानी अगली कङी में ...