TEDHI PAGDANDIYAN - 27 books and stories free download online pdf in Hindi

टेढी पगडंडियाँ - 27

टेढी पगडंडियांँ

27

अगले दिन सुबह सिमरन पौने चार बजे ही उठ गयी । चौंके में जाकर उसने गोभी की सब्जी बनाई । आटा गूंथा । फिर चाटी में दही डालकर मट्ठा बिलोने लगी । रई चलने की आवाज सुनकर जसलीन की नींद खुली । वह आधी सोई आधी जागी पलंग पर आँखें बंद किये लेटी हुई थी । उसने ध्यान से आवाज सुनने की कोशिश की । नहीं , यह सपना नहीं था । आवाज नीचे रसोई से ही आ रही थी । वह एकदम बिस्तर छोङकर उठ बैठी और रसोई में जा पहुँची ।
ये आज तुझे क्या हुआ सिमरन जो आधी रात को ही रसोई में जुटी पङी है ?
जसलीन ने चूल्हे पर चढाई हुई कढाई में कङछी हिलाई और एक आलू का टुकङा निकाल कर उसके पकने की जाँच करने लगी । - पता है अभी साढे चार नहीं हुए और तू पूरी रसोई फैलाए बैठी है ।
सिमरन ने तब तक लस्सी बिलो ली थी और अब मक्खन निकाल रही थी ।
जी चाची । बस दो परौंठे बनाने हैं । फिर यह सब बंद कर दूँगी । बाकी के परौंठे आप आठ बजे बना लीजिएगा ।
क्यों , तू आज कहीं जा रही है क्या ?
जी चाची , आज एक वाक इन इंटरव्यू है । सोचा , देकर देखूँ । शायद पोस्टिंग मिल ही जाए । वह फीकी सी हँसी हँसी ।
क्या ? - जसलीन सुनकर हिल गयी । - तूने नौकरी करनी है ? इस बारे में तूने घर पर बात की है ? गुरनैब या भरजाई से पूछा है ?
अभी तो नहीं की पर वापिस आकर बता दूँगी या आप बता दीजिएगा । और मैं अभी फार्म जमा करने जा रही हूँ । नौकरी कौन सा हाथ में मिली हुई है कि कल ही जाना पङेगा । – सिमरन ने परौंठा सेकते हुए कहा ।
जसलीन हैरान परेशान सिमरन का मुँह देखे जा रही थी ।
सिमरन ने जबरदस्ती मुसकुराने की कोशिश की ।
सच तो यह है चाची कि मैं अपने पैरों पर खङी होना चाहती हूँ । खुद कमाकर खर्च करना चाहती हूँ । आप घर वालों को संभाल लोगे न ।
उसने आगे बढकर चाची के हाथ थाम लिए ।
जसलीन ने सिमरन की आँखों में देखा – वहाँ विश्वास और मजबूत इरादे पैर जमाए खङे थे । फिर उसने कोई ऐतराज नहीं किया । कुछ नहीं कहा । सिमरन ने दोनों परौंठे अखबार में लपेटे और जसलीन को वहीं सोच में गुम छोङ पर्स उठाने कमरे में चली गयी । कमरे में आकर उसने फाइल खोली और एक बार फिर से अपने सार्टिफिकेट देखे । फाइल और पर्स लेकर वह नीचे आ गयी । जसलीन अभी रसोई में बिखरा सामान संमेट रही थी । हालांकि ये दोनों हमउम्र थी पर रिश्ते का लिहाज तो था ही । सिमरन ने आगे बढकर जसलीन के पैर छुए । जसलीन ने उसे गले लगा लिया ।
चाची ननी ...।
तू उसकी चिंता मत कर । निश्चिंत होकर जा । परमात्मा तेरी इच्छा पूरी करें ।
सिमरन दरवाजा खोलकर गली में हो चली ।
जसलीन ने ठंडी साँस भरी ।
ये तो चली गयी । अब सारा दिन मोरचा मुझे संभालना है । सबको बताना पङेगा । समझाना पङेगा । और न समझे तो लङना भी पङेगा । ऊपर से ननी होगी । उसे भी देखना है । उसे नहलाना , धुलाना , खिलाना और सबसे जरुरी मचलने या रोने पर बहलाकर चुप कराना है ।
जसलीन यह सब सोचते हुए सिमरन के शयनकक्ष मे चली आई । वहाँ ननी गहरी नींद सो रही थी । जसलीन वहीं उसके पास लेट गयी । ननी आहट से थोङा कुनमुनाई और फिर सो गयी ।
किरण की आँख खुली । उसने अंगङाई लेकर बिस्तर छोङा तो सबसे पहले उसे गुरनैब का चेहरा याद आय़ा । काश वह इस समय उसके पास होता । वह नहाकर निकलती , वह एकटक उसे देख रहा होता । वह चाय पकङाती और वह जानबूझ कर उसकी उँगलियाँ छू लेता । वह शर्माती सकुचाती रसोई में भाग जाती । वह गरमा गरम परौंठे सेकती और वह ताजा निकाले मक्खन के पेङे के साथ उसके चौंके में बैठा खा रहा होता । शर्माकर उसने अपना चेहरा हथेलियों से ढक लिया । एक मिनट वह वैसे ही हथेलियों में मुँह छिपाये बैठी रही कि उसकी तंद्रा टूटी – ये क्या जागते हुए वह सपने देखने लगी है । गुरनैब का अपना घर संसार है । बीबी है , बच्ची है और निरंजन के जाने के बाद घर भर की ढेर सारी जिम्मेदारियाँ हैं । इन अनेक जिम्मेदारियों में शायद वह भी शामिल है । तभी तो उसे उसकी जरुरत का हर सामान पहुँचा रहा है । उससे हँसकर दो बोल बोल लेता है । अपने नसीब की सीमाएँ वह जानती बूझती है पर इस मन का क्या करे जो उसकी ओर खिंचा ही जा रहा है । पहले ही दिन से वह उसे चाहने लगी है । इस राज को उसने आज तक अपने दिल के दस तालों में बंद कर रखा है । खुद अपने आप से भी यह राज नहीं कहती । बेशक गुरनैब के सामने आते ही उसका दिल बुरी तरह से धङकने लगता है । उछलकर हाथ में आने को होता है । जितनी देर वह सामने बैठा बातें करता रहता है , वह टकटकी लगाये उसकी चमकती आँखों में खोयी हाँ हूँ करती रहती है । आधी बातें उसके कानों तक पहुँचती है , आधी वहीं कहीं रास्ते में रह जाती है पर वह चेहरे या हावभाव से मन की बात जाहिर नहीं होने देती । और जब गुरनैब जाने लगता है तो उसका मन करता है कि किसी भी बहाने से वह गुरनैब को रोक ले ।

