सोई तकदीर की मलिकाएँ - 42 Sneh Goswami द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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सोई तकदीर की मलिकाएँ - 42

42


सुभाष की वह सारी रात सोते जागते करवट बदलते बीती । साथ वाले कमरे में भाई रमेश और भाभी सरोज सो रहे थे और बाहर बरामदे में माँ और बुआ भी बातें करती करती खर्ऱाटे भरने लगी थी । सब की जिंदगी में सुख चैन था , एक वही था जिससे नींद चार कोस पर रूठी बैठी थी । वह सारी रात सोचता रहा कि इन हालातों में उसे क्या करना चाहिए । एक तरफ तो उसका हृदय जयकौर के लिए बेचैन था । जयकौर के बोल बार बार उसके कानों में गूंजने लगते और वह उन्हीं में उलझा पङा था - तुझे जाना है और वापस भी आना है । देख वादाखिलाफी मत करना । कल हर हाल में वापिस आ जाना । मैं इंतजार करूँगी ।
दिल की सुनता तो दिल उङता हुआ जयकौर के पास जाना चाहता था । जल्दी से जल्दी , जितना जल्दी हो सके , उतनी जल्दी । पर दिमाग कहता , जयकौर अब किसी और की ब्याहता है । उसके साथ इश्क लङाना पाप होगा । अधर्म । समाज की रीति के विरूद्ध । जयकौर थोङे दिनों में अपनी नई दुनिया में रम जाएगी और सब कुछ भूल जाएगी ।
और तुम ... तुम क्या करोगे ।
मैंने क्या करना है । मैं फिर सारी जिंदगी शादी नहीं करूंगा । कुँआरा ही जिंदगी काट लूंगा । जयकौर को याद करता रहूँगा ।
उसका क्या फायदा होगा और शादी न करने का घर वालों को , समाज को क्या कारण बताया जाएगा । भाई भाभी अगर शादी के लिए दबाव डालने लगे तो बच कर कैसे निकल पाओगे । फिर जो लोकनिंदा होगी , उससे परिवार कैसे उबर पाएगा ।
यहाँ उसकी सोच जवाब दे जाती और वह बेबस होकर सिर धुनने लगता । इसी तरह खुद से बातें और दलीलें करते करते रात बीत ही गई । आकाश से तारे ओझल हो गये । लौ फूटने लगी । गली में हलचल होने लगी । लोग लोटे थामे नित्यकर्म के लिए जाने लगे थे । सरोज ने अपनी चारपाई टेढी की और झाङू लेकर आँगन बुहारने लगी । सारा परिवार उठ गया था । सुभाष ने भी अपना बिस्तर लपेटा और चारपाई उठा कर दीवार के साथ लगा दी । माँ ने चाय बना ली थी । वह हाथ मुँह धोकर चौके में जा बैठा और चुस्कियाँ लेकर चाय पीने लगा । - माँ वो अपनी जयकौर है न , वो शरणे के बहन जिसका थोङे दिन पहले ब्याह हुआ था , उसके घरवाले ने अपने खेत में मदद करने के लिए संधवा बुलाया है । सोचता हूँ चला जाऊँ । दो चार दिन काम करके देखता हूँ । मन लग गया तो ठीक , न लगा तो लौट आऊँगा ।
ठीक है , अगर वे बुला रहे हैं तो जाना चाहिए । कब जाएगा ?
सोचता हूँ , आज ही चला जाऊँ । अभी नाश्ता करके नहा धोकर तैयार हो जाता हूँ ।
कोई जरूरत नहीं कहीं जाने की । यहीं रह कर जो करना है , कर लो । यहाँ घर में काम कम हैं क्या । वैसे भी हम किसी के नौकर थोङे ही हैं जो घर बार छोङ कर उनकी गुलामी करने जायं – झाङू वहीं रख कर सरोज भी वहीं आ गयी थी ।
सुभाष ने सहायता के लिए माँ की ओर देखा ।
बेटे नयी नयी रिश्तेदारी जुङी है यहाँ गाँव में । ऐसे कैसे मना कर दें ।
