Soi takdir ki malikeyen book and story is written by Sneh Goswami in Hindi . This story is getting good reader response on Matrubharti app and web since it is published free to read for all readers online. Soi takdir ki malikeyen is also popular in फिक्शन कहानी in Hindi and it is receiving from online readers very fast. Signup now to get access to this story.
सोई तकदीर की मलिकाएँ - उपन्यास
Sneh Goswami
द्वारा
हिंदी फिक्शन कहानी
देशों में प्यारा , न्यारा , सबसे सुंदर देस पंजाब । पाँच पानियों की धरती । गुरूओं पीरों की धरती । इसी पंजाब के सीमावर्ती इलाके में है कोटकपूरा । कोटकपूरा पंजाब का बङे गांवनुमा कस्बा है जिसमें नवाब कपूर खान का बनवाया कोट यानि किला आज भी मौजूद है और इसके नाम को सार्थक करता है । मुगलों को समयसे ही यह आढत की मंडी रही है । इस कोटकपूरा से तेरह किलोमीटर दूरी पर बसा है मोहकलपुर किसी मोहकल सिंह राजा की बसाई हुई नगरी जिसे आज लोग सूफी संत बाबा फरीद के नाम पर फरीदकोट कहते हैं । इस तेरह किलोमीटर के बिल्कुल बीचोबीच , कोटकपूरा से सात किलोमीटर और फरीदकोट से करीब छ किलोमीटर दूरी पर बसा है एक गाँव संधवां जिसे शायद संधु जाटों ने बसाया होगा । अब यहाँ करीब पचास घर बसते हैं जिसमें सभी जातियों के लोग शामिल हैं । आजकल इस गाँव की ख्याति इस बात से है कि भारत के राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह इसी गाँव से थे । अभी भी उनके वंशज इसी गाँव में रहते हैं । उनका घर गुल्लीघङों का घर कहलाता है । गाँव में एक शूगरमिल है । चार पाँच कपास और बिनौले अलग अलग करने की फैक्ट्रियाँ हैं । एक कपास से सूत बनाने की सरकारी फैक्ट्री भी है । गाँव के बाहरवार एक ईंट भट्टा है । एक अदद हाईस्कूल भी है जहाँ हाजरी सिर्फ रजिस्टरों में लगती है । वरना इस गांव के बच्चे या तो स्कूल जाते ही नहीं , दिन भर भैंसों को जोङङ में नहलाने जाते हैं । गलियों में पतंगें उङाते हैं , कंचे या गुल्ली डंडे जैसे खेल खेलते हैं या फिर कोटकपूरा या फरीदकोट के अंग्रेजीदां किसी पब्लिक स्कूल में पढने जाते हैं । हाँ स्टेशन छोटा सा पर खूबसूरत बना है । जहां के बैंचों पर गाँव के बुजुर्ग अधलेटे बतियाते रहते हैं या फिर ताश खेलते हैं ।
सोई तकदीर की मलिकाएँ 1 देशों में प्यारा , न्यारा , सबसे सुंदर देस पंजाब । पाँच पानियों की धरती । गुरूओं पीरों की धरती । इसी पंजाब के सीमावर्ती इलाके में है कोटकपूरा । कोटकपूरा ...और पढ़ेका बङे गांवनुमा कस्बा है जिसमें नवाब कपूर खान का बनवाया कोट यानि किला आज भी मौजूद है और इसके नाम को सार्थक करता है । मुगलों को समयसे ही यह आढत की मंडी रही है । इस कोटकपूरा से तेरह किलोमीटर दूरी पर बसा है मोहकलपुर किसी मोहकल सिंह राजा की बसाई हुई नगरी जिसे आज लोग सूफी संत
सोई तकदीर की मलिकाएं 2 बेचारा भाई , इतनी जमीन जायदाद है । इतनी बङी महल जैसी हवेली । घर में चार भैंसें और दो गाय बंधी हैं । न दूध खत्म होता है न लस्सी । ...और पढ़ेइतना कि कोई हिसाब ही नहीं दोनों हाथ से लुटाएँ फिर भी खत्म न हो पर भगवान ने खाने पहनने के लिए कोई वारिस ही नहीं दिया । बसंत कौर का रूप अभी भी दहकता अंगारे जैसा है । बच्चे की आस मन में लिए लिए अब पचास के आसपास तो हो ही गयी होगी । बेचारी पाँच पूरणमाशी
3 अभी तक आपने पढा , सिंधवां फरीदकोट और कोटकपूरा के बीचोबीच बसा एक छोटा सा गाँव है । इस गाँव के जाने माने जमींदार परिवार का बेटा है भोला सिंह उर्फ बलजिंदर । भोला सिंह पचपन साल की ...और पढ़ेमें नयी शादी करके आया है । गाँव पङोस में इसकी चर्चा है । अब आगे ... बङी बहु कुलजीत ने कहा - बेचारा भाई , इतनी जमीन जायदाद है । इतनी बङी महल जैसी हवेली । घर में चार भैंसें और दो गाय बंधी हैं । न दूध खत्म होता है न लस्सी । पैसा इतना कि कोई हिसाब
सोई तकदीर की मलिकाएँ 4 भोला दोनों भाइयों में बङा था । इस नाते वह शुरू से ही जिम्मेदार था । भोले ने स्कूल से आठवीं पास की थी । वह लंबे तगङे जुस्से का मालिक था । कद ...और पढ़ेछ फुट । कबढ्डी में उतरता तो जिस टीम की ओर से खेलता , उस टीम का जीतना पक्का होता । गतका खेलने मैदान में उतरता तो लङकियाँ उसकी बांहों की मछलियाँ देख कर होंके भरना शुरु कर देती । दूध घी का शौकीन था । यारों का यार । आठवीं के बाद उसने भी पढाई छोङ दी और बाप
सोई तकदीर की मलिकाएँ 5 अगर एक क्षण की भी देरी हो जाती तो लङकी ने धङाम करके नीचे धरती पर गिर जाना था । गिर जाती तो चोट लग जाती । थोङी देर पहले वह तलवारों की जद ...और पढ़ेथी । अगर भोले ने न रोका होता तो वह भी अपने परिवार के बाकी सदस्यों की तरह खून के समन्दर में डूबी तङप रही होती । पर उसके नसीब नें इतनी आसानी से मरना नहीं लिखा था । मौत उसे छू कर करीब से लौट गयी थी क्योंकि उसकी सांसों का तानाबाना अभी अधूरा था इसलिए भोले के भीतर