अभी कल ही तो फल देकर जब वह जाने लगा तो उसने रोक लिया था । सुन यह फ्रिज वहाँ से हटाके यहाँ दीवार के पास लगाना है । लगवा देगा क्या
गुरनैब ने फ्रिज को हाथ डाल लिया था और उसे उठाकर दीवार के पास सजा दिया था । फ्रिज टिकाने के बाद किरण ने उसे ध्यान से दो मिनट देखा और बोली – ये तो यहाँ जंच ही नहीं रहा । ऐसा कर इसे दोबारा वहीं रख देते हैं । गुरनैब ने बिना कुछ कहे दोबारा उसे पहले वाली जगह पर रख दिया और चला गया । किरण को अपने बचपने पर बहुत हँसी आई और वह जो हँसना शुरु हुई तो हँसते हँसते उसकी आँखों में आँसू आ गये । साथ ही याद आया निरंजन । निरंजन जो उस पर पूरा हक रखता था । उसकी चाल , बोल , ज्यादा क्या पूरे व्यक्तित्व में एक ठसक थी । जब आता , आते ही हुक्म देने के अंदाज में बोलता तो किरण भीतर तक डर जाती । यूँ अचानक साथ छूट जाएगा ,यह तो किरण ने कभी सोचा भी नहीं था और खुद निरंजन ने कभी ऐसा सोचा होगा ।

बाकी कहानी अगली कङी में ....

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