माँ तुम तो जानती हो । ये जट्ट स्वभाव के बङे गुस्सैल होते हैं । कब किस बात से बिगङ जाएं , कोई नहीं जानता । और जब नाराज होते हैं तो इनका हाथ कोई नहीं पकङ सकता । ये सुभाष तो है भी बहुत सीधा सादा ।
उसकी चिंता मत करो भाभी । मैं माहौल देखूंगा । अगर सब ठीक हुआ तो रहूँगा वरना दो एक दिन में लौट आऊँगा ।
कहते कहते सुभाष तौलिया उठा कर नहाने चला गया । जल्दी जल्दी दो लोटे बदन पर डाल कर वह निकल आया और दो मिनट में ही तैयार होकर वह दोबारा चौके में पहुँचा , तब तक प्याज डली मिस्सी रोटियाँ बन कर तैयार थी । जब तक माँ थाली में परोसती , उसने हाथ में ही रोटी पकङ ली और गोल करके खाना शुरु कर दिया । उसने फटाफट दो रोटी खाई और अपना थैला उठा कर चल पङा ।
रमेश अभी चारपाई पर बैठा चुस्कियाँ लेकर चाय पी रहा था । सरोज ने जाकर उसे हिलाया – सुनो ये सुभाष इतनी बङी बेवकूफी करने जा रहा है , रोको उसे । मत जाने दो ।
रमेश ने सवालिया नजरों से उसे देखा – क्या हुआ ? इतना घबराई क्यों पङी है ? इतनी सुबह सुबह कहाँ जा रहा है सुभाष ?
अभी मैं पूरी कहानी विस्तार से नहीं बता रही , बस ये समझ लो कि सुभाष मौत से खेलने जा रहा है । रोक सकते हो तो जाकर रोक लो ।
ये तू क्या बक रही है ? मुझे तो कुछ समझ में नहीं आ रहा । कहाँ जा रहा है सुभाष ? ये लङका संधवा गया है । मैं सच कह रही हूँ । जयकौर के इश्क में ऐसा पागल हो गया है कि अब उसके घर में रहने और चाकरी करने को तैयार है । कहता है , जयकौर ने सरदार से बात कर ली है । किसी दिन सरदार को जरा भी शक हो गया तो काट के रख देगा ।
रमेश ने आधी पी चाय वहीं छोङ दी और बस अड्डे चल पङा । तेज तेज कदमों से चलता वह जब बस अड्डे पहुँचा , बस करीब डेढ किलोमीटर पर जा रही थी । सुभाष बस में सवार होकर जा चुका था ।
रमेश भारी मन से वापिस लौट आया ।
सरोज ने उसे अकेले आते देखा तो उसकी घबराहट बढ गई – क्या हुआ , उसने आने से मना कर दिया क्या ?
नहीं , मेरे अड्डे पर पहुँचने से पहले ही वह बस में बैठ कर जा चुका था ।
ओफ .. अब क्या होगा ।
जो ईश्वर को मंजूर है , होगा तो वही । पर अब तू पूरी बात बता , तू कह क्या रही थी । ये लङका संधवा क्या लेने गया है ।
सरोज ने वह सारी कहानी सुना दी जितनी उसे पता थी । जयकौर दोपहर के समय चारा काटने के लिए खेत जाने के लिए बुलाने आई । फिर रोज दोनों इकट्ठा खेत जाते । अक्सर जयकौर शाम को सब्जी की कटोरी देने आ जाती से लेकर सुभाष के बुआ के लौटने पर जयकौर की शादी की बात सुनते ही दीवानों जैसा व्यवहार , उसके संधवा जाने और लौट कर आने तक की सारी कहानी ।
सुन कर रमेश गहरी सोच में पङ गया । देख तो वह भी रहा था कि सुभाष का व्यवहार और स्वभाव एकदम बदल गया है । पूरा दिन पगलाया शा यहाँ वहाँ बैठा रहता है पर यह कारण होगा , ऐसा तो उसने सोचा ही नहीं था । कहते हैं – इश्क और मुश्क लाख ढकने पर भी नहीं छुपते ।
तूने मुझे पहले नहीं बताया यह सब ।
मुझे कहाँ पता था कि बात इस कदर बढ जाएगी । मुझे लगा था कि सदमा लगा है । दो चार दिन में खुद ही संभल जाएगा । यों इतनी बङी बेवकूफी करेगा , यह तो मैंने सोचा ही नहीं था ।

बाकी फिर ...